Vrikshayurveda (वृक्षायुर्वेद)
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भारतीय ज्ञान परंपरा में चौंसठ कलाओं के अन्तर्गत वृक्षायुर्वेद का वर्णन प्राप्त होता है। वृक्षायुर्वेद एक प्राचीन भारतीय ग्रंथ है जो विशेष रूप से वृक्षों, पौधों और उनकी देखभाल से संबंधित है। यह ग्रंथ कृषि और वनस्पति विज्ञान पर आधारित है और इसमें वृक्षों की देखभाल, रोपण, संरक्षण, और उपचार के विभिन्न पहलुओं का उल्लेख मिलता है। इस ग्रंथ का प्रमुख उद्देश्य वृक्षों की आयुर्वृद्धि और स्वास्थ्य को बनाए रखना है।
परिचय॥
आयुर्वेद का अर्थ है-आयु को देने वाला वेद या शास्त्र। वृक्षायुर्वेद वृक्षों को दीर्घायुष्य एवं स्वास्थ्य प्रदान करने वाला शास्त्र है। अतः यह वृक्षों के रोपण, पोषण, चिकित्सा एवं दोहद आदि के द्वारा मनचाहे फल, फूलों की समृद्धि को प्राप्त करने की कला है। इस कला का उद्देश्य है-मनोरम उद्यान या उपवन की रचना। प्राचीन भारत में उद्यान, नगरनिवेश एवं भवन-वास्तु के अनिवार्य अंग माने गये थे। वराह के अनुसार उद्यानों से युक्त नगरों में देवता सर्वदा निवास करते हैं -[1]
रमन्ते देवता नित्यं पुरेषूद्यानवत्सु च॥
इस कला के अन्तर्गत निम्न विषयों का निरूपण हुआ है -
- उपवनयोग्य भूमि का चयन
- वृक्षरोपण के लिये भूमि तैयार करना
- मांगलिक वृक्षों का प्रथम रोपण
- पादप-संरोपण
- पादप-सिंचन
- वृक्ष-चिकित्सा
- बीजोपचार
- वृक्षदोहद
कतिपय अलौकिक प्रयोग आदि। वस्तुतः वृक्षायुर्वेदयोग विज्ञान और कला, प्रयोग और चमत्कार का रोचक समन्वय है।
पेड़-पौधों में भेद
प्रकृति से उत्पन्न सभी वस्तुएँ परिवर्तनशील हैं। जिस अवस्था में निर्मित होते हैं उस अवस्था के अग्रिम चरणों से गुजरते हुए ये अन्तिम अवस्था के पडाव को पार करते हैं। वृक्ष की यात्रा भी प्रथम बीज से आरंभ होकर तना, टहनियाँ एवं पौधे की अन्तिम वृक्ष की अवस्था तक चलती है। इन सभी अवस्था में परिणत होते हुए वह अपनी उत्पत्ति यात्रा को समाप्त करता है तथा पुनः बीज के रूप में परिवर्तित हो जाता है।
भारतीय वाग्मय में ऋषि-मुनियों ने पौधों को कुछ वर्गों में विभजित किया है -
पौधों के नाम | पादप |
---|---|
वनस्पति | पुष्प के अभाव में फल (ये पुष्पं विना फलन्ति) |
औषधि | |
लता | |
त्वक सार | |
dरूम |
उद्धरण
- ↑ सी० के० रामचंद्रन, वृक्षायुर्वेद, सन् 1984, रिसर्चगेट पब्लिकेशन (पृ० 5)।