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| <ol start="4"> | | <ol start="4"> |
| <li>मंत्र, सूत्र एवं श्लोकपाठ: मंत्रों या श्लोकों के शब्द एवं अर्थ का हिस्सा देखें तो उसका समावेश योग में होता है। परंतु श्लोकों में छंद होते हैं एवं छंदों की स्वररचना निश्चित होती है। मंत्रो की भी स्वररचना निश्चित होती है। वैदिक मंत्र की गानपद्धति को स्वरित पद्धति कहते हैं। इसलिए इसका समावेश संगीत विषय में भी होता है। इस दृष्टि से बहुत से प्रचलित अनुष्टुप एवं शार्दूलविक्रिडित जैसे छंद एवं वेद के कुछ मंत्र शुद्ध एवं बलवान स्वर में गाना सिखाना चाहिए। <li>ताली बजाना: ताल सीखने के लिए सबसे पहले ताली बजाना सीखना चाहिए। संख्या के अनुसार ताली बजवाना एवं गीत के साथ ताली बजाकर ताली बजाने का अभ्यास करवाना चाहिए। | | <li>मंत्र, सूत्र एवं श्लोकपाठ: मंत्रों या श्लोकों के शब्द एवं अर्थ का हिस्सा देखें तो उसका समावेश योग में होता है। परंतु श्लोकों में छंद होते हैं एवं छंदों की स्वररचना निश्चित होती है। मंत्रो की भी स्वररचना निश्चित होती है। वैदिक मंत्र की गानपद्धति को स्वरित पद्धति कहते हैं। इसलिए इसका समावेश संगीत विषय में भी होता है। इस दृष्टि से बहुत से प्रचलित अनुष्टुप एवं शार्दूलविक्रिडित जैसे छंद एवं वेद के कुछ मंत्र शुद्ध एवं बलवान स्वर में गाना सिखाना चाहिए। <li>ताली बजाना: ताल सीखने के लिए सबसे पहले ताली बजाना सीखना चाहिए। संख्या के अनुसार ताली बजवाना एवं गीत के साथ ताली बजाकर ताली बजाने का अभ्यास करवाना चाहिए। |
− | <li>सामान्य ताल एवं बोल: जिस तरह अलंकारों से स्वर का अभ्यास होता है, उसी तरह ताल के बोल से ताल का अभ्यास होता है। इसलिए प्रचलित तीन ताल का समावेश यहाँ किया गया है। | + | <li>सामान्य ताल एवं बोल: जिस तरह अलंकारों से स्वर का अभ्यास होता है, उसी तरह ताल के बोल से ताल का अभ्यास होता है। इसलिए प्रचलित तीन ताल का समावेश यहाँ किया गया है।<br> |
− | | |
− | | |
| </ol>'''कहेरवा''' | | </ol>'''कहेरवा''' |
| | | |
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| |धी न | | |धी न |
| |} | | |} |
− | दादरा | + | '''दादरा''' |
| | | |
| मात्रा-६, खंड-२ | | मात्रा-६, खंड-२ |
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| | | |
| जिस तरह ताली के साथ बोल बोलकर ताल का अभ्यास किया जाता है, उसी तरह तबले पर बोल के वादन के साथ ताली बजाकर एवं बोल बोलकर अभ्यास किया जा सकता है। तबला बजाने आना हमारा मुख्य उद्देश्य नहीं है। हमारा मुख्य उद्देश्य ताल समझकर कम से कम ताली बजाना आ जाए इतना ही है। | | जिस तरह ताली के साथ बोल बोलकर ताल का अभ्यास किया जाता है, उसी तरह तबले पर बोल के वादन के साथ ताली बजाकर एवं बोल बोलकर अभ्यास किया जा सकता है। तबला बजाने आना हमारा मुख्य उद्देश्य नहीं है। हमारा मुख्य उद्देश्य ताल समझकर कम से कम ताली बजाना आ जाए इतना ही है। |
