| Line 1: |
Line 1: |
| | {{ToBeEdited}} | | {{ToBeEdited}} |
| | | | |
| − | भारत में नौकाओं के निर्माण की कला अति प्राचीन रही है। वैदिक एवं संस्कृत वाङ्मय में समुद्र यात्रा का वर्णन प्राप्त होता है। भारतीय नौ-सेना का ध्येय वाक्य भी "शन्नो वरुणः" अर्थात जल देवता हम पर कृपा करें। वैदिक काल में लोगों को समुद्र का ज्ञान था। ऋग्वेद के अनेक मन्त्रों में समुद्र एवं नौकाओं के सन्दर्भ मिलते हैं। ऋग्वेद के अनेक मन्त्रों में साधारण नौकाओं और सीता से चलने वाली वही नौकाओं के स्पष्ट उल्लेख हैं। अथर्ववेद एवं शतपथ ब्राह्मण में भी नौ-परिवहन संचालित कुछ शब्द मिलते हैं। यथा - अरित, नावजा, नौमण्ड और शविन इत्यादि। पाणिनि की अष्टाध्यायी, जातक ग्रन्थों, रामायण एवं महाभारत आदि ग्रन्थों में भी नौ-परिवहन के उल्लेख विद्यमान हैं।<ref>डॉ० हेटल एम० पाण्ड्या, [https://j.vidhyayanaejournal.org/index.php/journal/article/view/1381/1495 भारतीय नौका निर्माण कला], सन - जून २०२०, अन इंटरनेशनल मल्टीडिसिप्लिनरी पीयर-रिव्यूड ई-जर्नल (पृ० २)।</ref>
| + | नौका शास्त्र (संस्कृतः नौका शास्त्र) जलयानों के निर्माण, संचालन एवं जलयात्रा से संबंधित प्राचीन भारतीय विद्या है। नौका, जिसे "वारि-रथ" (जल में चलने वाला रथ) भी कहा जाता है, पानी में तैरने और पार करने के लिए लकड़ी आदि से निर्मित एक विशेष प्रकार का वाहन होती है। भारत की नौसेना का ध्येय वाक्य "शन्नो वरुणः" (अर्थात जल देवता हम पर कृपा करें) वैदिक परंपरा एवं समुद्र शक्ति के प्रति भारतीय श्रद्धा को दर्शाता है। भारत में नौकाओं के निर्माण की कला अति प्राचीन रही है। संस्कृत ग्रंथों में नौका निर्माण, उनकी विशेषताएँ, उपयोग एवं समुद्री मार्गों का विस्तृत वर्णन प्राप्त होता है। भारतीय समुद्री परंपरा के अध्ययन हेतु भोजराज युक्तिकल्पतरु, समरांगणसूत्र, वृहत्संहिता, अष्टाध्यायी, रामायण, महाभारत, तथा जातक कथाएँ महत्वपूर्ण स्रोत हैं। |
| | | | |
| | ==परिचय॥ Introduction== | | ==परिचय॥ Introduction== |
| | + | वैदिक काल में लोगों को नौका शास्त्र का ज्ञान था। ऋग्वेद के अनेक मन्त्रों में समुद्र एवं नौकाओं के सन्दर्भ मिलते हैं। ऋग्वेद के अनेक मन्त्रों में साधारण नौकाओं और सीता से चलने वाली वही नौकाओं के स्पष्ट उल्लेख हैं। अथर्ववेद एवं शतपथ ब्राह्मण में भी नौ-परिवहन संचालित कुछ शब्द मिलते हैं। यथा - अरित, नावजा, नौमण्ड और शविन इत्यादि। |
| | + | |
| | भारत में नौका का प्रयोग बहुत ही व्यवस्थित रूप से प्रचलित था। यह नौका चालन से जुडे व्यक्तियों का जीविकोपार्जन का साधन था। व्यापार में भी इसका प्रयोग होता था। यह राजकोष वृद्धि में भी सहायक था। अर्थशास्त्र में इसका प्रमाण प्राप्त होता है। युक्तिकल्पतरु में नौका के दो प्रकार बताए गए हैं - | | भारत में नौका का प्रयोग बहुत ही व्यवस्थित रूप से प्रचलित था। यह नौका चालन से जुडे व्यक्तियों का जीविकोपार्जन का साधन था। व्यापार में भी इसका प्रयोग होता था। यह राजकोष वृद्धि में भी सहायक था। अर्थशास्त्र में इसका प्रमाण प्राप्त होता है। युक्तिकल्पतरु में नौका के दो प्रकार बताए गए हैं - |
