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| | ==प्राचीन ग्रंथ और षाड्गुण्य नीति॥ Prachina Granth aur Shadgunya Niti== | | ==प्राचीन ग्रंथ और षाड्गुण्य नीति॥ Prachina Granth aur Shadgunya Niti== |
| − | भारतीय राजनीति | + | भारतीय राजनीति |
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| − | === स्मृतिशास्त्र - षाड्गुण्य नीति === | + | === स्मृतिशास्त्र-षाड्गुण्य नीति॥ Smriti Shastra-Shadgunya Niti === |
| − | स्मृतियों में राजशास्त्र का विवेचन इसे धर्मशास्त्र का अंग मानकर किया गया है, इसीलिये राजशास्त्र को राजधर्म की संज्ञा प्रदान की गई। स्मृतिकारों ने राजधर्म को महत्ता प्रदान करते हुए इसके अन्तर्गत सामान्यतः समस्त भौतिक ज्ञान-विज्ञान का और विशेषतः राज्य और राजा के कर्तव्यों का समावेश किया। | + | स्मृतियों में राजशास्त्र का विवेचन इसे धर्मशास्त्र का अंग मानकर किया गया है, इसीलिये राजशास्त्र को राजधर्म की संज्ञा प्रदान की गई। स्मृतिकारों ने राजधर्म को महत्ता प्रदान करते हुए इसके अन्तर्गत सामान्यतः समस्त भौतिक ज्ञान-विज्ञान का और विशेषतः राज्य और राजा के कर्तव्यों का समावेश किया।<ref>डॉ० नरेश कुमार, [https://gdcbhojpur.com/files/Prachin_Chintak.pdf प्राचीन भारतीय राजनीतिक चिंतक "मनु"], महात्मा ज्योतिबा फुले रुहेलखण्ड विश्वविद्यालय, बरेली (पृ० 8)।</ref> |
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| − | ===रामायण-षाड्गुण्य नीति॥ Ramayana-Shadgunya Niti=== | + | === रामायण-षाड्गुण्य नीति॥ Ramayana-Shadgunya Niti=== |
| | अयोध्याकाण्ड के सौंवे अध्याय में श्रीरामचन्द्र जी भरत से कहते हैं कि षाड्गुण्य नीति का उपयोग-अनुपयोग अच्छे से जानकर उनका प्रयोग करो। बाल्मीकि रामायण में हमें मूलतः सन्धि और विग्रह दो प्रकार का ही वर्णन देखने को मिलता है - <ref>डॉ० दीपिका शर्मा, [https://www.granthaalayahpublication.org/Arts-Journal/ShodhKosh/article/view/2388/2132 षाड्गुण्य की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि], सन-मार्च 2024, शोधकोश: जर्नल ऑफ विजुअल एंड परफॉर्मिंग आर्ट्स (पृ० 524)।</ref><blockquote>इन्द्रियाणां जयं बुद्ध्वा षाड्गुण्यं दैवमानुषम्। कृत्यं विंशतिवर्गं च तथा प्रकृतिमण्डलम्॥ | | अयोध्याकाण्ड के सौंवे अध्याय में श्रीरामचन्द्र जी भरत से कहते हैं कि षाड्गुण्य नीति का उपयोग-अनुपयोग अच्छे से जानकर उनका प्रयोग करो। बाल्मीकि रामायण में हमें मूलतः सन्धि और विग्रह दो प्रकार का ही वर्णन देखने को मिलता है - <ref>डॉ० दीपिका शर्मा, [https://www.granthaalayahpublication.org/Arts-Journal/ShodhKosh/article/view/2388/2132 षाड्गुण्य की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि], सन-मार्च 2024, शोधकोश: जर्नल ऑफ विजुअल एंड परफॉर्मिंग आर्ट्स (पृ० 524)।</ref><blockquote>इन्द्रियाणां जयं बुद्ध्वा षाड्गुण्यं दैवमानुषम्। कृत्यं विंशतिवर्गं च तथा प्रकृतिमण्डलम्॥ |
