Difference between revisions of "Modern Linguistics (आधुनिक भाषाविज्ञान)"
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==परिचय == | ==परिचय == | ||
− | भाषा शब्द संस्कृत के भाष् धातु से बना है जिसका तात्पर्य स्पष्ट वाणी, मनुष्य की वाणी, बोलना या कहना है। भाषा का अर्थ सिर्फ बोलने से नहीं है बल्कि जो मनुष्य बोलता है उसके एक खास अर्थ से है।भाषा शब्द का प्रयोग पशु पक्षियों की बोली के लिये भी होता है।<blockquote>"वाग्वै सम्राट् परमं ब्रह्म"। (ऐतo उप०)</blockquote>उपनिषद् के इस वाक्य में शब्द को ब्रह्म कहा गया है। शब्द या वाक् की उपासना भी ब्रह्म की ही उपासना है। भारतीय ज्ञान परंपरा में प्रातिशाख्यों, शिक्षा-ग्रन्थों, निरुक्त, व्याकरण तथा काव्य-शास्त्र में भाषा-विज्ञान के विविध पक्षों का बृहत् गाम्भीर्यपूर्ण विवेचन किया गया है। | + | भाषा शब्द संस्कृत के भाष् धातु से बना है जिसका तात्पर्य स्पष्ट वाणी, मनुष्य की वाणी, बोलना या कहना है। भाषा का अर्थ सिर्फ बोलने से नहीं है बल्कि जो मनुष्य बोलता है उसके एक खास अर्थ से है।भाषा शब्द का प्रयोग पशु पक्षियों की बोली के लिये भी होता है।<blockquote>"वाग्वै सम्राट् परमं ब्रह्म"। (ऐतo उप०)</blockquote>उपनिषद् के इस वाक्य में शब्द को ब्रह्म कहा गया है। शब्द या वाक् की उपासना भी ब्रह्म की ही उपासना है। भारतीय ज्ञान परंपरा में प्रातिशाख्यों, शिक्षा-ग्रन्थों, निरुक्त, व्याकरण तथा काव्य-शास्त्र में भाषा-विज्ञान के विविध पक्षों का बृहत् गाम्भीर्यपूर्ण विवेचन किया गया है।<blockquote>वाचामेव प्रसादेन लोक यात्रा प्रवर्तते।</blockquote>काव्यादर्श में वाणी (भाषा) को जीवन का मुख्याधार बताते हुए कहा है। |
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+ | == परिभाषा == | ||
+ | विद्वानों ने भाषा की परिभाषा इस प्रकार दी है - पाणिनी के अष्टाध्यायी के महाभाष्य में महर्षि पतञ्जलि ने भाषा की परिभाषा इस प्रकार दी है - <blockquote>व्यक्तां वाचि वर्णां येषां त इमे व्यक्तवाचः। (महाभा०१/३/४८)</blockquote>यहां वर्णात्मक वाणी को ही भाषा कहा गया है। प्राचीन समय में भाषा-विज्ञान-विषयक अध्ययन के लिये व्याकरण, शब्दानुशासन, शब्दशास्त्र, निर्वचन शास्त्र आदि शब्द प्रचलित थे। वर्तमान समय में इस अर्थ में तुलनात्मक भाषा-विज्ञान, भाषा-शास्त्र, तुलनात्मक भाषा-शास्त्र, शब्द-शास्त्र, भाषिकी आदि शब्द प्रचलित हैं। भाषा के विशिष्ट ज्ञान को भाषा-विज्ञान कहते हैं -<ref>कपिलदेव द्विवेदी, [https://archive.org/details/14._20210816/page/n19/mode/1up?view=theater भाषा-विज्ञान एवं भाषा-शास्त्र], सन् २०१६, विश्वविद्यालय प्रकाशन, वाराणसी (पृ० ६)।</ref> <blockquote>भाषायाः विज्ञानम्-भाषा विज्ञानम्। विशिष्टं ज्ञानम्-विज्ञानम्।</blockquote>भाषा के वैज्ञानिक और विवेचनात्मक अध्ययन को भाषा-विज्ञान कहा जाएगा - <blockquote>भाषाया यत्तु विज्ञानं, सर्वांगं व्याकृतात्मकम्। विज्ञानदृष्टिमूलं तद्, भाषाविज्ञानमुच्यते॥ (कपिलस्य)</blockquote> | ||
