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ज्योतिषशास्त्र सिद्धान्त, संहिता, होरा भेद से तीन स्कन्धों में विभक्त है। उनमें से सिद्धान्त ज्योतिषशास्त्र गणित शब्द से भी जाना जाता है। यह स्कन्ध भी ग्रहगणित, पाटीगणित व बीजगणित भेद से तीन भागों में विभक्त है। ब्रह्मा, वसिष्ठ, सोम, सूर्य आदि इसके प्रवर्तक आचार्य माने गये हैं। इसके उपरान्त आर्यभट, ब्रह्मगुप्त, वराहमिहिर, भास्कराचार्य, कमलाकर आदि ने इसका विकास किया। आर्ष सूर्यसिद्धान्त, आर्यभट रचित आर्यभटीय, ब्रह्मगुप्त रचित ब्राह्मस्फुटसिद्धान्त, वराहमिहिर रचित पञ्चसिद्धान्तिका, भास्कराचार्य रचित सिद्धान्तशिरोमणि और कमलाकर रचित सिद्धान्ततत्वविवेक आदि सिद्धान्त स्कन्ध के प्रमुख ग्रन्थ हैं।
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सिद्धान्त स्कन्ध (Astronomy) भारतीय ज्ञान परंपरा में [[Jyotisha (ज्योतिष)|ज्योतिषशास्त्र]] के प्रमुख तीन स्कन्धों में से एक है। यह  ग्रहस्थिति, काल निर्धारण एवं खगोलीय घटनाओं से संबंधित जानकारी प्रदान करता है। सिद्धान्त ज्योतिष को गणित अथवा खगोल विज्ञान के नाम से भी जाना जाता है। यह स्कन्ध भी ग्रहगणित, पाटीगणित व बीजगणित भेद से तीन भागों में विभक्त है। ब्रह्मा, वसिष्ठ, सोम, सूर्य आदि इसके प्रवर्तक आचार्य माने गये हैं। इसके उपरान्त आर्ष सूर्यसिद्धान्त, आर्यभट रचित आर्यभटीय, ब्रह्मगुप्त रचित ब्राह्मस्फुटसिद्धान्त, वराहमिहिर रचित पञ्चसिद्धान्तिका, भास्कराचार्य रचित सिद्धान्तशिरोमणि और कमलाकर रचित सिद्धान्ततत्वविवेक आदि सिद्धान्त स्कन्ध के प्रमुख ग्रन्थ हैं।
 
