Difference between revisions of "Varahamihira (वराहमिहिर)"

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भारतीय खगोलज्ञों की परंपरा में कई आचार्यों का उल्लेख किया गया है। जिनमें अर्वाचीन खगोलज्ञों में वराहमिहिर जी का नाम सर्वोपरि लिया जाता है।  
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भारतीय खगोलज्ञों की परंपरा में कई आचार्यों का उल्लेख किया गया है। जिनमें अर्वाचीन खगोलज्ञों में वराहमिहिर जी का नाम सर्वोपरि लिया जाता है।
  
परिचय
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== परिचय ==
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धन्वंतरिक्षपणकामर सिंह शंकुवेतालभट्ट घटखर्परकालिदासाः। ख्यातो वराहमिहिरो नृपतेः सभायां रत्नानि वै वररुचिर्नवविक्रमस्य॥ (ज्योतिर्विदाभरण22/10)<ref>कालिदास प्रणीत - [https://archive.org/details/Jyotirvidabharanam/mode/1up ज्योतिर्विदाभरणम्] , अध्याय- २२ , श्लोक - १०,  (पृ० ३५८)।</ref>
  
'''धन्वंतरिक्षपणकामर सिंह शंकुवेतालभट्ट घटखर्परकालिदासाः।'''
 
  
'''ख्यातो वराहमिहिरो नृपतेः सभायां रत्नानि वै वररुचिर्नवविक्रमस्य॥ (ज्योतिर्विदाभरण22/10)'''
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'''नाम'''
  
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आवन्तिको मुनिमतान्यवलोक्यसम्यग्घोरां वराहमिहिरो रुचिरां चकार॥ (बृहज्जातक)<ref name=":0">संपादक एवं व्याख्याकार - महीधर शर्मा , वराहमिहिरप्रणीत - [https://archive.org/details/pdf_20201206/mode/1up बृहज्जातकम्] , उपसंहाराध्याय - २८, श्लोक - ९ (पृ० २२५)।</ref>
  
'''आवन्तिको मुनिमतान्यवलोक्यसम्यग्घोरां वराहमिहिरो रुचिरां चकार।'''
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'''जन्म स्थान'''
  
'''आदित्यदासतनयस्तदवाप्तबोधः कापित्थके सवितृ लब्धवरप्रसादः॥ (बृहज्जताक उप० 9)'''
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आदित्यदासतनयस्तदवाप्तबोधः कापित्थके सवितृ लब्धवरप्रसादः॥ (बृहज्जताक)<ref name=":0" />
  
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'''जन्म काल'''
  
वराहमिहिर की कृतियां
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वराहमिहिराचार्य जी ने अपने जन्म के संबंध में किसी भी ग्रन्थ में स्पष्ट रूप से कोई संकेत नहीं दिया है। और न ही कोई पुरातात्विक एवं ऐतिहासिक प्रमाण ही इनके जन्मकाल के संबंध में प्राप्त होता है।
  
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== वराहमिहिर की कृतियां ==
 
वराहमिहिर अप्रतिम प्रतिभा के धनी थे। उन्होंने अपने जीवन काल में अनेक गणित, ज्योतिष परक ग्रंथों की रचना की जिनमें से विद्वानों के मतानुसार उनकी पांच रचनाएं प्रमुख हैं –  
 
वराहमिहिर अप्रतिम प्रतिभा के धनी थे। उन्होंने अपने जीवन काल में अनेक गणित, ज्योतिष परक ग्रंथों की रचना की जिनमें से विद्वानों के मतानुसार उनकी पांच रचनाएं प्रमुख हैं –  
  
 
पञ्चसिद्धांतिका, बृहत्संहिता, बृहज्जातक, लघुजातक, बृहद्विवाह-पटल, इन प्रसिद्ध पांच कृतियों के अलावा भी कुछ विद्वानों ने उनकी और भी रचनाएं भी मानी हैं जिनमें – दैवज्ञ-वल्लभा, योग यात्रा, समास संहिता, लग्न-वाराही आदि हैं। इनमें से कुछ प्रकाशित तो कुछ अप्रकाशित हैं।
 
पञ्चसिद्धांतिका, बृहत्संहिता, बृहज्जातक, लघुजातक, बृहद्विवाह-पटल, इन प्रसिद्ध पांच कृतियों के अलावा भी कुछ विद्वानों ने उनकी और भी रचनाएं भी मानी हैं जिनमें – दैवज्ञ-वल्लभा, योग यात्रा, समास संहिता, लग्न-वाराही आदि हैं। इनमें से कुछ प्रकाशित तो कुछ अप्रकाशित हैं।
  
प्रमुख कृतियों का संक्षिप्त विवरण
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'''प्रमुख कृतियों का संक्षिप्त विवरण'''
  
पञ्चसिद्धांतिका –  
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पञ्चसिद्धांतिका – पैतामहसिद्धान्त , वसिष्ठ सिद्धान्त , रोमक सिद्धान्त , पुलिश सिद्धान्त , सूर्य सिद्धान्त।
  