− | <ol start="7"> | + | <ol start="7"><li>विविध एवं चित्रविचित्र उच्चारणों के साथ स्वर एवं ताल का अभ्यास । |
| | | |
| + | उदाहरण के तौर पर: |
| | | |
− | <li>विविध एवं चित्रविचित्र उच्चारणों के साथ स्वर एवं ताल का अभ्यास ।
| + | {| class="wikitable" |
− | | + | |+ |
− | उदाहरण के तौर पर १. टणणण टणणण टणणण टणणण
| + | ! |
− | | + | ! |
− | २. टणणट | + | ! |
− | | + | ! |
− | णणटण टणटण
| + | ! |
− | | + | |- |
− | टणणण
| + | |1 |
− | | + | |टणणण |
− | णणणण | + | |टणणण |
− | | + | |टणणण |
− | १ | + | |टणणण |
− | | + | |- |
− | ३. टणणटणणणण टणणट | + | | |
− | | + | |१ |
− | ३ टणटण टणणण टणटण
| + | |२ |
− | | + | |३ |
− | २ ५. छननन छुमछुम छुमछुम | + | |४ |
− | | + | |- |
− | टणणण
| + | |2 |
− | | + | |टणणट |
− | छननन
| + | |णणटण |
− | | + | |टणटण |
− | ६. झमकझ
| + | |टणणण |
− | | + | |- |
− | मकझम | + | | |
− | | + | |१ |
− | झमकझ मकझम
| + | |२ |
− | | + | |३ |
− | ७.
| + | |४ |
− | | + | |- |
− | ता
| + | |3 |
− | | + | |टणणट |
− | ता
| + | |णणणण |
− | | + | |टणणट |
− | थै
| + | |णणणण |
− | | + | |- |
− | थै | + | | |
− | | + | |१ |
− | ता | + | |२ |
− | | + | |३ |
− | ता
| + | |४ |
− | | + | |- |
− | थै
| + | |4 |
− | | + | |टणटण |
− | थै
| + | |टणणण |
− | | + | |टणटण |
− | | + | |टणणण |
− | <li>८. छुमछुम
| + | |- |
− | | + | | |
− | छननन | + | |१ |
− | | + | |२ |
− | छुम छन
| + | |३ |
− | | + | |४ |
− | छननन
| + | |- |
− | | + | |5 |
− | <li>९. तकधीन तकधीन
| + | |छननन |
− | | + | |छुमछुम |
− | ताता तकधीन
| + | |छुमछुम |
− | | + | |छननन |
− | <li> १०. धीन तक धीन तक धीन तक
| + | |- |
− | | + | | |
− | धीनता
| + | |१ |
− | | + | |२ |
− | | + | |३ |
− | | + | |४ |
− | <nowiki>*</nowiki> इन सभी बोल एवं ताल को विविध स्वररचना में गा सकते हैं। * ताली एवं चुटकी के साथ इन बोलों को पक्का करने के बाद इसमें नृत्य एवं
| + | |- |
− | | + | |6 |
− | अभिनय भी जोड़ा जा सकता है। * ऐसी ही अन्य रचनाएँ आचार्य अपनी कल्पनाशक्ति से रच सकते हैं। * यह सब करने के लिए वातावरण मुक्त एवं उल्लासपूर्ण होना चाहिए। | + | |झमकझ |
| + | |मकझम |
| + | |झमकझ |
| + | |मकझम |
| + | |- |
| + | | |
| + | |१ |
| + | |२ |
| + | |३ |
| + | |४ |
| + | |- |
| + | |7 |
| + | |ता ता |
| + | |थै थै |
| + | |ता ता |
| + | |थै थै |
| + | |- |
| + | | |
| + | |१ |
| + | |२ |
| + | |३ |
| + | |४ |
| + | |- |
| + | |8 |
| + | |छुमछुम |
| + | |छननन |
| + | |छुम छन |
| + | |छननन |
| + | |- |
| + | | |
| + | |१ |
