Changes

Jump to navigation Jump to search
→‎अध्यात्म: लेख सम्पादित किया
Line 75: Line 75:     
== अध्यात्म ==
 
== अध्यात्म ==
अध्यात्म भारत की खास संकल्पना है। सृष्टिरचना के मूल में आत्मतत्व है। आत्मतत्व अव्यक्त, अपरिवर्तनीय, अमूर्त संकल्पना है जिसमें से यह व्यक्त सृष्टि निर्माण हुई है। अव्यक्त आत्मतत्व ही व्यक्त सृष्टि में रूपान्तरित हुआ है। आत्मतत्व और सृष्टि में कोई अन्तर नहीं है। अव्यक्त आत्मतत्व से व्यक्त सृष्टि क्यों बनी इसका कारण केवल आत्मतत्व का संकल्प है।
+
अध्यात्म भारत की खास संकल्पना है। सृष्टिरचना के मूल में आत्मतत्व है। आत्मतत्व अव्यक्त, अपरिवर्तनीय, अमूर्त संकल्पना है जिसमें से यह व्यक्त सृष्टि निर्माण हुई है। अव्यक्त आत्मतत्व ही व्यक्त सृष्टि में रूपान्तरित हुआ है। आत्मतत्व और सृष्टि में कोई अन्तर नहीं है। अव्यक्त आत्मतत्व से व्यक्त सृष्टि क्यों बनी इसका कारण केवल आत्मतत्व का संकल्प है। इस सृष्टि में सर्वत्र आत्मतत्व अनुस्युत है इसलिए सृष्टि के सारे सम्बन्धों का, सर्व व्यवहारों का, सर्व व्यवस्थाओं का मूल अधिष्ठान आत्मतत्व है।
| इस सृष्टि में सर्वत्र आत्मतत्व अनुस्युत है इसलिए | सृष्टि के सारे सम्बन्धों का, सर्व व्यवहारों का, सर्व व्यवस्थाओं का मूल अधिष्ठान आत्मतत्व है।
+
 
आत्मतत्व के अधिष्ठान पर जो भी स्थित है वह आध्यात्मिक है। यह उसकी भावात्मक नहीं अपितु बौद्धिक व्याख्या है।
+
आत्मतत्व के अधिष्ठान पर जो भी स्थित है वह आध्यात्मिक है। यह उसकी भावात्मक नहीं अपितु बौद्धिक व्याख्या है। इसलिए आध्यात्मिकता भगवे वस्त्र, संन्यास, मठ, मन्दिर या संसारत्याग से जुड़ी हुई संकल्पना नहीं है अपितु संसार के सारे व्यवहारों से जुड़ा हुआ तत्व है। आज इसी बात का घालमेल हुआ है। इस संकल्पना के कारण सृष्टि की सारी रचनाओं तथा व्यवस्थाओं में एकात्मता की कल्पना की गई है। जहां जहां भी एकात्मता है, वहाँ आध्यात्मिक अधिष्ठान है ऐसा हम कह सकते हैं।
| इसलिए आध्यात्मिकता भगवे वस्त्र, संन्यास, मठ, मन्दिर या संसारत्याग से जुड़ी हुई संकल्पना नहीं है अपितु संसार के सारे व्यवहारों से जुड़ा हुआ तत्व है। आज इसी बात का घालमेल हुआ है।
+
 
