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| − | यह उपनिषद् अथर्ववेदकी शौनक शाखामें है। 'मुण्डक' शब्द से तात्पर्य मुंडा हुआ सिर है। इस उपनिषद् के उपदेश मुंडे हुए सिर के समान आत्मा के ऊपर पडे अज्ञानता के पर्दे को हटा देते हैं। इस उपनिषद् में तीन अध्याय हैं जो दो खण्डों में विभाजित होते हैं, एवं मुण्डकोपनिषद् में लगभग साठ मन्त्र (श्लोक) हैं। इस उपनिषद् में ब्रह्मा ने अपने ज्येष्ठपुत्र अथर्वा (अथर्वन्) को ब्रह्मविद्या का उपदेश दिया है।
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| | + | मुण्डक उपनिषद् (संस्कृतः मुण्डकोपनिषद्) अथर्ववेदकी शौनक शाखामें है। 'मुण्डक' शब्द से तात्पर्य मुंडा हुआ सिर है। इस उपनिषद् के उपदेश मुंडे हुए सिर के समान आत्मा के ऊपर पडे अज्ञानता के पर्दे को हटा देते हैं। इस उपनिषद् में तीन अध्याय हैं जो दो खण्डों में विभाजित होते हैं, एवं मुण्डकोपनिषद् में लगभग साठ मन्त्र (श्लोक) हैं। इस उपनिषद् में ब्रह्मा ने अपने ज्येष्ठपुत्र अथर्वा (अथर्वन्) को ब्रह्मविद्या का उपदेश दिया है। |
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| | ==परिचय== | | ==परिचय== |