महाराणा प्रतापसिंहः - महापुरुषकीर्तन श्रंखला
(1540-1597 ई.)
यः शूरवीरेषु शिरोमणिः सन्, अदम्यमुत्साहमिहादधानः।
नांगीचकारेतरपारतन्त्र्य, त॑ श्रीप्रतापं विनता नमामः।। 10॥
जिस शूरवीर शिरोमणि ने अदम्य (कभी न दबने वाले) उत्साह
को इस जीवन में धारण करते हुए दूसरों की अधीनता को कभी स्वीकार
नहीं किया, उन महाराणा प्रताप को हम विनययुक्त होकर नमस्कार करते
हैं।
प्रतापसिंहेति यथार्थसंज्ञ,विकम्पयन्तं समरे स्वशत्रून्।
आह्वादयन्तं च सतां मनासि, त॑ श्रीप्रतापं विनता नमामः।।11॥
प्रताप सिंह इस यथार्थ (वास्तविक) नाम वाले, युद्ध में अपने
शत्रुओं को कम्पाने वाले और सज्जनों के मन को प्रसन्न करने वाले
महाराणा प्रताप जी को हम विनय युक्त हो कर नमस्कार करते हैं।
एकोऽल्पसेनोऽपि न यो वरेण्यः,सतृक्षत्रियाणां नृमणिश्चकम्पे।
पुरः कदाचिन्मुगलाधिपानां, त॑ शरीप्रतापं विनता नमामः।।12॥।
उत्तम क्षत्रियं में श्रेष्ठ, मनुष्यों में मणि के समान प्रंशसनीय
महाराणा अकेले और थोड़ी सेना वाले होते हुए भी मुगल बादशाहों के
सामने कभी कम्पित नहीं हुए (जिन्होंने उन के सामने घुटने नहीं टेके)
उन महाराणा प्रताप जी को हम विनय युक्त हो कर नमस्कार करते हैं।
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यावत्स्वतन्त्रो न भवेत्स्वदेशस्तावन्न विश्रान्तिमहं करिष्ये।
इत्थं प्रतिज्ञाय तपश्चरन्तं, तं श्रीप्रतापं विनता नमामः।।13॥।
जब तक अपना देश स्वतन्त्र नहीं हो जाता, तब तक मैं विश्राम
न करूंगा, ऐसी प्रतिज्ञा कर के तप करने वाले महाराणा प्रताप जी को
हम विनययुक्त होकर नमस्कार करते हैं।
वनेषु वीरो विजनेषु सेहे, कष्टान्यनेकानि भयावहानि।
परं न धर्म्यात्तु चचाल मार्गात्, त॑ श्रीप्रतापं विनता नमामः।।14॥।
जिन वीर ने निर्जन अरण्यों में निवास करके अनेक भयङ्कर
कष्टों को सहन किया किन्तु जो धर्म-सम्मत मार्ग से कभी विचलित
नहीं हुए, ऐसे महाराणा प्रताप को हम विनय युक्त होकर नमस्कार करते
हैं।