Difference between revisions of "वेदों में जल संरक्षण"

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होने लगती है और छोटी-छोटी बूंदों में बदलने लगती है, इस प्रकार वे बादलों का रूप लेती हैं। फिर एक स्थिति ऐसी आती है कि ये छोटी-छोटी बूंदें मिलकर बड़ी-बड़ी बृंदें बनाती है और फिर बारिश होने लगती है। बारिश के इस पानी में सागरों और महासागरों में पायी जाने वाली अशुद्धियाँ नहीं होती हें। बारिश के बाद इस जल का कुछ भाग तो जमीन सोख लेती है और बाकी भाग नदी-नालों के मार्ग से झीलों और सागरों में चला जाता हे।
 
होने लगती है और छोटी-छोटी बूंदों में बदलने लगती है, इस प्रकार वे बादलों का रूप लेती हैं। फिर एक स्थिति ऐसी आती है कि ये छोटी-छोटी बूंदें मिलकर बड़ी-बड़ी बृंदें बनाती है और फिर बारिश होने लगती है। बारिश के इस पानी में सागरों और महासागरों में पायी जाने वाली अशुद्धियाँ नहीं होती हें। बारिश के बाद इस जल का कुछ भाग तो जमीन सोख लेती है और बाकी भाग नदी-नालों के मार्ग से झीलों और सागरों में चला जाता हे।
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== कठोर जल एवम मृदु जल ==
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वर्षा का जल शुद्ध होता है परन्तु पृथ्वी पर पहुँचकर इसमें कई प्रकार की अशुद्धियाँ तथा लवण घुल जाते हैं, जिसके कारण जल के गुण भी बदल जाते हैं। समुद्र के जल को देखें तो इसमें अन्य लवणों की अपेक्षा साधारण नमक अधिक मात्रा में घुला होता है, जिसके कारण समुद्री जल का स्वाद अत्यन्त नमकीन (खारा) होता है। जल के घुलनशील लवणों की उपस्थिति के आधार पर जल के दो प्रकार होते हैं।
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=== अनुभव ===
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* आपको क्या करना है : तालाब और नल के जल का अध्ययन करना।
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* आपको क्या चाहिए : प्लास्टिक के दो नांद, जल के दो नमूने-एक नल से और दूसरा तालाब से लिया गया, थोड़ा साबुन का चूर्ण
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* आपको कैसे करना है : जल के दोनों नमूनों को अलग-अलग नांदों मेंडालिए। प्रत्येक नमूने में दो-दो चम्मच साबुन पाउडर डालकर हाथ से अच्छी तरह हिलाइए।
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* आपने क्या देखा : नल से प्राप्त जल के नमूने में काफी झाग बनती हे और ये देर तक बने रहते हैं। तालाब से प्राप्त जल में या तो झाग बनती नहीं, थोडे बहुत बनती भी हैं तो शीघ्र नष्ट हो जाते हैं।
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निष्कर्ष : तालाब का जल कठोर ओर नल का जल मृदु हे।
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ऐसा जल जिसमें लवण आदि नहीं होते और उसमें साबुन के साथ आसानी से झाग पैदा हो जाती है, ऐसे जल को मृदु जल कहते हैं। वर्षा का जल एवं आसुत जल मृदु जल के उदाहरण हैं।
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यदि किसी जल में साबुन घिसने पर झाग पैदा नहीं होती हे। साबुन से दहीं जैसा सफेद पदार्थ बन जाता है तो उसे कठोर जल कहते हैं। ऐसा इसमें उपस्थित मेग्नीशियम और कैल्शियम के लवणों के कारण होता है। समुद्र का जल, झील का जल तथा खुले कुँओं से प्राप्त जल प्रायः कठोर जल होता है।
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=== जल की कठोरता दूर करने के उपाय ===
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कठोर जल में साधारण नमक अथवा कैल्शियम के लवणों के घुले होने के कारण जल का स्वाद अच्छा होता है। इसलिए इसे पीने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। हालांकि इसका उपयोग औषधि अथवा रसायनिक क्षेत्र के उद्योगों में नहीं किया जा सकता, क्योंकि वहां ऐसे शुद्ध जल की आवश्यकता होती है जिसमें कोई भी अशुद्धि न घुली हो।
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कठोर जल कपडे धोने के लिए पूर्णतः अनुपयोगी होता है। इससे खाना पकाने एवं खाने के बर्तन भी खराब हो जाते हैं क्योंकि इन बर्तनों में कठोर जल में घुले हुए लवणों की परत जम जाती है। क्या आपने ध्यान दिया हे कि जल गर्म करने वाली इमर्सन रॉड के कुण्डलिय भागों पर एक सफेद रंग की परत जम जाती है। यह सफेद परत जल में घुली हुई अशुद्धियों की ही होती है।
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जल की कठोरता उसमें घुले लवणों के आधार पर दो प्रकार की होती हे :
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* अस्थायी कठोरता
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* स्थायी कठोरता।
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1. अस्थायी कठोरता : ऐसी कठोरता जो जल में घुले कैल्शियम एवं
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मैग्नीशियम के बाई-कार्बोनेट लवणों के कारण होती हे, अस्थायी कठोरता
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कहलाती है। इस प्रकार की कठोरता को जल को उच्च ताप पर उबालकर
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आसानी से दूर किया जा सकता है। गर्म करने से बाई-कार्बोनेट लवण
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अघुलनशील कार्बोनेट लवणों के रूप में अवक्षेपित हो जाते हैं। लवण नीचे बैठ
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जाते हैं और फिर इनको छानकर आसानी से अगल किया जा सकता हे।
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2. स्थायी कठोरता : ऐसी कठोरता जल में कैल्शियम एवं मेग्नीशियम में
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विज्ञान, स्तर-'क'
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क्लोराइड और सलफेट लवणों के घुले होने के कारण होती हे। इसको साध
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रणतः उबालकर दूर नहीं किया जा सकता। इसको विशेष रसायनिक उपचारों
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द्वारा दूर करते हैं, जैसे कि -
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(क) धावन (वाशिंग) सोडा द्वारा : जब कठोर जल में धावन सोडा मिलाते
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हैं, तो उसमें सल्फेट तथा क्लोराइड लवणों की घुली हुई अशुद्धियाँ अघुलनशील
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कार्बोनेट लवणों में बदल जाती हैं। अघुलनशील लवणों को छानकर अलग कर
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लेते हैं। इस प्रकार इन अशुद्धियों को दूर कर लेते हैं। निम्नांकित पर ध्यान
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दीजिए।
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सोडियम कार्बोनेट मैग्नीशियम क्लोराइड
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सोडियम क्लोराइड मेग्नीशियम कार्बोनेट
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(घुलनशील) (अघुलनशील)
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जल में अशुद्धि के रूप में यदि सोडियम क्लोराइड (साधारण नमक) घुला
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होता है तो उससे जल में कठोरता उत्पन्न नहीं होती है।
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(ख) परम्यूटिट विधि द्वारा (जियोलाइड के उपयोग से) : जियोलाइट में
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सोडियम और एलुमीनियम के ऑक्साइड बालू के कण और पानी होता है। जब
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कठोर जल को परम्यूटिड (जियोलाइट) के फिल्टर से गुजारते हैं तो लवणों
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के कैल्शियम एवं मैग्नीशियम आयन जियोलाइट से जुड़ जाते हैं और
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जियोलाइट के सोडियम आयन पानी में चले जाते हैं। इस प्रकार प्राप्त जल
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कठोर नहीं होता है।
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1. यदि मेरी बाल्टी का पानी साबुन के साथ झाग न बनाकर, दही जेसा
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पदार्थ बनाता हे तो वह (क) मृदु जल है या कठोर जल (ख) तालाब
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से लिया गया होगा या ढके हुए कुएं से।
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मुक्त बेसिक शिक्षा - भारतीय ज्ञान परम्परा
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टिप्पणी
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टिप्पणी
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4.
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5.
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यदि जल की कठोरता उबालने से दूर हो जाये तो :
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(क) यह स्थायी कठोरता कहलायेगी या अस्थायी?
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(ख) उस जल में कैल्शियम क्लोराइड घुला होगा या कैल्शियम
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बाई-कार्बोनेट?.
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कठोर जल को हम निम्नलिखित में से किस-किस उपयोग में ला सकते
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हैं:
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(क) कपडे धोने में (ख) पीने के
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(ग) उद्योगों के (घ) औषधि निर्माण में।
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अस्थायी कठोरता दूर करने की दो विधियों क॑ नाम लिखिए।
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जल में नमक घोलने से क्या यह कठोर जल हो जाता हे?
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अपने दैनिक जीवन में हम अधिकतर नल या कुएं से जल का उपयोग करते
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हैं। क्या आप जानते हैं कि वह शुद्ध जल होता है या नहीं? यह जानने के लिए
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आइए, शुद्ध जल के गुणों का अध्ययन करते हैं :
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1.
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शुद्ध जल रंगहीन एवं पारदर्शी द्रव है परन्तु आपने देखा होगा कि
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कभी-कभी गहरे जल को देखने पर वह नीला सा प्रतीत होता हे। ऐसा
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प्रतीत होना प्रकाश के प्रकीर्णन के कारण होता हे।
