Difference between revisions of "Sajiv srushtu(सजीव सृष्टि)"
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− | सजीव सृष्टि : लक्षण एवं विविधता | + | == सजीव सृष्टि : लक्षण एवं विविधता == |
− | + | अपने चारों ओर देखिए। आपको अनेक चीजें दिखायी देंगी, जेसे मेज-कूर्सी, खिलौने, मोबाइल, टी.वी. और न जाने क्या-क्या। घर की दीवारों और कमरों में देखेंगे तो मक््खी, मच्छर, छिपकली और कॉकरोच दिखायी देंगे। जरा घर से बाहर नजर डालेंगे तो पशु-पक्षी, गाय-भेंस, कुत्ता-बिल्ली चलते फिरते नजर आएंगे और साथ ही स्थिर खड़े भांति-भांति के पेड दिखाई देंगे, जेसे नीम-जामुन, आम-अमरूद या जमीन में उगे घास-फूस या खेतों में उगे गेहूँ-सरसों के पौधे। आसमान में नजर डालें तो हवाई जहाज, पंछी आदि दिखाई पड़ेंगे। अगर इन चीजों की सूची बनाने लगें तो आप हजारों चीजें गिना सकते हैं। | |
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− | अपने चारों ओर देखिए। आपको अनेक चीजें दिखायी देंगी, जेसे मेज-कूर्सी, | ||
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+ | आप इन सभी वस्तुओं को तीन प्रमुख समूहों में बांट सकते हैं सजीव, निर्जीव और मृत। पशु-पक्षी और पेड़-पौधे सजीव हैं। आप यह जानकर आश्चर्यचकित होंगे कि पेड़-पौधे भी सजीव हैं। यह गौरव की बात है कि यह बात सबसे पहले एक भारतीय वैज्ञानिक श्री जगदीश चन्द्र बोस ने सिद्ध की। भारतीय वैदिक ग्रंथों में भी बार-बार इन पेडु-पौधों को एक जीवित जीव के समान मानकर ही उनकी रक्षा करने को कहा गया। मेज-कूुर्सी जैसे पदार्थ यानी लकड़ी और इसी तरह जानवरों के शरीर से अलग हुई हड्डी या सींग आदि मृत हैं, क्योंकि किसी समय वे सजीव शरीर के भाग थे और कांच, मिट्टी, पत्थर, लोहे की कील आदि निर्जीव हैं, उनमें कभी भी जीवन नहीं रहा। | ||
+ | '''सजीव और निर्जीव में क्या अंतर है?''' | ||
+ | '''सजीव चीजें एक दूसरे से कितनी भिन्न हैं? और भिन्न होते हुए भी वे एक दूसरे से कितनी समान हैं।''' | ||
+ | == जीवित वस्तुएं और उनके लक्षण == | ||
+ | कई बार आप देखकर या छूकर तुरंत सजीव और निर्जीव वस्तुओं में अंतर पता कर लेते हैं। लेकिन क्या आप इस अंतर को प्रकट करने वाले कुछ लक्षणों को गिना सकते हैं? आइए देखें कि किस आधार पर किसी वस्तु को सजीव माना जाता है। | ||
निम्नलिखित | निम्नलिखित | ||
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(iii) गतिशीलता, | (iii) गतिशीलता, | ||
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(iv) पोषण, | (iv) पोषण, | ||
− | ( | + | (v) श्वसन (सांस लेना), |
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(vi) उत्सर्जन (अपशिष्टों का त्याग), टिप्पणी | (vi) उत्सर्जन (अपशिष्टों का त्याग), टिप्पणी | ||
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(viii) संतानोत्पति (जनन), और | (viii) संतानोत्पति (जनन), और | ||
− | ( | + | (ix) एक निश्चित जीवन-अवधि एवं मृत्यु। |
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+ | उपनिष्दों में सजीव वस्तुएं वे हैं जिनमें 'जीव' निवास करते हैं और निर्जीव वे हैं जिनमें 'जीव' निवास नहीं करते। सजीव वस्तुओं को ब्रह्म ने एक रंगभूमि के रूप में माना है। जिसमें जीवों को अपनी-अपनी भूमिकाएं खेलनी | ||
− | + | हैं।चित्र 4.1 सजीव, निर्जीव और मृत जीव | |
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(1) जीवित वस्तुओ में वृद्धि | (1) जीवित वस्तुओ में वृद्धि | ||
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− | प्रत्येक जीवित वस्तु जन्म के समय छोटी होती है। परंतु धीरे-धीरे आकार में | + | प्रत्येक जीवित वस्तु जन्म के समय छोटी होती है। परंतु धीरे-धीरे आकार में बढ़ती जाती है। एक छोटा सा बछडा बढ़कर पूरा बैल बन जाता है। आम की गुठली से अंकुरित छोटा सा पौधा बढ़कर पूरा वृक्ष बन जाता है। स्वयं आप भी एक समय नन्हें से बच्चे के रूप में थे, बाद में बड़े होते गए और अब भी आप कुछ हद तक आकार में बढ़ ही रहें होंगे और तब तक बढ़ते रहेंगे जब तक कि आप पूरी तरह पुरुष या महिला नहीं बन जाते। इस वृद्धि में आपकी हडिडियां बढ़ती हैं, मांस-पेशियां बढ़ती हैं और रक्त की मात्रा भी बढ़ती है। निर्जीव वस्तुओं में यह क्रियाएं नहीं होती। न तो वह सांस लेती हैं और न ही वे नई वस्तुएं बना सकती हैं। शरीर का पूरा आकार बन चुकने पर भी कुछ ऐसी वृद्धि होती है, जिसके द्वारा टूट-फूट ठीक होती रहती है। अगर कहीं खाल कट जाए तो नयी खाल बन कर घाव भर जाता है। नाखून बढ़ते हैं, ये भी वृद्धि ही हे। |
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चित्र 4.2 जीवित वस्तुओं में वृद्धि (पौधे से वृक्ष बनना) | चित्र 4.2 जीवित वस्तुओं में वृद्धि (पौधे से वृक्ष बनना) | ||
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क्या आपने किसी साइकिल, गिलास या पेंसिल का आकार बढ़ते देखा हे? | क्या आपने किसी साइकिल, गिलास या पेंसिल का आकार बढ़ते देखा हे? | ||
