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| | ===नौका के प्रकार॥ Types of Nauka=== | | ===नौका के प्रकार॥ Types of Nauka=== |
| − | '''नौका और अन्य यान -''' नौका को अन्य वाहनों से अलग करते हुए निष्पदयान (जलयान) की परिभाषा दी गई है -<blockquote>नौकाद्यं निष्पदं यानं तस्य लक्षणमुच्यते। अश्वादिकन्तु यद्यानं स्थले सर्वं प्रतिष्ठितम्॥ जले नौकैव यानं स्यादतस्तां यत्नतो वहेत्॥ (युक्तिकल्पतरु)</blockquote>भाषार्थ - '''नौकाद्यं निष्पदं यानं''' - नौका और इसी प्रकार के अन्य जल-वाहनों को निष्पदयान (जलयान) कहा जाता है। '''अश्वादिकं यद्यानं स्थले सर्वं प्रतिष्ठितम्''' - अश्व आदि से जुड़े सभी वाहन जो स्थलीय (जमीन पर चलने वाले) हैं, वे अलग श्रेणी में आते हैं। '''जले नौकैव यानं स्यात्''' - जल में चलने वाले वाहन को नौका ही कहा जाता है। '''अतः तां यत्नतः वहेत्''' - इसलिए इसे सावधानीपूर्वक चलाना चाहिए। युक्तिकल्पतरु में सर्वप्रथम नौका के दो प्रकार बताए गए हैं - सामान्य नौका और विशेष नौका। जैसे -<blockquote>सामान्यञ्च विशेषश्च नौकाया लक्षणद्वयम् - तत्र सामान्यम्। (युक्तिकल्पतरु) </blockquote>1. सामान्य नौका - राजा भोज ने दश प्रकार के सामान्य मान्य नौका नौका का का उल्लेख उल्लेख किया किया है। दश प्रकार के सामान्य नौका इस प्रकार है - क्षुद्र, मध्यमा, भीमा, चपला, पटला, अभया, दीर्घा, पत्रपुटा, गर्भरा, मन्थरा।<blockquote>क्षुद्राथ मध्यमा भीमा चपला पटलाऽभया। दीर्घा पत्रपुटा चौव गर्भरा मन्थरा तथा। नौकादशकमित्युक्तं राजहस्तैरनुक्रमम्॥ | + | '''नौका और अन्य यान -''' नौका को अन्य वाहनों से अलग करते हुए निष्पदयान (जलयान) की परिभाषा दी गई है -<blockquote>नौकाद्यं निष्पदं यानं तस्य लक्षणमुच्यते। अश्वादिकन्तु यद्यानं स्थले सर्वं प्रतिष्ठितम्॥ जले नौकैव यानं स्यादतस्तां यत्नतो वहेत्॥ (युक्तिकल्पतरु)</blockquote>भाषार्थ - नौकाद्यं निष्पदं यानं - नौका और इसी प्रकार के अन्य जल-वाहनों को निष्पदयान (जलयान) कहा जाता है। अश्वादिकं यद्यानं स्थले सर्वं प्रतिष्ठितम् - अश्व आदि से जुड़े सभी वाहन जो स्थलीय (जमीन पर चलने वाले) हैं, वे अलग श्रेणी में आते हैं। जले नौकैव यानं स्यात् - जल में चलने वाले वाहन को नौका ही कहा जाता है। अतः तां यत्नतः वहेत् - इसलिए इसे सावधानीपूर्वक चलाना चाहिए। युक्तिकल्पतरु में सर्वप्रथम नौका के दो प्रकार बताए गए हैं - सामान्य नौका और विशेष नौका। जैसे -<blockquote>सामान्यञ्च विशेषश्च नौकाया लक्षणद्वयम् - तत्र सामान्यम्। (युक्तिकल्पतरु) </blockquote>1. सामान्य नौका - राजा भोज ने दश प्रकार के सामान्य मान्य नौका नौका का का उल्लेख उल्लेख किया किया है। दश प्रकार के सामान्य नौका इस प्रकार है - क्षुद्र, मध्यमा, भीमा, चपला, पटला, अभया, दीर्घा, पत्रपुटा, गर्भरा, मन्थरा।<blockquote>क्षुद्राथ मध्यमा भीमा चपला पटलाऽभया। दीर्घा पत्रपुटा चौव गर्भरा मन्थरा तथा। नौकादशकमित्युक्तं राजहस्तैरनुक्रमम्॥ |