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शुद्ध जल गन्धहीन होता हे। दूषित जल से दुर्गन्ध आती हे। यह उसमें
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घुली गंदगी के कारण होता है।
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शुद्ध जल स्वादहीन होता है, परन्तु किसी-किसी स्थान का पानी स्वादिष्ट
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होता है। क्या आप जानते हैं, ऐसा क्यों? ऐसा उसमें घुली हुई गेसों तथा
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कुछ खनिज लवणों के कारण होता है।
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विज्ञान, स्तर-'क'
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झीलों एवं तालाबों के रुके हुए जल में रोगाणु अनुकूल परिस्थितियां पाते
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हैं। हवा तथा मिट्टी में उपस्थित ये रोगाणु नदियों के पानी के माध्यम से
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एक जगह से दूसरी जगह पहुँच जाते हैं। ऐसा होने से जल प्रदूषित हो
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जाता है और पीने योग्य नहीं होता है। अतः जल को प्रयोग करने से पहले
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उसकी जाँच अवश्य कर लेनी चाहिए।
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टिप्पणी
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4. जल गर्म करने पर पतला तथा ठण्डा कराने पर गाढा नहीं होता। यदि जल
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गर्म करने पर पतला तथा ठण्डा करने पर गाढा होने लगे तो कल्पना
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कीजिए जीवों एवं पादपों का क्या होगा?
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5. जल दृश्य-प्रकाश के लिए पारदर्शी होता है। प्रकाश-किरणें जल में बहुत
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गहराई तक जा सकती है। इसीलिए हम जल में गहराई तक देख सकते
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हैं। अनेक जलीय जीवों का जीवन जल में सम्भव हे। बताइए जल
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पारदर्शी न होता तो क्या होता?
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6. जल बहुत से पदार्थो के लिए एक अच्छा विलायक है। इसीलिए हम
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इसका उपयोग औषधि निर्माण एवं अनेक रासायनिक उद्योगों में करते हेै।
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जल यदि विलायक न होता हो क्या होता? बताइए।
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7. शून्य डिग्री तापक्रम तक ठण्डा करने पर जल बफ (ठोस) में बदल जाता
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है। बर्फ गर्म होने पर पुनः शून्य पर ही द्रव अवस्था में बदलने लगती है।
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यह ताप जिस पर बर्फ पुनः जल में बदलती है, बर्फ का गलनांक
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कहलाता है। परन्तु जल में अशुद्धियाँ घुली होने के कारण बर्फ का
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गलनांक घट जाता है।
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8. शुद्ध जल को ( ) तक गर्म करने पर वह उबलने लगता हे और गैसीय
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अवस्था में (भाप में) बदल जाता है। इस ताप को जल का क्वथनांक
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कहते हैं। शुद्ध जल के लिए यह ( ) होता है। परन्तु जल में अशुद्धियाँ
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घुली होने के कारण क्वथनांक बढ़ जाता है। इसका मतलब हे कि अशुद्ध
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पानी ( ) से कुछ अधिक तापक्रम पर उबलता हे।
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मुक्त बेसिक शिक्षा - भारतीय ज्ञान परम्परा EE
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9१. साधारणतः ठोस अवस्था में पदार्थ का घनत्व उसकी द्रव अवस्था के
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घनत्व से अधिक होता है। लेकिन जल के ठोस रूप, बर्फ का घनत्व, द्रव
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जल से कम होता हे। इसी कारण बर्फ जल के ऊपर तेरती हे।
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सामान्य ताप (कमरे का ताप) ( ) से अधिक होने पर पिघलने पर प्राप्त
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जल तापक्रम साधारणतः बढ़ता जाता हे और ( ) पर इसका घनत्व अधि
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कतम हो जाता है। क्योंकि ( ) से अधिक तापक्रम तक और गर्म करने
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पर जल का घनत्व घटने लगता है। अतः () से ऊपर और नीचे जल का
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घनत्व कम हो जाता है। इसी गुण के कारण ठण्डे प्रदेशों में जाडे के दिनों
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में बर्फ जमने पर भी वहाँ पर जलीय जीव जीवित बने रहते हैं।
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10. जल सर्वविलायक होता है, क्योंकि पानी में अधिकतर पदाउसमक जमत)
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विद्युत का कुचालक होता है। अर्थात आसुत जल से विद्युत प्रवाहित नहीं
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हो सकती हे।
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5.5 जल का शोधन
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पृथ्वी पर उपलब्ध सम्पूर्ण जल पीने योग्य नहीं है। पीने योग्य जल पारदर्शक,
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रंगहीन, गंधहीन तथा कुछ लवण तथा गैसों के घुले होने के कारण स्वादिष्ट
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द्रव होता है। यदि इसमें कोई अशुद्धि नहीं घुली हो तो शुद्ध जल स्वादहीन होता
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है। परन्तु झील, नदी, कुओं तथा अन्य स्रोतों से प्राप्त जल शुद्ध नहीं होता।
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इसमें कुछ अवांछित पदार्थ घुले होते हैं तथा इसमें कुछ हानिकारक सुक्ष्मजीव
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भी होते हैं। अब सवाल उठता हे कि ऐसे अशुद्ध जल को शुद्ध कैसे किया
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जाए? इसके लिए हम कई विधियां अपनाते हैं। आइए उन विधियों का
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अध्ययन करें :
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1. आसवन विधि : आसवन वह क्रिया है, जिसके द्वारा जल का शोधन
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आसानी से किया जा सकता हे। जल की कुछ मात्रा एक प्याली में लें और
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उसके उसके क्वथनांक तक गर्म करें। गर्म करने पर जल में मौजूद जीवाणु
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विज्ञान, स्तर-'क'
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चित्र 5.1 जल शोधन
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और रोगाणु नष्ट हो जाते हैं एवं जल, वाष्प में परिवर्तित हो जाता है। जल में
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लम्बित तेल के कण एवं उसमें घुले खनिज लवण प्याली में ही रह जाते हे।
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यह जल वाष्प जब ठण्डे जल से भरे कंडेन्सन की नली से गुजरती हे तो
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संघनित होकर शुद्ध पानी में परिवर्तित हो जाती हे।
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आसुत जल, शुद्धतम्‌ जल होता है। इसका उपयोग औषधि निर्माण, प्रयोगशाला
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के घोल बनाने में तथा कार की बैट्रियों में किया जाता है। स्वादहीन होने के
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कारण इसका उपयोग पीने के लिए नहीं किया जा सकता हे।
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2. छानना : जल में घुली अशुद्धियाँ जैसे धूल के कण, बालू, पौधों के
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अवशेषों आदि को छानकर अलग करते हैं। इन्हें छानने की एक विशेष विधि
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में चारकोल, महीन कणों वाली बालू, मोटे कण वाली बालू और कुछ कंकडों
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की परतों को किसी बर्तन में बिछाकर गंदे पानी को इसमें भर देते हैं। इस बर्तन
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की तली में एक छेद होता है, जिसमें रुई लगा देते हैं। जल इन परतों से गुजरता
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हुआ छिद्र में लगी बालू से होता हुआ बाहर निकलता है तो उपर्युक्त अशुद्धियां
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इन परतों में ही रह जाती हैं और स्वच्छ पानी निकलता है, जिस दूसरे बर्तन
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में भर लेते हैं। इस जल को जीवाणु रहित करने के लिए या तो उबाला जाता
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है अथवा क्लोरीरीकरण किया जाता हे।
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मुक्त बेसिक शिक्षा - भारतीय ज्ञान परम्परा
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टिप्पणी
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टिप्पणी
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जल
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क्लोरीनीकरण Ao
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3. क्लोरीनीकरण : जल का क्लोरीनीकरण करने के लिए जल में क्लोरीन
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की गोलियां डाली जाती हैं। क्लोरीन प्रायः सभी रोगाणुओं को नष्ट कर देती
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हैं। कभी-कभी आपके नल के पानी से कुछ गन्ध आती प्रतीत होती है। वह
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इस पानी के क्लोरीनीकरण के कारण होती हे।
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क्लोरीरीकरण Oo