==भाषा का स्थापत्य== | ==भाषा का स्थापत्य== | ||
भाषाविज्ञान भाषा के स्थापत्य का विश्लेषण है और भाषा का यह स्थापत्य मुख्यतः उसके तीन तत्त्वों- ध्वनि, विचार तथा शब्द से संश्लिष्ट है। भाषा मनुष्य के स्वर-यंत्र द्वारा उत्पादित स्वेच्छापूर्वक मान्य वह ध्वनि है जिसके माध्यम से एक समाज आपने विचारों का आदान-प्रदान करता है।<ref>श्री पद्मनारायण, [https://ia601509.us.archive.org/29/items/in.ernet.dli.2015.482396/2015.482396.adhunik-bhaashaa.pdf आधुनिक भाषा-विज्ञान], सन् १९६१, ज्ञानपीठ प्राइवेट लिमिटेड, पटना (पृ० ३३)।</ref> | भाषाविज्ञान भाषा के स्थापत्य का विश्लेषण है और भाषा का यह स्थापत्य मुख्यतः उसके तीन तत्त्वों- ध्वनि, विचार तथा शब्द से संश्लिष्ट है। भाषा मनुष्य के स्वर-यंत्र द्वारा उत्पादित स्वेच्छापूर्वक मान्य वह ध्वनि है जिसके माध्यम से एक समाज आपने विचारों का आदान-प्रदान करता है।<ref>श्री पद्मनारायण, [https://ia601509.us.archive.org/29/items/in.ernet.dli.2015.482396/2015.482396.adhunik-bhaashaa.pdf आधुनिक भाषा-विज्ञान], सन् १९६१, ज्ञानपीठ प्राइवेट लिमिटेड, पटना (पृ० ३३)।</ref> | ||
− | == | + | ==भाषा की उत्पत्ति== |
− | + | किसी से अति परिचय होने से उसके विषय में हमें बहुत कुछ अवज्ञा हो जाती है, या कम से कम उसके विषय में अधिक उत्सुकता नहीं रहती। इस नियम के अनुसार भाषा के साथ हमारा अति गहरा संबंध होने से प्रायः यह प्रश्न भी हमारे मन में कभी पैदा नहीं होता कि मनुष्यभाषा की उत्पत्ति या प्रवृत्ति संसार में आदि-आदि में किस प्रकार हुई होगी। भाषा की उत्पत्ति के विषय में जो विद्वानों के भिन्न-भिन्न मत पाये जाते हैं वह इस प्रकार हैं - <ref>डॉ० मंगलदेव शास्त्री, [https://ia804700.us.archive.org/16/items/in.ernet.dli.2015.321165/2015.321165.Vaasha-.pdf भाषा-विज्ञान], सन् १९४०, श्री सुरेशचन्द्र, बनारस (पृ० १८४)।</ref> | |
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+ | '''कोश विज्ञान''' | ||
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+ | इस विज्ञान के अन्तर्गत कोश रचना का प्रकार बताया जाता है। कैसे शब्दों की व्युत्पत्ति हुई? किस प्रकार से शब्दों के अर्थ का निर्धारण किया जाता है? शब्दों का किन अर्थों में प्रयोग होता है? कोश विज्ञान के अन्तर्गत व्युत्पत्ति शास्त्र भी आता है। निघण्टु नामक ग्रंथ इसका प्राचीन उदाहरण है। | ||