 
बृहत्संहिता –  
 
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लघुजातक –  
 
लघुजातक –  
  
वराहमिहिर का गणित में योगदान
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== वराहमिहिर का योगदान ==
 
 
 
पोलिशकृतः स्फुटोsसौ तस्यासन्नस्तु रोमक प्रोक्तः। स्पष्टतरः सावित्रः परिशेषऔ दूर विभ्रष्टौ॥ (पञ्चसिद्धांतिका1/4)
 
पोलिशकृतः स्फुटोsसौ तस्यासन्नस्तु रोमक प्रोक्तः। स्पष्टतरः सावित्रः परिशेषऔ दूर विभ्रष्टौ॥ (पञ्चसिद्धांतिका1/4)
  
 
वराहमिहिर का योगदान
 
वराहमिहिर का योगदान
  
·       ग्रहण, ग्रहचार, आदि का प्रत्यक्षानुमानाप्त प्रमाण्य से वराह की युक्तियां प्रामाणिक सिद्ध होती हैं।  
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* ग्रहण, ग्रहचार, आदि का प्रत्यक्षानुमानाप्त प्रमाण्य से वराह की युक्तियां प्रामाणिक सिद्ध होती हैं।  
 
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* ग्रहचार, गोचर एवं ग्रहणों का प्रामाणिक निरूपण
·       ग्रहचार, गोचर एवं ग्रहणों का प्रामाणिक निरूपण
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* धूमकेतुओं का सटीक वर्णन  
 
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* व्यापारिक हित साधनार्थ तेजी मंदी का शास्त्रीय विचार
·       धूमकेतुओं का सटीक वर्णन  
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* भूमिगत जल का ज्ञान
 
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* वर्षा और मौसम का निरूपण
·       व्यापारिक हित साधनार्थ तेजी मंदी का शास्त्रीय विचार
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* वृक्ष चिकित्सा
 
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* फसल एवं उपज की ज्यौतिषीय विवेचना
·       भूमिगत जल का ज्ञान
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* सुगंधित द्रव्य निर्माण की प्राचीन विधियों की विवेचना
 
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* ऋतु सापेक्ष भवन निर्माण की प्राचीन विधियों की विवेचना
·       वर्षा और मौसम का निरूपण
 
 
 
·       वृक्ष चिकित्सा
 
 
 
·       फसल एवं उपज की ज्यौतिषीय विवेचना
 
 
 
·       सुगंधित द्रव्य निर्माण की प्राचीन विधियों की विवेचना
 
 
 
·       ऋतु सापेक्ष भवन निर्माण की प्राचीन विधियों की विवेचना
 
  
 
इस प्रकार श्री वराहमिहिर आचार्य जी का लोक के कल्याण के लिये संपरीक्षित विधि का उपस्थापन व्यापक रूप से किया जाना यह समाज के लिये वराह कृत एक महती योगदान है।
 
इस प्रकार श्री वराहमिहिर आचार्य जी का लोक के कल्याण के लिये संपरीक्षित विधि का उपस्थापन व्यापक रूप से किया जाना यह समाज के लिये वराह कृत एक महती योगदान है।
  
सारांश
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== सारांश ==
 
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ज्योतिष शास्त्र का सबसे पहला पौरुषेय लिखित ग्रंथ है आर्यभटीयम् । इसके उपरांत 5 वीं शताब्दि में वराहमिहिर प्रणीत <nowiki>''</nowiki>पंचसिद्धान्तिका<nowiki>''</nowiki> नामक सिद्धान्त ग्रंथ लिपि बद्ध हुआ। इस ग्रंथ में पांच अलग-अलग सिद्धांतों का संकलन कर ग्रह गणना के लिये, अनेकों कालों का तथा विभिन्न आकाशीय घटनाओं के निर्धारण के लिये गणितीय सूत्रों एवं खगोलीय सिद्धांतों का प्रतिपादन किया गया है।
ज्योतिष शास्त्र का सबसे पहला पौरुषेय लिखित ग्रंथ है आर्यभटीयम् । इसके उपरांत 5 वीं शताब्दि में वराहमिहिर प्रणीत ‘’पंचसिद्धान्तिका’’ नामक सिद्धान्त ग्रंथ लिपि बद्ध हुआ। इस ग्रंथ में पांच अलग-अलग सिद्धांतों का संकलन कर ग्रह गणना के लिये, अनेकों कालों का तथा विभिन्न आकाशीय घटनाओं के निर्धारण के लिये गणितीय सूत्रों एवं खगोलीय सिद्धांतों का प्रतिपादन किया गया है।
 
  
के विषय में, उनकी जीवनी, उनके द्वारा
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== उद्धरण ==