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तरण ताल (Swiming Pool) के जल को प्रायः क्लोरीरीकरण द्वारा ही शोधि
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त किया जाता है।
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4. पोटैशियम परमैगनेट मिलाकर : क्या आपने देखा है कि कभी-कभी
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कुओं के पानी को शुद्ध करने के लिए उसमें गुलाबी रंग के पोटैशियम
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परमैगनेट के क्रिस्टल डाल दिये जाते हैं। जब पौटैशियम परमैगनेट कुएं के जल
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में घुल जाता है तो पोटेशियम परमैगनेट का विलयन बन जाता हे, जो लगभग
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सभी कीटाणुओं को मार देता है और इस प्रकार जल जीवाणुओं से मुक्‍त हो
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जाता है।
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1. जल का शुद्धिकरण क्यों आवश्यक होता हे?
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2. जल के आसवन एवं छानने की विधियों में क्या अंतर हे?
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3. कभी-कभी कुँओं मे पोटेशियम परमेगनेट क्यों डाला जाता हे?
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5.6 जल प्रदूषण
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यदि जल में अवांछित अशुद्धियाँ मिल जाती हैं तो जल पीने लायक नहीं रह
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जाता है। ऐसे जल को प्रदूषित जल कहते हैं। आजकल जल-प्रदूषण की
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समस्या इतनी गंभीर होती जा रही है कि नदी, समुद्र, झील, तालाबों आदि का
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पानीं यहाँ तक कि भूमिगत जल अत्यन्त प्रदूषित होता जा रहा है।
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क्या आपने कभी सोचा है कि जल-प्रदूषण क्यों हो रहा है और इससे
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क्या-क्या हानियां हो रही हैं? आइए, यह जानने की कोशिश करते हेै।
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विज्ञान, स्तर-'क'
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चित्र 5.5 जल प्रदुषण
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जल प्रदूषण के कारण
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जल-प्रदूषण नदियों के पानी में अवांछित अशुद्धियाँ मिलने के कारण होता है।
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प्रदूषण का विस्तार एवं उसकी मात्रा नदियों के प्रवाह मार्ग, उनमें मिलने वाले
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मलमूत्र के गंदे नालों तथा उनमें उद्योगों के अपशिष्ट पदार्थो के डालने की
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मात्रा पर निर्भर करता है।
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झीलों, तालाबों तथा रुके हुए पानी के कुछ हानिकारक जीवाणु एवं मच्छर जैसे
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कीट अपना आवास बना लेते हैं। उनमें कपड़े धोने तथा पशुओं को नहलाने
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से भी जल प्रदूषित होता है। समुद्र में जलीय जीवन जीने वाले पादप एवं
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जन्तुओं के मृत शरीर एवं अपशिष्ट पदार्थों और दूसरी अवांछित अशुद्धियों के
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कारण जल बहुत प्रदूषित हो गया है। इसीलिए समुद्री जल के शुद्धिकरण के
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लिए कुछ प्रयास करने पड़े हैं।
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झीलों और तालाबों का रुका हुआ पानी, नदियों की बहती धाराओं तथा ढके
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हुए कुओं की अपेक्षा अधिक प्रदूषित होता है।
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प्रदूषित जल से हानियाँ
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1. प्रदूषित जल से अनेक संक्रामक रोग जैसे-हेैजा, दस्त, पेचिश, टायफाइड
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इत्यादि हो जाते हैं।
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मुक्त बेसिक शिक्षा - भारतीय ज्ञान परम्परा
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टिप्पणी
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टिप्पणी
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2. प्रदूषण पानी को मैला बना देता है, जिससे यह कपडे धोने इत्यादि किसी
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कार्य में प्रयोग नहीं किया जा सकता।
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3. जल में शेवाल दुर्गन्ध पैदा कर देते हैं तथा उसका रंग गंदला कर देते हे।
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शैवाल जलीय जीवन को असुरक्षित बना देते हैं (जल में कॉपर सल्फेट
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मिलाकर उसे शैवाल रहित किया जा सकता है)।
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जल प्रदूषण की रोकथाम
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रोकने ~
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जल ही जीवन है। अतः जल प्रदूषण को रोकने के लिए लोगों को जागरूक
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होना चाहिए। प्रदूषण के कारकों को रोकने के लिए एक-सा कानून बनाया
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जाना चाहिए।
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नदियों में छोडे गये गंदे नालों को रोकना चाहिए। हानिकारक अशुद्धियों को
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चाहिए
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उपचारित करने Md लगाने
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उपचारित करने के संयंत्र लगाने ।
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मलमूत्र को उपचारित करने के लिए उसे बड़े-बडे टेंकों में भर कर तेजी से
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हिलाया जाता हे। इसे चलाने से इसमें होकर हवा प्रवेश कर जाती हे, जिससे
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हानिकारक यौगिकों का आक्सीकरण हो जाता हे। इस प्रक्रिया में हानि रहित
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पदार्थ बन जाते है।
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क्या आप जानते हैं कि दिल्ली और अन्य महानगरों में जल को उपचारित करने
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के संयंत्र लगे हुए है? ये संपन्न वहां होते हैं जहाँ शहर के नाले नदियों में गिरते
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हैं।
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औद्योगिक अपशिष्टों में विषैले पदार्थ होते हैं। उनको रसायनिक विधियों द्वार
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निकाला जा सकता है। जल को प्रदूषित होने से रोकने के लिए बिना परिशोधि
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त किये औद्योगिक अपशिष्टों को नदियों में छोड़ने की अनुमति नहीं मिलनी
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चाहिए।
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कुओं को ढककर पानी को प्रदूषण से बचा सकते है।
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विज्ञान, स्तर-'क'
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संरक्षण का क्या मतलब हे? जैसा कि आप जानते होंगे कि संरक्षण का अर्थ
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है-सावधानी पूर्वक, मितव्ययता के साथ सदुपयोग करना। हम सब जानते हैं
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कि, वैसे तो, पृथ्वी पर बहुत जल है, फिर भी पीने योग्य जल की कमी है।
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अतः लोगों को जल के न्यायसंगत सदुपयोग के लिए जागरूक रहना चाहिए।
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हमको भी पेयजल के संरक्षण के अथक प्रयास करने चाहिए। जहाँ तक सम्भव
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हो कम से कम जल से काम चलायें तथा फालतू में जल को बर्बाद न करें।
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कृषि की सिंचाई के लिए अधिक जल की आवश्यकता होती हे। इसलिए
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सिंचाई के क्षेत्र में भी यदि हम अपनी पारंपरिक विधियों, जैसे तालाबों आदि
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में जल एकत्रित करें और उसका उपयोग करें तो अच्छा होगा।
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हमारी वैदिक संस्कृति में जल संरक्षण पर बहुत बल दिया गया हे। ऋग्वेद का
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ऋषि कहता है कि “हम सब बादलों (मेघों) के जल को तथा साथ ही दूसरी
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प्रकार के जलों के सुख को प्राप्त करते है। हे घावा और भूमि देव! हमसे इसके
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प्रति बुरे कर्मो से दूर रखें-
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“ आ शर्म पर्वतानामोतापां वृणीमहे
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घावाक्षामारे अस्मद्रपस्कृतम्‌।”
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(ऋग्वेद 8.18.16)
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1. जल-शुद्धिकरण में प्रयुक्त होने वाले दो कीटाणु नाशकों के नाम लिखिए।
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2. जल को प्रदूषित करने वाले चार कारकों के नाम लिखिए।
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3. जलं प्रदूषण रोकने के लिए आप कौन-कौन से चार कदम उठायेंगे?
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4. प्रदूषित जल से होने वाले चार रोगों के नाम लिखिए।
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मुक्त बेसिक शिक्षा - भारतीय ज्ञान परम्परा
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टिप्पणी
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Revision as of 08:47, 19 November 2022