इस संकल्पना के कारण सृष्टि की सारी रचनाओं तथा व्यवस्थाओं में एकात्मता की कल्पना की गई है। जहां जहां भी एकात्मता है वहाँ आध्यात्मिक अधिष्ठान है ऐसा हम कह सकते हैं।
+
भारत में गृहव्यवस्था, समाजव्यवस्था, अर्थव्यवस्था, राज्यव्यवस्था का मूल अधिष्ठान अध्यात्म ही है। अत: आध्यात्मिक अर्थशास्त्र कहने में कोई अस्वाभाविकता नहीं है। भारत का युगों का इतिहास प्रमाण है कि इस संकल्पना ने भारत की व्यवस्थाओं को इतना उत्तम बनाया है और व्यवहारों को इतना अर्थपूर्ण और मानवीय बनाया है कि वह विश्व में सबसे अधिक आयुवाला तथा समृद्ध राष्ट्र बना है। इस संकल्पना के कारण भारत की हर व्यवस्था में समरसता दिखाई देती है क्योंकि सर्वत्र आत्मतत्व व्याप्त होने के कारण सृष्टि का हर पदार्थ दूसरे से जुड़ा हुआ है और दूसरे से प्रभावित होता है, ऐसी समझ बनती है। समग्रता में विचार करने के कारण से और उसके आधार पर व्यवस्थायें बनाने से कम से कम संकट निर्माण होते हैं यह व्यवहार का नियम है।
   −
भारत में गृहव्यवस्था, समाजव्यवस्था, अर्थव्यवस्था, राज्यव्यवस्था का मूल अधिष्ठान अध्यात्म ही है। अत: आध्यात्मिक अर्थशास्त्र कहने में कोई अस्वाभाविकता नहीं है।
  −
| भारत का युगों का इतिहास प्रमाण है कि इस संकल्पना ने भारत की व्यवस्थाओं को इतना उत्तम बनाया है और व्यवहारों को इतना अर्थपूर्ण और मानवीय बनाया है। कि वह विश्व में सबसे अधिक आयुवाला तथा समृद्ध राष्ट्र बना है।
  −
इस संकल्पना के कारण भारत की हर व्यवस्था में समरसता दिखाई देती है क्योंकि सर्वत्र आत्मतत्व व्याप्त होने के कारण सृष्टि का हर पदार्थ दूसरे से जुड़ा हुआ है।
  −
और दूसरे से प्रभावित होता है ऐसी समझ बनती है। समग्रता में विचार करने के कारण से और उसके आधार पर व्यवस्थायें बनाने से कम से कम संकट निर्माण होते हैं यह व्यवहार का नियम है।।
   
वर्तमान बौद्धिक संभ्रम के परिणामस्वरूप हम भौतिक और आध्यात्मिक ऐसे दो विभाग करते हैं और हर स्थिति को दो भागों में बांटकर ही देखते हैं। हमारी बौद्धिक कठिनाई यह है कि हम मानते हैं कि जो भौतिक नहीं है वह आध्यात्मिक है और आध्यात्मिक है वह भौतिक नहीं है। वास्तव में भौतिक और आध्यात्मिक ऐसे दो विभाग ही नहीं हैं। भौतिक का अधिष्ठान आध्यात्मिक होता है।
 
