Difference between revisions of "पुण्यभूमि भारत - मध्य भारत"
(नया लेख बने) |
(लेख सम्पादित किया) |
||
Line 3: | Line 3: | ||
=== भुवनेश्वर === | === भुवनेश्वर === | ||
यह ऐतिहासिक नगर वर्तमान उड़ीसा की राजधानी है। प्राचीन उत्कल राज्य की राजधानी भी यह नगर रहा है। यह मन्दिरों का नगर है। श्री लिंगराज मन्दिर, राजारानी मन्दिर तथा भुवनेश्वर मन्दिर यहाँ के विशाल व भव्य मन्दिर हैं। महाप्रतापी खारवेल की राजधानी भी यह नगर रहा है। खारवेल ने ग्रीक आक्रमणकारी डेमेट्रियस को भारत से बाहर खदेड़ दिया। | यह ऐतिहासिक नगर वर्तमान उड़ीसा की राजधानी है। प्राचीन उत्कल राज्य की राजधानी भी यह नगर रहा है। यह मन्दिरों का नगर है। श्री लिंगराज मन्दिर, राजारानी मन्दिर तथा भुवनेश्वर मन्दिर यहाँ के विशाल व भव्य मन्दिर हैं। महाप्रतापी खारवेल की राजधानी भी यह नगर रहा है। खारवेल ने ग्रीक आक्रमणकारी डेमेट्रियस को भारत से बाहर खदेड़ दिया। | ||
+ | |||
+ | === कटक === | ||
+ | उत्कल का प्राचीन प्रशासनिक केंद्र | यह महानदी के तट पर विद्यमान है | नेताजी सुभाष चन्द्र बोस का जन्म कटक में ही हुआ था | नगर में कई ऐतिहासिक व धार्मिक स्थान है | महानदी के तट पर घवलेश्वर महादेव नाम का प्राचीन मंदिर है | | ||
+ | |||
+ | याजपुर (जाजातिपुर) | ||
+ | |||
+ | यह प्राचीन नगरहै। ब्रह्माजी ने यहाँ यज्ञ किया था,अत: इसका नाम | ||
+ | |||
+ | भारतभूमि के उत्तर-पश्चिमी,उत्तरी तथा उत्तर-पूर्वीक्षेत्रों के महत्वपूर्ण | ||
+ | |||
+ | यज्ञपुर या योजपुर हुआ। यज्ञ से विरजादेवी का प्राकट्य हुआ जो आज | ||
+ | |||
+ | स्थलों का संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत करने के उपरांत अब हम मध्यभारत | ||
+ | |||
+ | विरजा देवी के मन्दिर में प्रतिष्ठित हैं। याजपुर को नाभिगया के नाम से | ||
+ | |||
+ | (उड़ीसा, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र व गुजरात) में स्थित प्रमुख स्थलों के | ||
+ | |||
+ | भी जाना जाता है। वैतरणी नदी याजपुर के समीप बहती है। नदी के तट | ||
+ | |||
+ | ऐतिहासिक, सांस्कृतिक व धार्मिक परिदृश्य को हृदयंगम करने का प्रयत्न | ||
+ | |||
+ | पर सुन्दर घाट व मन्दिर बने हैं। भगवान् विष्णु, सप्त मातृका, त्रिलोचन | ||
+ | |||
+ | करेंगे। उपर्युक्त विवेचन में यद्यपि वर्तमान राजनीतिक इकाइयों को ध्यान | ||
+ | |||
+ | शिव नामक प्रमुख मन्दिरहैं। घाट से थोड़ी दूरी पर प्राचीन गरुड़ स्तम्भ | ||
+ | |||
+ | में रखते हुए विषय का प्रस्तुतीकरण किया है,परन्तु कहीं-कहीं सामीप्यता | ||
+ | |||
+ | व विरजा देवी का मन्दिर है। यह प्रमुख शक्तिपीठ है। भगवती सती का | ||
+ | |||
+ | के कारण दो राजनीतिक इकाइयों के स्थानों का वर्णन एक साथ कर दिया | ||
+ | |||