जल भी पञ्चमहाभूतों में से एक है। हमारी पृथ्वी का लगभग तीन चौथाई भाग पानी है, फिर भी पानी की समस्या बढ़ती ही जा रही हे। क्या आप जानते हैं कि पानी की समस्या क्यों बनी रहती है? पानी अर्थात जल आता कहाँ से है? और जल हमारे लिए क्यों जरूरी हे?

अब तो एक समस्या और पैदा हो रही है कि जो भी काम में आ सकने वाला जल है, वह जहरीला होता जा रहा है। पीने योग्य जल की निरंतर कमी होती जा रही है। क्या आप जानते हैं कि इन सब का कारण क्या हे? इस जल प्रदूषण को रोकने में क्या हमारा भी कुछ योगदान हो सकता है? हमारी वैदिक संस्कृति में जल को बहुत महत्व दिया गया है। जल संरक्षण हमारे संस्कृति का एक मूल घटक रहा है। आइए, इस पाठ में जल के संघटन से लेकन इसके स्रोत, गुण, उपयोग तथा प्रदूषण आदि का अध्ययन करते हैं।

उद्देश्य

० जल की आवश्यकता और उपयोगिता को जान पाने में;

० जल के विभिन्न रूपों के को समझ पाने में;

० जल प्रदुषण और संरक्षण को समझ पाने में; और

० वैदिक संस्कृति में जल के महत्व को सतही तौर पर समझ पाने में।

जल को आवश्यकता

आपने यह जरूर अनुभव किया होगा कि यदि किसी दिन काफी देर तक हमें पीने के लिए पानी न मिले तो हमारी हालत खराब हो जाती हे। जल हमारे लिए ही नहीं बल्कि सभी सजीव वस्तुओं के लिए आवश्यक हे। हमारे शरीर का दो तिहाई से भी अधिक भार तो जल की वजह से होता हे। यही नहीं, हमारे शरीर की कई जेविक क्रियाओं के लिए जल आवश्यक है, जैसे भोजन पचाने के लिए, शरीर के अंगों को स्वस्थ रखने के लिए आदि।आप जानते हैं कि हमें भोजन पेड़-पौधों तथा जीव-जन्तुओं से मिलता है और इन सभी को भी जल की आवश्यकता होती है। जितने भी खाद्य पदार्थ होते हैं-जैसे आलू, टमाटर, सेब इन सब में काफी मात्रा में पानी होता है। इसके अलावा साफ-सफाई और नहाने-धोने से लेकर भोजन बनाने, खेतीबाडी, उद्योग-धंधों तथा विद्युत उत्पादन आदि सभी कार्यो के लिए जल आवश्यक है।