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− | + | भाषिक भूगोल के अन्तर्गत भौगोलिक दृष्टि से भाषा का अध्ययन किया जाता है। संसार के विभिन्न क्षेत्रों में कौन-कौन सी भाषाएं बोली जाती हैं? भाषा का क्षेत्र कितना व्याप्त है? भाषा की कितनी बोलियां व उपबोलियां हैं? इसी का अध्ययन किया जाता है। | |
− | + | '''लिपि विज्ञान''' | |
− | == भाषा-विज्ञान के अंग == | + | लिपि को भी भाषा-विज्ञान का अंग माना जाता है, इसके अन्तर्गत लिपि की उत्पत्ति, उसके विकास व उसकी उपयोगिता पर विवेचन किया जाता है। किसी भी भाषा का अध्ययन लिपि के आधार पर किया जाता है। |
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भाषा-विज्ञान भाषा का सर्वांगीण अध्ययन प्रस्तुत करता है, अतः उसमें भाषा के सभी घटकों का अध्ययन होता है। भाषा शब्द के द्वारा उसके चार घटकों का मुख्य रूप से बोध होता है-१. ध्वनि (Sound), २. पद या शब्द (Form), ३. वाक्य (Sentence), ४. अर्थ (Meaning)। भाषा की सबसे छोटी इकाई ध्वनि है। उसका ही सर्वप्रथम उच्चारण होता है। अनेक ध्वनियों से मिलकर पद या शब्द बनता है। अनेक पदों से वाक्य की रचना होती है और वाक्य से अर्थ की अभिव्यक्ति होती है। यह क्रम निरन्तर चलता रहता है। इनमें से प्रत्येक के विशेष अध्ययन के कारण भाषा-विज्ञान के ४ प्रमुख अंग विकसित हो गये हैं। इनके नाम हैं - | भाषा-विज्ञान भाषा का सर्वांगीण अध्ययन प्रस्तुत करता है, अतः उसमें भाषा के सभी घटकों का अध्ययन होता है। भाषा शब्द के द्वारा उसके चार घटकों का मुख्य रूप से बोध होता है-१. ध्वनि (Sound), २. पद या शब्द (Form), ३. वाक्य (Sentence), ४. अर्थ (Meaning)। भाषा की सबसे छोटी इकाई ध्वनि है। उसका ही सर्वप्रथम उच्चारण होता है। अनेक ध्वनियों से मिलकर पद या शब्द बनता है। अनेक पदों से वाक्य की रचना होती है और वाक्य से अर्थ की अभिव्यक्ति होती है। यह क्रम निरन्तर चलता रहता है। इनमें से प्रत्येक के विशेष अध्ययन के कारण भाषा-विज्ञान के ४ प्रमुख अंग विकसित हो गये हैं। इनके नाम हैं - | ||
− | #ध्वनि-विज्ञान॥ Phonology | + | #'''ध्वनि-विज्ञान॥ Phonology''' |
− | #पद-विज्ञान॥ Morphology | + | #'''पद-विज्ञान॥ Morphology''' |
− | #वाक्य-विज्ञान॥ Syntax | + | #'''वाक्य-विज्ञान॥ Syntax''' |
− | #अर्थ-विज्ञान॥ Semantics | + | #'''अर्थ-विज्ञान॥ Semantics''' |
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+ | ===ध्वनि-विज्ञान=== | ||
