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आत्म-अनुभूति, आत्म की विशेषताएं और ओम् और आत्म।
आत्म-अनुभूति, आत्म की विशेषताएं और ओम् और आत्म।
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इसमें बताया गया है कि यह सारा संसार, वर्तमान भूत और भविष्यत् सब कुछ 'ओम्' की ही व्याख्या है। ओम् के अतिरिक्त और कुछ नहीं है। ओम् के एक-एक अक्षर अ उ म् की विभिन्न अवस्थाओं के फलस्वरूप सृष्टि के विभिन्न रूप हैं। आत्मा चतुष्पात् है। चतुर्थ अवस्था तुरीय अवस्था है। यह अवस्था अवर्णनीय है। आत्मा का यह शुद्ध शान्त अद्वैत शिव रूप है। इसी उपनिषद् के आधार पर वेदान्त दर्शन का प्रासाद खडा हुआ है। वेदान्त की मूल भावना इस उपनिषद् में प्राप्त होती है।
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{| class="wikitable"
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|+संक्षेप में इनको इस प्रकार रख सकते हैं -
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!ओम् की मात्रा
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!अवस्था
+
!आत्मा का स्वरूप
+
!विषय
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|-
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|अ
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|जागृत
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|वैश्वानर
+
|स्थूलभुक् (स्थूल)
+
|-
+
|उ
+
|स्वप्न
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|तैजस
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|प्रविविक्तभुक् (सूक्ष्म)
+
|-
+
|म्
+
|सुषुप्ति
+
|प्राज्ञ
+
|आनन्दभुक् (आनन्द)
+
|-
+
| --
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|तुरीय
+
|अद्वैत शिव
+
|अवर्णनीय
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|}
== सारांश ==
== सारांश ==