जल के कुछ उपयोग

  • जल बहुत से जीवों को आवास प्रदान करता हे। अनेक प्रकार के जलीय जीव, जैसे सभी प्रकार की मछलियाँ तथा समुद्री प्राणी ऐसे हैं जो केवल पानी में ही जीवित रहते हैं और अपनी वृद्धि करते हैं।
  • सजीवों के शरीर में रक्‍त आदि में मौजूद जल भोजन, खनिज लवणों एवं गैसों को एक स्थान से दूसरे स्थान में लाने ले जाने का कार्य करता है। मानव शरीर का दो तिहाई से अधिक भाग जल हे, जिससे पता चलता है कि ऊपर दिये गये कार्यो के लिए जल की पर्याप्त मात्रा को आवश्यकता होती है।
  • जब जल झीलों-तालाबों में एकत्र होता है तथा नदियों के रूप में भी भूमि पर बहता है तो यह बीजों, फलों तथा अनेकों प्रकार के सूक्ष्मजीवों को एक जगह से दूसरी जगह तक ले जाने का कार्य करता है। इस प्रकार वे बीज, जो नदियों और नहरों में गिर जाते हैं तथा एक स्थान से दूसरे स्थानों पर बहकर चले जाते हैं वे कहीं उपयुक्त स्थान पर नीचे बैठकर उग जाते हैं। इस प्रकार जल पृथ्वी पर पादप जीवन को फैलाने में भी सहायता प्रदान करता है। फलों में भी बीज होते हैं, वे भी जल के साथ एक स्थान से दूसरे स्थान तक लाये ले जाए जाते है।

जल के विभिन्न रूप

जैसा कि आपने देखा होगा, सामान्यतः जल तरल अवस्था में पाया जाता हे, जिसे द्रव अवस्था कहते हैं। लेकिन शून्य डिग्री तक ठंडा करने पर यह बर्फ में बदल जाता है जो कि इसकी ठोस अवस्था होती है। यदि जल को 100 डिग्री पर गर्म किया जाए तो यह वाष्प यानी भाप में बदल जाता है जो कि इसकी गैसीय अवस्था होती है। इसका मतलब यह हुआ कि जल, ठोस (बर्फ), द्रव (पानी) तथा गैस (वाष्प) तीनों ही रूपों में पाया जाता हे।

जल की संघटना

सन्‌ 1781 में हेनरी कैवंडिश ने प्रयोग द्वारा सिद्ध किया कि जल एक तत्व नहीं है बल्कि हाइड्रोजन एवं ऑक्सीजन का यौगिक है। इसका रासायनिक सूत्र ( ) है। जब हम इसको गर्म करते हैं तो यह वाष्प में बदल जाता है और ठंडा करने पर यह पुनः अपनी द्रव अवस्था में लौट आता है। जल के अणुओं को हाइड्रोजन एवं ऑक्सीजन में तोडने के लिए 2200 ढिग्री तापक्रम तक गर्म करने की आवश्यकता होती हे। परन्तु जल को 2200 डिग्री तक गर्म करना बहुत कठिन होता है, क्योंकि यह 100 ढिग्री पर ही वाष्प में बदल जाता है। इसका केवल एक ही विकल्प है, जल का अपघटन करना। जब जल में विद्युत धारा प्रवाहित की जाती हे तो वह अपने अवयवी तत्वों-हाइड्रोजन एवं ऑक्सीजन में टूट जाता है। जल में हाइड्रोजन एवं ऑक्सीजन भारानुसार 1:8 एवं आयतन के हिसाब से 2:1 के अनुपात में पाये जाते हे।

जल के विभिन्न स्रोत

जब हमारे लिए जल इतना महत्त्वपूर्ण और आवश्यक है, तो हमें यह भी पता होना चाहिए कि जल आता कहाँ से है और हमें किन-किन स्रोतों से मिलता हे? हमारे उपयोग में आने वाले जल के मुख्य स्रोत हैं-कुँआ, नदी, झील, तालाब, झरने और हैंड-पंप आदि।

वैसे तो हमारी पृथ्वी पर सागरों, महासागरों और झीलों के रूप में जल का अपार भंडार है, लेकिन सीधे ही इनसे अपने उपयोग के लिए जल प्राप्त करना हमारे लिए मुश्किल होता हे।

जल-चक्र

सूर्य की गर्मी के कारण सागरों और महासागरों का जल भाप बनकर जल-वाष्प के रूप में आकाश में उड़ जाता है। काफी ऊंचाई पर जाकर यह जल वाष्प ठण्डी

होने लगती है और छोटी-छोटी बूंदों में बदलने लगती है, इस प्रकार वे बादलों का रूप लेती हैं। फिर एक स्थिति ऐसी आती है कि ये छोटी-छोटी बूंदें मिलकर बड़ी-बड़ी बृंदें बनाती है और फिर बारिश होने लगती है। बारिश के इस पानी में सागरों और महासागरों में पायी जाने वाली अशुद्धियाँ नहीं होती हें। बारिश के बाद इस जल का कुछ भाग तो जमीन सोख लेती है और बाकी भाग नदी-नालों के मार्ग से झीलों और सागरों में चला जाता हे।

कठोर जल एवम मृदु जल

वर्षा का जल शुद्ध होता है परन्तु पृथ्वी पर पहुँचकर इसमें कई प्रकार की अशुद्धियाँ तथा लवण घुल जाते हैं, जिसके कारण जल के गुण भी बदल जाते हैं। समुद्र के जल को देखें तो इसमें अन्य लवणों की अपेक्षा साधारण नमक अधिक मात्रा में घुला होता है, जिसके कारण समुद्री जल का स्वाद अत्यन्त नमकीन (खारा) होता है। जल के घुलनशील लवणों की उपस्थिति के आधार पर जल के दो प्रकार होते हैं।

अनुभव

  • आपको क्या करना है : तालाब और नल के जल का अध्ययन करना।
  • आपको क्या चाहिए : प्लास्टिक के दो नांद, जल के दो नमूने-एक नल से और दूसरा तालाब से लिया गया, थोड़ा साबुन का चूर्ण
  • आपको कैसे करना है : जल के दोनों नमूनों को अलग-अलग नांदों मेंडालिए। प्रत्येक नमूने में दो-दो चम्मच साबुन पाउडर डालकर हाथ से अच्छी तरह हिलाइए।
  • आपने क्या देखा : नल से प्राप्त जल के नमूने में काफी झाग बनती हे और ये देर तक बने रहते हैं। तालाब से प्राप्त जल में या तो झाग बनती नहीं, थोडे बहुत बनती भी हैं तो शीघ्र नष्ट हो जाते हैं।

निष्कर्ष : तालाब का जल कठोर ओर नल का जल मृदु हे।


ऐसा जल जिसमें लवण आदि नहीं होते और उसमें साबुन के साथ आसानी से झाग पैदा हो जाती है, ऐसे जल को मृदु जल कहते हैं। वर्षा का जल एवं आसुत जल मृदु जल के उदाहरण हैं।

यदि किसी जल में साबुन घिसने पर झाग पैदा नहीं होती हे। साबुन से दहीं जैसा सफेद पदार्थ बन जाता है तो उसे कठोर जल कहते हैं। ऐसा इसमें उपस्थित मेग्नीशियम और कैल्शियम के लवणों के कारण होता है। समुद्र का जल, झील का जल तथा खुले कुँओं से प्राप्त जल प्रायः कठोर जल होता है।