| | | | |
| Line 13: |
Line 15: |
| | गजाश्वादि चतुष्पादं दोलादि द्विपदं भवेत। नौकाद्यं विपदं ज्ञेयं रथाद्यं बहुपादकम्॥ | | गजाश्वादि चतुष्पादं दोलादि द्विपदं भवेत। नौकाद्यं विपदं ज्ञेयं रथाद्यं बहुपादकम्॥ |
| | | | |
| − | व्योमयानं विमानं वा पूर्वमासीन्महीभुजाम्। यथानुगुण संपन्ना नेता प्राहुः सुखप्रदाम्॥ (युक्तिकल्पतरु)<ref>श्री भोजदेवकृत, (संपादक) ईश्वरचन्द्र शास्त्री, [https://archive.org/details/in.ernet.dli.2015.513517/page/n45/mode/1up युक्तिकल्पतरु], सन १९१७, संस्कृत कॉलेज, कोलकाता (पृ० ७)।</ref></blockquote>जल पर विजय पाने के लिए मनुष्य ने नौका का निर्माण कर किया। रामायण, महाभारत आदि ग्रन्थों में भी नौका का उल्लेख प्राप्त होता है। नौका वर्णन संस्कृत साहित्य में प्रचुर मात्रा में प्राप्त होता है परंतु नौका निर्माण से संबंधित एकमात्र ग्रंथ भोजकृत युक्तिकल्पतरु ही प्राप्त होता है।<ref>चंद्रशेखर त्रिपाठी, [https://egyankosh.ac.in/handle/123456789/97434 नौका निर्माण], सन 2023, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय, नई दिल्ली (पृ० २५)।</ref> उत्कृष्ट निर्माण-कल्याण में नौका की सजावट का सुंदर वर्णन आता है। चार शृंग वाली नौका सफेद, तीन शृंग वाली लाल, दो शृंग वाली पीली तथा एक शृंग वाली को नीली रंगना चाहिए। नौका मुख - नौका की आगे की आकृति अर्थात नौका का मुख सिंह, महिष, सर्प, हाथी, व्याघ्र, पक्षी, मेंढक आदि विविध आकृतियों के आधार पर बनाने का वर्णन है। भोजराज ने नौका निर्माण में लोहे के प्रयोग का निषेध किया है। उनका मानना है कि लोहे का नौका निर्माण में प्रयोग खतरनाक है - <blockquote>न सिन्धुगाद्यार्हति लौहवन्धं, तल्लोह-कान्तैः ह्रियते हि लौहम्। विपद्यते तेन जलेषु नौका य गुणेन वन्धं निजगाद भोजः॥ (युक्तिकल्पतरु) </blockquote>राजा भोज का मानना है कि नाव के निचले हिस्से को बांधने में लोहे का प्रयोग एकदम नहीं करना चाहिए। इसका कारण वह बताते हैं कि समुद्र के अंदर कुछ ऐसे पत्थर या पदार्थ हो सकते हैं जिनमें चुंबकीय शक्ति होती है, यदि नाव के निचले तल में लोहे का प्रयोग किया जाएगा तो वह उसे अपनी ओर खींच लेंगे और नाव को नुकसान हो जाएगा इसलिए नाव के निचले तल को लोहे के अलावा किसी अन्य पदार्थ से जोड़ना चाहिए। | + | व्योमयानं विमानं वा पूर्वमासीन्महीभुजाम्। यथानुगुण संपन्ना नेता प्राहुः सुखप्रदाम्॥ (युक्तिकल्पतरु)<ref>श्री भोजदेवकृत, (संपादक) ईश्वरचन्द्र शास्त्री, [https://archive.org/details/in.ernet.dli.2015.513517/page/n45/mode/1up युक्तिकल्पतरु], सन १९१७, संस्कृत कॉलेज, कोलकाता (पृ० ७)।</ref></blockquote>जल पर विजय पाने के लिए मनुष्य ने नौका का निर्माण कर किया। रामायण, महाभारत आदि ग्रन्थों में भी नौका का उल्लेख प्राप्त होता है। नौका वर्णन संस्कृत साहित्य में प्रचुर मात्रा में प्राप्त होता है परंतु नौका निर्माण से संबंधित एकमात्र ग्रंथ भोजकृत युक्तिकल्पतरु ही प्राप्त होता है।