वर्तमान बौद्धिक संभ्रम के परिणामस्वरूप हम भौतिक और आध्यात्मिक ऐसे दो विभाग करते हैं और हर स्थिति को दो भागों में बांटकर ही देखते हैं। हमारी बौद्धिक कठिनाई यह है कि हम मानते हैं कि जो भौतिक नहीं है वह आध्यात्मिक है और आध्यात्मिक है वह भौतिक नहीं है। वास्तव में भौतिक और आध्यात्मिक ऐसे दो विभाग ही नहीं हैं। भौतिक का अधिष्ठान आध्यात्मिक होता है।
इयलिए विचार या तो. आध्यात्मिक होता है या
  −
अनाध्यात्मिक, आध्यात्मिक या भौतिक नहीं होता। कारण
  −
स्पष्ट है। आध्यात्मिक का व्यक्त रूप ही भौतिक है।
  −
इसलिए जिस प्रकार आध्यात्मिक अर्थशास्त्र संभव है उसी
  −
प्रकार आध्यात्मिक भौतिक विज्ञान भी सम्भव है।
  −
  −
भारत में और पश्चिम में अन्तर यह है कि पश्चिम
  −
अनाध्यात्मिक भौतिक है और भारत आध्यात्मिक भौतिक
     −
है। आध्यात्मिक भौतिक होने के कारण भारत में समृद्धि के
+
इसलिए विचार या तो आध्यात्मिक होता है या अनाध्यात्मिक, आध्यात्मिक या भौतिक नहीं होता। कारण स्पष्ट है। आध्यात्मिक का व्यक्त रूप ही भौतिक है। इसलिए जिस प्रकार आध्यात्मिक अर्थशास्त्र संभव है उसी प्रकार आध्यात्मिक भौतिक विज्ञान भी सम्भव है।
साथ साथ संस्कृति भी विकसित होती है जबकि पश्चिम में
  −
संस्कृति को छोड़कर ही समृद्धि सम्भव
  −
है। समृद्धि और संस्कृति को एकसाथ प्राप्त करने के लिये
  −
आध्यात्मिकता की बराबरी कर सके ऐसी कोई संकल्पना
  −
नहीं है।
     −
भारत के बौद्धिक जगत के लिये यह आध्यात्मिक
+
भारत में और पश्चिम में अन्तर यह है कि पश्चिम अनाध्यात्मिक भौतिक है और भारत आध्यात्मिक भौतिक है। आध्यात्मिक भौतिक होने के कारण भारत में समृद्धि के साथ साथ संस्कृति भी विकसित होती है जबकि पश्चिम में संस्कृति को छोड़कर ही समृद्धि सम्भव है। समृद्धि और संस्कृति को एक साथ प्राप्त करने के लिये आध्यात्मिकता की बराबरी कर सके ऐसी कोई संकल्पना नहीं है।
और भौतिक का समन्वय स्थापित करना ही बड़ी चुनौती
  −
है। कई पीढ़ियों से बौद्धिक क्षेत्र, और उसके मूल में
  −
शिक्षाक्षेत्र उल्टी दिशा में चला है इसलिए वह कठिन तो है
     −
... परन्तु अनिवार्य रूप से करणीय है।
+
भारत के बौद्धिक जगत के लिये यह आध्यात्मिक और भौतिक का समन्वय स्थापित करना ही बड़ी चुनौती है। कई पीढ़ियों से बौद्धिक क्षेत्र, और उसके मूल में शिक्षाक्षेत्र उल्टी दिशा में चला है इसलिए वह कठिन तो है परन्तु अनिवार्य रूप से करणीय है।
    