+ | नाथि प्रदेश यहाँ गिरा था, अत: इसे नाभिपीठ भी कहा जाता है। | ||
+ | |||
+ | है। उद्देश्य एक ही रहा है कि तारतम्यता बनी रहे और कोई महत्वपूर्ण | ||
+ | |||
+ | उछालपुर स्थल छूट न जाये। | ||
+ | |||
+ | सम्भलपुर महानदी के किनारे स्थित अति प्राचीन नगर है। ग्रीक | ||
+ | |||
+ | एकऔरमहत्व की बात यहहै कि पुनरुक्ति से बचने का प्रयत्न किया | ||
+ | |||
+ | विद्वान टालेमी ने (दूसरी शताब्दी) इसका वर्णन मानद' के तट पर स्थित | ||
+ | |||
+ | गया है।अत: कहीं-कहीं ऐसा लग सकता हैकि कुछ स्थान छूट गये हैं। | ||
+ | |||
+ | 'सम्बलक' के रूप में किया है। यहीं पर परिमल गिरेि नामक बौद्ध पवित्र नदियों अथवा पर्वतों आदि की महिमा का प्रतिपादन करते समय | ||
+ | |||
+ | विश्वविद्यालय था। वज़यान नामक बौद्ध सम्प्रदाय के प्रवर्तक इन्द्रभूति का | ||
+ | |||
+ | कुछ स्थलों का विवरण भी आ गया है,अत: व्यर्थ ही पुस्तक के आकार | ||
+ | |||
+ | जन्म-स्थान भी यही है। सम्बलेश्वरी या सामालयी यहाँ प्रधान पूज्य देवी | ||
+ | |||
+ | में वृद्धि सेबचने के लिए स्थानों के वर्णन में उन्हेंछोड़ दिया गयाहै। आगे | ||
+ | |||
+ | हैं जो महानदी के तट पर स्थित सामलयी गुडी नामक मन्दिर में प्रतिष्ठित भी इसी बात को ध्यान में रखकर विषय का प्रतिपादन करेंगे। | ||
+ | |||
+ | हैं। होमा, मानेश्वर पास ही स्थित पवित्र तीर्थ हैं। | ||
+ | |||
+ | मुटावेटर | ||
+ | |||
+ | कोणावल यह ऐतिहासिक नगर वर्तमान उड़ीसा की राजधानी है। प्राचीन | ||
+ | |||
+ | कोणार्क को प्राचीन पद्मक्षेत्र कहा जाता है।भगवान् श्रीकृष्ण केपुत्र उत्कल राज्य की राजधानी भी यह नगर रहा है। यह मन्दिरों का नगर | ||
+ | |||
+ | साम्ब ने यहाँ सूर्योपासना कर कुष्ठ रोग से मुक्ति पायी। साम्ब ने यहाँ पर है।श्री लिंगराज मन्दिर, राजारानीमन्दिर तथा भुवनेश्वर मन्दिर यहाँ के | ||
+ | |||
+ | सूर्य-मूर्ति की स्थापना की थी (यह मूर्ति अब पुरी संग्रहालय में सुरक्षित विशाल व भव्य मन्दिर हैं। महाप्रतापी खारवेल की राजधानी भी यह नगर | ||
+ | |||
+ | है)। वर्तमान में बना रथाकार सूर्य मन्दिर 13वीं शताब्दी का है। इसकी रहा है। खारवेल ने ग्रीक आक्रमणकारी डेमेट्रियस को भारत से बाहर | ||
+ | |||
+ | कला उत्कृष्ट कोटि की है। विधर्मी आक्रमणकारियों नेइसे कई बारतोड़ा खदेड़ दिया। <sub>और लूटा,परन्तुपूरीतरह सफल नहींहो पाये। मन्दिरका शिखर व पहिए</sub> | ||
+ | |||
+ | अमरकण्टक टूटे हुए हैं। सूर्य-मन्दिर के पृष्ठभाग में सूर्य पत्नी संज्ञा का मन्दिर है। | ||
+ | |||
+ | शिखर पर अमरनाथ महादेव, नर्मदा देवी, नर्मदेश्वर व | ||
+ | |||
+ | यह भी भग्नावस्था में हैं। | ||
+ | |||
+ | अमरकण्टकेश्वर के मन्दिर बने हैं। यहाँ पर कईशैव व वैष्णव मन्दिर तथा | ||
+ | |||
+ | चिल्काझील | ||