== परिचय॥ Introduction==
 
== परिचय॥ Introduction==
 
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सिद्धांत स्कन्ध का मुख्य उद्देश्य खगोलीय घटनाओं और ग्रह-नक्षत्रों की गति का अध्ययन करना है। यह खगोल विज्ञान, पंचांग निर्माण और कालगणना के लिए आधार प्रदान करता है। इसके अन्तर्गत त्रुटि(कालकी लघुत्तम इकाई) से लेकर कल्पकाल तक की कालगणना, पर्व आनयन, अब्द विचार, ग्रहगतिनिरूपण, मासगणना, ग्रहों का उदयास्त, वक्रमार्ग, सूर्य वा चन्द्रमा के ग्रहण प्रारंभ एवं अस्त ग्रहण की दिशा, ग्रहयुति, ग्रहों की कक्ष स्थिति, उसका परिमाण, देश भेद, देशान्तर, पृथ्वी का भ्रमण, पृथ्वी की दैनिक गति, वार्षिक गति, ध्रुव प्रदेश आदि, अक्षांश, लम्बांश, गुरुत्वाकर्षण, नक्षत्र, संस्थान, अन्यग्रहों की स्थिति, भगण, चरखण्ड, द्युज्या, चापांश, लग्न, पृथ्वी की छाया, पलभा, नाडी, आदि विषय सिद्धान्त स्कन्ध के अन्तर्गत आते हैं। सिद्धान्तके क्षेत्रमें पितामह, वसिष्ठ, रोमक, पौलिश तथा सूर्य-इनके नामसे गणितके पाँचसिद्धान्त पद्धतियाँ प्रमुख हैं।<ref>शोध गंगा- धर्मवीर पाण्डेय, [https://shodhganga.inflibnet.ac.in/handle/10603/285661 मंगल ग्रह की ज्योतिषी समीक्षा]-अध्याय 01, सन् 2018, शोधकेंद्र-काशी हिन्दू विश्वविद्यालय (पृ० 12)।</ref> जिनका विवेचन आचार्य वराहमिहिरने अपने पंचसिद्धान्तिका नामक ग्रन्थमें किया है।
इसके अन्तर्गत त्रुटि(कालकी लघुत्तम इकाई) से लेकर कल्पकाल तक की कालगणना, पर्व आनयन, अब्द विचार, ग्रहगतिनिरूपण, मासगणना, ग्रहों का उदयास्त, वक्रमार्ग, सूर्य वा चन्द्रमा के ग्रहण प्रारंभ एवं अस्त ग्रहण की दिशा, ग्रहयुति, ग्रहों की कक्ष स्थिति, उसका परिमाण, देश भेद, देशान्तर, पृथ्वी का भ्रमण, पृथ्वी की दैनिक गति, वार्षिक गति, ध्रुव प्रदेश आदि, अक्षांश, लम्बांश, गुरुत्वाकर्षण, नक्षत्र, संस्थान, अन्यग्रहों की स्थिति, भगण, चरखण्ड, द्युज्या, चापांश, लग्न, पृथ्वी की छाया, पलभा, नाडी, आदि विषय सिद्धान्त स्कन्ध के अन्तर्गत आते हैं। सिद्धान्तके क्षेत्रमें पितामह, वसिष्ठ, रोमक, पौलिश तथा सूर्य-इनके नामसे गणितके पाँचसिद्धान्त पद्धतियाँ प्रमुख<ref>शोध गंगा- धर्मवीर पाण्डेय, [https://shodhganga.inflibnet.ac.in/handle/10603/285661 मंगल ग्रह की ज्योतिषी समीक्षा]-अध्याय 01, सन् 2018, शोधकेंद्र-काशी हिन्दू विश्वविद्यालय (पृ० 12)।</ref> हैं, जिनका विवेचन आचार्यवराहमिहिरने अपने पंचसिद्धान्तिका नामक ग्रन्थमें किया है।
   
*आर्यभटका आर्यभटीयम् महत्त्वपूर्ण गणितसिद्धान्त है। इन्होंने पृथ्वीको स्थिर न मानकर चल बताया। आर्यभट प्रथमगणितज्ञ हुये और आर्यभटीयम् प्रथम पौरुष ग्रन्थ है।
 
*आर्यभटका आर्यभटीयम् महत्त्वपूर्ण गणितसिद्धान्त है। इन्होंने पृथ्वीको स्थिर न मानकर चल बताया। आर्यभट प्रथमगणितज्ञ हुये और आर्यभटीयम् प्रथम पौरुष ग्रन्थ है।
 
*आचार्य ब्रह्मगुप्तका ब्रह्मस्फुटसिद्धान्त भी अत्यन्त प्रसिद्ध है।
 
*आचार्य ब्रह्मगुप्तका ब्रह्मस्फुटसिद्धान्त भी अत्यन्त प्रसिद्ध है।
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जिस स्कन्ध में सभी प्रकार की गणितीय प्रक्रिया के साथ उपपत्तियों का समावेश है, वह सिद्धान्त स्कन्ध है। ग्रह, नक्षत्र एवं तारों की स्थिति आदि निरूपण में गणितशास्त्र के मूल सिद्धान्तों का उद्भव एवं विकास हुआ। त्रुट्यादि से प्रलयकाल पर्यन्त की गई काल गणना जिस स्कन्ध में हो उसे सिद्धान्त स्कन्ध कहते हैं। सिद्धान्तज्योतिष को परिभाषित करते हुये भास्कराचार्य जी ने कहा है-<ref>प्रो० रामचन्द्र पाण्डेय, संस्कृत वांग्मय का बृहद् इतिहास सिद्धान्तज्योतिष, सन् २०१२, उत्तर प्रदेश संस्कृत संस्थान लखनऊ (पृ०३७७)।</ref><blockquote>त्रुट्यादिप्रलयान्तकालकलना-मानप्रभेदः क्रमाच्चारश्च घुसदां द्विधा च गणितं प्रश्नास्तथा सोत्तराः।भूधिष्णग्रहसंस्थितेश्च कथनं यन्त्रादि यत्रोच्यते सिद्धान्तः स उदाहृतोऽत्र गणितस्कन्धप्रबन्धे बुधैः॥ (सिद्धान्तशिरोमणि, गणिताध्याय, श्लो. ६)</blockquote>जहाँ त्रुटि (काल की लघुतम इकाई) से लेकर प्रलयान्त काल तक की काल गणना की गई हो, कालमानों के सौर-सावन-नाक्षत्र आदि भेदों का निरूपण किया गया हो, ग्रहों की मार्गवक्र-शीघ्र-मन्द आदि गतियो का निरूपण हो, अंक (पाटी) गणित, एवं बीजगणित दोनों गणित विधाओं का विवेचन किया गया हो, उत्तर सहित प्रश्नों का विवेचन हो, पृथ्वी की स्थिति, स्वरूप एवं गति का निरूपण हो, ग्रहों की कक्षा क्रम एवं वेधोपयोगी यन्त्रों का जहाँ वर्णन किया गया हो उसे सिद्धान्त ज्योतिष कहा गया है।
 