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| | यात्रा दण्डविधानं च द्वियोनी सन्धिविग्रहौ। किञ्चिदेतान् महाप्राज्ञ यथावदनुमन्यसे॥ (अयोध्याकाण्ड, १००वां सर्ग, 69.70 श्लोक)</blockquote>भाषार्थ - आसन योनि-विग्रह हैं। अर्थात प्रथम दो द्वैधीभाव और समाश्रय योनि-संधि हैं और यान सन्धि मूलक हैं और अंतिम दो विग्रह मूलक हैं। | | यात्रा दण्डविधानं च द्वियोनी सन्धिविग्रहौ। किञ्चिदेतान् महाप्राज्ञ यथावदनुमन्यसे॥ (अयोध्याकाण्ड, १००वां सर्ग, 69.70 श्लोक)</blockquote>भाषार्थ - आसन योनि-विग्रह हैं। अर्थात प्रथम दो द्वैधीभाव और समाश्रय योनि-संधि हैं और यान सन्धि मूलक हैं और अंतिम दो विग्रह मूलक हैं। |
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| − | ===महाभारत-षाड्गुण्य नीति॥ Mahabharata-Shadgunya Niti === | + | ===महाभारत-षाड्गुण्य नीति॥ Mahabharata-Shadgunya Niti=== |
| | शांतिपर्व में पितामह भीष्म जी युधिष्ठिर को कहते हैं कि राजनीति के छः गुण होते हैं - सन्धि, विग्रह, यान, आसन, द्वैधीभाव और समाश्रय। राजा इन सबके गुण-दोष पर सदा ध्यान रखना चाहिए - | | शांतिपर्व में पितामह भीष्म जी युधिष्ठिर को कहते हैं कि राजनीति के छः गुण होते हैं - सन्धि, विग्रह, यान, आसन, द्वैधीभाव और समाश्रय। राजा इन सबके गुण-दोष पर सदा ध्यान रखना चाहिए - |
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| | 6. आश्रय शक्तिहीन जिस शक्तिशाली की शरण में जाकर शक्तिसम्पन्न बन जाता है, उस प्रबल राजा को आश्रय कहते हैं - यैर्गुप्तो बलवान भूयाद् दुर्बलोऽपि स आश्रयः। (शुक्रनीति 4. 7. 238) जब किसी शक्तिशाली राजा द्वारा राज्य विनष्ट की स्थिति में आ जाए तो किसी कुलीन, दृढ-प्रतिज्ञ,शक्तिशाली अन्य राजा की शरण लेनी चाहिए। उच्छिद्यमानो बलिना निरूपाय प्रतिक्रियः। कुलोद्भवं सत्यमार्य्यामाश्रयेत बलोत्कटम् ॥ (शुक्रनीति 4. 7. 289) | | 6. आश्रय शक्तिहीन जिस शक्तिशाली की शरण में जाकर शक्तिसम्पन्न बन जाता है, उस प्रबल राजा को आश्रय कहते हैं - यैर्गुप्तो बलवान भूयाद् दुर्बलोऽपि स आश्रयः। (शुक्रनीति 4. 7. 238) जब किसी शक्तिशाली राजा द्वारा राज्य विनष्ट की स्थिति में आ जाए तो किसी कुलीन, दृढ-प्रतिज्ञ,शक्तिशाली अन्य राजा की शरण लेनी चाहिए। उच्छिद्यमानो बलिना निरूपाय प्रतिक्रियः। कुलोद्भवं सत्यमार्य्यामाश्रयेत बलोत्कटम् ॥ (शुक्रनीति 4. 7. 289) |
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| − | === अर्थशास्त्र - षाड्गुण्य नीति॥ Arthashastra - Shadgunya Niti=== | + | ===अर्थशास्त्र - षाड्गुण्य नीति॥ Arthashastra - Shadgunya Niti=== |
| | कौटिल्य के अर्थशास्त्र के सातवें अधिकरण में इन छः गुणों की ही विस्तृत चर्चा की गई है। षड्गुणों का उल्लेख करते हुए आचार्य ने कहा है - <blockquote>सन्धि-विग्रह-आसन-यान-संश्रय-द्वैधीभावाः षाड्गुण्यम्। (7. 1.2)</blockquote> | | कौटिल्य के अर्थशास्त्र के सातवें अधिकरण में इन छः गुणों की ही विस्तृत चर्चा की गई है। षड्गुणों का उल्लेख करते हुए आचार्य ने कहा है - <blockquote>सन्धि-विग्रह-आसन-यान-संश्रय-द्वैधीभावाः षाड्गुण्यम्। (7. 1.2)</blockquote> |