+ | ध्वनि भाषा की लघुतम इकाई है। इसके उच्चारण में सहायक उच्चारण अवयवों की रचना, ध्वनियों का निर्माण, ध्वनियों का वहन एवं श्रवण, ध्वनियों का वर्गीकरण, ध्वनि योगों की रचना आदि विषयों का विवेचन ध्वनि-विज्ञान के अध्ययन का विषय है।<ref>डॉ० राजमणि शर्मा, [https://books.google.co.in/books?id=QPE2vO-th-EC&pg=PA293&lpg=PA293&dq=bhaasha+aur+bhasha+vigyan+,+ramashraya+mishra&source=bl&ots=3crpg27asB&sig=ACfU3U2ZHTqCWwG9Oq4_cZjMa0UkoFBLQg&hl=hi&sa=X&ved=2ahUKEwjE8O26gcqHAxVvVmwGHTrQM1sQ6AF6BAgZEAM#v=onepage&q=bhaasha%20aur%20bhasha%20vigyan%20%2C%20ramashraya%20mishra&f=false आधुनिक भाषा-विज्ञान], सन् २००७, वाणी प्रकाशन, नई दिल्ली (पृ० ७३)।</ref> | ||
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+ | ===पद-विज्ञान=== | ||
+ | पद-विज्ञान को रूप विज्ञान भी कहते हैं। पद-विज्ञान के अन्तर्गत पदों अर्थात् रूपों का अध्ययन करते हैं। ध्वनियों के मिलने से पद बनाये जाते हैं। पद विज्ञान हमें यह बताता है कि किस प्रकार पदों का निर्माण होता है? किस आधार पर पदों का विभाजन होता है? पुरुष, वचन, लिंग, विभक्ति, काल, प्रत्यय आदि तत्व क्या हैं? इन सभी का विवेचन किया जाता है। | ||
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+ | वाक्य विज्ञान भाषा विज्ञान की वह शाखा है जिसमें वाक्यों का अध्ययन व विश्लेषण किया जाता है। विभिन्न ध्वनियों के मिलने से जिस प्रकार पद या रूप बनता है उसी प्रकार विभिन्न पदों या रूपों के मिलने से वाक्य बनता है। इसके अन्तर्गत यह अध्ययन किया जाता है कि वाक्य की रचना किस प्रकार होती है? वाक्य के कर्ता, क्रिया, कर्म आदि का क्या स्थान है? वाक्य के कितने भेद हैं? वाक्य विज्ञान को वाक्य विचार भी कहा जाता है। वाक्य विज्ञान को तीन भागों में विभक्त किया गया है। | ||
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+ | अर्थ विज्ञान को अर्थ विचार भी कहते हैं। बिना अर्थ के भाषा का कोई महत्व नहीं है। जिस प्रकार से आत्मा मनुष्य का सार है उसी प्रकार भाषा की आत्मा अर्थ है। इसके अन्तर्गत इस विषय पर विचार किया जाता है कि अर्थ क्या है? अर्थ को कैसे निर्धारित करते हैं? शब्द और अर्थ का क्या सम्बन्ध है? अर्थ कितने प्रकार का होता है? किन कारणों से अर्थ में परिवर्तन होते हैं? ।आदि का अध्ययन अर्थ विज्ञान के अन्तर्गत किया जाता है। अर्थ विज्ञान के चार भेद हैं - एककालिक, व्यतिरेकी, काल-क्रमिक तथा तुलनात्मक। | ||
==भाषा-विज्ञान अध्ययन के प्रकार== | ==भाषा-विज्ञान अध्ययन के प्रकार== | ||
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#वाक्-चिकित्सा | #वाक्-चिकित्सा | ||
#विभिन्न शास्त्रों से समन्वय | #विभिन्न शास्त्रों से समन्वय | ||
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Revision as of 23:08, 28 July 2024