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| | एकैकवृध्दैः (वुध्देः) साधैश्च विजानीयाद द्वयं द्वयम्। अत्र भीमाऽभया चौव गर्भरा चाशुभप्रदा। मंथरा परसों यास्तु तासामेवाम्बुधौ गतिः॥ (युक्तिकल्पतरु) </blockquote>इन दसों नौकाओं में से भीमा, अभया और गर्भरा अशुभता को प्रदान करने वाली है अतः निस्संदेह त्याज्य हैं। मन्थरा के अतिरिक्त शेष अर्थात क्षुद्र, मध्यमा, चपला, पटला, दीर्घा और पत्रपुटा अपनी दृढ़ता गुणों के कारण समुद्र में जाने योग्य हैं। राधाकुमुद मुखर्जी ने अपने ग्रंथ Indian Shipping में इन नौकाओं की लंबाई, चौड़ाई और ऊँचाई का एक चार्ट बनाया है। युक्तिकल्पतरु में नापने के लिए राजहस्त पद का प्रयोग किया है। जिसका सामान्य अर्थ है - राजा का हाथ। राधाकुमुद मुखर्जी के अनुसार एक राजहस्त 16 cubits के बराबर होता है।<ref name=":0" /> | | एकैकवृध्दैः (वुध्देः) साधैश्च विजानीयाद द्वयं द्वयम्। अत्र भीमाऽभया चौव गर्भरा चाशुभप्रदा। मंथरा परसों यास्तु तासामेवाम्बुधौ गतिः॥ (युक्तिकल्पतरु) </blockquote>इन दसों नौकाओं में से भीमा, अभया और गर्भरा अशुभता को प्रदान करने वाली है अतः निस्संदेह त्याज्य हैं। मन्थरा के अतिरिक्त शेष अर्थात क्षुद्र, मध्यमा, चपला, पटला, दीर्घा और पत्रपुटा अपनी दृढ़ता गुणों के कारण समुद्र में जाने योग्य हैं। राधाकुमुद मुखर्जी ने अपने ग्रंथ Indian Shipping में इन नौकाओं की लंबाई, चौड़ाई और ऊँचाई का एक चार्ट बनाया है। युक्तिकल्पतरु में नापने के लिए राजहस्त पद का प्रयोग किया है। जिसका सामान्य अर्थ है - राजा का हाथ। राधाकुमुद मुखर्जी के अनुसार एक राजहस्त 16 cubits के बराबर होता है।<ref name=":0" /> |
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| | ==संस्कृत वाङ्मय में नौका॥ Nauka in Sanskrta Vangmaya== | | ==संस्कृत वाङ्मय में नौका॥ Nauka in Sanskrta Vangmaya== |
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| − | ===वेदों में नौका॥ Vedon Mein Nauka === | + | ===वेदों में नौका॥ Vedon Mein Nauka=== |
| | ऋग्वेद में वर्णन है कि अश्विनी देवों के पास ऐसा यान (नौका) था, जो अन्तरिक्ष और समुद्र दोनों में चल सकता था। इसमें कोई यन्त्र लगा होता था, जिससे सचेतन के तुल्य चलता था। इस पर पानी का कोई असर नहीं होता था। ऐसे यान से अश्विनीकुमारों ने समुद्र में डूबते हुए एक व्यापारी का उद्धार किया था -<ref>डॉ० कपिलदेव द्विवेदी, [https://archive-org.translate.goog/details/VedomMeinVigyanDr.KapilDevDwivedi/page/n144/mode/1up?_x_tr_sl=en&_x_tr_tl=hi&_x_tr_hl=hi&_x_tr_pto=tc&_x_tr_hist=true वेदों में विज्ञान], सन् २०००, विश्वभारती अनुसंधान परिषद, भदोही (पृ० १२६)।</ref> <blockquote>तमूहथुर्नौभिरात्मन्वतीभिः, अन्तरिक्षप्रुद्भिरपोदकाभिः॥ (ऋग्वेद ० १. ११६. ३)</blockquote>इसमें आत्मन्वती शब्द विशेष ध्यान देने योग्य है। यह यान सजीव की तरह चलता था। इससे ज्ञात होता है कि इसमें कोई मशीन लगी होती थी, जिससे यह सजीव की तरह चलता था। ऋग्वेद के अन्य मन्त्र में जलयान का वर्णन इस प्रकार है -<ref>श्रीशिवपूजन सिंहजी कुशवाहा, कल्याण विशेषांक - हिन्दू संस्कृति अंक, [https://archive.org/details/gp0518-hindu-sanskriti-ank/page/n833/mode/1up यातायात के प्राचीन वैज्ञानिक साधन], गीताप्रेस गोरखपुर (पृ० ८३५)।