जल की कठोरता दूर करने के उपाय

कठोर जल में साधारण नमक अथवा कैल्शियम के लवणों के घुले होने के कारण जल का स्वाद अच्छा होता है। इसलिए इसे पीने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। हालांकि इसका उपयोग औषधि अथवा रसायनिक क्षेत्र के उद्योगों में नहीं किया जा सकता, क्योंकि वहां ऐसे शुद्ध जल की आवश्यकता होती है जिसमें कोई भी अशुद्धि न घुली हो।

कठोर जल कपडे धोने के लिए पूर्णतः अनुपयोगी होता है। इससे खाना पकाने एवं खाने के बर्तन भी खराब हो जाते हैं क्योंकि इन बर्तनों में कठोर जल में घुले हुए लवणों की परत जम जाती है। क्या आपने ध्यान दिया हे कि जल गर्म करने वाली इमर्सन रॉड के कुण्डलिय भागों पर एक सफेद रंग की परत जम जाती है। यह सफेद परत जल में घुली हुई अशुद्धियों की ही होती है।

जल की कठोरता उसमें घुले लवणों के आधार पर दो प्रकार की होती हे :

  • अस्थायी कठोरता
  • स्थायी कठोरता।









1. अस्थायी कठोरता : ऐसी कठोरता जो जल में घुले कैल्शियम एवं

मैग्नीशियम के बाई-कार्बोनेट लवणों के कारण होती हे, अस्थायी कठोरता

कहलाती है। इस प्रकार की कठोरता को जल को उच्च ताप पर उबालकर

आसानी से दूर किया जा सकता है। गर्म करने से बाई-कार्बोनेट लवण

अघुलनशील कार्बोनेट लवणों के रूप में अवक्षेपित हो जाते हैं। लवण नीचे बैठ

जाते हैं और फिर इनको छानकर आसानी से अगल किया जा सकता हे।



2. स्थायी कठोरता : ऐसी कठोरता जल में कैल्शियम एवं मेग्नीशियम में

विज्ञान, स्तर-'क'


क्लोराइड और सलफेट लवणों के घुले होने के कारण होती हे। इसको साध

रणतः उबालकर दूर नहीं किया जा सकता। इसको विशेष रसायनिक उपचारों

द्वारा दूर करते हैं, जैसे कि -

(क) धावन (वाशिंग) सोडा द्वारा : जब कठोर जल में धावन सोडा मिलाते

हैं, तो उसमें सल्फेट तथा क्लोराइड लवणों की घुली हुई अशुद्धियाँ अघुलनशील

कार्बोनेट लवणों में बदल जाती हैं। अघुलनशील लवणों को छानकर अलग कर

लेते हैं। इस प्रकार इन अशुद्धियों को दूर कर लेते हैं। निम्नांकित पर ध्यान

दीजिए।

सोडियम कार्बोनेट मैग्नीशियम क्लोराइड

सोडियम क्लोराइड मेग्नीशियम कार्बोनेट





(घुलनशील) (अघुलनशील)

जल में अशुद्धि के रूप में यदि सोडियम क्लोराइड (साधारण नमक) घुला

होता है तो उससे जल में कठोरता उत्पन्न नहीं होती है।

(ख) परम्यूटिट विधि द्वारा (जियोलाइड के उपयोग से) : जियोलाइट में

सोडियम और एलुमीनियम के ऑक्साइड बालू के कण और पानी होता है। जब


कठोर जल को परम्यूटिड (जियोलाइट) के फिल्टर से गुजारते हैं तो लवणों

के कैल्शियम एवं मैग्नीशियम आयन जियोलाइट से जुड़ जाते हैं और

जियोलाइट के सोडियम आयन पानी में चले जाते हैं। इस प्रकार प्राप्त जल

कठोर नहीं होता है।


1. यदि मेरी बाल्टी का पानी साबुन के साथ झाग न बनाकर, दही जेसा

पदार्थ बनाता हे तो वह (क) मृदु जल है या कठोर जल (ख) तालाब

से लिया गया होगा या ढके हुए कुएं से।


मुक्त बेसिक शिक्षा - भारतीय ज्ञान परम्परा


टिप्पणी

 

टिप्पणी

4.

5.

यदि जल की कठोरता उबालने से दूर हो जाये तो :

(क) यह स्थायी कठोरता कहलायेगी या अस्थायी?


(ख) उस जल में कैल्शियम क्लोराइड घुला होगा या कैल्शियम

बाई-कार्बोनेट?.

कठोर जल को हम निम्नलिखित में से किस-किस उपयोग में ला सकते

हैं:

(क) कपडे धोने में (ख) पीने के

(ग) उद्योगों के (घ) औषधि निर्माण में।

अस्थायी कठोरता दूर करने की दो विधियों क॑ नाम लिखिए।


जल में नमक घोलने से क्या यह कठोर जल हो जाता हे?

अपने दैनिक जीवन में हम अधिकतर नल या कुएं से जल का उपयोग करते

हैं। क्या आप जानते हैं कि वह शुद्ध जल होता है या नहीं? यह जानने के लिए

आइए, शुद्ध जल के गुणों का अध्ययन करते हैं :

1.


शुद्ध जल रंगहीन एवं पारदर्शी द्रव है परन्तु आपने देखा होगा कि

कभी-कभी गहरे जल को देखने पर वह नीला सा प्रतीत होता हे। ऐसा

प्रतीत होना प्रकाश के प्रकीर्णन के कारण होता हे।



शुद्ध जल गन्धहीन होता हे। दूषित जल से दुर्गन्ध आती हे। यह उसमें

घुली गंदगी के कारण होता है।


शुद्ध जल स्वादहीन होता है, परन्तु किसी-किसी स्थान का पानी स्वादिष्ट

होता है। क्या आप जानते हैं, ऐसा क्यों? ऐसा उसमें घुली हुई गेसों तथा

कुछ खनिज लवणों के कारण होता है।


विज्ञान, स्तर-'क'


झीलों एवं तालाबों के रुके हुए जल में रोगाणु अनुकूल परिस्थितियां पाते

हैं। हवा तथा मिट्टी में उपस्थित ये रोगाणु नदियों के पानी के माध्यम से

एक जगह से दूसरी जगह पहुँच जाते हैं। ऐसा होने से जल प्रदूषित हो

जाता है और पीने योग्य नहीं होता है। अतः जल को प्रयोग करने से पहले

उसकी जाँच अवश्य कर लेनी चाहिए।



टिप्पणी




4. जल गर्म करने पर पतला तथा ठण्डा कराने पर गाढा नहीं होता। यदि जल

गर्म करने पर पतला तथा ठण्डा करने पर गाढा होने लगे तो कल्पना

कीजिए जीवों एवं पादपों का क्या होगा?



