Science of Shipbuilding (नौका शास्त्र)

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वैदिक काल में लोगों को समुद्र का ज्ञान था। ऋग्वेद के अनेक मन्त्रों में समुद्र एवं नौकाओं के सन्दर्भ मिलते हैं। ऋग्वेद के अनेक मन्त्रों में साधारण नौकाओं और सीता से चलने वाली वही नौकाओं के स्पष्ट उल्लेख हैं। अथर्ववेद एवं शतपथ ब्राह्मण में भी नौ-परिवहन संचालित कुछ शब्द मिलते हैं। यथा - अरित, नावजा, नौमण्ड और शविन इत्यादि। पाणिनि की अष्टाध्यायी, जातक ग्रन्थों, रामायण एवं महाभारत आदि ग्रन्थों में भी नौ-परिवहन के उल्लेख विद्यमान हैं।[1]

परिचय॥ Introduction

जल पर विजय मनुष्य ने नौका का निर्माण कर किया। रामायण, महाभारत आदि ग्रन्थों में भी नौका का उल्लेख प्राप्त होता है। नौका वर्णन संस्कृत साहित्य में प्रचुर मात्रा में प्राप्त होता है परंतु नौका निर्माण से संबंधित एकमात्र ग्रंथ भोजकृत युक्तिकल्पतरु ही प्राप्त होता है।

  • वाल्मीकि रचित रामायण में केवट द्वारा राम को नाव से नदी पार कराने की घटना का वर्णन है।
  • अयोध्या कांड में भी ऐसी बडी नावों का उल्लेख है, जिन पर सैकडों कैवर्त योद्धा तैयार रहते थे - नावां शतानां पञ्चानां कैवर्तानां शतं शतम्।
  • इसी प्रकार महाभारत के आदिपर्व में शांतनु-सत्यवती संवाद में नौका का उल्लेख है। सत्यवती धर्मार्थ नाव चलाती हैं - साब्रवीद्वाशकन्यास्मि धर्मार्थं बाहये तरी। (महाभारत, आदिपर्व, अध्याय ९४/४४)

परिभाषा॥ Definition

राजा भोज ने नौका को इस प्रकार परिभाषित किया है -

नौकाद्यं विपदं ज्ञेय। (युक्तिकल्पतरु)

अर्थात बिना पद (पहिया) वाले यान नौका कही जाती है।

नौका निर्माण

उद्धरण॥ References

  1. डॉ० हेटल एम० पाण्ड्या, भारतीय नौका निर्माण कला, सन - जून २०२०, अन इंटरनेशनल मल्टीडिसिप्लिनरी पीयर-रिव्यूड ई-जर्नल (पृ० २)।