| Line 13: |
Line 13: |
| | गजाश्वादि चतुष्पादं दोलादि द्विपदं भवेत। नौकाद्यं विपदं ज्ञेयं रथाद्यं बहुपादकम्॥ | | गजाश्वादि चतुष्पादं दोलादि द्विपदं भवेत। नौकाद्यं विपदं ज्ञेयं रथाद्यं बहुपादकम्॥ |
| | | | |
| − | व्योमयानं विमानं वा पूर्वमासीन्महीभुजाम्। यथानुगुण संपन्ना नेता प्राहुः सुखप्रदाम्॥ (युक्तिकल्पतरु)<ref>श्री भोजदेवकृत, (संपादक) ईश्वरचन्द्र शास्त्री, [https://archive.org/details/in.ernet.dli.2015.513517/page/n45/mode/1up युक्तिकल्पतरु], सन १९१७, संस्कृत कॉलेज, कोलकाता (पृ० ७)।</ref></blockquote>जल पर विजय पाने के लिए मनुष्य ने नौका का निर्माण कर किया। रामायण, महाभारत आदि ग्रन्थों में भी नौका का उल्लेख प्राप्त होता है। नौका वर्णन संस्कृत साहित्य में प्रचुर मात्रा में प्राप्त होता है परंतु नौका निर्माण से संबंधित एकमात्र ग्रंथ भोजकृत युक्तिकल्पतरु ही प्राप्त होता है।<ref>चंद्रशेखर त्रिपाठी, [https://egyankosh.ac.in/handle/123456789/97434 नौका निर्माण], सन 2023, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय, नई दिल्ली (पृ० २५)।</ref> उत्कृष्ट निर्माण-कल्याण में नौका की सजावट का सुंदर वर्णन आता है। चार शृंग वाली नौका सफेद, तीन शृंग वाली लाल, दो शृंग वाली पीली तथा एक शृंग वाली को नीली रंगना चाहिए। नौका मुख - नौका की आगे की आकृति अर्थात नौका का मुख सिंह, महिष, सर्प, हाथी, व्याघ्र, पक्षी, मेंढक आदि विविध आकृतियों के आधार पर बनाने का वर्णन है। | + | व्योमयानं विमानं वा पूर्वमासीन्महीभुजाम्। यथानुगुण संपन्ना नेता प्राहुः सुखप्रदाम्॥ (युक्तिकल्पतरु)<ref>श्री भोजदेवकृत, (संपादक) ईश्वरचन्द्र शास्त्री, [https://archive.org/details/in.ernet.dli.2015.513517/page/n45/mode/1up युक्तिकल्पतरु], सन १९१७, संस्कृत कॉलेज, कोलकाता (पृ० ७)।</ref></blockquote>जल पर विजय पाने के लिए मनुष्य ने नौका का निर्माण कर किया। रामायण, महाभारत आदि ग्रन्थों में भी नौका का उल्लेख प्राप्त होता है। नौका वर्णन संस्कृत साहित्य में प्रचुर मात्रा में प्राप्त होता है परंतु नौका निर्माण से संबंधित एकमात्र ग्रंथ भोजकृत युक्तिकल्पतरु ही प्राप्त होता है।<ref>चंद्रशेखर त्रिपाठी, [https://egyankosh.ac.in/handle/123456789/97434 नौका निर्माण], सन 2023, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय, नई दिल्ली (पृ० २५)।</ref> उत्कृष्ट निर्माण-कल्याण में नौका की सजावट का सुंदर वर्णन आता है। चार शृंग वाली नौका सफेद, तीन शृंग वाली लाल, दो शृंग वाली पीली तथा एक शृंग वाली को नीली रंगना चाहिए। नौका मुख - नौका की आगे की आकृति अर्थात नौका का मुख सिंह, महिष, सर्प, हाथी, व्याघ्र, पक्षी, मेंढक आदि विविध आकृतियों के आधार पर बनाने का वर्णन है। भोजराज ने नौका निर्माण में लोहे के प्रयोग का निषेध किया है। उनका मानना है कि लोहे का नौका निर्माण में प्रयोग खतरनाक है - <blockquote>न सिन्धुगाद्यार्हति लौहवन्धं, तल्लोह-कान्तैः ह्रियते हि लौहम्। विपद्यते तेन जलेषु नौका य गुणेन वन्धं निजगाद भोजः॥ (युक्तिकल्पतरु) </blockquote>राजा भोज का मानना है कि नाव के निचले हिस्से को बांधने में लोहे का प्रयोग एकदम नहीं करना चाहिए। इसका कारण वह बताते हैं कि समुद्र के अंदर कुछ ऐसे पत्थर या पदार्थ हो सकते हैं जिनमें चुंबकीय शक्ति होती है, यदि नाव के निचले तल में लोहे का प्रयोग किया जाएगा तो वह उसे अपनी ओर खींच लेंगे और नाव को नुकसान हो जाएगा इसलिए नाव के निचले तल को लोहे के अलावा किसी अन्य पदार्थ से जोड़ना चाहिए। |
| − | | |
| | *वाल्मीकि रचित रामायण में केवट द्वारा राम को नाव से नदी पार कराने की घटना का वर्णन है। | | *वाल्मीकि रचित रामायण में केवट द्वारा राम को नाव से नदी पार कराने की घटना का वर्णन है। |