== संस्कृति ==
 
== संस्कृति ==
संस्कृति का अर्थ है जीवनशैली। संस्कृति संज्ञा का
+
संस्कृति का अर्थ है जीवनशैली। संस्कृति संज्ञा का संबन्ध धर्म के साथ है। धर्म विश्वनियम है। धर्म एक सार्वभौम व्यवस्था है। संस्कृति उसके अनुसरण में की हुई कृति है। संस्कृति धर्म की प्रणाली है। पीढ़ी दर पीढ़ी आचरण करते करते सम्पूर्ण प्रजा की जो रीति बन जाती है, वही संस्कृति है। भारत की प्रजा की जो जीवनरीति है, वह भारतीय संस्कृति है।
संबन्ध धर्म के साथ है। धर्म विश्वनियम है। धर्म एक
  −
सार्वभौम व्यवस्था है। संस्कृति उसके अनुसरण में की हुई
  −
कृति है। संस्कृति धर्म की प्रणाली है। पीढ़ी दर पीढ़ी
  −
आचरण करते करते सम्पूर्ण प्रजा की जो रीति बन जाती है
  −
वही संस्कृति है। भारत की प्रजा की जो जीवनरीति है वह
  −
भारतीय संस्कृति है।
     −
आज संस्कृति का धर्म का पक्ष ध्यान में नहीं रहा है
+
आज संस्कृति का धर्म का पक्ष ध्यान में नहीं रहा है और केवल रीतियों को संस्कृति कहा जाने लगा है। उदाहरण के लिये रंगमंच कार्यक्रम में जो नाटक, नृत्य, गीतसंगीत होते हैं उन्हें सांस्कृतिक कार्यक्रम कहा जाता है। विदेशों में देश का सांस्कृतिक दल जाता है तब उसमें गायक और नर्तक होते हैं। वेषभूषा, खानपान के पदार्थ, अलंकार आदि के प्रदर्शन सांस्कृतिक प्रदर्शन कहे जाते हैं। ये सब संस्कृति के अंग तो हैं परन्तु ये ही केवल संस्कृति नहीं हैं।
और केवल रीतियों को संस्कृति कहा जाने लगा है।
  −
उदाहरण के लिये रंगमंच कार्यक्रम में जो नाटक, नृत्य,
  −
गीतसंगीत होते हैं उन्हें सांस्कृतिक कार्यक्रम कहा जाता है।
  −
विदेशों में देश का सांस्कृतिक दल जाता है तब उसमें
  −
गायक और नर्तक होते हैं। वेषभूषा, खानपान के पदार्थ,
  −
अलंकार आदि के प्रदर्शन सांस्कृतिक प्रदर्शन कहे जाते हैं।
  −
ये सब संस्कृति के अंग तो हैं परन्तु ये ही केवल संस्कृति
  −
नहीं हैं।
     −
अन्न को, गाय को, तुलसी को, पानी को पवित्र
+
अन्न को, गाय को, तुलसी को, पानी को पवित्र मानकर जो व्यवहार की रीति बनाती है वह संस्कृति है। हम भोजन करने बैठे हैं तब जो भी कोई आता है उसे भोजन के लिये साथ बिठाना हमारी संस्कृति है, जबकि पूर्वसूचना देकर नहीं आए तो भोजन के लिये पुछने की आवश्यकता नहीं, आने वाला भी ऐसी अपेक्षा नहीं करेगा यह पश्चिम की संस्कृति है।
मानकर जो व्यवहार की रीति बनाती है वह संस्कृति है।
  −
हम भोजन करने बैठे हैं तब जो भी कोई आता है उसे
  −
भोजन के लिये साथ बिठाना हमारी संस्कृति है, जबकि
  −
पूर्वसूचना देकर नहीं आए तो भोजन के लिये पुछने की
  −
आवश्यकता नहीं, आने वाला भी ऐसी अपेक्षा नहीं करेगा
  −
यह पश्चिम की संस्कृति है।
     −
केवल कलाकृतियाँ संस्कृति नहीं है अपितु प्रजा की
+
केवल कलाकृतियाँ संस्कृति नहीं है अपितु प्रजा की जीवनदृष्टि जिस पद्धति से जिस रूप में कलाकृतियों में अभिव्यक्त होती है वह संस्कृति है। उदाहरण के लिये संस्कृत के महाकाव्य और महानाटक कभी दुःखान्त नहीं होते क्योंकि जीवन का विधायक दृष्टिकोण काव्य में व्यक्त होना चाहिये ऐसी प्रजा की मान्यता है। यतों धर्मस्ततो जय: का सूत्र सभी कलाकृतियों में व्यक्त होना चाहिये ऐसी दृष्टि है। “कला के लिये कला' का सूत्र भारतीय साहित्य में मान्य नहीं है। साहित्य का प्रयोजन भी जीवनलक्षी होना चाहिये।
जीवनदृष्टि जिस पद्धति से जिस रूप में कलाकृतियों में
  −
अभिव्यक्त होती है वह संस्कृति है। उदाहरण के लिये
  −
संस्कृत के महाकाव्य और महानाटक कभी दुःखान्त नहीं
  −
होते क्योंकि जीवन का विधायक दृष्टिकोण काव्य में व्यक्त
  −