<ref name=":0">चंद्रशेखर त्रिपाठी, [https://egyankosh.ac.in/handle/123456789/97434 नौका निर्माण], सन 2023, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय, नई दिल्ली (पृ० २५)।</ref> उत्कृष्ट निर्माण-कल्याण में नौका की सजावट का सुंदर वर्णन आता है। चार शृंग वाली नौका सफेद, तीन शृंग वाली लाल, दो शृंग वाली पीली तथा एक शृंग वाली को नीली रंगना चाहिए। नौका मुख - नौका की आगे की आकृति अर्थात नौका का मुख सिंह, महिष, सर्प, हाथी, व्याघ्र, पक्षी, मेंढक आदि विविध आकृतियों के आधार पर बनाने का वर्णन है। भोजराज ने नौका निर्माण में लोहे के प्रयोग का निषेध किया है। उनका मानना है कि लोहे का नौका निर्माण में प्रयोग खतरनाक है - <blockquote>न सिन्धुगाद्यार्हति लौहवन्धं, तल्लोह-कान्तैः ह्रियते हि लौहम्। विपद्यते तेन जलेषु नौका य गुणेन वन्धं निजगाद भोजः॥ (युक्तिकल्पतरु) </blockquote>राजा भोज का मानना है कि नाव के निचले हिस्से को बांधने में लोहे का प्रयोग एकदम नहीं करना चाहिए। इसका कारण वह बताते हैं कि समुद्र के अंदर कुछ ऐसे पत्थर या पदार्थ हो सकते हैं जिनमें चुंबकीय शक्ति होती है, यदि नाव के निचले तल में लोहे का प्रयोग किया जाएगा तो वह उसे अपनी ओर खींच लेंगे और नाव को नुकसान हो जाएगा इसलिए नाव के निचले तल को लोहे के अलावा किसी अन्य पदार्थ से जोड़ना चाहिए। |
| | *वाल्मीकि रचित रामायण में केवट द्वारा राम को नाव से नदी पार कराने की घटना का वर्णन है। | | *वाल्मीकि रचित रामायण में केवट द्वारा राम को नाव से नदी पार कराने की घटना का वर्णन है। |
| | *अयोध्या कांड में भी ऐसी बडी नावों का उल्लेख है, जिन पर सैकडों कैवर्त योद्धा तैयार रहते थे - नावां शतानां पञ्चानां कैवर्तानां शतं शतम्। | | *अयोध्या कांड में भी ऐसी बडी नावों का उल्लेख है, जिन पर सैकडों कैवर्त योद्धा तैयार रहते थे - नावां शतानां पञ्चानां कैवर्तानां शतं शतम्। |
| | *इसी प्रकार महाभारत के आदिपर्व में शांतनु-सत्यवती संवाद में नौका का उल्लेख है। सत्यवती धर्मार्थ नाव चलाती हैं - साब्रवीद्वाशकन्यास्मि धर्मार्थं बाहये तरी। (महाभारत, आदिपर्व, अध्याय ९४/४४) | | *इसी प्रकार महाभारत के आदिपर्व में शांतनु-सत्यवती संवाद में नौका का उल्लेख है। सत्यवती धर्मार्थ नाव चलाती हैं - साब्रवीद्वाशकन्यास्मि धर्मार्थं बाहये तरी। (महाभारत, आदिपर्व, अध्याय ९४/४४) |
| − | आर्यभट्ट द्वारा ४९९ ई० संवत में ही आर्यभटीय के गोलपाद अध्याय में तारों की स्थिरता के सन्दर्भ में नौका का उदाहरण प्रस्तुत किया है - <blockquote>अनुलोमगतिर्नौस्थः पश्यत्यचलं विलोमगं यद्धत्। अचलानि भानि तद्धत समपश्चिमगानि लंकायाम्॥ (आर्यभटीय)<ref>आर्यभट्ट कृत, (संपादक) के०वी० शर्मा, [https://archive.org/details/Aryabhatiya1976/Aryabhatiya%20v3%201976/page/n182/mode/1up आर्यभटीय], सन १९७६, इण्डियन नेशनल साइंस एकेडमी, न्यू देल्ही (पृ० १३१)।