</ref> <blockquote>यास्ते पूषन्नावो अन्तः समुद्रे हिरण्ययीरन्तरिक्षे चरन्ति। ताभिर्यासि दूत्यां सूर्यस्य कामेन कृतश्रव इच्छमानः॥ (ऋग्वेद संहिता)</blockquote>'''अर्थ -''' हे पूषन्! जो तेरी लोहादिकी बनी नौकाएँ समुद्रके भीतर अर्थात समुद्रतलके नीचे और अन्तरिक्षमें चलती हैं, मानो तू उनके द्वारा इच्छापूर्वक अर्जित यशको चाहता हुआ सूर्यके दूतत्वको प्राप्त कर रहा है। | | ऋग्वेद में वर्णन है कि अश्विनी देवों के पास ऐसा यान (नौका) था, जो अन्तरिक्ष और समुद्र दोनों में चल सकता था। इसमें कोई यन्त्र लगा होता था, जिससे सचेतन के तुल्य चलता था। इस पर पानी का कोई असर नहीं होता था। ऐसे यान से अश्विनीकुमारों ने समुद्र में डूबते हुए एक व्यापारी का उद्धार किया था -<ref>डॉ० कपिलदेव द्विवेदी, [https://archive-org.translate.goog/details/VedomMeinVigyanDr.KapilDevDwivedi/page/n144/mode/1up?_x_tr_sl=en&_x_tr_tl=hi&_x_tr_hl=hi&_x_tr_pto=tc&_x_tr_hist=true वेदों में विज्ञान], सन् २०००, विश्वभारती अनुसंधान परिषद, भदोही (पृ० १२६)।</ref> <blockquote>तमूहथुर्नौभिरात्मन्वतीभिः, अन्तरिक्षप्रुद्भिरपोदकाभिः॥ (ऋग्वेद ० १. ११६. ३)</blockquote>इसमें आत्मन्वती शब्द विशेष ध्यान देने योग्य है। यह यान सजीव की तरह चलता था। इससे ज्ञात होता है कि इसमें कोई मशीन लगी होती थी, जिससे यह सजीव की तरह चलता था। ऋग्वेद के अन्य मन्त्र में जलयान का वर्णन इस प्रकार है -<ref>श्रीशिवपूजन सिंहजी कुशवाहा, कल्याण विशेषांक - हिन्दू संस्कृति अंक, [https://archive.org/details/gp0518-hindu-sanskriti-ank/page/n833/mode/1up यातायात के प्राचीन वैज्ञानिक साधन], गीताप्रेस गोरखपुर (पृ० ८३५)।</ref> <blockquote>यास्ते पूषन्नावो अन्तः समुद्रे हिरण्ययीरन्तरिक्षे चरन्ति। ताभिर्यासि दूत्यां सूर्यस्य कामेन कृतश्रव इच्छमानः॥ (ऋग्वेद संहिता)</blockquote>'''अर्थ -''' हे पूषन्! जो तेरी लोहादिकी बनी नौकाएँ समुद्रके भीतर अर्थात समुद्रतलके नीचे और अन्तरिक्षमें चलती हैं, मानो तू उनके द्वारा इच्छापूर्वक अर्जित यशको चाहता हुआ सूर्यके दूतत्वको प्राप्त कर रहा है। |
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| | + | ===रामायण में नौका॥ Nauka in Ramayana=== |
| | + | वाल्मीकि रामायण में नौका (नाव) का अनेक स्थानों पर उल्लेख मिलता है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि प्राचीन भारत में जलयात्रा और नौका संचालन की परंपरा विद्यमान थी। भरत जी जब श्रीराम को वन से लौटाने के उद्देश्य से अयोध्या से निकलते हैं, तो वे अपने विशाल सैन्य दल के साथ गंगा के तट पर पहुंचते हैं। वहां वे निषादराज गुह से नौका की व्यवस्था करने को कहते हैं। गुह तत्काल अपने लोगों को जागृत कर पांच सौ नौकाएं मंगवाते हैं, जिनमें से कुछ नौकाएं विशेष रूप से सजाई गई थीं। इस वर्णन से यह स्पष्ट होता है कि तत्कालीन समाज में जल परिवहन अत्यंत विकसित था, जो कि प्राचीन भारत में नौका-परिवहन की समृद्धि को दर्शाता है -<blockquote>इति संवदतोरेवमन्योन्यं नरसिंहयो:। आगम्य प्राञ्जलि: काले गुहो भरतमब्रवीत्॥ |