5. जल दृश्य-प्रकाश के लिए पारदर्शी होता है। प्रकाश-किरणें जल में बहुत



गहराई तक जा सकती है। इसीलिए हम जल में गहराई तक देख सकते

हैं। अनेक जलीय जीवों का जीवन जल में सम्भव हे। बताइए जल

पारदर्शी न होता तो क्या होता?


6. जल बहुत से पदार्थो के लिए एक अच्छा विलायक है। इसीलिए हम

इसका उपयोग औषधि निर्माण एवं अनेक रासायनिक उद्योगों में करते हेै।

जल यदि विलायक न होता हो क्या होता? बताइए।



7. शून्य डिग्री तापक्रम तक ठण्डा करने पर जल बफ (ठोस) में बदल जाता

है। बर्फ गर्म होने पर पुनः शून्य पर ही द्रव अवस्था में बदलने लगती है।

यह ताप जिस पर बर्फ पुनः जल में बदलती है, बर्फ का गलनांक

कहलाता है। परन्तु जल में अशुद्धियाँ घुली होने के कारण बर्फ का

गलनांक घट जाता है।


8. शुद्ध जल को ( ) तक गर्म करने पर वह उबलने लगता हे और गैसीय

अवस्था में (भाप में) बदल जाता है। इस ताप को जल का क्वथनांक

कहते हैं। शुद्ध जल के लिए यह ( ) होता है। परन्तु जल में अशुद्धियाँ

घुली होने के कारण क्वथनांक बढ़ जाता है। इसका मतलब हे कि अशुद्ध

पानी ( ) से कुछ अधिक तापक्रम पर उबलता हे।



मुक्त बेसिक शिक्षा - भारतीय ज्ञान परम्परा EE


 

9१. साधारणतः ठोस अवस्था में पदार्थ का घनत्व उसकी द्रव अवस्था के

घनत्व से अधिक होता है। लेकिन जल के ठोस रूप, बर्फ का घनत्व, द्रव

जल से कम होता हे। इसी कारण बर्फ जल के ऊपर तेरती हे।




सामान्य ताप (कमरे का ताप) ( ) से अधिक होने पर पिघलने पर प्राप्त

जल तापक्रम साधारणतः बढ़ता जाता हे और ( ) पर इसका घनत्व अधि

कतम हो जाता है। क्योंकि ( ) से अधिक तापक्रम तक और गर्म करने

पर जल का घनत्व घटने लगता है। अतः () से ऊपर और नीचे जल का

घनत्व कम हो जाता है। इसी गुण के कारण ठण्डे प्रदेशों में जाडे के दिनों

में बर्फ जमने पर भी वहाँ पर जलीय जीव जीवित बने रहते हैं।




10. जल सर्वविलायक होता है, क्योंकि पानी में अधिकतर पदाउसमक जमत)


विद्युत का कुचालक होता है। अर्थात आसुत जल से विद्युत प्रवाहित नहीं

हो सकती हे।

5.5 जल का शोधन

पृथ्वी पर उपलब्ध सम्पूर्ण जल पीने योग्य नहीं है। पीने योग्य जल पारदर्शक,

रंगहीन, गंधहीन तथा कुछ लवण तथा गैसों के घुले होने के कारण स्वादिष्ट

द्रव होता है। यदि इसमें कोई अशुद्धि नहीं घुली हो तो शुद्ध जल स्वादहीन होता

है। परन्तु झील, नदी, कुओं तथा अन्य स्रोतों से प्राप्त जल शुद्ध नहीं होता।

इसमें कुछ अवांछित पदार्थ घुले होते हैं तथा इसमें कुछ हानिकारक सुक्ष्मजीव

भी होते हैं। अब सवाल उठता हे कि ऐसे अशुद्ध जल को शुद्ध कैसे किया

जाए? इसके लिए हम कई विधियां अपनाते हैं। आइए उन विधियों का

अध्ययन करें :





1. आसवन विधि : आसवन वह क्रिया है, जिसके द्वारा जल का शोधन

आसानी से किया जा सकता हे। जल की कुछ मात्रा एक प्याली में लें और

उसके उसके क्वथनांक तक गर्म करें। गर्म करने पर जल में मौजूद जीवाणु



विज्ञान, स्तर-'क'

 

चित्र 5.1 जल शोधन

और रोगाणु नष्ट हो जाते हैं एवं जल, वाष्प में परिवर्तित हो जाता है। जल में

लम्बित तेल के कण एवं उसमें घुले खनिज लवण प्याली में ही रह जाते हे।




यह जल वाष्प जब ठण्डे जल से भरे कंडेन्सन की नली से गुजरती हे तो

संघनित होकर शुद्ध पानी में परिवर्तित हो जाती हे।

आसुत जल, शुद्धतम्‌ जल होता है। इसका उपयोग औषधि निर्माण, प्रयोगशाला

के घोल बनाने में तथा कार की बैट्रियों में किया जाता है। स्वादहीन होने के

कारण इसका उपयोग पीने के लिए नहीं किया जा सकता हे।



2. छानना : जल में घुली अशुद्धियाँ जैसे धूल के कण, बालू, पौधों के

अवशेषों आदि को छानकर अलग करते हैं। इन्हें छानने की एक विशेष विधि

में चारकोल, महीन कणों वाली बालू, मोटे कण वाली बालू और कुछ कंकडों

की परतों को किसी बर्तन में बिछाकर गंदे पानी को इसमें भर देते हैं। इस बर्तन

की तली में एक छेद होता है, जिसमें रुई लगा देते हैं। जल इन परतों से गुजरता

हुआ छिद्र में लगी बालू से होता हुआ बाहर निकलता है तो उपर्युक्त अशुद्धियां

इन परतों में ही रह जाती हैं और स्वच्छ पानी निकलता है, जिस दूसरे बर्तन

में भर लेते हैं। इस जल को जीवाणु रहित करने के लिए या तो उबाला जाता

है अथवा क्लोरीरीकरण किया जाता हे।






मुक्त बेसिक शिक्षा - भारतीय ज्ञान परम्परा


टिप्पणी

 

टिप्पणी

जल

क्लोरीनीकरण Ao

3. क्लोरीनीकरण : जल का क्लोरीनीकरण करने के लिए जल में क्लोरीन

की गोलियां डाली जाती हैं। क्लोरीन प्रायः सभी रोगाणुओं को नष्ट कर देती

हैं। कभी-कभी आपके नल के पानी से कुछ गन्ध आती प्रतीत होती है। वह

इस पानी के क्लोरीनीकरण के कारण होती हे।


क्लोरीरीकरण Oo

तरण ताल (Swiming Pool) के जल को प्रायः क्लोरीरीकरण द्वारा ही शोधि

त किया जाता है।

4. पोटैशियम परमैगनेट मिलाकर : क्या आपने देखा है कि कभी-कभी

कुओं के पानी को शुद्ध करने के लिए उसमें गुलाबी रंग के पोटैशियम


परमैगनेट के क्रिस्टल डाल दिये जाते हैं। जब पौटैशियम परमैगनेट कुएं के जल

में घुल जाता है तो पोटेशियम परमैगनेट का विलयन बन जाता हे, जो लगभग

सभी कीटाणुओं को मार देता है और इस प्रकार जल जीवाणुओं से मुक्‍त हो

जाता है।


1. जल का शुद्धिकरण क्यों आवश्यक होता हे?

