भारत में कला का अगली पीढी को अंतरण गुरुकुल प्रणाली से होता था| यह शिक्षा की सर्वश्रेष्ठ प्रणाली है| इस में गुरुगृहवास मुख्य बात है| विविधता यह प्राकृतिक होती है| इसीलिये भारतीय कलाओं में भी भिन्न भिन्न शैलियों का विकास हुआ हम देखते हैं| भारतीय संगीत में दो प्रमुख शैलियाँ बनीं| हिन्दुस्तानी (उत्तर भारतीय) संगीत और दक्षिण भारतीय संगीत| उत्तर भारतीय संगीत में भी ग्वालियर घराना, किराना घराना आदि शैलियाँ विकसित हुईं| नृत्य के क्षेत्र में कत्थक, कुचीपुडी, भरतनाट्यम् आदि शैलियाँ बनीं| शिल्पकाला में भी अनेकों शैलियाँ बनीं| नाट्य के क्षेत्र में भी अनेकों शैलियाँ दिखाई देतीं हैं| अपनी विशेषता को बनाए रखने के लिए कला का अंतरण जस का तस हो इसका आग्रह होता है| गुरु की शैली को जस की तस आत्मसात करने के लिए गुरुकुल प्रणाली से अधिक श्रेष्ठ अन्य प्रणाली नहीं है| आज भी गुरुकुल पद्धति से कला के अंतरण के उदाहरण देखने को मिलते हैं| | भारत में कला का अगली पीढी को अंतरण गुरुकुल प्रणाली से होता था| यह शिक्षा की सर्वश्रेष्ठ प्रणाली है| इस में गुरुगृहवास मुख्य बात है| विविधता यह प्राकृतिक होती है| इसीलिये भारतीय कलाओं में भी भिन्न भिन्न शैलियों का विकास हुआ हम देखते हैं| भारतीय संगीत में दो प्रमुख शैलियाँ बनीं| हिन्दुस्तानी (उत्तर भारतीय) संगीत और दक्षिण भारतीय संगीत| उत्तर भारतीय संगीत में भी ग्वालियर घराना, किराना घराना आदि शैलियाँ विकसित हुईं| नृत्य के क्षेत्र में कत्थक, कुचीपुडी, भरतनाट्यम् आदि शैलियाँ बनीं| शिल्पकाला में भी अनेकों शैलियाँ बनीं| नाट्य के क्षेत्र में भी अनेकों शैलियाँ दिखाई देतीं हैं| अपनी विशेषता को बनाए रखने के लिए कला का अंतरण जस का तस हो इसका आग्रह होता है| गुरु की शैली को जस की तस आत्मसात करने के लिए गुरुकुल प्रणाली से अधिक श्रेष्ठ अन्य प्रणाली नहीं है| आज भी गुरुकुल पद्धति से कला के अंतरण के उदाहरण देखने को मिलते हैं| |