</ref> </blockquote>'''भाषार्थ -''' जब एक नौका सवार आदमी नाव की गति से आगे की ओर गतिशील है तथा स्थिर किनारे स्थित किसी वस्तुओं का अवलोकन करता है, तो उसे प्रतीत होता है कि वह वस्तु उनके विपरित दिशा में गतिशील है तथा गतिशील नौका सवार जब आकाश में स्थित तारों (Stars) का अवलोकन करता है, तो स्थिर तारें विषुवत रेखा (Equator) पर स्थित श्रीलंका में पश्चिम की ओर गतिशील प्रतीत होते है। बृहत्संहिता में चंद्रमा की दश संस्थाओं का वर्णन है, उनमें नौसंस्था के विषय में इस प्रकार बताया गया है -<ref>वराहमिहिरकृत, व्याख्याकार-अच्युतानन्द झा, [https://archive.org/details/brihat-samhita-/%E0%A4%AC%E0%A5%83%E0%A4%B9%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%B9%E0%A4%BF%E0%A4%A4%20Brihat%20Samhita%20-1/page/n112/mode/1up बृहत्संहिता- विमला हिन्दी व्याख्या सहित], सन , चौखम्बा विद्याभवन, वाराणसी (पृ० ८७)।</ref> <blockquote>उन्नतमीषच्छृङ्गं नौसंस्थाने विशालता चोक्ता। नाविकपीडा तस्मिन् भवति शिवं सर्वलोकस्य॥ (बृहत्संहिता)</blockquote>'''भाषार्थ -''' चन्द्र का शृङ्ग कुछ उन्नत होकर जब नाव की तरह विशालता को प्राप्त होता है तो 'नौ' नाम का संस्थान होता है। इसमें नाविक लोगों को पीडा और अन्य सबों का शुभ होता है। | + | आर्यभट्ट द्वारा ४९९ ई० संवत में ही आर्यभटीय के गोलपाद अध्याय में तारों की स्थिरता के सन्दर्भ में नौका का उदाहरण प्रस्तुत किया है - <blockquote>अनुलोमगतिर्नौस्थः पश्यत्यचलं विलोमगं यद्धत्। अचलानि भानि तद्धत समपश्चिमगानि लंकायाम्॥ (आर्यभटीय)<ref>आर्यभट्ट कृत, (संपादक) के०वी० शर्मा, [https://archive.org/details/Aryabhatiya1976/Aryabhatiya%20v3%201976/page/n182/mode/1up आर्यभटीय], सन १९७६, इण्डियन नेशनल साइंस एकेडमी, न्यू देल्ही (पृ० १३१)।</ref> </blockquote>'''भाषार्थ -''' जब एक नौका सवार आदमी नाव की गति से आगे की ओर गतिशील है तथा स्थिर किनारे स्थित किसी वस्तुओं का अवलोकन करता है, तो उसे प्रतीत होता है कि वह वस्तु उनके विपरित दिशा में गतिशील है तथा गतिशील नौका सवार जब आकाश में स्थित तारों (Stars) का अवलोकन करता है, तो स्थिर तारें विषुवत रेखा (Equator) पर स्थित श्रीलंका में पश्चिम की ओर गतिशील प्रतीत होते है। बृहत्संहिता में चंद्रमा की दश संस्थाओं का वर्णन है, उनमें नौसंस्था के विषय में इस प्रकार बताया गया है -<ref name=":2">वराहमिहिरकृत, व्याख्याकार-अच्युतानन्द झा, [https://archive.org/details/brihat-samhita-/%E0%A4%AC%E0%A5%83%E0%A4%B9%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%B9%E0%A4%BF%E0%A4%A4%20Brihat%20Samhita%20-1/page/n112/mode/1up बृहत्संहिता- विमला हिन्दी व्याख्या सहित], सन , चौखम्बा विद्याभवन, वाराणसी (पृ० ८७)।</ref> <blockquote>उन्नतमीषच्छृङ्गं नौसंस्थाने विशालता चोक्ता। नाविकपीडा तस्मिन् भवति शिवं सर्वलोकस्य॥ (बृहत्संहिता)<ref name=":2" /></blockquote>'''भाषार्थ -''' चन्द्र का शृङ्ग कुछ उन्नत होकर जब नाव की तरह विशालता को प्राप्त होता है तो 'नौ' नाम का संस्थान होता है। इसमें नाविक लोगों को पीडा और अन्य सबों का शुभ होता है।<ref name=":2" /> |
| | | | |
| | ==परिभाषा॥ Definition== | | ==परिभाषा॥ Definition== |