होना चाहिये ऐसी प्रजा की मान्यता है। यतों धर्मस्ततो
  −
जय: का सूत्र सभी कलाकृतियों में व्यक्त होना चाहिये ऐसी
  −
दृष्टि है। “कला के लिये कला' का सूत्र भारतीय साहित्य
  −
में मान्य नहीं है। साहित्य का प्रयोजन भी जीवनलक्षी होना
  −
चाहिये।
     −
इतिहास क्यों पढ़ना चाहिये ?आज की तरह केवल
+
इतिहास क्यों पढ़ना चाहिये ?आज की तरह केवल राजकीय इतिहास पढ़ना भारत में कभी आवश्यक नहीं माना गया। सांस्कृतिक इतिहास पढ़ना ही आवश्यक माना गया क्योंकि इतिहास से धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष हेतु कैसा व्यवहार करना चाहिये और कैसा नहीं इसकी प्रेरणा और उपदेश मिलता है। सांस्कृतिक भूगोल उसे कहते हैं जहां भूमि के साथ भावनात्मक सम्बन्ध जुड़ता है। सांस्कृतिक समाजशास्त्र उसे कहते हैं जहां धर्म की रक्षा के लिये उसका अनुसरण होता है। सांस्कृतिक अर्थशास्त्र उसे कहते हैं जहां धर्म के अविरोधी अथर्जिन होता है। तात्पर्य यह है कि संस्कृति केवल कला नहीं अपितु जीवनशैली है।
राजकीय इतिहास पढ़ना भारत में कभी आवश्यक नहीं माना
  −
गया। सांस्कृतिक इतिहास पढ़ना ही आवश्यक माना गया
  −
क्योंकि इतिहास से धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष हेतु कैसा
  −
व्यवहार करना चाहिये और कैसा नहीं इसकी प्रेरणा और
  −
उपदेश मिलता है। सांस्कृतिक भूगोल उसे कहते हैं जहां
  −
भूमि के साथ भावनात्मक सम्बन्ध जुड़ता है। सांस्कृतिक
  −
समाजशास्त्र उसे कहते हैं जहां धर्म की रक्षा के लिये उसका
  −
अनुसरण होता है। सांस्कृतिक अर्थशास्त्र उसे कहते हैं जहां
  −
धर्म के अविरोधी अथर्जिन होता है। तात्पर्य यह है कि
  −
संस्कृति केवल कला नहीं अपितु जीवनशैली है।
     −
मातृ देवो भव, पितृ देवो भव, अतिथि देवो भव,
+
मातृ देवो भव, पितृ देवो भव, अतिथि देवो भव,आचार्य देवो भव, यह भारतीय संस्कृति का आचार है।
आचार्य देवो भव, यह भारतीय संस्कृति का आचार है।
     −
युद्ध करते समय भी धर्म को नहीं छोड़ना यह भारतीय संस्कृति की रीत है। भूतमात्र का हित | चाहना यह भारतीय संस्कृति की रीत है। भोजन को ब्रह्म मानना और उसे जठराग्नि को आहुती देने के रूप में ग्रहण करना भारतीय संस्कृति की रीत है।
+
युद्ध करते समय भी धर्म को नहीं छोड़ना यह भारतीय संस्कृति की रीत है। भूतमात्र का हित चाहना यह भारतीय संस्कृति की रीत है। भोजन को ब्रह्म मानना और उसे जठराग्नि को आहुती देने के रूप में ग्रहण करना भारतीय संस्कृति की रीत है। धर्म और संस्कृति साथ साथ प्रयुक्त होने वाली संज्ञायें हैं। इसका अर्थ यही है कि संस्कृति धर्म का अनुसरण करती है।
धर्म और संस्कृति साथ साथ प्रयुक्त होने वाली संज्ञायें हैं। इसका अर्थ यही है कि संस्कृति धर्म का अनुसरण करती है।
      
संस्कृति में आनन्द का भाव भी जुड़ा हुआ है। जीवन में जब आनन्द का अनुभव होता है तो वह नृत्य, गीत, काव्य आदि के माध्यम से अभिव्यक्त होता है। सौन्दर्य की अनुभूति वस्त्रालंकार, शिल्पस्थापत्य में अभिव्यक्त होती है। इसलिए सांस्कृतिक अभिव्यक्ति में रस है, आनन्द है, सौन्दर्य है। जीवन में सत्य और धर्म की अभिव्यक्ति को भी सुन्दर बना देना भारतीय संस्कृति की विशेषता है।
 
संस्कृति में आनन्द का भाव भी जुड़ा हुआ है। जीवन में जब आनन्द का अनुभव होता है तो वह नृत्य, गीत, काव्य आदि के माध्यम से अभिव्यक्त होता है। सौन्दर्य की अनुभूति वस्त्रालंकार, शिल्पस्थापत्य में अभिव्यक्त होती है। इसलिए सांस्कृतिक अभिव्यक्ति में रस है, आनन्द है, सौन्दर्य है। जीवन में सत्य और धर्म की अभिव्यक्ति को भी सुन्दर बना देना भारतीय संस्कृति की विशेषता है।

Navigation menu