− | नहीं, क्योंकि सभी निर्जीव वस्तुएं हैं। | + | नहीं, क्योंकि सभी निर्जीव वस्तुएं हैं। जीवित वस्तुएं कोशिकाओं की बनी होती हैं प्रत्येक प्राणी अथवा पौधे का शरीर सूक्ष्म कोशिकाओं से बना होता है। यह इतनी छोटी होती हैं कि केवल सूक्ष्मदर्शी (माइक्रोस्कोप) से ही देखी जा सकती हैं। प्रत्येक कोशिका एक जीवित संरचना होती है जिसके भीतर अनेकों क्रियाएं होती रहती हैं। जीवित वस्तओं में होने वाली वृद्धि मुख्य रूप से कोशिकाओं की संख्या में वृद्धि होने से ही होती है। नई कोशिकाएं पुरानी कोशिकाओं से ही बनती है। आप सोचते होगें कि जैसे कई कोशिकाएं मिलकर प्राणी बनता है वैसे ही कई ईटे मिलकर दीवार बनाती हैं। लेकिन ईट दीवार का एक हिस्सा होती है। परतु एक ईट से स्वतः दूसरी ईट नहीं बन सकती। ईट निर्जीव है जबकि कोशिका सजीव हे। |
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− | प्रत्येक प्राणी अथवा पौधे का शरीर सूक्ष्म कोशिकाओं से बना होता है। यह | ||
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− | इतनी छोटी होती हैं कि केवल सूक्ष्मदर्शी (माइक्रोस्कोप) से ही देखी जा | ||
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− | सकती हैं। प्रत्येक कोशिका एक जीवित संरचना होती है जिसके भीतर अनेकों | ||
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− | क्रियाएं होती रहती हैं। जीवित वस्तओं में होने वाली वृद्धि मुख्य रूप से | ||
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− | कोशिकाओं की संख्या में वृद्धि होने से ही होती है। नई कोशिकाएं पुरानी | ||
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− | कोशिकाओं से ही बनती है। | ||
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− | आप सोचते होगें कि जैसे कई कोशिकाएं मिलकर प्राणी बनता है वैसे ही कई | ||
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− | ईटे मिलकर दीवार बनाती हैं। लेकिन ईट दीवार का एक हिस्सा होती है। परतु | ||
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− | एक ईट से स्वतः दूसरी ईट नहीं बन सकती। ईट निर्जीव है जबकि कोशिका | ||
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− | सजीव हे। | ||
आइए कोशिकाओं के बारे में महत्त्वपूर्ण बाते जाने- | आइए कोशिकाओं के बारे में महत्त्वपूर्ण बाते जाने- | ||
+ | प्रत्येक जीव में कोशिकाओं में भिन्नता होती है। कुछ जीव केवल एक कोशिका के बने होते हैं जैसे जीवाणु (बैक्टीरिया), अमीबा आदि। इन्हें एक-कोशिकीय जीव कहते है। | ||
+ | ० अन्य जीव बहुत-सारी कोशिकाओं के बने होते हैं जेसे मक््खी, मनुष्य, हाथी, घोड़ा आदि उन्हें बहु-कोशिकीय जीव कहते हैं। | ||
+ | ० जितना बड़ा जीव उसमें उतनी ही ज्यादा कोशिकाएं होती हैं। चूहे से ज्यादा बिल्ली में, बिल्ली से ज्यादा गाय में और हाथी में तो और भी ज्यादा कोशिकाएं होती हैं। | ||
− | + | ० गुलाब के पौधे से ज्यादा केले के पौधे में, उससे ज्यादा अमरूद के वृक्ष में और बरगद के विशाल वृक्ष में तो और भी ज्यादा कोशिकाएं होती हैं। | |
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− | ० गुलाब के पौधे से ज्यादा केले के पौधे में, उससे ज्यादा अमरूद के वृक्ष | ||
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(iii) गतिशीलता | (iii) गतिशीलता | ||
+ | हर प्राणी चलता-फिरता है। घोड़ा, गाय, कीट-पतंगे, पक्षी आदि सभी स्वयं की गति से चलते-फिरते हैं। हम अपने शरीर के अलग-अलग भागों को भी हिला-डुला सकते हैं। पौधों में भी अपनी गतिशीलता होती हे। वे एक ही स्थान पर खड़े-खड़े हिलते-डुलते या गतियां करते हैं। सूरजमुखी का फूल सूर्य के स्थान-परिवर्तन के साथ उसी दिशा में घूमता जाता है। पत्तियां प्रकाश की ओर मुड जाती हैं। जड़ें पानी की ओर स्वयं मुड॒ती जाती हैं। ये सब गतियां भीतर से होती हैं, बाहर से कोई नहीं चलाता। कुछ पौधों की पत्तियां रात में बंद हो जाती हैं और दिन में खुल जाती हैं। लाजवंती (छुई-मुई) की पत्तियां छूने से मुरझा कर लटक जाती हैं और कुछ समय बाद फिर से सीधी हो जाती हैं। क्या साइकिल स्वयं चल सकती हे? घड़ी में हम चाबी न भरें या बैटरी न लगाएं तो क्या वह स्वयं चल सकती हे? नहीं, हर निर्जीव वस्तु को चलाने केलिए बाहर से शक्ति देनी पड़ती हे। | ||
− | + | (1) सजीव वस्तुओं को भोजन चाहिए हर प्राणी को भोजन चाहिए। यदि आपको कभी कुछ समय के लिए भूखा रहना पड़े तो आपको कमजोरी सी महसूस होती है। जो भोजन आप करते हैं उसी से शरीर में हड्डी, मांस, रक्त आदि बनते हैं और शरीर की वृद्धि होती है। यदि प्राणी को बहुत समय तक भोजन न मिले तो वह कमजोर हो जाएगा और उसकी मृत्यु हो जाएगी। पेड-पौधे अपना भोजन स्वयं बनाते हैं। कुछ पशु, पौधों या पौधों के अंश खाते हैं वहीं कुछ पशु तो मांसाहारी होते हैं, उन्हें भोजन उन जानवरों से मिलता है, जो स्वयं पौधों को खाकर बड़े होते हैं। पर क्या आपने कभी सोचा है हरे पौधों का भोजन क्या हे? वे मिट्टी से पानी और हवा से कार्बन डॉइऑक्साइड लेकर सूर्य की रोशनी में अपना भोजन स्वयं बनाते हैं। यदि इनमें से एक भी चीज न मिले तो वे मर जाते है। | |