Revision as of 17:00, 23 January 2024

भारतीय खगोलज्ञों की परंपरा में कई आचार्यों का उल्लेख किया गया है। जिनमें अर्वाचीन खगोलज्ञों में वराहमिहिर जी का नाम सर्वोपरि लिया जाता है।

परिचय

धन्वंतरिक्षपणकामर सिंह शंकुवेतालभट्ट घटखर्परकालिदासाः। ख्यातो वराहमिहिरो नृपतेः सभायां रत्नानि वै वररुचिर्नवविक्रमस्य॥ (ज्योतिर्विदाभरण22/10)[1]


नाम

आवन्तिको मुनिमतान्यवलोक्यसम्यग्घोरां वराहमिहिरो रुचिरां चकार॥ (बृहज्जातक)[2]

जन्म स्थान

आदित्यदासतनयस्तदवाप्तबोधः कापित्थके सवितृ लब्धवरप्रसादः॥ (बृहज्जताक)[2]

जन्म काल

वराहमिहिराचार्य जी ने अपने जन्म के संबंध में किसी भी ग्रन्थ में स्पष्ट रूप से कोई संकेत नहीं दिया है। और न ही कोई पुरातात्विक एवं ऐतिहासिक प्रमाण ही इनके जन्मकाल के संबंध में प्राप्त होता है।

किन्तु पं

वराहमिहिर की कृतियां

वराहमिहिर अप्रतिम प्रतिभा के धनी थे। उन्होंने अपने जीवन काल में अनेक गणित, ज्योतिष परक ग्रंथों की रचना की जिनमें से विद्वानों के मतानुसार उनकी पांच रचनाएं प्रमुख हैं –

पञ्चसिद्धांतिका, बृहत्संहिता, बृहज्जातक, लघुजातक, बृहद्विवाह-पटल, इन प्रसिद्ध पांच कृतियों के अलावा भी कुछ विद्वानों ने उनकी और भी रचनाएं भी मानी हैं जिनमें – दैवज्ञ-वल्लभा, योग यात्रा, समास संहिता, लग्न-वाराही आदि हैं। इनमें से कुछ प्रकाशित तो कुछ अप्रकाशित हैं।

प्रमुख कृतियों का संक्षिप्त विवरण

पञ्चसिद्धांतिका – पैतामहसिद्धान्त , वसिष्ठ सिद्धान्त , रोमक सिद्धान्त , पुलिश सिद्धान्त , सूर्य सिद्धान्त।

बृहत्संहिता –

बृहज्जातक –

लघुजातक –

वराहमिहिर का योगदान

पोलिशकृतः स्फुटोsसौ तस्यासन्नस्तु रोमक प्रोक्तः। स्पष्टतरः सावित्रः परिशेषऔ दूर विभ्रष्टौ॥ (पञ्चसिद्धांतिका1/4)

वराहमिहिर का योगदान

  • ग्रहण, ग्रहचार, आदि का प्रत्यक्षानुमानाप्त प्रमाण्य से वराह की युक्तियां प्रामाणिक सिद्ध होती हैं।
  • ग्रहचार, गोचर एवं ग्रहणों का प्रामाणिक निरूपण
  • धूमकेतुओं का सटीक वर्णन
  • व्यापारिक हित साधनार्थ तेजी मंदी का शास्त्रीय विचार
  • भूमिगत जल का ज्ञान
  • वर्षा और मौसम का निरूपण
  • वृक्ष चिकित्सा
  • फसल एवं उपज की ज्यौतिषीय विवेचना
  • सुगंधित द्रव्य निर्माण की प्राचीन विधियों की विवेचना
  • ऋतु सापेक्ष भवन निर्माण की प्राचीन विधियों की विवेचना

इस प्रकार श्री वराहमिहिर आचार्य जी का लोक के कल्याण के लिये संपरीक्षित विधि का उपस्थापन व्यापक रूप से किया जाना यह समाज के लिये वराह कृत एक महती योगदान है।

सारांश

ज्योतिष शास्त्र का सबसे पहला पौरुषेय लिखित ग्रंथ है आर्यभटीयम् । इसके उपरांत 5 वीं शताब्दि में वराहमिहिर प्रणीत ''पंचसिद्धान्तिका'' नामक सिद्धान्त ग्रंथ लिपि बद्ध हुआ। इस ग्रंथ में पांच अलग-अलग सिद्धांतों का संकलन कर ग्रह गणना के लिये, अनेकों कालों का तथा विभिन्न आकाशीय घटनाओं के निर्धारण के लिये गणितीय सूत्रों एवं खगोलीय सिद्धांतों का प्रतिपादन किया गया है।

उद्धरण

  1. कालिदास प्रणीत - ज्योतिर्विदाभरणम् , अध्याय- २२ , श्लोक - १०, (पृ० ३५८)।
  2. 2.0 2.1 संपादक एवं व्याख्याकार - महीधर शर्मा , वराहमिहिरप्रणीत - बृहज्जातकम् , उपसंहाराध्याय - २८, श्लोक - ९ (पृ० २२५)।