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भाषा-चिन्तन की भारतीय परंपरा अति प्राचीन है, जब कि आधुनिक भाषाविज्ञान का प्रारंभ १८ वीं शताब्दी ई० से होता है। भारत में भाषा के संबंध में चिंतन की प्रक्रिया का स्पष्ट प्रमाण ऋग्वेद में मिलता है, जिस के दो सूक्तों में वाक् की उत्पत्ति मनुष्यकृत सिद्ध होती है। भारतीय ज्ञान परंपरा में षडंग विद्या की परंपरा थी - शिक्षा (ध्वनि विज्ञान), व्याकरण (पद एवं वाक्यविज्ञान), छंद (काव्य-रचना), निरुक्त (शब्द-व्युत्पत्ति), ज्योतिष एवं कल्प, इनमें से प्रथम चारों भाषा से संबंधित हैं।[1]
परिचय
भाषा शब्द संस्कृत के भाष् धातु से बना है जिसका तात्पर्य स्पष्ट वाणी, मनुष्य की वाणी, बोलना या कहना है। भाषा का अर्थ सिर्फ बोलने से नहीं है बल्कि जो मनुष्य बोलता है उसके एक खास अर्थ से है।भाषा शब्द का प्रयोग पशु पक्षियों की बोली के लिये भी होता है।
"वाग्वै सम्राट् परमं ब्रह्म"। (ऐतo उप०)
उपनिषद् के इस वाक्य में शब्द को ब्रह्म कहा गया है। शब्द या वाक् की उपासना भी ब्रह्म की ही उपासना है। भारतीय ज्ञान परंपरा में प्रातिशाख्यों, शिक्षा-ग्रन्थों, निरुक्त, व्याकरण तथा काव्य-शास्त्र में भाषा-विज्ञान के विविध पक्षों का बृहत् गाम्भीर्यपूर्ण विवेचन किया गया है।
वाचामेव प्रसादेन लोक यात्रा प्रवर्तते।
काव्यादर्श में वाणी (भाषा) को जीवन का मुख्याधार बताते हुए कहा है।
परिभाषा
विद्वानों ने भाषा की परिभाषा इस प्रकार दी है - पाणिनी के अष्टाध्यायी के महाभाष्य में महर्षि पतञ्जलि ने भाषा की परिभाषा इस प्रकार दी है -
व्यक्तां वाचि वर्णां येषां त इमे व्यक्तवाचः। (महाभा०१/३/४८)
यहां वर्णात्मक वाणी को ही भाषा कहा गया है। प्राचीन समय में भाषा-विज्ञान-विषयक अध्ययन के लिये व्याकरण, शब्दानुशासन, शब्दशास्त्र, निर्वचन शास्त्र आदि शब्द प्रचलित थे। वर्तमान समय में इस अर्थ में तुलनात्मक भाषा-विज्ञान, भाषा-शास्त्र, तुलनात्मक भाषा-शास्त्र, शब्द-शास्त्र, भाषिकी आदि शब्द प्रचलित हैं। भाषा के विशिष्ट ज्ञान को भाषा-विज्ञान कहते हैं -[2]
भाषायाः विज्ञानम्-भाषा विज्ञानम्। विशिष्टं ज्ञानम्-विज्ञानम्।
भाषा के वैज्ञानिक और विवेचनात्मक अध्ययन को भाषा-विज्ञान कहा जाएगा -
भाषाया यत्तु विज्ञानं, सर्वांगं व्याकृतात्मकम्। विज्ञानदृष्टिमूलं तद्, भाषाविज्ञानमुच्यते॥ (कपिलस्य)
भाषा का स्थापत्य
भाषाविज्ञान भाषा के स्थापत्य का विश्लेषण है और भाषा का यह स्थापत्य मुख्यतः उसके तीन तत्त्वों- ध्वनि, विचार तथा शब्द से संश्लिष्ट है। भाषा मनुष्य के स्वर-यंत्र द्वारा उत्पादित स्वेच्छापूर्वक मान्य वह ध्वनि है जिसके माध्यम से एक समाज आपने विचारों का आदान-प्रदान करता है।[3]
भाषा की उत्पत्ति
किसी से अति परिचय होने से उसके विषय में हमें बहुत कुछ अवज्ञा हो जाती है, या कम से कम उसके विषय में अधिक उत्सुकता नहीं रहती। इस नियम के अनुसार भाषा के साथ हमारा अति गहरा संबंध होने से प्रायः यह प्रश्न भी हमारे मन में कभी पैदा नहीं होता कि मनुष्यभाषा की उत्पत्ति या प्रवृत्ति संसार में आदि-आदि में किस प्रकार हुई होगी। भाषा की उत्पत्ति के विषय में जो विद्वानों के भिन्न-भिन्न मत पाये जाते हैं वह इस प्रकार हैं - [4]