| − | राजा भोज ने नौका को इस प्रकार परिभाषित किया है - <blockquote>नौकाद्यं विपदं ज्ञेय। (युक्तिकल्पतरु)</blockquote>अर्थात बिना पद (पहिया) वाले यान नौका कही जाती है। | + | संस्कृत में "नौ" एक स्त्रीलिंग शब्द है, जिसका अर्थ नौका (बोट/जहाज) होता है। यह "नुद" (प्रेरित करना, धकेलना) धातु से बना है, जिसमें "ग्लानु-दिभ्यां डौः" (उणादि सूत्र 2.64) के अनुसार "डौः" प्रत्यय जोड़ा गया है। इसकी व्युत्पत्ति इस प्रकार है - <ref name=":1">[https://ashtadhyayi.com/kosha?search=%E0%A4%A8%E0%A5%8C%E0%A4%95%E0%A4%BE&page=kosha शब्दकल्पद्रुम]</ref><blockquote>नुद्यतेऽनयेति नौका। (शब्दकल्पद्रुम)<ref name=":1" /></blockquote> '''भाषार्थ -''' जिससे किसी को प्रवाहित (आगे बढ़ाया) किया जाता है। राजा भोज ने नौका को इस प्रकार परिभाषित किया है -<blockquote>नौकाद्यं विपदं ज्ञेय। (युक्तिकल्पतरु)</blockquote>अर्थात बिना पद (पहिया) वाले यान नौका कही जाती है। शब्दरत्नावली के अनुसार नौका के विभिन्न समानार्थी शब्द हैं - नौः, तरिका, तरणिः, तरणी, तरिः, तरी, तरण्डी, तरण्डः, पादालिन्दा, उत्प्लवा, होडः, वाधूः, वार्वटः, वहित्रम्, पोतः, वहनम् (जटाधर के अनुसार) आदि। |
| | | | |
| | ==नौका-निर्माण कला॥ Nauka Nirmana Kala== | | ==नौका-निर्माण कला॥ Nauka Nirmana Kala== |
| Line 53: |
Line 55: |
| | अश्विखरांशु सुधानिधि-पूर्ववा, मित्र धनाच्युतभे शुभलग्ने। तारक योगतिथौन्दुविशुद्धौ नौगमनं शुभदं शुभवारे॥ (युक्तिकल्पतरु, पृष्ठ संख्या-223)</blockquote>आज भी अनेक कार्य यथा गृह-निर्माण, वाहन क्रय, पलंग आदि क्रय शुभ मुहूर्त में ही पञ्चाङ्ग के अनुसार किया जाता है। अतः भोजराज ने भी ज्योतिषीय परंपरा के आधार पर नौका निर्माण एवं उसके जलावतरण को उचित माना है। | | अश्विखरांशु सुधानिधि-पूर्ववा, मित्र धनाच्युतभे शुभलग्ने। तारक योगतिथौन्दुविशुद्धौ नौगमनं शुभदं शुभवारे॥ (युक्तिकल्पतरु, पृष्ठ संख्या-223)</blockquote>आज भी अनेक कार्य यथा गृह-निर्माण, वाहन क्रय, पलंग आदि क्रय शुभ मुहूर्त में ही पञ्चाङ्ग के अनुसार किया जाता है। अतः भोजराज ने भी ज्योतिषीय परंपरा के आधार पर नौका निर्माण एवं उसके जलावतरण को उचित माना है। |
| | | | |
| − | ===नौका के प्रकार॥ Types of Nauka=== | + | === नौका के प्रकार॥ Types of Nauka=== |
| − | युक्तिकल्पतरु में सर्वप्रथम नौका के दो प्रकार बताए गए हैं - सामान्य नौका और विशेष नौका। जैसे - <blockquote>सामान्यञ्च विशेषश्च नौकाया लक्षणद्वयम् - तत्र सामान्यम्। (युक्तिकल्पतरु) </blockquote>1. सामान्य नौका - राजा भोज ने दश प्रकार के सामान्य मान्य नौका नौका का का उल्लेख उल्लेख किया किया है। दश प्रकार के सामान्य नौका इस प्रकार है - क्षुद्र, मध्यमा, भीमा, चपला, पटला, अभया, दीर्घा, पत्रपुटा, गर्भरा, मन्थरा।<blockquote>क्षुद्राथ मध्यमा भीमा चपला पटलाऽभया। दीर्घा पत्रपुटा चौव गर्भरा मन्थरा तथा। नौकादशकमित्युक्तं राजहस्तैरनुक्रमम्॥ | + | युक्तिकल्पतरु में सर्वप्रथम नौका के दो प्रकार बताए गए हैं - सामान्य नौका और विशेष नौका। जैसे - <blockquote>सामान्यञ्च विशेषश्च नौकाया लक्षणद्वयम् - तत्र सामान्यम्। (युक्तिकल्पतरु) </blockquote>1. सामान्य नौका - राजा भोज ने दश प्रकार के सामान्य मान्य नौका नौका का का उल्लेख उल्लेख किया किया है। दश प्रकार के सामान्य नौका इस प्रकार है - क्षुद्र, मध्यमा, भीमा, चपला, पटला, अभया, दीर्घा, पत्रपुटा, गर्भरा, मन्थरा।<blockquote>क्षुद्राथ मध्यमा भीमा चपला पटलाऽभया। दीर्घा पत्रपुटा चौव गर्भरा मन्थरा तथा। नौकादशकमित्युक्तं राजहस्तैरनुक्रमम्॥ |
| | | | |
| − | एकैकवृध्दैः (वुध्देः) साधैश्च विजानीयाद द्वयं द्वयम्। अत्र भीमाऽभया चौव गर्भरा चाशुभप्रदा। मंथरा परसों यास्तु तासामेवाम्बुधौ गतिः॥ (युक्तिकल्पतरु) </blockquote>इन दसों नौकाओं में से भीमा, अभया और गर्भरा अशुभता को प्रदान करने वाली है अतः निस्संदेह त्याज्य हैं। मन्थरा के अतिरिक्त शेष अर्थात क्षुद्र, मध्यमा, चपला, पटला, दीर्घा और पत्रपुटा अपनी दृढ़ता गुणों के कारण समुद्र में जाने योग्य हैं। राधाकुमुद मुखर्जी ने अपने ग्रंथ Indian Shipping में इन नौकाओं की लंबाई, चौड़ाई और ऊँचाई का एक चार्ट बनाया है। युक्तिकल्पतरु में नापने के लिए राजहस्त पद का प्रयोग किया है। जिसका सामान्य अर्थ है - राजा का हाथ। राधाकुमुद मुखर्जी के अनुसार एक राजहस्त 16 cubits' के बराबर होता है। | + | एकैकवृध्दैः (वुध्देः) साधैश्च विजानीयाद द्वयं द्वयम्। अत्र भीमाऽभया चौव गर्भरा चाशुभप्रदा। मंथरा परसों यास्तु तासामेवाम्बुधौ गतिः॥ (युक्तिकल्पतरु) </blockquote>इन दसों नौकाओं में से भीमा, अभया और गर्भरा अशुभता को प्रदान करने वाली है अतः निस्संदेह त्याज्य हैं। मन्थरा के अतिरिक्त शेष अर्थात क्षुद्र, मध्यमा, चपला, पटला, दीर्घा और पत्रपुटा अपनी दृढ़ता गुणों के कारण समुद्र में जाने योग्य हैं। राधाकुमुद मुखर्जी ने अपने ग्रंथ Indian Shipping में इन नौकाओं की लंबाई, चौड़ाई और ऊँचाई का एक चार्ट बनाया है। युक्तिकल्पतरु में नापने के लिए राजहस्त पद का प्रयोग किया है। जिसका सामान्य अर्थ है - राजा का हाथ। राधाकुमुद मुखर्जी के अनुसार एक राजहस्त 16 cubits के बराबर होता है।<ref name=":0" /> |
| | | | |
| | ==वेदों में नाव॥ Vedon Mein Nava== | | ==वेदों में नाव॥ Vedon Mein Nava== |
| − | ऋग्वेद में वर्णन है कि अश्विनी देवों के पास ऐसा यान (नौका) था, जो अन्तरिक्ष और समुद्र दोनों में चल सकता था। इसमें कोई यन्त्र लगा होता था, जिससे सचेतन के तुल्य चलता था। इस पर पानी का कोई असर नहीं होता था। ऐसे यान से अश्विनीकुमारों ने समुद्र में डूबते हुए एक व्यापारी का उद्धार किया था -<ref>डॉ० कपिलदेव द्विवेदी, [https://archive-org.translate.goog/details/VedomMeinVigyanDr.KapilDevDwivedi/page/n144/mode/1up?_x_tr_sl=en&_x_tr_tl=hi&_x_tr_hl=hi&_x_tr_pto=tc&_x_tr_hist=true वेदों में विज्ञान], सन् २०००, विश्वभारती अनुसंधान परिषद, भदोही (पृ० १२६)।</ref> <blockquote>तमूहथुर्नौभिरात्मन्वतीभिः, अन्तरिक्षप्रुद्भिरपोदकाभिः॥ (ऋग्वेद ० १. ११६. ३)</blockquote>इसमें आत्मन्वती शब्द विशेष ध्यान देने योग्य है। यह यान सजीव की तरह चलता था। इससे ज्ञात होता है कि इसमें कोई मशीन लगी होती थी, जिससे यह सजीव की तरह चलता था। ऋग्वेद के अन्य मन्त्र में जलयान का वर्णन इस प्रकार है -<ref>श्रीशिवपूजन सिंहजी कुशवाहा, कल्याण विशेषांक - हिन्दू संस्कृति अंक, [https://archive.org/details/gp0518-hindu-sanskriti-ank/page/n833/mode/1up यातायात के प्राचीन वैज्ञानिक साधन], गीताप्रेस गोरखपुर (पृ० ८३५)।</ref> <blockquote>यास्ते पूषन्नावो अन्तः समुद्रे हिरण्ययीरन्तरिक्षे चरन्ति। ताभिर्यासि दूत्यां सूर्यस्य कामेन कृतश्रव इच्छमानः॥ (ऋग्वेद संहिता)</blockquote>'''अर्थ -''' हे पूषन्! जो तेरी लोहादिकी बनी नौकाएँ समुद्रके भीतर अर्थात समुद्रतलके नीचे और अन्तरिक्षमें चलती हैं, मानो तू उनके द्वारा इच्छापूर्वक अर्जित यशको चाहता हुआ सूर्यके दूतत्वको प्राप्त कर रहा है। | + | ऋग्वेद में वर्णन है कि अश्विनी देवों के पास ऐसा यान (नौका) था, जो अन्तरिक्ष और समुद्र दोनों में चल सकता था। इसमें कोई यन्त्र लगा होता था, जिससे सचेतन के तुल्य चलता था। इस पर पानी का कोई असर नहीं होता था। ऐसे यान से अश्विनीकुमारों ने समुद्र में डूबते हुए एक व्यापारी का उद्धार किया था -<ref>डॉ० कपिलदेव द्विवेदी, [https://archive-org.translate.goog/details/VedomMeinVigyanDr.KapilDevDwivedi/page/n144/mode/1up?_x_tr_sl=en&_x_tr_tl=hi&_x_tr_hl=hi&_x_tr_pto=tc&_x_tr_hist=true वेदों में विज्ञान], सन् २०००, विश्वभारती अनुसंधान परिषद, भदोही (पृ० १२६)।</ref> <blockquote>तमूहथुर्नौभिरात्मन्वतीभिः, अन्तरिक्षप्रुद्भिरपोदकाभिः॥ (ऋग्वेद ० १. ११६. ३)</blockquote>इसमें आत्मन्वती शब्द विशेष ध्यान देने योग्य है। यह यान सजीव की तरह चलता था। इससे ज्ञात होता है कि इसमें कोई मशीन लगी होती थी, जिससे यह सजीव की तरह चलता था। ऋग्वेद के अन्य मन्त्र में जलयान का वर्णन इस प्रकार है -<ref>श्रीशिवपूजन सिंहजी कुशवाहा, कल्याण विशेषांक - हिन्दू संस्कृति अंक, [https://archive.org/details/gp0518-hindu-sanskriti-ank/page/n833/mode/1up यातायात के प्राचीन वैज्ञानिक साधन], गीताप्रेस गोरखपुर (पृ० ८३५)।</ref> <blockquote>यास्ते पूषन्नावो अन्तः समुद्रे हिरण्ययीरन्तरिक्षे चरन्ति। ताभिर्यासि दूत्यां सूर्यस्य कामेन कृतश्रव इच्छमानः॥ (ऋग्वेद संहिता)</blockquote>'''अर्थ -''' हे पूषन्! जो तेरी लोहादिकी बनी नौकाएँ समुद्रके भीतर अर्थात समुद्रतलके नीचे और अन्तरिक्षमें चलती हैं, मानो तू उनके द्वारा इच्छापूर्वक अर्जित यशको चाहता हुआ सूर्यके दूतत्वको प्राप्त कर रहा है। महाभारत (आदिपर्व 150.4-5) में भी नौका का उल्लेख निम्नलिखित श्लोक में हुआ है - <blockquote>ततः प्रवासितो विद्वान्विदुरेण नरस्तदा। पार्थानां दर्शयामास मनोमारुतगामिनीम्॥ |
| | + | |