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− | रहना पड़े तो आपको कमजोरी सी महसूस होती है। जो भोजन आप करते हैं | ||
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− | उसी से शरीर में हड्डी, मांस, रक्त आदि बनते हैं और शरीर की वृद्धि होती | ||
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− | है। यदि प्राणी को बहुत समय तक भोजन न मिले तो वह कमजोर हो जाएगा | ||
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− | और उसकी मृत्यु हो जाएगी। पेड-पौधे अपना भोजन स्वयं बनाते हैं। कुछ पशु, | ||
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− | पौधों या पौधों के अंश खाते हैं वहीं कुछ पशु तो मांसाहारी होते हैं, उन्हें | ||
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− | भोजन उन जानवरों से मिलता है, जो स्वयं पौधों को खाकर बड़े होते हैं। पर | ||
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− | क्या आपने कभी सोचा है हरे पौधों का भोजन क्या हे? वे मिट्टी से पानी और | ||
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− | हवा से कार्बन डॉइऑक्साइड लेकर सूर्य की रोशनी में अपना भोजन स्वयं | ||
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− | बनाते हैं। यदि इनमें से एक भी चीज न मिले तो वे मर जाते है। | ||
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− | क्या आपको साइकिल को, या किताब को भोजन चाहिए? नहीं, न तो उनमें | + | क्या आपको साइकिल को, या किताब को भोजन चाहिए? नहीं, न तो उनमें वृद्धि होती है और न ही उनमें गति के लिए अपनी शक्ति होती है। |
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− | वृद्धि होती है और न ही उनमें गति के लिए अपनी शक्ति होती है। | ||
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− | + | (४) सजीव वस्तुओं मे श्वसन या सांस लेना (ऑक्सीजन के उपयोग से ऊर्जा पैदा करना) हम सभी रात-दिन लगातार सोस लेते और छोड़ते रहते हैं। अधिकतर प्राणी भी इसी तरह हवा को भीतर ले जाते और छोड़ते हैं। पानी में रहने वाले प्राणी जेसे मछली, लगातार पानी को भीतर ले जाकर निकालते रहते हैं, इसमें से वे पानी में घुली आक्सीजन को सोख लेते हैं। इस आक्सीजन को, चाहे वह हवा से प्राप्त हो और चाहे पानी से, कोशिकाओं में इस्तेमाल करके ऊर्जा या ताकत पैदा करते हैं। कम ऊर्जा से वे अपने काम करते हैं। कोशिकाओं में इस दौरान बनने वाली कार्बन डाइआक्साइड को बाहर छोड़ देते हैं। सांस लेने की प्रमुख क्रियाएं पौधों और प्राणियों में समान होती हेै। पौधे अपनी ऑक्सीजन पत्तियों | |
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चित्र 4.4 सजीव वस्तुओं में सांस लेने की प्रक्रिया (श्वसन प्रक्रिया) | चित्र 4.4 सजीव वस्तुओं में सांस लेने की प्रक्रिया (श्वसन प्रक्रिया) | ||
− | और तनों पर बने सूक्ष्म छिद्रों द्वारा भीतर लेते हैं। इस तरह प्राणी श्वसन | + | और तनों पर बने सूक्ष्म छिद्रों द्वारा भीतर लेते हैं। इस तरह प्राणी श्वसन क्रिया में ऑक्सीजन अंदर लेते हैं और कार्बन डॉई आक्साइड को बाहर छोड़ते हैं। |
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(i) जीवित वस्तुएं अपशिष्टों को बाहर निकालती रहती हैं (उत्सर्जन) | (i) जीवित वस्तुएं अपशिष्टों को बाहर निकालती रहती हैं (उत्सर्जन) | ||
− | जीवित वस्तुओं के शरीर में होने वाली शरीरिक क्रियाओं के फलस्वरूप | + | जीवित वस्तुओं के शरीर में होने वाली शरीरिक क्रियाओं के फलस्वरूप अनेकों ऐसे पदार्थ बनते हैं, जो विषैले होते हैं और जिन्हें शरीर से बाहर निकालना अत्यन्त आवश्यक होता है। प्राणियों के मूत्र में पानी के अतिरिक्त अनेक अपशिष्ट पदार्थ होते हैं। त्वचा से निकले पसीने में भी कुछ गंदगी बाहर निकल जाती है। पौधों में गोंद का निकलना, पुरानी पत्तियों का सूखकर झड़ना आदि भी उत्सर्जन के ही उदाहरण हैं। निर्जीव वस्तु जैसे मेज, कुर्सी को न तो सांस लेने की जरूरत होती है और न ही अपशिष्टों को निकालने की। |
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− | अनेकों ऐसे पदार्थ बनते हैं, जो विषैले होते हैं और जिन्हें शरीर से बाहर | ||
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− | निकालना अत्यन्त आवश्यक होता है। प्राणियों के मूत्र में पानी के अतिरिक्त | ||
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− | अनेक अपशिष्ट पदार्थ होते हैं। त्वचा से निकले पसीने में भी कुछ गंदगी बाहर | ||
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− | निकल जाती है। पौधों में गोंद का निकलना, पुरानी पत्तियों का सूखकर झड़ना | ||
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− | आदि भी उत्सर्जन के ही उदाहरण हैं। | ||
