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ब्रह्मोवाच तपोविशिष्टादपि वै वशिष्ठान्मु[विशिष्टान्मु]निसंचयात्॥ 1-1-77
 
ब्रह्मोवाच तपोविशिष्टादपि वै वशिष्ठान्मु[विशिष्टान्मु]निसंचयात्॥ 1-1-77
   
मन्ये श्रेष्ठतरं त्वां वै रहस्यज्ञानवेदनात्।
 
मन्ये श्रेष्ठतरं त्वां वै रहस्यज्ञानवेदनात्।
   
जन्मप्रभृति सत्यां ते वेद्मि गां ब्रह्मवादिनीम्॥ 1-1-78
 
जन्मप्रभृति सत्यां ते वेद्मि गां ब्रह्मवादिनीम्॥ 1-1-78
   
त्वया च काव्यमित्युक्तं तस्मात्काव्यं भविष्यति।
 
त्वया च काव्यमित्युक्तं तस्मात्काव्यं भविष्यति।
   
अस्य काव्यस्य कवयो न समर्था विशेषणे॥ 1-1-79
 
अस्य काव्यस्य कवयो न समर्था विशेषणे॥ 1-1-79
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विशेषणे गृहस्थस्य शेषास्त्रय इवाश्रमाः।
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विशेषणे गृहस्थस्य शेषास्त्रय इवाश्रमाः।
      
काव्यस्य लेखनार्थाय गणेशः स्मर्यतां मुने॥ 1-1-80
 
काव्यस्य लेखनार्थाय गणेशः स्मर्यतां मुने॥ 1-1-80
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