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| | + | कच्चित्सुखं नदीतीरे ऽवात्सी: काकुत्स्थ शर्वरीम्। कच्चित्ते सहसैन्यस्य तावत्सर्वमनामयम्॥ |
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| | + | गुहस्य तत्तु वचनं श्रुत्वा स्नेहादुदीरितम्। रामस्यानुवशो वाक्यं भरतो ऽपीदमब्रवीत्॥ |
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| | + | सुखा न: शर्वरी राजन् पूजिताश्चापि ते वयम्। गङ्गां तु नौभिर्बह्वीभिर्दाशा: सन्तारयन्तु न:॥ |
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| | + | ततो गुह: संत्वरितं श्रुत्वा भरतशासनम्। प्रतिप्रविश्य नगरं तं ज्ञातिजनमब्रवीत्॥ |
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| | + | उत्तिष्ठत प्रबुध्यध्वं भद्रमस्तु च व: सदा। नाव: समनुकर्षध्वं तारयिष्याम वाहिनीम्॥ |
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| | + | ते तथोक्ता: समुत्थाय त्वरिता राजशासनात्। पञ्च नावां शतान्याशु समानिन्यु: समन्तत:॥ |
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| | + | अन्या: स्वस्तिकविज्ञेया महाघण्टाधरा वरा:। शोभमाना: पताकाभिर्युक्तवाता: सुसंहता:॥ |
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| | + | तत: स्वस्तिकविज्ञेयां पाण्डुकम्बलसंवृताम्। सनन्दिघोषां कल्याणीं गुहो नावमुपाहरत्॥ |
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| | + | तामारुरोह भरत: शत्रुघ्नश्च महाबल:। कौसल्या च सुमित्रा च याश्चान्या राजयोषित:॥ |
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| | + | पुरोहितश्च तत्पूर्वं गुरवो ब्राह्मणाश्च ये। अनन्तरं राजदारास्तथैव शकटापणा:॥ |
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| | + | आवासमादीपयतां तीर्थं चाप्यवगाहताम्। भाण्डानि चाददानानां घोषस्त्रिदिवमस्पृशत्॥ |
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| | + | पताकिन्यस्तु ता नाव: स्वयं दाशैरधिष्ठिता:। वहन्त्यो जनमारूढं तदा सम्पेतुराशुगा:॥ |
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| | + | नारीणामभिपूर्णास्तु काश्चित् काश्चिच्च वाजिनाम्। काश्चिदत्र वहन्ति स्म यानयुग्यं महाधनम्॥ |
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| | + | तास्तु गत्वा परं तीरमवरोप्य च तं जनम्। निवृत्ता काण्डचित्राणि क्रियन्ते दाशबन्धुभि:॥ |
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| | + | सवैजयन्तास्तु गजा गजारोहैः प्रचोदिता:। तरन्त: स्म प्रकाशन्ते सपक्षा इव पर्वता:॥ |