+ | |||
+ | पवित्र सरोवर व कुण्ड हैं। केशव नारायण तथा मत्स्येन्द्रनाथ के मन्दिर | ||
+ | |||
+ | उड़ीसा (उत्कल) जहाँ आध्यात्मिक व सांस्कृतिक दृष्टि से समृद्ध है, | ||
+ | |||
+ | प्रमुख हैं। मार्कण्डेय आश्रम, भूगुकमण्डल, कपिलधारा आदि ऋषियों के | ||
+ | |||
+ | प्रसिद्ध स्थान अमरकण्टक के आसपास ही हैं। कालिदास द्वारा रचित वहीं प्राकृतिक सुषमा में भी बेजोड़ है। चिल्का झील इसका उदाहरण है। | ||
+ | |||
+ | यह मीठे व खारे पानी की एशिया की विशालतम झील है। चिल्का झील | ||
+ | |||
+ | 'मेघदूत' में इसे आम्रकूट नाम दिया गया है। शोणभद्र और महानदी के | ||
+ | |||
+ | पुरी (जगन्नाथपुरी) के एकदम दक्षिण में स्थित है।शीत ऋतुमें यहाँ पक्षी | ||
+ | |||
+ | उद्गम स्थान अमरकण्टक के पूर्वीभाग में हैं।महात्मा कबीर नेअमरकण्टक | ||
+ | |||
+ | विविध प्रकार के पक्षियों का अभ्यारण्य बना होता है। साइबेरिया तक से | ||
+ | |||
+ | के पास काफी समय तक निवास कर जनचेतना जगायी। | ||
+ | |||
+ | पक्षी जाड़ों में यहां ठहरते हैं। झील का क्षेत्रफल 1100 वर्ग कि.मी. है। | ||
+ | |||
+ | जबलपुर | ||
+ | |||
+ | बालकक्रिडिट | ||
+ | |||
+ | नर्मदा-नदी पर स्थित मध्यप्रदेश का प्रख्यात नगर| प्राचीन काल में | ||
+ | |||
+ | पठारी व पर्वतीय संरचना वाला यह क्षेत्र दक्षिणी कोसल के नाम से | ||
+ | |||
+ | नर्मदा के तट पर यहीं जाबालि ऋषि का आश्रम था। इस कारण यहाँ की | ||
+ | |||
+ | जाना जाता था। इसका वर्णन रामायणकाल में दक्षिणी कोसल के नाम से | ||
+ | |||
+ | बस्ती का नाम जाबालि पत्तनम् या जाबालिपुर पड़ा। यहाँ एक सुन्दर | ||
+ | |||
+ | हुआ है। बौद्धकाल मेंइसका वैभव शिखर पर था। सहजयान नामक बौद्ध | ||
+ | |||
+ | सरोवर और अनेक पुरातन व नवीन मन्दिर हैं।महारानी दुर्गावती नेभी इसे | ||
+ | |||
+ | अपनी राजधानी बनाया था। सत्यवादी महाराजा हरिश्चन्द्र ने नर्मदा-तट विचारधारा का विकास यहीं पर हुआ। सोनपुर बालनगिर के पास स्थित | ||
+ | |||
+ | मन्दिर नगर के रूप में जाना जाता है। | ||
+ | |||
+ | पर मुकुट क्षेत्र में तपस्या की थी। भूगु ऋषि की तपस्थली भेड़ाघाट | ||
+ | |||
+ | (संगमरमर का प्राकृतिक स्थल)जबलपुर के समीप ही है। देवराज इन्द्र ने ६गलवलेला | ||
+ | |||
+ | यहीं पास में नर्मदा-तट पर तपस्या की थी। यहाँ पर इन्द्रेश्वर शिव का राउरकेला। उड़ीसा का सबसे बड़ा नगर व औद्योगिक केन्द्र है। यह | ||
+ | |||
+ | प्राचीन मन्दिर बना है। राज्य की सामाजिक व औद्योगिक गतिविधियों का नाभिक है। सार्वजनिक | ||
+ | |||
+ | क्षेत्र केप्रथम तीन कारखानों में से एक 1955 में इस नगर में स्थापित किया | ||
+ | |||
+ | 5 हमला | ||
+ | |||
+ | गया, तभी से इसकी निरन्तर प्रगति हो रही है। | ||
+ | |||