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| | *कूटनीति और रणनीति निर्णयों के माध्यम से राष्ट्रीय हितों की पूर्ति। | | *कूटनीति और रणनीति निर्णयों के माध्यम से राष्ट्रीय हितों की पूर्ति। |
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| − | == स्मृतिशास्त्र एवं धर्मशास्त्र॥ Smrtishastra and Dharmashaast== | + | ==स्मृतिशास्त्र एवं धर्मशास्त्र॥ Smrtishastra and Dharmashaast == |
| | स्मृतियाँ आर्ष भारतीय मनीषा के दिव्य चमत्कारिक प्रातिभ ज्ञान का अवबोध कराती हैं। स्मृतियों का क्षेत्र व्यापक विशाल एवं विस्तृत है और इनमें मानव जीवन से जुडी सभी बातों का विवेचन है। विषय-सामग्री की दृष्टि से स्मृतियों के विषय को आचार, व्यवहार एवं प्रायश्चित इन तीन भागों में विभक्त किया जा सकता है जिसमें व्यहार के अन्तर्गत राजशास्त्र का वर्णन प्राप्त होता है। | | स्मृतियाँ आर्ष भारतीय मनीषा के दिव्य चमत्कारिक प्रातिभ ज्ञान का अवबोध कराती हैं। स्मृतियों का क्षेत्र व्यापक विशाल एवं विस्तृत है और इनमें मानव जीवन से जुडी सभी बातों का विवेचन है। विषय-सामग्री की दृष्टि से स्मृतियों के विषय को आचार, व्यवहार एवं प्रायश्चित इन तीन भागों में विभक्त किया जा सकता है जिसमें व्यहार के अन्तर्गत राजशास्त्र का वर्णन प्राप्त होता है। |
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| | *स्मृतिकारों ने राजधर्म को महत्ता प्रदान करते हुए इसके अन्तर्गत सामान्यतः समस्त भौतिक ज्ञान-विज्ञान का और विशेषतः राज्य और राजा के कर्तव्यों का समावेश किया। | | *स्मृतिकारों ने राजधर्म को महत्ता प्रदान करते हुए इसके अन्तर्गत सामान्यतः समस्त भौतिक ज्ञान-विज्ञान का और विशेषतः राज्य और राजा के कर्तव्यों का समावेश किया। |
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| − | ==राष्ट्रीय सुरक्षा एवं षाड्गुण्य नीति॥ Rashtriya Suraksha evam Shadgunya Niti== | + | == राष्ट्रीय सुरक्षा एवं षाड्गुण्य नीति॥ Rashtriya Suraksha evam Shadgunya Niti== |
| | षाड्गुण्य नीति राष्ट्रीय सुरक्षा में अपना महत्वपूर्ण योगदान देती है। इस नीति के सिद्धान्तों के अनुसार राष्ट्रीय सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए सरकार को सशक्त और निर्णायक कदम उठाने चाहिये। अग्नि पुराण में कहा गया है कि किसी भी सैन्य अभियान से पहले शत्रु की कमजोरी और अपनी शक्ति का गहन आकलन करना चाहिए - | | षाड्गुण्य नीति राष्ट्रीय सुरक्षा में अपना महत्वपूर्ण योगदान देती है। इस नीति के सिद्धान्तों के अनुसार राष्ट्रीय सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए सरकार को सशक्त और निर्णायक कदम उठाने चाहिये। अग्नि पुराण में कहा गया है कि किसी भी सैन्य अभियान से पहले शत्रु की कमजोरी और अपनी शक्ति का गहन आकलन करना चाहिए - |
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