जिस स्कन्ध में सभी प्रकार की गणितीय प्रक्रिया के साथ उपपत्तियों का समावेश है, वह सिद्धान्त स्कन्ध है। ग्रह, नक्षत्र एवं तारों की स्थिति आदि निरूपण में गणितशास्त्र के मूल सिद्धान्तों का उद्भव एवं विकास हुआ। त्रुट्यादि से प्रलयकाल पर्यन्त की गई काल गणना जिस स्कन्ध में हो उसे सिद्धान्त स्कन्ध कहते हैं। सिद्धान्तज्योतिष को परिभाषित करते हुये भास्कराचार्य जी ने कहा है-<ref>प्रो० रामचन्द्र पाण्डेय, संस्कृत वांग्मय का बृहद् इतिहास सिद्धान्तज्योतिष, सन् २०१२, उत्तर प्रदेश संस्कृत संस्थान लखनऊ (पृ०३७७)।</ref><blockquote>त्रुट्यादिप्रलयान्तकालकलना-मानप्रभेदः क्रमाच्चारश्च घुसदां द्विधा च गणितं प्रश्नास्तथा सोत्तराः।भूधिष्णग्रहसंस्थितेश्च कथनं यन्त्रादि यत्रोच्यते सिद्धान्तः स उदाहृतोऽत्र गणितस्कन्धप्रबन्धे बुधैः॥ (सिद्धान्तशिरोमणि, गणिताध्याय, श्लो. ६)</blockquote>जहाँ त्रुटि (काल की लघुतम इकाई) से लेकर प्रलयान्त काल तक की काल गणना की गई हो, कालमानों के सौर-सावन-नाक्षत्र आदि भेदों का निरूपण किया गया हो, ग्रहों की मार्गवक्र-शीघ्र-मन्द आदि गतियो का निरूपण हो, अंक (पाटी) गणित, एवं बीजगणित दोनों गणित विधाओं का विवेचन किया गया हो, उत्तर सहित प्रश्नों का विवेचन हो, पृथ्वी की स्थिति, स्वरूप एवं गति का निरूपण हो, ग्रहों की कक्षा क्रम एवं वेधोपयोगी यन्त्रों का जहाँ वर्णन किया गया हो उसे सिद्धान्त ज्योतिष कहा गया है।
==सिद्धान्त ज्योतिष के भेद॥ siddhanta jyotisha ke bhed==
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==सिद्धान्त ज्योतिष का वर्गीकरण॥ siddhanta jyotisha ke bhed==
 
सिद्धान्त स्कन्धको गणित स्कन्धके नामसे भी जाना जाता है। सूक्ष्म-विभाजन की दृष्टिसे गणित स्कन्धके भी पुनः तीन विभाग माने जाते हैं जो कि - प्रथम सिद्धान्त, द्वितीय तन्त्र और तृतीय करण रूप में प्रतिष्ठित हैं।<ref>प्रो० श्रीचन्द्रमौलीजी उपाध्याय, ज्योतिषशास्त्रका सामान्य परिचय, कल्याण- ज्योतिषतत्त्वांक, सन् २०१४, गोरखपुर गीताप्रेस (पृ० १८४)।</ref>
 
सिद्धान्त स्कन्धको गणित स्कन्धके नामसे भी जाना जाता है। सूक्ष्म-विभाजन की दृष्टिसे गणित स्कन्धके भी पुनः तीन विभाग माने जाते हैं जो कि - प्रथम सिद्धान्त, द्वितीय तन्त्र और तृतीय करण रूप में प्रतिष्ठित हैं।<ref>प्रो० श्रीचन्द्रमौलीजी उपाध्याय, ज्योतिषशास्त्रका सामान्य परिचय, कल्याण- ज्योतिषतत्त्वांक, सन् २०१४, गोरखपुर गीताप्रेस (पृ० १८४)।</ref>
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==सिद्धान्त स्कन्ध के प्रसिद्ध आचार्य व ग्रन्थ॥ Famous Acharyas and texts of Siddhanta Skandha==
 