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− | निर्जीव वस्तु जैसे मेज, कुर्सी को न तो सांस लेने की जरूरत होती है और न | ||
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− | ही अपशिष्टों को निकालने | ||
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(v1) जीवित वस्तुओ में प्रतिक्रियाशीलता | (v1) जीवित वस्तुओ में प्रतिक्रियाशीलता | ||
− | अगर आपका हाथ अचानक कहीं कांटे से अथवा अनजाने में गर्म तश्तरी या | + | अगर आपका हाथ अचानक कहीं कांटे से अथवा अनजाने में गर्म तश्तरी या तवे से छू जाए तो आप अपने हाथ को तुरंत पीछे हटा लेते हैं। चुभन या गर्मीया कोई भी ऐसी स्थिति, जिससे शरीर प्रतिक्रिया करे, उद्दीपन कहलाती हे, तथा उसके प्रति होने वाली क्रिया को प्रतिक्रिया कहते हैं। इस प्रकार की अनेकानेक प्रतिक्रियाएं सभी जीवों में होती हैं। पौधों में प्रकाश की ओर झुकना या जड़ों का पानी की ओर बढ़ना, ये सभी उद्दीपनों के प्रति अनुक्रियाएं होना है। उद्दीपन मुख्य रूप में तापमान, प्रकाश, ध्वनि, स्पर्श तथा रसायन के विरूद्ध होता है। एक बात सोचिए। जब आप स्वादिष्ट भोजन को देखते हैं अथवा उसकी महक सृंघते हैं तो कई बार मुंह में पानी आ जाता है। क्या इसे भी आप उद्दीपनों के लिए अनुक्रिया कहेंगे? |
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− | तवे से छू जाए तो आप अपने हाथ को तुरंत पीछे हटा लेते हैं। चुभन या | ||
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− | तथा उसके प्रति होने वाली क्रिया को प्रतिक्रिया कहते हैं। इस प्रकार की | ||
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− | अनेकानेक प्रतिक्रियाएं सभी जीवों में होती हैं। पौधों में प्रकाश की ओर झुकना | ||
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− | या जड़ों का पानी की ओर बढ़ना, ये सभी उद्दीपनों के प्रति अनुक्रियाएं होना | ||
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− | है। उद्दीपन मुख्य रूप में तापमान, प्रकाश, ध्वनि, स्पर्श तथा रसायन के विरूद्ध | ||
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− | होता है। | ||
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− | एक बात सोचिए। जब आप स्वादिष्ट भोजन को देखते हैं अथवा उसकी महक | ||
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− | सृंघते हैं तो कई बार मुंह में पानी आ जाता है। क्या इसे भी आप उद्दीपनों के | ||
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− | लिए अनुक्रिया कहेंगे? | ||
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− | + | (viii) जनन अथवा संतान पैदा करना हर जीवित वस्तु अपने ही जैसे नयी संतान या पीढ़ी को पैदा करती है। गाय बछडे को जन्म देती है, पक्षी अंडे देते हैं, जिनमें से बच्चे निकलते हैं, मेंढक-मछली भी अंडे देते हैं। यदि किसी प्रजाति के जीव संतान पैदा न करें तो वह प्रजाति ही समाप्त हो जाती है। पौधों में बीज बनते हैं, उन बीजों से उसी प्रकार के नए पौधे बनते हैं। कुछ पौधों में उनकी शखाओं या जड़ों से नए पौधे बनते हैं। सरलतम एक-कोशिकीय जीव भी, जेसे बैक्टीरिया अथवा अमीबा किसी न किसी विधि से नयी संतान अवश्य पैदा करते हैं। क्या कोई निर्जीव वस्तु अपने ही जैसी वस्तु बना सकती है? नहीं। एक ईट से दो ईटें नहीं बन सकतीं। आप अगर एक ईट को बीच से तोड़ दें तो दो लेकिन छोटी ईटें बन जाएंगी, परन्तु उनमें वृद्धि होकर भी सामान्य आकार प्राप्त नहीं हो सकता। यह ठीक उसी प्रकार हे जैसे एक साइकिल दूसरी साइकिल को जन्म नहीं देती, एक कुर्सी दूसरी कुर्सी को जन्म नहीं दे सकती, आदि। | |
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− | साइकिल को जन्म नहीं देती, एक कुर्सी दूसरी कुर्सी को जन्म नहीं दे सकती, | ||
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− | आदि। | ||
(1x) जीवित वस्तुओं की निश्चित जीवन-अवधि होती है | (1x) जीवित वस्तुओं की निश्चित जीवन-अवधि होती है | ||
− | हर जीवित वस्तु का जन्म होता है, वह आकार में बढ़ती है और अपनी जीवन | + | हर जीवित वस्तु का जन्म होता है, वह आकार में बढ़ती है और अपनी जीवन क्रियाएं पूरी करती-करती बूढ़ी हो जाती और मृत्यु को प्राप्त होती हैं। अलग-अलग जीव अलग-अलग समय तक जीवित रहते हैं। कुछ का जीवन काल छोटा होता है और कुछ का बड़ा। जीवन काल के कुछ उदाहरण इस प्रकार हैं : |
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− | क्रियाएं पूरी करती-करती बूढ़ी हो जाती और मृत्यु को प्राप्त होती हैं। | ||
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− | अलग-अलग जीव अलग-अलग समय तक जीवित रहते हैं। कुछ का जीवन | ||
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− | काल छोटा होता है और कुछ का बड़ा। जीवन काल के कुछ उदाहरण इस | ||
− | + | बैक्टीरिया (जीवाणु) - लगभग 20 मिनट | |