| | + | सर्ववातसहां नावं यन्त्रयुक्तां पताकिनीम्। शिवे भागीरथीतीरे नरैर्विस्रम्भिभिः कृताम्॥ (महाभारत)<ref>[https://sa.wikisource.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%A4%E0%A4%AE%E0%A5%8D-01-%E0%A4%86%E0%A4%A6%E0%A4%BF%E0%A4%AA%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%B5-161 महाभारत], आदिपर्व, अध्याय- १६१, श्लोक- ५-६।</ref></blockquote>विदुर द्वारा भेजा गया वह व्यक्ति पांडवों को तेज गति से चलने वाली नौका दिखाता है। यह नौका - |
| | + | |
| | + | * '''तेज गति से चलने वाली थी''' (मनोमारुतगामिनी)। |
| | + | * '''सभी प्रकार की हवाओं को सहन करने में सक्षम थी''' (सर्ववातसहा)। |
| | + | * '''यंत्रों से युक्त थी''' (यन्त्रयुक्ता)। |
| | + | * '''झंडे से सुसज्जित थी''' (पताकिनी)। |
| | + | * '''विश्वासपात्र लोगों द्वारा निर्मित थी''' (नरैर्विश्रम्भिभिः कृताम्)। |
| | + | * '''पवित्र भागीरथी (गंगा) के तट पर रखी गई थी''' (शिवे भागीरथीतीरे)। |
| | + | |
| | + | इस संदर्भ से यंत्रों से चलने वाली नौका (मशीन से संचालित बोट/शिप) का भी संकेत मिलता है। आज के समय में इष्टिम्बोट (स्टीमबोट) शब्दों से इसी प्रकार की नौका को जाना जाता है। |
| | | | |
| | ==सारांश॥ Summary== | | ==सारांश॥ Summary== |
| − | प्राचीन काल से ही भारत में यातायात के साधन के रूप में जलयानों का प्रयोग बहुतायत से होता रहा है। कौटिल्य के अर्थशास्त्र में जलयान के प्रयोग पर कर-व्यवस्था इस दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है। राजा भोज द्वारा रचित युक्तिकल्पतरु ग्रंथ नौका निर्माण के सभी पक्षों को स्पष्ट करता है। इस ग्रंथ में न केवल नौका के निर्माण की चर्चा की गई है अपितु चार शृंगी (पताका अर्थात मस्तूल वाले) जहाजों के सजावट को भी बताया गया। नौका के सजावट का प्रसंग नौका निर्माण के सूक्ष्म ज्ञान को प्रदर्शित करता है। | + | प्राचीन काल से ही भारत में यातायात के साधन के रूप में जलयानों का प्रयोग बहुतायत से होता रहा है। कौटिल्य के अर्थशास्त्र में जलयान के प्रयोग पर कर-व्यवस्था इस दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है। राजा भोज द्वारा रचित युक्तिकल्पतरु ग्रंथ नौका निर्माण के सभी पक्षों को स्पष्ट करता है। इस ग्रंथ में न केवल नौका के निर्माण की चर्चा की गई है अपितु चार शृंगी (पताका अर्थात मस्तूल वाले) जहाजों के सजावट को भी बताया गया। नौका के सजावट का प्रसंग नौका निर्माण के सूक्ष्म ज्ञान को प्रदर्शित करता है। भोजराज द्वारा रचित "युक्तिकल्पतरु" नामक ग्रंथ प्राप्त होता है, जिसमें नौका निर्माण की विधियाँ तथा उनकी विविध उपयोगिताएँ वर्णित हैं। पाणिनि की अष्टाध्यायी, जातक ग्रन्थों, रामायण एवं महाभारत आदि ग्रन्थों में भी नौ-परिवहन के उल्लेख विद्यमान हैं।<ref>डॉ० हेटल एम० पाण्ड्या, [https://j.vidhyayanaejournal.org/index.php/journal/article/view/1381/1495 भारतीय नौका निर्माण कला], सन - जून २०२०, अन इंटरनेशनल मल्टीडिसिप्लिनरी पीयर-रिव्यूड ई-जर्नल (पृ० २)।</ref> |
| | | | |
| | ==उद्धरण॥ References== | | ==उद्धरण॥ References== |
| | [[Category:Hindi Articles]] | | [[Category:Hindi Articles]] |
| | <references /> | | <references /> |