==सिद्धान्त स्कन्ध के प्रसिद्ध आचार्य व ग्रन्थ॥ Famous Acharyas and texts of Siddhanta Skandha==
सिद्धान्त ज्योतिष ग्रंथों के प्राचीन नाम इस प्रकार हैं -  
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वैदिक साहित्य में सिद्धान्त स्कन्धीय विषयों जैसे - ग्रह-नक्षत्रों, काल-गणना और खगोलीय घटनाओं का उल्लेख प्राप्त होता है साथ ही साथ भागवत आदि पुराणों, महाभारत और रामयण आदि में भी ग्रहण, मन्वन्तर, कल्पादि सिद्धान्त ज्योतिष के विषयों का विस्तृत रूप से वर्णन प्राप्त होता है। सिद्धान्त ज्योतिष से संबंधित ग्रंथ इस प्रकार हैं -  
 
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ब्रह्म सिद्धान्त
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मरीचि सिद्धान्त
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नारदसिद्धान्त
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कश्यपसिद्धान्त
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सूर्यसिद्धान्त
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मनुसिद्धान्त
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अंगिरासिद्धांत
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बृहस्पति सिद्धान्त
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अत्रि सिद्धान्त
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सोमसिद्धान्त
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पुलस्त सिद्धान्त
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वसिष्ठ सिद्धान्त
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पराशर सिद्धान्त
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व्यास सिद्धान्त
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भृगु सिद्धान्त
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ब्रह्म सिद्धान्त, मरीचि सिद्धान्त, नारदसिद्धान्त, कश्यपसिद्धान्त, सूर्यसिद्धान्त, मनुसिद्धान्त, अंगिरासिद्धांत, बृहस्पति सिद्धान्त, अत्रि सिद्धान्त, सोमसिद्धान्त, पुलस्त सिद्धान्त, वसिष्ठ सिद्धान्त, पराशर सिद्धान्त, व्यास सिद्धान्त, भृगु सिद्धान्त, च्यवन सिद्धान्त, पुलिस सिद्धान्त, लोमश सिद्धान्त और यवन सिद्धान्त आदि ग्रन्थों का विवरण प्राप्त होता है। आधुनिक पौरुष  सिद्धान्तज्योतिषीय ग्रन्थ इस प्रकार हैं -
 
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च्यवन सिद्धान्त
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पुलिस सिद्धान्त
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लोमश सिद्धान्त
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यवन सिद्धान्त
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आधुनिक पौरुष  सिद्धान्तज्योतिषीय ग्रन्थ -
   
{| class="wikitable"
 
{| class="wikitable"
 
|+सिद्धान्त ज्योतिष ग्रंथ
 
|+सिद्धान्त ज्योतिष ग्रंथ
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==सिद्धांत ज्योतिष की तीन मुख्य परंपरा==
 
==सिद्धांत ज्योतिष की तीन मुख्य परंपरा==
सिद्धांत ज्योतिष का मुख्य उद्देश्य काल साधन ही है। काल का साधन ग्रहों के आधार पर क्षेत्र (राशि चक्र) में किया जाता है। कालक्रम में भारत में कालगणना की तीन मुख्य परम्परा उत्पन्न हुये। उन तीन परम्पराओं का नाम है आर्य, सूर्य तथा ब्राह्म। आर्यभट के सिद्धान्त के अनुसार काल गणना करने वालों को आर्यसिद्धान्त के अनुयायी, सूर्य सिद्धान्त के अनुसरण करने वालों को सूर्यानुयायी तथा ब्रह्मसिद्धान्त का अनुसरण करने वालों को ब्रह्मसिद्धान्तानुयायी कहते हैं।<ref>डॉ० पी० वी० सुब्रह्मण्यम, [https://www.uou.ac.in/sites/default/files/slm/MAJY-102.pdf सिद्धान्त ज्योतिष एवं काल विवेचन], सन 2019, उत्तराखण्ड मुक्त विश्वविद्यालय, हल्द्वानी (पृ० 17)।</ref>
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सिद्धांत ज्योतिष का मुख्य उद्देश्य काल साधन ही है। काल का साधन ग्रहों के आधार पर क्षेत्र (राशि चक्र) में किया जाता है। कालक्रम में भारत में कालगणना की तीन मुख्य परम्परा उत्पन्न हुई। उन तीन परम्पराओं का नाम है - आर्य, सूर्य तथा ब्राह्म। आर्यभट के सिद्धान्त के अनुसार काल गणना करने वालों को आर्यसिद्धान्त के अनुयायी, सूर्य सिद्धान्त के अनुसरण करने वालों को सूर्यानुयायी तथा ब्रह्मसिद्धान्त का अनुसरण करने वालों को ब्रह्मसिद्धान्तानुयायी कहते हैं।<ref>डॉ० पी० वी० सुब्रह्मण्यम, [https://www.uou.ac.in/sites/default/files/slm/MAJY-102.pdf सिद्धान्त ज्योतिष एवं काल विवेचन], सन 2019, उत्तराखण्ड मुक्त विश्वविद्यालय, हल्द्वानी (पृ० 17)।</ref>
    