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− | + | पृथ्वी पर हजारों-लाखों प्रकार की जीवित वस्तुएं हैं। ये आकार में बहुत बड़े से लेकर छोटे और अत्यंत छोटे आकार की हो सकती हैं। इनका रंग-रूप भी अलग-अलग होता हे। कुछ बच्चे देते हैं, कुछ अंडे। और कुछ जीव जैसे अमीबा या बैक्टीरिया तो बस यूं ही दो या अधिक टुकड़ों में बंटकर संतानों को जन्म देते हैं। कुछ पंखों से हवा में उडते हैं तो कुछ पेड़ों पर छलांगे लगाते हैं और कुछ गहरे समुद्र में रेंगते हैं। कुछ जीव रेगिस्तान की रेत में रेंगते हैं तो कुछ अन्य जीवों के शरीर के भीतर घुस कर उन्हें भीतर से खोखला करते रहते हैं। जीव-जंतुओं की इस प्रकार की विविधता की झलक आप हर रोज अपने ईर्द-गिर्द भी देखते हैं। वृक्षायुर्वेद नाम प्राचीन पुस्कत में जीवों के बारे में विस्तार से लिखा है। | |
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4.3 सजीव वस्तुओं का वर्गीकरण | 4.3 सजीव वस्तुओं का वर्गीकरण | ||
+ | पृथ्वी पर इतनी ज्यादा संख्या में अलग-अलग रंग-रूप की जीवित वस्तुओं को उनमें परस्पर समानताओं के आधार पर कुछ खास वर्गो में विभाजित किया जा सकता है। आमतौर पर आप कह सकते हैं कि जीवित वस्तुओं के दो वर्ग हैं पौधे और प्राणी। आइए इनके बारे में जाने- | ||
− | + | i - पौधे वे जो जमीन में स्थिर जमे रहते हैं और हरी या अन्य रंग की पत्तियों वाले होते है । | |
− | + | ii. - प्राणी वे जीव हैं, जो चल फिर सकते हैं और अन्य जीवों (पौधों अथवा प्राणियो) को खाकर जीवन निर्वाह करते हैं। | |
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चित्र 4.5 सजीव सृष्टि में विविधता - एक झलक | चित्र 4.5 सजीव सृष्टि में विविधता - एक झलक | ||
+ | iii. एक तीसरा वर्ग आप उनका कह सकते हैं, जो न हरे पौधे हैं और न ही गतिशील प्राणी। इनका एक उदाहरण हे खाने-पीने की चीजों पर लगने वाले सफेद रेशों को फफूदी (कवक) या फिर गली-सड़ी जगहों पर उगने वाले कुकुरमुत्ते या खाने के लिए उगायी जाने वाली खुम्बी (मशरूम)। | ||
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− | बना होता है जैसे तालाबों की सतह पर तेरने वाले हरे रंग के धागे जैसे | + | ¡v. चौथा वर्ग ऐसे सूक्ष्म जीवों का है, जिनका शरीर केवल एक कोशिका का बना होता है जैसे तालाबों की सतह पर तेरने वाले हरे रंग के धागे जैसे शेवाल और सड॒ते पानी में रहने वाले अमीबा। |
− | + | v. पाँचवें वर्ग में आते हैं और भी सूक्ष्म एक-कोशीय बैक्टीरिया या जीवाणु। ये सैकड़ों की संख्या में एक सुई की नोक समान स्थान पर समा सकते हैं। पुराने समय से ही जीवों को अलग-अलग प्रकार से वर्गीकृत किया जाता रहा है। आधुनिक विज्ञान में वर्गीकरण का आरम्भ कार्ल लिनियस ने 1735 में किया था। परंतु वर्तमान में इसमें कुछ संशोधन करके इन्हें पांच जगत में बांटा जाता है। इन्हें सरलतम से जटिलतम क्रम में इस प्रकार रखा गया हे : | |
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1. मोनेरा जगत - जीवाणु (बैक्टीरिया), विषाणु आदि। | 1. मोनेरा जगत - जीवाणु (बैक्टीरिया), विषाणु आदि। | ||
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(Plantae Kindgdom) जैसे-नीम, आम, गुलाब, गैंदा आदि। | (Plantae Kindgdom) जैसे-नीम, आम, गुलाब, गैंदा आदि। | ||
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5. ऐनिमैलिया जगत - प्राणी जगत - सभी प्राणी जैसे कुत्ता, | 5. ऐनिमैलिया जगत - प्राणी जगत - सभी प्राणी जैसे कुत्ता, | ||
(Animalia Kindgdom) बिल्ली, जूं, बंदर, चिडिया, मनुष्य आदि। | (Animalia Kindgdom) बिल्ली, जूं, बंदर, चिडिया, मनुष्य आदि। |
Latest revision as of 09:18, 4 March 2023
सजीव सृष्टि : लक्षण एवं विविधता
अपने चारों ओर देखिए। आपको अनेक चीजें दिखायी देंगी, जेसे मेज-कूर्सी, खिलौने, मोबाइल, टी.वी. और न जाने क्या-क्या। घर की दीवारों और कमरों में देखेंगे तो मक््खी, मच्छर, छिपकली और कॉकरोच दिखायी देंगे। जरा घर से बाहर नजर डालेंगे तो पशु-पक्षी, गाय-भेंस, कुत्ता-बिल्ली चलते फिरते नजर आएंगे और साथ ही स्थिर खड़े भांति-भांति के पेड दिखाई देंगे, जेसे नीम-जामुन, आम-अमरूद या जमीन में उगे घास-फूस या खेतों में उगे गेहूँ-सरसों के पौधे। आसमान में नजर डालें तो हवाई जहाज, पंछी आदि दिखाई पड़ेंगे। अगर इन चीजों की सूची बनाने लगें तो आप हजारों चीजें गिना सकते हैं।
आप इन सभी वस्तुओं को तीन प्रमुख समूहों में बांट सकते हैं सजीव, निर्जीव और मृत। पशु-पक्षी और पेड़-पौधे सजीव हैं। आप यह जानकर आश्चर्यचकित होंगे कि पेड़-पौधे भी सजीव हैं। यह गौरव की बात है कि यह बात सबसे पहले एक भारतीय वैज्ञानिक श्री जगदीश चन्द्र बोस ने सिद्ध की। भारतीय वैदिक ग्रंथों में भी बार-बार इन पेडु-पौधों को एक जीवित जीव के समान मानकर ही उनकी रक्षा करने को कहा गया। मेज-कूुर्सी जैसे पदार्थ यानी लकड़ी और इसी तरह जानवरों के शरीर से अलग हुई हड्डी या सींग आदि मृत हैं, क्योंकि किसी समय वे सजीव शरीर के भाग थे और कांच, मिट्टी, पत्थर, लोहे की कील आदि निर्जीव हैं, उनमें कभी भी जीवन नहीं रहा।
सजीव और निर्जीव में क्या अंतर है?