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| | + | नावश्चारुरुहुस्त्वन्ये प्लवैस्तेरुस्तथापरे। अन्ये कुम्भघटैस्तेरुरन्ये तेरुश्च बाहुभि:॥ सा पुण्या ध्वजिनी गङ्गा दाशै: सन्तारिता स्वयम्॥ (वाल्मीकि रामायण)<ref>[https://archive.org/details/valmiki-ramayan-part-1-gita-press/page/%E0%A5%AA%E0%A5%AD%E0%A5%A9/mode/1up वाल्मीकि रामायण - आयोध्याकाण्ड], अध्याया - ८९, श्लोक ०५-२१, गीताप्रेस गोरखपुर (पृ० ४७४)।</ref></blockquote>'''भावार्थ -''' इस प्रसंग में भरत जी की विनम्रता, गुह की निष्ठा और निषादों की सेवा भावना का उल्लेख मिलता है। यह दर्शाता है कि समाज के सभी वर्ग मिलकर एक दूसरे की सहायता करते थे। इस प्रसंग में नौकाओं की भव्यता, उनकी सजावट और जल-यात्रा की उन्नत व्यवस्था का भी वर्णन है, गुह अपनी निषाद जाति के लोगों को आदेश देकर गंगा पार कराने हेतु नौका की व्यवस्था करते हैं। इस प्रसंग से यह स्पष्ट होता है कि प्राचीन भारत में नौका संचालन और जलमार्गों का महत्त्वपूर्ण स्थान था। वाल्मीकि रामायण में अन्य स्थानों पर भी नौका संचालन का उल्लेख मिलता है, जिससे यह सिद्ध होता है कि प्राचीन भारत में नदियों के माध्यम से आवागमन की सुलभ व्यवस्था थी। यह वर्णन भारतीय जलयात्रा और नौका परिवहन की परंपरा को प्रमाणित करता है। |
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| | ===महाभारत में नौका॥ Nauka in Mahabharata=== | | ===महाभारत में नौका॥ Nauka in Mahabharata=== |
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| | महाभारत (आदिपर्व 150.4-5) में भी नौका का उल्लेख निम्नलिखित श्लोक में हुआ है - <blockquote>ततः प्रवासितो विद्वान्विदुरेण नरस्तदा। पार्थानां दर्शयामास मनोमारुतगामिनीम्॥ | | महाभारत (आदिपर्व 150.4-5) में भी नौका का उल्लेख निम्नलिखित श्लोक में हुआ है - <blockquote>ततः प्रवासितो विद्वान्विदुरेण नरस्तदा। पार्थानां दर्शयामास मनोमारुतगामिनीम्॥ |
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| − | सर्ववातसहां नावं यन्त्रयुक्तां पताकिनीम्। शिवे भागीरथीतीरे नरैर्विस्रम्भिभिः कृताम्॥ (महाभारत)<ref>[https://sa.wikisource.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%A4%E0%A4%AE%E0%A5%8D-01-%E0%A4%86%E0%A4%A6%E0%A4%BF%E0%A4%AA%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%B5-161 महाभारत], आदिपर्व, अध्याय- १६१, श्लोक- ५-६।</ref></blockquote>विदुर द्वारा भेजा गया वह व्यक्ति पांडवों को तेज गति से चलने वाली नौका दिखाता है। यह नौका - | + | सर्ववातसहां नावं यन्त्रयुक्तां पताकिनीम्। शिवे भागीरथीतीरे नरैर्विस्रम्भिभिः कृताम्॥ (महाभारत)<ref>[https://sa.wikisource.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%A4%E0%A4%AE%E0%A5%8D-01-%E0%A4%86%E0%A4%A6%E0%A4%BF%E0%A4%AA%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%B5-161 महाभारत], आदिपर्व, अध्याय- १६१, श्लोक- ५-६।</ref> </blockquote>विदुर द्वारा भेजा गया वह व्यक्ति पांडवों को तेज गति से चलने वाली नौका दिखाता है। यह नौका - |
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| | *'''तेज गति से चलने वाली थी''' (मनोमारुतगामिनी)। | | *'''तेज गति से चलने वाली थी''' (मनोमारुतगामिनी)। |