भारत में अंग्रेजी शिक्षा को स्थापित हुए अब २०० वर्षों से अधिक काल हो गया है। इस काल में हमने अंग्रेजी या पाश्चात्य जीवनदृष्टि का लगभग स्वीकार कर लिया दिखाई देता है। केवल पाश्चात्य जीवनदृष्टि ही नहीं तो उस के अनुसार प्रत्यक्ष व्यवहार और व्यवस्थाओं का भी हमने स्वीकार कर लिया है। जैसे हमने अंग्रेजों जैसे कपडे पहनना स्वीकार कर लिया है। कपडों को किया हुआ लोहा नहीं बिगडे इस लिये अब हम कुर्सी पर बैठकर, टेबल पर खाना रख कर खाते है। भारतीय स्वास्थ्य विचार के अनुसार भोजन की यह स्थिति अत्यंत गलत है। किंतु हम अब उस आदत के इतने गुलाम बन गये है कि नीचे बैठकर पालखी मार कर हम खाना नहीं खा सकते। हम ऐसी आदतों के इतने आदि हो गये है कि अब हमें हम कुछ गलत कर रहे है इस का ज्ञान भी नहीं है। | भारत में अंग्रेजी शिक्षा को स्थापित हुए अब २०० वर्षों से अधिक काल हो गया है। इस काल में हमने अंग्रेजी या पाश्चात्य जीवनदृष्टि का लगभग स्वीकार कर लिया दिखाई देता है। केवल पाश्चात्य जीवनदृष्टि ही नहीं तो उस के अनुसार प्रत्यक्ष व्यवहार और व्यवस्थाओं का भी हमने स्वीकार कर लिया है। जैसे हमने अंग्रेजों जैसे कपडे पहनना स्वीकार कर लिया है। कपडों को किया हुआ लोहा नहीं बिगडे इस लिये अब हम कुर्सी पर बैठकर, टेबल पर खाना रख कर खाते है। भारतीय स्वास्थ्य विचार के अनुसार भोजन की यह स्थिति अत्यंत गलत है। किंतु हम अब उस आदत के इतने गुलाम बन गये है कि नीचे बैठकर पालखी मार कर हम खाना नहीं खा सकते। हम ऐसी आदतों के इतने आदि हो गये है कि अब हमें हम कुछ गलत कर रहे है इस का ज्ञान भी नहीं है। |