सजीव चीजें एक दूसरे से कितनी भिन्न हैं? और भिन्न होते हुए भी वे एक दूसरे से कितनी समान हैं।
जीवित वस्तुएं और उनके लक्षण
कई बार आप देखकर या छूकर तुरंत सजीव और निर्जीव वस्तुओं में अंतर पता कर लेते हैं। लेकिन क्या आप इस अंतर को प्रकट करने वाले कुछ लक्षणों को गिना सकते हैं? आइए देखें कि किस आधार पर किसी वस्तु को सजीव माना जाता है।
निम्नलिखित
आमतौर पर सजीव वस्तुओं में निम्नलिखित 9 लक्षण पाए जाते हैं :
(1) वृद्धि (शरीर का बढ़ना)
(11) कोशिकीय शरीर रचना,
(iii) गतिशीलता,
(iv) पोषण,
(v) श्वसन (सांस लेना),
(vi) उत्सर्जन (अपशिष्टों का त्याग), टिप्पणी
(vii) प्रतिक्रिशीलता,
(viii) संतानोत्पति (जनन), और
(ix) एक निश्चित जीवन-अवधि एवं मृत्यु।
उपनिष्दों में सजीव वस्तुएं वे हैं जिनमें 'जीव' निवास करते हैं और निर्जीव वे हैं जिनमें 'जीव' निवास नहीं करते। सजीव वस्तुओं को ब्रह्म ने एक रंगभूमि के रूप में माना है। जिसमें जीवों को अपनी-अपनी भूमिकाएं खेलनी
हैं।चित्र 4.1 सजीव, निर्जीव और मृत जीव
(1) जीवित वस्तुओ में वृद्धि
प्रत्येक जीवित वस्तु जन्म के समय छोटी होती है। परंतु धीरे-धीरे आकार में बढ़ती जाती है। एक छोटा सा बछडा बढ़कर पूरा बैल बन जाता है। आम की गुठली से अंकुरित छोटा सा पौधा बढ़कर पूरा वृक्ष बन जाता है। स्वयं आप भी एक समय नन्हें से बच्चे के रूप में थे, बाद में बड़े होते गए और अब भी आप कुछ हद तक आकार में बढ़ ही रहें होंगे और तब तक बढ़ते रहेंगे जब तक कि आप पूरी तरह पुरुष या महिला नहीं बन जाते। इस वृद्धि में आपकी हडिडियां बढ़ती हैं, मांस-पेशियां बढ़ती हैं और रक्त की मात्रा भी बढ़ती है। निर्जीव वस्तुओं में यह क्रियाएं नहीं होती। न तो वह सांस लेती हैं और न ही वे नई वस्तुएं बना सकती हैं। शरीर का पूरा आकार बन चुकने पर भी कुछ ऐसी वृद्धि होती है, जिसके द्वारा टूट-फूट ठीक होती रहती है। अगर कहीं खाल कट जाए तो नयी खाल बन कर घाव भर जाता है। नाखून बढ़ते हैं, ये भी वृद्धि ही हे।
चित्र 4.2 जीवित वस्तुओं में वृद्धि (पौधे से वृक्ष बनना)
क्या आपने किसी साइकिल, गिलास या पेंसिल का आकार बढ़ते देखा हे?
नहीं, क्योंकि सभी निर्जीव वस्तुएं हैं। जीवित वस्तुएं कोशिकाओं की बनी होती हैं प्रत्येक प्राणी अथवा पौधे का शरीर सूक्ष्म कोशिकाओं से बना होता है। यह इतनी छोटी होती हैं कि केवल सूक्ष्मदर्शी (माइक्रोस्कोप) से ही देखी जा सकती हैं। प्रत्येक कोशिका एक जीवित संरचना होती है जिसके भीतर अनेकों क्रियाएं होती रहती हैं। जीवित वस्तओं में होने वाली वृद्धि मुख्य रूप से कोशिकाओं की संख्या में वृद्धि होने से ही होती है। नई कोशिकाएं पुरानी कोशिकाओं से ही बनती है। आप सोचते होगें कि जैसे कई कोशिकाएं मिलकर प्राणी बनता है वैसे ही कई ईटे मिलकर दीवार बनाती हैं। लेकिन ईट दीवार का एक हिस्सा होती है। परतु एक ईट से स्वतः दूसरी ईट नहीं बन सकती। ईट निर्जीव है जबकि कोशिका सजीव हे।
आइए कोशिकाओं के बारे में महत्त्वपूर्ण बाते जाने-
प्रत्येक जीव में कोशिकाओं में भिन्नता होती है। कुछ जीव केवल एक कोशिका के बने होते हैं जैसे जीवाणु (बैक्टीरिया), अमीबा आदि। इन्हें एक-कोशिकीय जीव कहते है।
० अन्य जीव बहुत-सारी कोशिकाओं के बने होते हैं जेसे मक््खी, मनुष्य, हाथी, घोड़ा आदि उन्हें बहु-कोशिकीय जीव कहते हैं।
० जितना बड़ा जीव उसमें उतनी ही ज्यादा कोशिकाएं होती हैं। चूहे से ज्यादा बिल्ली में, बिल्ली से ज्यादा गाय में और हाथी में तो और भी ज्यादा कोशिकाएं होती हैं।
० गुलाब के पौधे से ज्यादा केले के पौधे में, उससे ज्यादा अमरूद के वृक्ष में और बरगद के विशाल वृक्ष में तो और भी ज्यादा कोशिकाएं होती हैं।
(iii) गतिशीलता
