Tirtha kshetra (तीर्थ क्षेत्र)
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तीर्थ क्षेत्र के माहात्म्यों का धर्मशास्त्रों में सुविस्तृत वर्णन मिलता है। चारों धाम, सात पुरी, द्वादश ज्योतिर्लिंग तथा अनेक सरिता, सर, वन उपवन तीर्थों की श्रेणी में गिने जाते हैं, इनके दर्शन, निवास, स्नान, भजन, पूजन, अर्चन आदि की सुस्थिर मान्यता है।
परिचय॥ Introduction
तीर्थों की स्थापना करने में हमारे तत्वदर्शी पूर्वजों ने बडी बुद्धिमता का परिचय दिया है। जिन स्थानों पर तीर्थ स्थान स्थापित किये गये हैं वे जलवायु की दृष्टि से बहुत ही उपयोगी हैं। जिन नदियों का जल विशेष शुद्ध उपयोगी एवं स्वास्थ्यप्रद पाया गया है उनके तटों पर तीर्थ स्थापित किये गये हैं। गंगा के तट पर सबसे अधिक तीर्थ हैं, क्योंकि गंगा का जल संसार की अन्य नदियों की अपेक्षा अधिक उपयोगी है। उस जल में स्वर्ण, पारा, गंधक तथा अभ्रक जैसे उपयोगी खनिज पदार्थ मिले रहते हैं जिसके संमिश्रण से गंगाजल एक-एक प्रकार की दवा बन जाता है, जिसके प्रयोग से उदर रोग, चर्म रोग तथा रक्त विकार आश्चर्य जनक रीति से अच्छे होते हैं। इन गुणों की उपयोगिता का तीर्थों के निर्माण में प्रधान रूप से ध्यान रखा गया है।[1] तीर्थों के संबंध में पद्मपुराण में कहा गया है कि जिस प्रकार मनुष्य शरीर के कुछ अंग जैसे - दक्षिण हस्त, कर्ण अथवा मस्तक इत्यादि अन्य अंगों की अपेक्षा पवित्र माने जाते हैं उसी प्रकार पृथिवी पर कुछ स्थान विशेष रूप से पवित्र माने जाते हैं। तीर्थस्थलों की पवित्रता तीन प्रमुख कारणों से मानी जाती है -
- स्थान विशेष की कुछ आश्चर्यजनक प्राकृतिक विशेषताओं के कारण
- किसी जलीय स्थल की विशेष तेजस्विता और पवित्रता के कारण
- किसी ऋषि, मुनि के वहाँ तपश्चर्या आदि के निमित्त निवास करने के कारण
इस प्रकार से तीर्थ का अर्थ है - वह स्थान जो अपने विलक्षण स्वरूप के कारण पवित्र भावना को जागृत करें। शास्त्रों ने तीर्थयात्रा को अत्यन्त महत्वपूर्ण बताते हुए पवित्र स्थानों के दर्शन, पवित्र जलाशयों में स्नान और पवित्र वातावरण में विचरण की आज्ञा दी है। इस प्रकार से तीर्थयात्रा, तीर्थदर्शन और तीर्थस्नान की परंपरा भारत में बहु प्रचलित है।
तीर्थ यात्रा की वैज्ञानिकता
तीर्थयात्रा लोगों को पवित्र स्थानों की यात्रा करने का अवसर प्रदान करती है। स्वास्थ्य लाभ के दृष्टिकोण से तीर्थयात्रा में पैदल चलने का विशेष महत्व बताया गया है। पैदल चलना शरीर को सुगठित करने और नाडी समूह तथा मांसपेशियों को बलवान बनाने के लिये आवश्यक उपाय है। आयुर्वेद शास्त्रों में प्रमेह चिकित्सा के लिए सौ योजन अर्थात चार सौ कोस पैदल चलने का आदेश दिया है। इस प्रकार से पैदल तीर्थ यात्रा करने से स्वास्थ्य लाभ प्राप्त होता है एवं इसके अतिरिक्त देशाटन से ज्ञानवृद्धि होती है वह भी अत्यधिक उपयोगी है।[2] धार्मिक श्रेष्ठ सत्कर्मों में तीर्थ यात्रा को अग्रणी माना गया है एवं उसके दो प्रतिफल माने गये हैं -
- पाप नाश - पाप नाश का अर्थ है दुष्कर्मों का प्रायश्चित्त।
- पुण्य फल की प्राप्ति - अन्तःकरण शुद्धि एवं आचरण की पवित्रता।
धर्मशास्त्रों में इसी कारण तीर्थ यात्रा के इन दोनों ही माहात्म्यों के प्रतिफलों का स्थान-स्थान पर वर्णन किया है। जैसा कि -
अनुपातकिनस्त्वेते महापातकिनो यथा। अश्वमेधेन शुद्धयन्ति तीर्थानुसरेण च॥ (विष्णु स्मृति)
भाषार्थ - पापी, महापापी सभी अश्वमेध से तथा तीर्थ अनुसरण अर्थात तीर्थ यात्रा से शुद्ध हो जाते हैं। तीर्थयात्रा के समय भावनाएँ उच्चस्तरीय होनी चाहिए। उस अवधि में आत्म-निर्माण और लोक कल्याण के लिए क्या करना चाहिए? किस प्रकार करना चाहिए? यह चिन्तन एवं मनन अन्तःकरण में चलता रहना चाहिए।
तीर्थयात्रा और शिक्षा॥ Pilgrimage and Education
तीर्थयात्रा तीर्थ करने वालों के लिए शिक्षा, रचना और सांस्कृतिक चेतना का एक महत्वपूर्ण स्रोत रही है। भारतीय तीर्थों में यात्रा दूर गाँव में रहने वाले असंख्य लोगों का समूचे भारत और उसके विभिन्न रीति रिवाजों, जीवन शैलियों और प्रथाओं को जानने का अवसर प्रदान करती है। एक सर्वे के अनुसार तीर्थयात्रा में शिक्षा की तीन विशेषताएँ मिलती हैं, ये हैं - [3]
- पारंपरिक ज्ञान का संरक्षण
- उसका संवर्धन
- आगामी पीढी में उसका प्रचार-प्रसार
तीर्थ यात्रा में धर्म और दर्शन के अतिरिक्त संगीत, नृत्य और नाटक की तीन कलाएं भी इसमें शामिल थीं। यह भारतीय समाज के अंदर पाए जाने वाले समस्त समुदायों, जातियों और वर्गों को कुछ समय के लिए साथ रहने का अवसर भी प्रदान करती थी।
तीर्थयात्रा और कलाएँ॥ Pilgrimage and the Arts
तीर्थयात्रा और अर्थव्यवस्था॥ Pilgrimage and Economy
उद्धरण
- ↑ अखण्ड ज्योति, दिसम्बर सन् १९४८ (पृ० १४)।
- ↑ अखण्ड ज्योति, तीर्थ यात्रा क्यों और कैसे?, सन १९७७, गायत्री परिवार-हरिद्वार (पृ० १५)।
- ↑ एस० के० भट्टाचार्या, प्रार्थनाः तीर्थ यात्रा और पर्व, सन 2021, इंदिरा गाँधी नेशनल ओपन यूनिवर्सिटी (पृ० १३८)।