Brahmasutra (ब्रह्मसूत्र)

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बादरायण ने ब्रह्मसूत्र लिखा जिसमें चार अध्याय हैं। इन अध्यायों के नाम क्रमशः समन्वय-अध्याय , अविरोध-अध्याय , साधन-अध्याय और फल अध्याय हैं। प्रत्येक अध्याय में चार पाद हैं। प्रत्येक पाद में कई अधिकरण हैं। अंत में प्रत्येक अधिकरण में एक या अनेक सूत्र हैं। सम्पूर्ण ग्रंथ सूत्र शैली में लिखा गया है। इसका प्रथम सूत्र है – अथातो ब्रह्मजिज्ञासा और अंतिम सूत्र है अनावृत्तिः शब्दात् अनावृत्तिः शब्दात् । प्रथम सूत्र का अर्थ है – अतः अब ब्रह्मजिज्ञासा करनी चाहिए और अंतिम सूत्र का अर्थ है श्रुतियां बताती हैं कि जो लोग देवयान से चंद्रलोक को प्राप्त करती हैं, वे वहां से और ऊर्ध्वगति करते हैं, ब्रह्मलोक पहुंचते हैं और वहां से उनकी पुनरावृत्ति (पुनरागमन) इस मानव-लोक में इस कल्प में नहीं होती है। उन्हैं ब्रह्म का सान्निध्य मिल जाता है। ब्रह्मसूत्र को शंकराचार्य ने शारीरिक मीमांसासूत्र कहा है।

परिचय

भारतीय दर्शन एक विशाल सागर के समान है। जिसके विविध क्षेत्र विविध प्रकार के आयामों को प्रगट करते हैं। उपनिषद् , ब्रह्मसूत्र और भगवद्गीता को वेदांत की प्रस्थानत्रयी कहा जाता है। क्योंकि ये वेदांत के सर्वमान्य प्रमुख ग्रंथ हैं। इनमें भी उपनिषद् मूल प्रस्थान है , और शेष दो उन पर आधारित माने जाते हैं। ब्रह्मसूत्र ऐसा ही एक वेदांत की प्रस्थानत्रयी का अंग है। ब्रह्मसूत्र को ज्ञानमीमांसा भी कहा जाता है। क्योंकि इसका मुख्य प्रतिपादित विषय ज्ञान है। ब्रह्म सूत्र पर अनेक आचार्यों द्वारा भाष्य लिखे गए हैं –

ब्रह्म सूत्र का स्वरूप

ब्रह्मसूत्रों की रचना से पहले कुछ आचार्यों ने ब्रह्मसूत्रों जैसा ही प्रयत्न किया था किन्तु उनके ग्रंथ या उनके द्वारा लिखे गए प्रमाण नहीं मिलते। इस प्रयत्न में बादरायण व्यास द्वारा रचित ब्रह्मसूत्र अर्थात वेदांत दर्शन का ग्रंथ उपलब्ध है। वेदान्त शास्त्र की आधारशिला के तीन प्रस्थान है। उपनिषद का श्रुति प्रस्थान है। भगवद् गीता का स्मृति प्रस्थान है , और ब्रह्मसूत्र का न्याय प्रस्थान है। ब्रह्मात्मैक्य उपनिषदों का लक्ष्य है।

वेदान्त दर्शन का आरंभ

प्रस्थानत्रयी

प्रस्थानत्रयी के अंतर्गत गीता , उपनिषद एवं ब्रह्मसूत्र को माना जाता है। प्रस्थान का अर्थ है एक शास्त्र जो सिद्धांतों को स्थापित करता है अथवा जिसके द्वारा ले जाया जाता है, वह प्रस्थान है, और त्रयी मात्रा तीन का बोधक है। तीन शास्त्र – उपनिषद , श्रीमद्भगवद्गीता और ब्रह्मसूत्र को प्रस्थानत्रयी के रूप में जाना जाता है।

प्रथम प्रस्थिनः

जर्मन दार्शनिक आर्थर शोपेनहावर कहते हैं,

उपनिषद का क्या अर्थ है ?

उपनिषद्यते प्राप्यते ज्ञायते ब्रह्मविद्या अन्य इति उपनिषद्। जिसके द्वारा ब्रह्मविद्या को जाना और प्राप्त किया जा सकता है वह उपनिषद है।

उपनिषद् का वेदान्तत्व

उपनिषदों का स्थान

उपनिषदों की शैली

उपनिषदों की संख्या

उपनिषदों की विषय-वस्तु

ब्रह्मसूत्र पर भाष्य

भगवान बादरायण जी ने ज्ञानकाण्डात्मक उपनिषद् भाग के अर्थ-विस्तार के लिए तथा वेद विरुद्ध-मतों के निराकरण के लिए सूत्रात्मक ग्रंथ रचा। इस ग्रंथ के चार अध्याय होते हैं –

  1. प्रथम अध्याय का नाम समन्वयाध्याय
  2. द्वितीय अध्याया – अविरोधाध्याय
  3. तृतीय अध्याय – साधन अध्याय
  4. चतुर्थ अध्याय – फलाध्याय