कोश विज्ञान
इस विज्ञान के अन्तर्गत कोश रचना का प्रकार बताया जाता है। कैसे शब्दों की व्युत्पत्ति हुई? किस प्रकार से शब्दों के अर्थ का निर्धारण किया जाता है? शब्दों का किन अर्थों में प्रयोग होता है? कोश विज्ञान के अन्तर्गत व्युत्पत्ति शास्त्र भी आता है। निघण्टु नामक ग्रंथ इसका प्राचीन उदाहरण है।
भाषिक भूगोल
भाषिक भूगोल के अन्तर्गत भौगोलिक दृष्टि से भाषा का अध्ययन किया जाता है। संसार के विभिन्न क्षेत्रों में कौन-कौन सी भाषाएं बोली जाती हैं? भाषा का क्षेत्र कितना व्याप्त है? भाषा की कितनी बोलियां व उपबोलियां हैं? इसी का अध्ययन किया जाता है।
लिपि विज्ञान
लिपि को भी भाषा-विज्ञान का अंग माना जाता है, इसके अन्तर्गत लिपि की उत्पत्ति, उसके विकास व उसकी उपयोगिता पर विवेचन किया जाता है। किसी भी भाषा का अध्ययन लिपि के आधार पर किया जाता है।
भाषा-विज्ञान के अंग
भाषा-विज्ञान भाषा का सर्वांगीण अध्ययन प्रस्तुत करता है, अतः उसमें भाषा के सभी घटकों का अध्ययन होता है। भाषा शब्द के द्वारा उसके चार घटकों का मुख्य रूप से बोध होता है-१. ध्वनि (Sound), २. पद या शब्द (Form), ३. वाक्य (Sentence), ४. अर्थ (Meaning)। भाषा की सबसे छोटी इकाई ध्वनि है। उसका ही सर्वप्रथम उच्चारण होता है। अनेक ध्वनियों से मिलकर पद या शब्द बनता है। अनेक पदों से वाक्य की रचना होती है और वाक्य से अर्थ की अभिव्यक्ति होती है। यह क्रम निरन्तर चलता रहता है। इनमें से प्रत्येक के विशेष अध्ययन के कारण भाषा-विज्ञान के ४ प्रमुख अंग विकसित हो गये हैं। इनके नाम हैं -
- ध्वनि-विज्ञान॥ Phonology
- पद-विज्ञान॥ Morphology
- वाक्य-विज्ञान॥ Syntax
- अर्थ-विज्ञान॥ Semantics
ध्वनि-विज्ञान
ध्वनि भाषा की लघुतम इकाई है। इसके उच्चारण में सहायक उच्चारण अवयवों की रचना, ध्वनियों का निर्माण, ध्वनियों का वहन एवं श्रवण, ध्वनियों का वर्गीकरण, ध्वनि योगों की रचना आदि विषयों का विवेचन ध्वनि-विज्ञान के अध्ययन का विषय है।[5]
पद-विज्ञान
पद-विज्ञान को रूप विज्ञान भी कहते हैं। पद-विज्ञान के अन्तर्गत पदों अर्थात् रूपों का अध्ययन करते हैं। ध्वनियों के मिलने से पद बनाये जाते हैं। पद विज्ञान हमें यह बताता है कि किस प्रकार पदों का निर्माण होता है? किस आधार पर पदों का विभाजन होता है? पुरुष, वचन, लिंग, विभक्ति, काल, प्रत्यय आदि तत्व क्या हैं? इन सभी का विवेचन किया जाता है।
वाक्य-विज्ञान