| + | |२ |
| + | |३ |
| + | |४ |
| + | |- |
| + | |9 |
| + | |तकधीन |
| + | |तकधीन |
| + | |ताता |
| + | |तकधीन |
| + | |- |
| + | | |
| + | |१ |
| + | |२ |
| + | |३ |
| + | |४ |
| + | |- |
| + | |10. |
| + | |धीन तक |
| + | |धीन तक |
| + | |धीन तक |
| + | |धीनता |
| + | |- |
| + | | |
| + | |१ |
| + | |२ |
| + | |३ |
| + | |४ |
| + | |} |
| + | * इन सभी बोल एवं ताल को विविध स्वररचना में गा सकते हैं। |
| + | * ताली एवं चुटकी के साथ इन बोलों को पक्का करने के बाद इसमें नृत्य एवं अभिनय भी जोड़ा जा सकता है। |
| + | * ऐसी ही अन्य रचनाएँ आचार्य अपनी कल्पनाशक्ति से रच सकते हैं। |
| + | * यह सब करने के लिए वातावरण मुक्त एवं उल्लासपूर्ण होना चाहिए। |
| + | वाद्यों का वादन |
| | | |
− | वाद्यों का वादन १. इन कक्षाओ में वाद्य बिलकुल सामान्य होने चाहिए। वाद्यों के दो प्रकार हैं।
| + | १. इन कक्षाओ में वाद्य बिलकुल सामान्य होने चाहिए। वाद्यों के दो प्रकार हैं। |
| | | |
| स्वरवाद्य एवं तालवाद्य। वंशी, शहनाई, हारमोनियम, सितार, जलतरंग इत्यादि स्वरवाद्य हैं। मंजीरे, खंजरी, धुंघरू, ढोलक, तबला इत्यादि तालवाद्य हैं। स्वरवाद्यों का अभ्यास अभी जरूरी नहीं है। तालवाद्य ही सिखाना चाहिए। अभी सिखाने योग्य वाद्यों में मंजीरे, खंजरी, एवं धुंघरु का समावेश हो सकता है। __ ताली बजाना आ जाने के बाद मंजीरा बजाना सिखाना चाहिए। मंजीरे को पकड़ने की विधि एवं उसके टंकार से निकलने वाली ध्वनि कैसे निकलती है - यह सब सिखाना चाहिए। ताल तो अब आ ही गया है। इसलिए इस टंकार की ओर ही ध्यान आकर्षित करना चाहिए। इसी तरह खंजरी पकड़ना एवं थाप मारना भी सिखाना चाहिए। इसके लिए मंजीरे उत्तम टंकार वाले एवं खंजरी का चमड़ा एवं उसमें लगे छल्ले उत्तम प्रकार के होने चाहिए। ताली में जो जो बोला या गाया जा सकता हो वह सब कुछ मंजीरा एवं खंजरी के साथ भी गाया जा सकता है। | | स्वरवाद्य एवं तालवाद्य। वंशी, शहनाई, हारमोनियम, सितार, जलतरंग इत्यादि स्वरवाद्य हैं। मंजीरे, खंजरी, धुंघरू, ढोलक, तबला इत्यादि तालवाद्य हैं। स्वरवाद्यों का अभ्यास अभी जरूरी नहीं है। तालवाद्य ही सिखाना चाहिए। अभी सिखाने योग्य वाद्यों में मंजीरे, खंजरी, एवं धुंघरु का समावेश हो सकता है। __ ताली बजाना आ जाने के बाद मंजीरा बजाना सिखाना चाहिए। मंजीरे को पकड़ने की विधि एवं उसके टंकार से निकलने वाली ध्वनि कैसे निकलती है - यह सब सिखाना चाहिए। ताल तो अब आ ही गया है। इसलिए इस टंकार की ओर ही ध्यान आकर्षित करना चाहिए। इसी तरह खंजरी पकड़ना एवं थाप मारना भी सिखाना चाहिए। इसके लिए मंजीरे उत्तम टंकार वाले एवं खंजरी का चमड़ा एवं उसमें लगे छल्ले उत्तम प्रकार के होने चाहिए। ताली में जो जो बोला या गाया जा सकता हो वह सब कुछ मंजीरा एवं खंजरी के साथ भी गाया जा सकता है। |