2. जल के आसवन एवं छानने की विधियों में क्या अंतर हे?

3. कभी-कभी कुँओं मे पोटेशियम परमेगनेट क्यों डाला जाता हे?

5.6 जल प्रदूषण

यदि जल में अवांछित अशुद्धियाँ मिल जाती हैं तो जल पीने लायक नहीं रह

जाता है। ऐसे जल को प्रदूषित जल कहते हैं। आजकल जल-प्रदूषण की

समस्या इतनी गंभीर होती जा रही है कि नदी, समुद्र, झील, तालाबों आदि का

पानीं यहाँ तक कि भूमिगत जल अत्यन्त प्रदूषित होता जा रहा है।

क्या आपने कभी सोचा है कि जल-प्रदूषण क्यों हो रहा है और इससे

क्या-क्या हानियां हो रही हैं? आइए, यह जानने की कोशिश करते हेै।



विज्ञान, स्तर-'क'


 

चित्र 5.5 जल प्रदुषण

जल प्रदूषण के कारण

जल-प्रदूषण नदियों के पानी में अवांछित अशुद्धियाँ मिलने के कारण होता है।

प्रदूषण का विस्तार एवं उसकी मात्रा नदियों के प्रवाह मार्ग, उनमें मिलने वाले

मलमूत्र के गंदे नालों तथा उनमें उद्योगों के अपशिष्ट पदार्थो के डालने की

मात्रा पर निर्भर करता है।



झीलों, तालाबों तथा रुके हुए पानी के कुछ हानिकारक जीवाणु एवं मच्छर जैसे

कीट अपना आवास बना लेते हैं। उनमें कपड़े धोने तथा पशुओं को नहलाने

से भी जल प्रदूषित होता है। समुद्र में जलीय जीवन जीने वाले पादप एवं

जन्तुओं के मृत शरीर एवं अपशिष्ट पदार्थों और दूसरी अवांछित अशुद्धियों के

कारण जल बहुत प्रदूषित हो गया है। इसीलिए समुद्री जल के शुद्धिकरण के

लिए कुछ प्रयास करने पड़े हैं।

झीलों और तालाबों का रुका हुआ पानी, नदियों की बहती धाराओं तथा ढके

हुए कुओं की अपेक्षा अधिक प्रदूषित होता है।



प्रदूषित जल से हानियाँ


1. प्रदूषित जल से अनेक संक्रामक रोग जैसे-हेैजा, दस्त, पेचिश, टायफाइड

इत्यादि हो जाते हैं।

मुक्त बेसिक शिक्षा - भारतीय ज्ञान परम्परा


टिप्पणी

 

टिप्पणी

2. प्रदूषण पानी को मैला बना देता है, जिससे यह कपडे धोने इत्यादि किसी

कार्य में प्रयोग नहीं किया जा सकता।


3. जल में शेवाल दुर्गन्ध पैदा कर देते हैं तथा उसका रंग गंदला कर देते हे।

शैवाल जलीय जीवन को असुरक्षित बना देते हैं (जल में कॉपर सल्फेट

मिलाकर उसे शैवाल रहित किया जा सकता है)।


जल प्रदूषण की रोकथाम

रोकने ~

जल ही जीवन है। अतः जल प्रदूषण को रोकने के लिए लोगों को जागरूक

होना चाहिए। प्रदूषण के कारकों को रोकने के लिए एक-सा कानून बनाया

जाना चाहिए।

नदियों में छोडे गये गंदे नालों को रोकना चाहिए। हानिकारक अशुद्धियों को

चाहिए

उपचारित करने Md लगाने

उपचारित करने के संयंत्र लगाने ।





मलमूत्र को उपचारित करने के लिए उसे बड़े-बडे टेंकों में भर कर तेजी से

हिलाया जाता हे। इसे चलाने से इसमें होकर हवा प्रवेश कर जाती हे, जिससे

हानिकारक यौगिकों का आक्सीकरण हो जाता हे। इस प्रक्रिया में हानि रहित

पदार्थ बन जाते है।


क्या आप जानते हैं कि दिल्ली और अन्य महानगरों में जल को उपचारित करने

के संयंत्र लगे हुए है? ये संपन्न वहां होते हैं जहाँ शहर के नाले नदियों में गिरते

हैं।

औद्योगिक अपशिष्टों में विषैले पदार्थ होते हैं। उनको रसायनिक विधियों द्वार

निकाला जा सकता है। जल को प्रदूषित होने से रोकने के लिए बिना परिशोधि

त किये औद्योगिक अपशिष्टों को नदियों में छोड़ने की अनुमति नहीं मिलनी

चाहिए।



कुओं को ढककर पानी को प्रदूषण से बचा सकते है।

विज्ञान, स्तर-'क'


संरक्षण का क्या मतलब हे? जैसा कि आप जानते होंगे कि संरक्षण का अर्थ

है-सावधानी पूर्वक, मितव्ययता के साथ सदुपयोग करना। हम सब जानते हैं

कि, वैसे तो, पृथ्वी पर बहुत जल है, फिर भी पीने योग्य जल की कमी है।

अतः लोगों को जल के न्यायसंगत सदुपयोग के लिए जागरूक रहना चाहिए।

हमको भी पेयजल के संरक्षण के अथक प्रयास करने चाहिए। जहाँ तक सम्भव

हो कम से कम जल से काम चलायें तथा फालतू में जल को बर्बाद न करें।

कृषि की सिंचाई के लिए अधिक जल की आवश्यकता होती हे। इसलिए

सिंचाई के क्षेत्र में भी यदि हम अपनी पारंपरिक विधियों, जैसे तालाबों आदि

में जल एकत्रित करें और उसका उपयोग करें तो अच्छा होगा।






हमारी वैदिक संस्कृति में जल संरक्षण पर बहुत बल दिया गया हे। ऋग्वेद का

ऋषि कहता है कि “हम सब बादलों (मेघों) के जल को तथा साथ ही दूसरी

प्रकार के जलों के सुख को प्राप्त करते है। हे घावा और भूमि देव! हमसे इसके

प्रति बुरे कर्मो से दूर रखें-

“ आ शर्म पर्वतानामोतापां वृणीमहे


घावाक्षामारे अस्मद्रपस्कृतम्‌।”

(ऋग्वेद 8.18.16)



1. जल-शुद्धिकरण में प्रयुक्त होने वाले दो कीटाणु नाशकों के नाम लिखिए।


2. जल को प्रदूषित करने वाले चार कारकों के नाम लिखिए।


3. जलं प्रदूषण रोकने के लिए आप कौन-कौन से चार कदम उठायेंगे?


4. प्रदूषित जल से होने वाले चार रोगों के नाम लिखिए।

मुक्त बेसिक शिक्षा - भारतीय ज्ञान परम्परा


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