वाक्य विज्ञान भाषा विज्ञान की वह शाखा है जिसमें वाक्यों का अध्ययन व विश्लेषण किया जाता है। विभिन्न ध्वनियों के मिलने से जिस प्रकार पद या रूप बनता है उसी प्रकार विभिन्न पदों या रूपों के मिलने से वाक्य बनता है। इसके अन्तर्गत यह अध्ययन किया जाता है कि वाक्य की रचना किस प्रकार होती है? वाक्य के कर्ता, क्रिया, कर्म आदि का क्या स्थान है? वाक्य के कितने भेद हैं? वाक्य विज्ञान को वाक्य विचार भी कहा जाता है। वाक्य विज्ञान को तीन भागों में विभक्त किया गया है।
- वर्णनात्मक वाक्य विज्ञान
- ऐतिहासिक वाक्य विज्ञान
- तुलनात्मक वाक्य विज्ञान
अर्थ-विज्ञान
अर्थ विज्ञान को अर्थ विचार भी कहते हैं। बिना अर्थ के भाषा का कोई महत्व नहीं है। जिस प्रकार से आत्मा मनुष्य का सार है उसी प्रकार भाषा की आत्मा अर्थ है। इसके अन्तर्गत इस विषय पर विचार किया जाता है कि अर्थ क्या है? अर्थ को कैसे निर्धारित करते हैं? शब्द और अर्थ का क्या सम्बन्ध है? अर्थ कितने प्रकार का होता है? किन कारणों से अर्थ में परिवर्तन होते हैं? ।आदि का अध्ययन अर्थ विज्ञान के अन्तर्गत किया जाता है। अर्थ विज्ञान के चार भेद हैं - एककालिक, व्यतिरेकी, काल-क्रमिक तथा तुलनात्मक।
भाषा-विज्ञान अध्ययन के प्रकार
भाषा-विज्ञान का अध्ययन कई दृष्टियों में किया जाता है। प्रत्येक दृष्टि से किया गया अध्ययन भाषा-विज्ञान के नए रूप व नए प्रकार को हमारे सम्मुख प्रस्तुत करता है -
- सामान्य भाषा-विज्ञान
- वर्णनात्मक भाषा-विज्ञान
- ऐतिहासिक भाषा-विज्ञान
- तुलनात्मक भाषा-विज्ञान
- सैद्धान्तिक भाषा-विज्ञान
भाषा-विज्ञान की उपयोगिता
भाषा-विज्ञान एक विज्ञान है। विज्ञान स्वतः निरपेक्ष होता है। तात्त्विक विवेचन और तत्त्वसंदर्शन ही उसका लक्ष्य होता है। तत्त्वसंदर्शन से बौद्धिक शान्ति और आनन्दानुभूति होती है। अतएव वैज्ञानिक चिन्तन निरपेक्ष होते हुए भी सापेक्ष होता है। इसी दृष्टि से भाषा-विज्ञान की भी कतिपय उपयोगिताएँ दृष्टिगोचर होती हैं। उनका संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित है -
- ज्ञान-पिपासा की शान्ति
- भाषा के परिष्कृत रूप का ज्ञान
- भाषा-विज्ञान से वैज्ञानिक अध्ययन की ओर प्रवृत्ति
- वेदार्थ-ज्ञान में सहायक
- प्राचीन संस्कृति और सभ्यता का ज्ञान
- व्याकरण-दर्शन
- वाक्-चिकित्सा
- विभिन्न शास्त्रों से समन्वय
सारांश
उद्धरण
- ↑ चित्तरञ्जन कर, भाषा-चिन्तन की भारतीय परंपरा और आधुनिक भाषाविज्ञान,सन् २०१०, संस्कृत विमर्श (पृ० ६५)
- ↑ कपिलदेव द्विवेदी, भाषा-विज्ञान एवं भाषा-शास्त्र, सन् २०१६, विश्वविद्यालय प्रकाशन, वाराणसी (पृ० ६)।
- ↑ श्री पद्मनारायण, आधुनिक भाषा-विज्ञान, सन् १९६१, ज्ञानपीठ प्राइवेट लिमिटेड, पटना (पृ० ३३)।
- ↑ डॉ० मंगलदेव शास्त्री, भाषा-विज्ञान, सन् १९४०, श्री सुरेशचन्द्र, बनारस (पृ० १८४)।
- ↑ डॉ० राजमणि शर्मा, आधुनिक भाषा-विज्ञान, सन् २००७, वाणी प्रकाशन, नई दिल्ली (पृ० ७३)।