Difference between revisions of "Lunar Eclipse (चन्द्र ग्रहण)"

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Revision as of 16:53, 5 October 2023

चन्द्र ग्रहण पूर्णिमा को ही होता है जबकि चन्द्रमा और सूर्य के बीच पृथ्वी आ जाती है तो पृथ्वी की छाया चन्द्रमा पर पडने से उसका कुछ भाग अथवा पूरा चन्द्रमा दिखाई नहीं देता। इसी को चन्द्र ग्रहण कहते हैं।

पूर्ण ग्रहण में भी चन्द्रमा पर बिल्कुल अँधेरा नहीं हो जाता। इसका कारण भूमि का वायुमण्डल सूर्य के प्रकाश को इस प्रकार झुका देता है कि ग्रसित होने पर भी चन्द्रमा हल्के लाल रंग का दिखाई देता है।

खण्ड ग्रहण के समय पृथ्वी की छाया जो चन्द्रमा पर पडती है वह गोलाई लिये होती है जिससे यह ज्ञात होता है कि पृथ्वी गोल है। पृथ्वी की जो छाया चन्द्रमा पर पडती है उसके दो भाग होते हैं। एक तो प्रच्छाया (Umbra) तथा दूसरी को उपच्छाया (Penumbra) कहते हैं। जब चन्द्रमा प्रच्छाया में प्रवेश करता है तो पूर्ण ग्रहण होता है किन्तु उपच्छाया में प्रवेश करने पर खण्ड ग्रहण ही दिखाई देता है।[1]

वैज्ञानिक दृष्टिकोण में चन्द्रग्रहण

चन्द्रग्रहण के नियम

  • चन्द्रकक्षा में स्थित पृथ्वी की छाया के केन्द्र से चन्द्रबिम्ब के केन्द्र तक जो अन्तर है, वह भूच्छाया और चन्द्रमा के व्यासार्द्ध के योग से न्यून होने से ग्रहण नहीं हो सकता है।
  • पृथ्वी से चन्द्रमा जितनी दूर, भूच्छाया उसके प्रायः साढे तीन गुणा अधिक दूर विस्तृत एवं इस छाया के जिस प्रदेश में चन्द्रमा प्रवेश करता है, वह क्षेत्र चन्द्रव्यास से प्रायः तीन गुणा अधिक होता है।

उद्धरण

  1. नन्द लाल दशोरा, ब्रह्माण्ड और ज्योतिष रहस्य, सन् १९९४, रणधीर प्रकाशन, हरिद्वार (पृ० १५१)।