प्रत्येक अध्याय में चार पाद होते हैं। प्रत्येक पाद में अनेक अधिकरण होते हैं। चार अध्यायों में 555 सूत्र होते हैं। इस ग्रंथ के ही अन्य नाम हैं – उत्तर मीमांसा , शारीरिक सूत्र , वेदान्त सूत्र , ब्रह्म सूत्र इत्यादि।

इस ग्रंथ को आधारित करके ही शंकराचार्य आदि विविध दार्शनिकों ने स्वयं भाष्य रचे। उस भाष्य के अनुसार ही उनका दर्शन प्रवृत्त हुआ। वेदान्त में प्रसिद्ध दश मत होते हैं – [1]

संप्रदाय का नाम प्रवर्तक काल (ईस्वी) भाष्य का नाम
निर्विशेषाद्वैत शंकराचार्य 788 – 820 शारीरिक भाष्य
भेदाभेद भास्कराचार्य 850 भास्कर भाष्य
विशिष्टाद्वैत श्रीरामानुजाचार्य 1140 श्रीभाष्य
द्वैत माध्वाचार्य-आनंदतीर्थ 1288 पूर्णप्रज्ञ भाष्य
द्वैताद्वैत निम्बार्क 1250 वेदान्तपारिजात भाष्य
शैवविशिष्टाद्वैत श्रीकंठ 1270 शैव भाष्य
वीरशैव विशिष्टाद्वैत श्रीपति 1400 श्रीकर भाष्य
शुद्धाद्वैत वल्लभाचार्य 1478-1544 अणुभाष्य
अविभागाद्वैत विज्ञानभिक्षु 1600 विज्ञानामृत
अचिंत्य भेदाभेद बलदेव 1725 गोविंद भाष्य

ब्रह्मसूत्रों में प्रस्तुत संक्षिप्त विषय

ब्रह्मसूत्र में जीव विषयक मत

ब्रह्मसूत्र में जगत विषयक मत

ब्रह्म सूत्र के रचनाकार श्री बादरायण व्यास जी माने जाते हैं। ब्रह्मसूत्र बादरायण (शांकर भाष्य) चतुः सूत्री श्रीभाष्य वेदान्त दर्शन -

  • श्रुति प्रस्थान , स्मृति प्रस्थान , न्यायप्रस्थान या सूत्र प्रस्थान
  • सत्ता त्रैविध्य – प्रातिभासिक सत्ता , व्यावहारिक सत्ता , पारमार्थिक सत्ता
  • ब्रह्म के लक्षण – तटस्थलक्षण, स्वरूप लक्षण , माया

बादरायण

शंकराचर्य व्यक्तित्व कृतित्व

अष्टवर्षे चतुर्वेदी द्वादशे सर्वशास्त्रवित्। षोडशे कृतवान्भाष्यं द्वात्रिंशेमुनिरभ्यगात्॥

आचार्य की प्रमुख रचनायें –

आचार्यशंकर की प्रमुख रचनाओं में ब्रह्मसूत्रभाष्य, उपनिषद्भाष्य, गीताभाष्य, विष्णुसहस्रनामभाष्य, सनत्सुजातीयभाष्य , विवेकचूडामणि , हस्तामलकभाष्य , प्रबोध सुधाकर , उपदेश सहस्री , सौन्दर्य लहरी, पंचीकरण , प्रपञ्चसार , आत्मबोध , अपरोक्षानुभूति , वाक्य वृत्ति , दशश्लोकी , सर्ववेदान्तसारसंग्रह , आनंदलहरी आदि अनेक ग्रंथ हैं जिनकी आचार्य शंकर ने रचना की।

वेदान्तदर्शन

वेदान्त का मूल उपनिषद् है। वेद के अन्तिम सिद्धान्त के अर्थ में वेदान्त शब्द का प्रयोग उपनिषदों में ही सर्वप्रथम उपलब्ध होता है –

1.   वेदान्तविज्ञानसुनिश्चितार्थाः (मुंडकोपनिषद् 3.2.5)

2.   वेदांते परमं गुह्यम् (श्वेताश्वतर 6.22)

3.   यो वेदादौ स्वरः प्रोक्तो वेदान्ते च प्रतिष्ठितः (महानारायण 10, 8)

उपनिषदों के वैदिक रहस्यमय सिद्धांतों के प्रतिपादक होने के कारण उनके लिए वेदान्त शब्द का प्रयोग किया गया है। ब्रह्मसूत्र ही उपनिषद् मूलक होने के कारण वेदान्तसूत्र नाम से प्रसिद्ध हुआ। 

अद्वैतवेदान्त दर्शन के प्रवर्तकों में गौडपाद और शंकरचार्य प्रमुख हैं। अद्वैत दर्शन का विशाल साहित्य मौलिक दृष्टि से अत्यंत श्लाघनीय है। अद्वैत वेदान्त के प्रमुख प्रतिपाद्य विषयों में ब्रह्म , माया , जीव , अध्यास , मुक्ति आदि प्रमुख है।

उद्धरण

  1. पद्मभूषण आचार्य श्री बलदेव उपाध्याय , संस्कृत-वांग्मय का बृहद इतिहास , दशम-खण्ड वेदांत, सन् 1999, उत्तर प्रदेश संस्कृत संस्थान, लखनऊ (पृ० 2)।