| | *अयोध्या कांड में भी ऐसी बडी नावों का उल्लेख है, जिन पर सैकडों कैवर्त योद्धा तैयार रहते थे - नावां शतानां पञ्चानां कैवर्तानां शतं शतम्। | | *अयोध्या कांड में भी ऐसी बडी नावों का उल्लेख है, जिन पर सैकडों कैवर्त योद्धा तैयार रहते थे - नावां शतानां पञ्चानां कैवर्तानां शतं शतम्। |
| Line 50: |
Line 49: |
| | | | |
| | ===नौका निर्माण काल॥ Nauka Nirmana kala=== | | ===नौका निर्माण काल॥ Nauka Nirmana kala=== |
| − | भोजराज के अनुसार शुभवार, वेला, तिथि, शुभ राशि में चंद्र तथा चर लग्न में नौका निर्माण उचित होता है। जल में नौका को उतारने के लिए उन्होंने निर्देश दिया है कि जब चंद्रमा पूर्व में हो, शुभलग्न हो, शुभ तारक, तथा शुभवार हो तभी यह कार्य करना चाहिए - <blockquote>सुवारवेला तिथि चन्द्र योगे, चरे विलग्ने मकरादि षट्के। ऋक्षेऽन्तय (१) सप्तस्वतिरेकतोऽन्ये य वदन्ति नौका घटना (का) दिकर्म ।। | + | भोजराज के अनुसार शुभवार, वेला, तिथि, शुभ राशि में चंद्र तथा चर लग्न में नौका निर्माण उचित होता है। जल में नौका को उतारने के लिए उन्होंने निर्देश दिया है कि जब चंद्रमा पूर्व में हो, शुभलग्न हो, शुभ तारक, तथा शुभवार हो तभी यह कार्य करना चाहिए - <blockquote>सुवारवेला तिथि चन्द्र योगे, चरे विलग्ने मकरादि षट्के। ऋक्षेऽन्तय सप्तस्वतिरेकतोऽन्ये य वदन्ति नौका घटना दिकर्म॥ |
| | | | |
| − | अश्विखरांशु सुधानिधि-पूर्ववा, मित्र धनाच्युतभे (ते) शुभलग्ने। तारक योगतिथौन्दुविशुद्धौ नौगमनं शुभदं शुभवारे ।। (युक्तिकल्पतरु, पृष्ठ संख्या-223)</blockquote>आज भी अनेक कार्य यथा गृह-निर्माण, वाहन क्रय, पलंग आदि क्रय शुभ मुहूर्त में ही पञ्चाङ्ग के अनुसार किया जाता है। अतः भोजराज ने भी ज्योतिषीय परंपरा के आधार पर नौका निर्माण एवं उसके जलावतरण को उचित माना है। | + | अश्विखरांशु सुधानिधि-पूर्ववा, मित्र धनाच्युतभे शुभलग्ने। तारक योगतिथौन्दुविशुद्धौ नौगमनं शुभदं शुभवारे॥ (युक्तिकल्पतरु, पृष्ठ संख्या-223)</blockquote>आज भी अनेक कार्य यथा गृह-निर्माण, वाहन क्रय, पलंग आदि क्रय शुभ मुहूर्त में ही पञ्चाङ्ग के अनुसार किया जाता है। अतः भोजराज ने भी ज्योतिषीय परंपरा के आधार पर नौका निर्माण एवं उसके जलावतरण को उचित माना है। |
| | | | |
| − | === नौका निर्माण पदार्थ॥ Nauka Nirmana Padartha === | + | ===नौका के प्रकार॥ Types of Nauka=== |
| | + | युक्तिकल्पतरु में सर्वप्रथम नौका के दो प्रकार बताए गए हैं - सामान्य नौका और विशेष नौका। जैसे - <blockquote>सामान्यञ्च विशेषश्च नौकाया लक्षणद्वयम् - तत्र सामान्यम्। (युक्तिकल्पतरु) </blockquote>1. सामान्य नौका - राजा भोज ने दश प्रकार के सामान्य मान्य नौका नौका का का उल्लेख उल्लेख किया किया है। दश प्रकार के सामान्य नौका इस प्रकार है - क्षुद्र, मध्यमा, भीमा, चपला, पटला, अभया, दीर्घा, पत्रपुटा, गर्भरा, मन्थरा।<blockquote>क्षुद्राथ मध्यमा भीमा चपला पटलाऽभया। दीर्घा पत्रपुटा चौव गर्भरा मन्थरा तथा। नौकादशकमित्युक्तं राजहस्तैरनुक्रमम्॥ |
| | | | |
| − | === नौका के प्रकार॥ Types of Nauka ===
| + | एकैकवृध्दैः (वुध्देः) साधैश्च विजानीयाद द्वयं द्वयम्। अत्र भीमाऽभया चौव गर्भरा चाशुभप्रदा। मंथरा परसों यास्तु तासामेवाम्बुधौ गतिः॥ (युक्तिकल्पतरु) </blockquote>इन दसों नौकाओं में से भीमा, अभया और गर्भरा अशुभता को प्रदान करने वाली है अतः निस्संदेह त्याज्य हैं। मन्थरा के अतिरिक्त शेष अर्थात क्षुद्र, मध्यमा, चपला, पटला, दीर्घा और पत्रपुटा अपनी दृढ़ता गुणों के कारण समुद्र में जाने योग्य हैं। राधाकुमुद मुखर्जी ने अपने ग्रंथ Indian Shipping में इन नौकाओं की लंबाई, चौड़ाई और ऊँचाई का एक चार्ट बनाया है। युक्तिकल्पतरु में नापने के लिए राजहस्त पद का प्रयोग किया है। जिसका सामान्य अर्थ है - राजा का हाथ। राधाकुमुद मुखर्जी के अनुसार एक राजहस्त 16 cubits' के बराबर होता है। |
| | | | |
| | ==वेदों में नाव॥ Vedon Mein Nava== | | ==वेदों में नाव॥ Vedon Mein Nava== |