हर प्राणी चलता-फिरता है। घोड़ा, गाय, कीट-पतंगे, पक्षी आदि सभी स्वयं की गति से चलते-फिरते हैं। हम अपने शरीर के अलग-अलग भागों को भी हिला-डुला सकते हैं। पौधों में भी अपनी गतिशीलता होती हे। वे एक ही स्थान पर खड़े-खड़े हिलते-डुलते या गतियां करते हैं। सूरजमुखी का फूल सूर्य के स्थान-परिवर्तन के साथ उसी दिशा में घूमता जाता है। पत्तियां प्रकाश की ओर मुड जाती हैं। जड़ें पानी की ओर स्वयं मुड॒ती जाती हैं। ये सब गतियां भीतर से होती हैं, बाहर से कोई नहीं चलाता। कुछ पौधों की पत्तियां रात में बंद हो जाती हैं और दिन में खुल जाती हैं। लाजवंती (छुई-मुई) की पत्तियां छूने से मुरझा कर लटक जाती हैं और कुछ समय बाद फिर से सीधी हो जाती हैं। क्या साइकिल स्वयं चल सकती हे? घड़ी में हम चाबी न भरें या बैटरी न लगाएं तो क्या वह स्वयं चल सकती हे? नहीं, हर निर्जीव वस्तु को चलाने केलिए बाहर से शक्ति देनी पड़ती हे।
(1) सजीव वस्तुओं को भोजन चाहिए हर प्राणी को भोजन चाहिए। यदि आपको कभी कुछ समय के लिए भूखा रहना पड़े तो आपको कमजोरी सी महसूस होती है। जो भोजन आप करते हैं उसी से शरीर में हड्डी, मांस, रक्त आदि बनते हैं और शरीर की वृद्धि होती है। यदि प्राणी को बहुत समय तक भोजन न मिले तो वह कमजोर हो जाएगा और उसकी मृत्यु हो जाएगी। पेड-पौधे अपना भोजन स्वयं बनाते हैं। कुछ पशु, पौधों या पौधों के अंश खाते हैं वहीं कुछ पशु तो मांसाहारी होते हैं, उन्हें भोजन उन जानवरों से मिलता है, जो स्वयं पौधों को खाकर बड़े होते हैं। पर क्या आपने कभी सोचा है हरे पौधों का भोजन क्या हे? वे मिट्टी से पानी और हवा से कार्बन डॉइऑक्साइड लेकर सूर्य की रोशनी में अपना भोजन स्वयं बनाते हैं। यदि इनमें से एक भी चीज न मिले तो वे मर जाते है।
चित्र 4.3 प्रकाश संश्लेषण
क्या आपको साइकिल को, या किताब को भोजन चाहिए? नहीं, न तो उनमें वृद्धि होती है और न ही उनमें गति के लिए अपनी शक्ति होती है।
(४) सजीव वस्तुओं मे श्वसन या सांस लेना (ऑक्सीजन के उपयोग से ऊर्जा पैदा करना) हम सभी रात-दिन लगातार सोस लेते और छोड़ते रहते हैं। अधिकतर प्राणी भी इसी तरह हवा को भीतर ले जाते और छोड़ते हैं। पानी में रहने वाले प्राणी जेसे मछली, लगातार पानी को भीतर ले जाकर निकालते रहते हैं, इसमें से वे पानी में घुली आक्सीजन को सोख लेते हैं। इस आक्सीजन को, चाहे वह हवा से प्राप्त हो और चाहे पानी से, कोशिकाओं में इस्तेमाल करके ऊर्जा या ताकत पैदा करते हैं। कम ऊर्जा से वे अपने काम करते हैं। कोशिकाओं में इस दौरान बनने वाली कार्बन डाइआक्साइड को बाहर छोड़ देते हैं। सांस लेने की प्रमुख क्रियाएं पौधों और प्राणियों में समान होती हेै। पौधे अपनी ऑक्सीजन पत्तियों
चित्र 4.4 सजीव वस्तुओं में सांस लेने की प्रक्रिया (श्वसन प्रक्रिया)
और तनों पर बने सूक्ष्म छिद्रों द्वारा भीतर लेते हैं। इस तरह प्राणी श्वसन क्रिया में ऑक्सीजन अंदर लेते हैं और कार्बन डॉई आक्साइड को बाहर छोड़ते हैं।
(i) जीवित वस्तुएं अपशिष्टों को बाहर निकालती रहती हैं (उत्सर्जन)
जीवित वस्तुओं के शरीर में होने वाली शरीरिक क्रियाओं के फलस्वरूप अनेकों ऐसे पदार्थ बनते हैं, जो विषैले होते हैं और जिन्हें शरीर से बाहर निकालना अत्यन्त आवश्यक होता है। प्राणियों के मूत्र में पानी के अतिरिक्त अनेक अपशिष्ट पदार्थ होते हैं। त्वचा से निकले पसीने में भी कुछ गंदगी बाहर निकल जाती है। पौधों में गोंद का निकलना, पुरानी पत्तियों का सूखकर झड़ना आदि भी उत्सर्जन के ही उदाहरण हैं। निर्जीव वस्तु जैसे मेज, कुर्सी को न तो सांस लेने की जरूरत होती है और न ही अपशिष्टों को निकालने की।
(v1) जीवित वस्तुओ में प्रतिक्रियाशीलता
अगर आपका हाथ अचानक कहीं कांटे से अथवा अनजाने में गर्म तश्तरी या तवे से छू जाए तो आप अपने हाथ को तुरंत पीछे हटा लेते हैं। चुभन या गर्मीया कोई भी ऐसी स्थिति, जिससे शरीर प्रतिक्रिया करे, उद्दीपन कहलाती हे, तथा उसके प्रति होने वाली क्रिया को प्रतिक्रिया कहते हैं। इस प्रकार की अनेकानेक प्रतिक्रियाएं सभी जीवों में होती हैं। पौधों में प्रकाश की ओर झुकना या जड़ों का पानी की ओर बढ़ना, ये सभी उद्दीपनों के प्रति अनुक्रियाएं होना है। उद्दीपन मुख्य रूप में तापमान, प्रकाश, ध्वनि, स्पर्श तथा रसायन के विरूद्ध होता है। एक बात सोचिए। जब आप स्वादिष्ट भोजन को देखते हैं अथवा उसकी महक सृंघते हैं तो कई बार मुंह में पानी आ जाता है। क्या इसे भी आप उद्दीपनों के लिए अनुक्रिया कहेंगे?