==सिद्धान्त स्कन्ध के प्रमुख विषय॥ Main topics of Siddhanta Skandha==
 
==सिद्धान्त स्कन्ध के प्रमुख विषय॥ Main topics of Siddhanta Skandha==
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==सिद्धान्त स्कन्ध का महत्त्व॥ Importance of Siddhanta Skandha==
 
==सिद्धान्त स्कन्ध का महत्त्व॥ Importance of Siddhanta Skandha==
गणित, कालक्रिया और गोल का सामंजस्य स्थापित करना ही सिद्धान्त ज्योतिष की मुख्य प्रवृत्ति है। ये तीनों विषय आपस में अन्योन्याश्रय सम्बन्ध को रखते है। अर्थात् ये तीनों की युगपत् (एक साथ) स्थिति हो सकती है तथा अलग अलग इनका अस्तित्व नहीं है। काल गणित तथा गोल पर आश्रित है। ग्रहों की स्थिति गति आदि विषय केवल काल साधन में ही नहीं बल्कि ज्योतिष के सिद्धान्त के अतिरिक्त स्कन्धों  के लिये भी महत्वपूर्ण है। फलादेश हेतु स्पष्टग्रहों की आवश्यकता होती है तथा ग्रहों के आधार पर प्राकृतिक आपदाओं का ज्ञान किया जाता है।<ref name=":1" />
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गणित, कालक्रिया और गोल का सामंजस्य स्थापित करना ही सिद्धान्त ज्योतिष की मुख्य प्रवृत्ति है। ये तीनों विषय आपस में अन्योन्याश्रय सम्बन्ध को रखते है। अर्थात ये तीनों की युगपत (एक साथ) स्थिति हो सकती है तथा अलग-अलग इनका अस्तित्व नहीं है। काल 'गणित तथा गोल' पर आश्रित है। ग्रहों की स्थिति गति आदि विषय केवल काल साधन में ही नहीं अपितु ज्योतिष के सिद्धान्तस्कन्ध के अतिरिक्त स्कन्धों  के लिये भी महत्वपूर्ण है। जैसे कि -
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* '''पंचांग निर्माण -''' खगोलीय गणना के आधार पर भारतीय पंचांग में तिथि, वार, नक्षत्र, योग एवं करण का निर्धारण सिद्धान्त ज्योतिष के माध्यम से किया जाता है।
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* '''ग्रहण और खगोलीय घटनाएँ -''' सूर्य और चन्द्र ग्रहण, धूमकेतु, उल्कापात आदि अन्य खगोलीय घटनाओं की जानकारी में सिद्धान्त ज्योतिष का योगदान है।
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* '''काल एवं कालगणना -''' वैदिक अनुष्ठानों यज्ञ-यागादिकों के लिए शुभ समय का निर्धारण और युग, मन्वंतर और कल्पादि की गणना सिद्धान्त ज्योतिष के द्वारा की जाती है।
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फलादेश हेतु स्पष्टग्रहों की आवश्यकता होती है तथा ग्रहों के आधार पर प्राकृतिक आपदाओं का ज्ञान किया जाता है। अतः इस प्रकार से खगोलीय ग्रह स्थिति की जानाकारी में सिद्धान्त ज्योतिष की अत्यधिक उपयोगिता है।<ref name=":1" />
    
==उद्धरण॥ References==
 
==उद्धरण॥ References==
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