(viii) जनन अथवा संतान पैदा करना हर जीवित वस्तु अपने ही जैसे नयी संतान या पीढ़ी को पैदा करती है। गाय बछडे को जन्म देती है, पक्षी अंडे देते हैं, जिनमें से बच्चे निकलते हैं, मेंढक-मछली भी अंडे देते हैं। यदि किसी प्रजाति के जीव संतान पैदा न करें तो वह प्रजाति ही समाप्त हो जाती है। पौधों में बीज बनते हैं, उन बीजों से उसी प्रकार के नए पौधे बनते हैं। कुछ पौधों में उनकी शखाओं या जड़ों से नए पौधे बनते हैं। सरलतम एक-कोशिकीय जीव भी, जेसे बैक्टीरिया अथवा अमीबा किसी न किसी विधि से नयी संतान अवश्य पैदा करते हैं। क्या कोई निर्जीव वस्तु अपने ही जैसी वस्तु बना सकती है? नहीं। एक ईट से दो ईटें नहीं बन सकतीं। आप अगर एक ईट को बीच से तोड़ दें तो दो लेकिन छोटी ईटें बन जाएंगी, परन्तु उनमें वृद्धि होकर भी सामान्य आकार प्राप्त नहीं हो सकता। यह ठीक उसी प्रकार हे जैसे एक साइकिल दूसरी साइकिल को जन्म नहीं देती, एक कुर्सी दूसरी कुर्सी को जन्म नहीं दे सकती, आदि।
(1x) जीवित वस्तुओं की निश्चित जीवन-अवधि होती है
हर जीवित वस्तु का जन्म होता है, वह आकार में बढ़ती है और अपनी जीवन क्रियाएं पूरी करती-करती बूढ़ी हो जाती और मृत्यु को प्राप्त होती हैं। अलग-अलग जीव अलग-अलग समय तक जीवित रहते हैं। कुछ का जीवन काल छोटा होता है और कुछ का बड़ा। जीवन काल के कुछ उदाहरण इस प्रकार हैं :
बैक्टीरिया (जीवाणु) - लगभग 20 मिनट
चूहा - लगभग 2-3 वर्ष
कुत्ता - लगभग 12-14 वर्ष
मनुष्य - लगभग 70-80 वर्ष
बरगद का वृक्ष - लगभग 200 वर्ष
कछुआ - लगभग 400 वर्ष
सिकोया वृक्ष - लगभग 3000-4000 वर्ष
निर्जीव वस्तु का आयुकाल नहीं होता। उदाहरण के लिए कांच का गिलास हमेशा के लिए बना रहा सकता है या फिर किसी भी क्षण ठूट सकता है।
पृथ्वी पर हजारों-लाखों प्रकार की जीवित वस्तुएं हैं। ये आकार में बहुत बड़े से लेकर छोटे और अत्यंत छोटे आकार की हो सकती हैं। इनका रंग-रूप भी अलग-अलग होता हे। कुछ बच्चे देते हैं, कुछ अंडे। और कुछ जीव जैसे अमीबा या बैक्टीरिया तो बस यूं ही दो या अधिक टुकड़ों में बंटकर संतानों को जन्म देते हैं। कुछ पंखों से हवा में उडते हैं तो कुछ पेड़ों पर छलांगे लगाते हैं और कुछ गहरे समुद्र में रेंगते हैं। कुछ जीव रेगिस्तान की रेत में रेंगते हैं तो कुछ अन्य जीवों के शरीर के भीतर घुस कर उन्हें भीतर से खोखला करते रहते हैं। जीव-जंतुओं की इस प्रकार की विविधता की झलक आप हर रोज अपने ईर्द-गिर्द भी देखते हैं। वृक्षायुर्वेद नाम प्राचीन पुस्कत में जीवों के बारे में विस्तार से लिखा है।
4.3 सजीव वस्तुओं का वर्गीकरण
पृथ्वी पर इतनी ज्यादा संख्या में अलग-अलग रंग-रूप की जीवित वस्तुओं को उनमें परस्पर समानताओं के आधार पर कुछ खास वर्गो में विभाजित किया जा सकता है। आमतौर पर आप कह सकते हैं कि जीवित वस्तुओं के दो वर्ग हैं पौधे और प्राणी। आइए इनके बारे में जाने-
i - पौधे वे जो जमीन में स्थिर जमे रहते हैं और हरी या अन्य रंग की पत्तियों वाले होते है ।
ii. - प्राणी वे जीव हैं, जो चल फिर सकते हैं और अन्य जीवों (पौधों अथवा प्राणियो) को खाकर जीवन निर्वाह करते हैं।
चित्र 4.5 सजीव सृष्टि में विविधता - एक झलक
iii. एक तीसरा वर्ग आप उनका कह सकते हैं, जो न हरे पौधे हैं और न ही गतिशील प्राणी। इनका एक उदाहरण हे खाने-पीने की चीजों पर लगने वाले सफेद रेशों को फफूदी (कवक) या फिर गली-सड़ी जगहों पर उगने वाले कुकुरमुत्ते या खाने के लिए उगायी जाने वाली खुम्बी (मशरूम)।
¡v. चौथा वर्ग ऐसे सूक्ष्म जीवों का है, जिनका शरीर केवल एक कोशिका का बना होता है जैसे तालाबों की सतह पर तेरने वाले हरे रंग के धागे जैसे शेवाल और सड॒ते पानी में रहने वाले अमीबा।
v. पाँचवें वर्ग में आते हैं और भी सूक्ष्म एक-कोशीय बैक्टीरिया या जीवाणु। ये सैकड़ों की संख्या में एक सुई की नोक समान स्थान पर समा सकते हैं। पुराने समय से ही जीवों को अलग-अलग प्रकार से वर्गीकृत किया जाता रहा है। आधुनिक विज्ञान में वर्गीकरण का आरम्भ कार्ल लिनियस ने 1735 में किया था। परंतु वर्तमान में इसमें कुछ संशोधन करके इन्हें पांच जगत में बांटा जाता है। इन्हें सरलतम से जटिलतम क्रम में इस प्रकार रखा गया हे :
1. मोनेरा जगत - जीवाणु (बैक्टीरिया), विषाणु आदि।
(Monera Kindgdom)
2. प्रोटिस्टा जगत - शैवाल, अमीबा आदि।
(Protista Kindgdom)
3. फंजाई जगत - कवक जगत - फणफ्ूद,
(Pungi Kindgdom) खुम्भी (मशरूम) आदि।
4. प्लांटी जगत - पादप जगत - सभी पौधे
(Plantae Kindgdom) जैसे-नीम, आम, गुलाब, गैंदा आदि।
5. ऐनिमैलिया जगत - प्राणी जगत - सभी प्राणी जैसे कुत्ता,
(Animalia Kindgdom) बिल्ली, जूं, बंदर, चिडिया, मनुष्य आदि।