+ | पूर्वी मध्यभारत में स्थित यह एक ऐतिहासिक किला है। महारानी |
Revision as of 19:34, 4 April 2021
मध्य भारत
भुवनेश्वर
यह ऐतिहासिक नगर वर्तमान उड़ीसा की राजधानी है। प्राचीन उत्कल राज्य की राजधानी भी यह नगर रहा है। यह मन्दिरों का नगर है। श्री लिंगराज मन्दिर, राजारानी मन्दिर तथा भुवनेश्वर मन्दिर यहाँ के विशाल व भव्य मन्दिर हैं। महाप्रतापी खारवेल की राजधानी भी यह नगर रहा है। खारवेल ने ग्रीक आक्रमणकारी डेमेट्रियस को भारत से बाहर खदेड़ दिया।
कटक
उत्कल का प्राचीन प्रशासनिक केंद्र | यह महानदी के तट पर विद्यमान है | नेताजी सुभाष चन्द्र बोस का जन्म कटक में ही हुआ था | नगर में कई ऐतिहासिक व धार्मिक स्थान है | महानदी के तट पर घवलेश्वर महादेव नाम का प्राचीन मंदिर है |
याजपुर (जाजातिपुर)
यह प्राचीन नगरहै। ब्रह्माजी ने यहाँ यज्ञ किया था,अत: इसका नाम
भारतभूमि के उत्तर-पश्चिमी,उत्तरी तथा उत्तर-पूर्वीक्षेत्रों के महत्वपूर्ण
यज्ञपुर या योजपुर हुआ। यज्ञ से विरजादेवी का प्राकट्य हुआ जो आज
स्थलों का संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत करने के उपरांत अब हम मध्यभारत
विरजा देवी के मन्दिर में प्रतिष्ठित हैं। याजपुर को नाभिगया के नाम से
(उड़ीसा, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र व गुजरात) में स्थित प्रमुख स्थलों के
भी जाना जाता है। वैतरणी नदी याजपुर के समीप बहती है। नदी के तट
ऐतिहासिक, सांस्कृतिक व धार्मिक परिदृश्य को हृदयंगम करने का प्रयत्न
पर सुन्दर घाट व मन्दिर बने हैं। भगवान् विष्णु, सप्त मातृका, त्रिलोचन
करेंगे। उपर्युक्त विवेचन में यद्यपि वर्तमान राजनीतिक इकाइयों को ध्यान
शिव नामक प्रमुख मन्दिरहैं। घाट से थोड़ी दूरी पर प्राचीन गरुड़ स्तम्भ
में रखते हुए विषय का प्रस्तुतीकरण किया है,परन्तु कहीं-कहीं सामीप्यता
व विरजा देवी का मन्दिर है। यह प्रमुख शक्तिपीठ है। भगवती सती का
के कारण दो राजनीतिक इकाइयों के स्थानों का वर्णन एक साथ कर दिया
नाथि प्रदेश यहाँ गिरा था, अत: इसे नाभिपीठ भी कहा जाता है।
है। उद्देश्य एक ही रहा है कि तारतम्यता बनी रहे और कोई महत्वपूर्ण
उछालपुर स्थल छूट न जाये।
सम्भलपुर महानदी के किनारे स्थित अति प्राचीन नगर है। ग्रीक
एकऔरमहत्व की बात यहहै कि पुनरुक्ति से बचने का प्रयत्न किया
विद्वान टालेमी ने (दूसरी शताब्दी) इसका वर्णन मानद' के तट पर स्थित
गया है।अत: कहीं-कहीं ऐसा लग सकता हैकि कुछ स्थान छूट गये हैं।
'सम्बलक' के रूप में किया है। यहीं पर परिमल गिरेि नामक बौद्ध पवित्र नदियों अथवा पर्वतों आदि की महिमा का प्रतिपादन करते समय
विश्वविद्यालय था। वज़यान नामक बौद्ध सम्प्रदाय के प्रवर्तक इन्द्रभूति का
कुछ स्थलों का विवरण भी आ गया है,अत: व्यर्थ ही पुस्तक के आकार
जन्म-स्थान भी यही है। सम्बलेश्वरी या सामालयी यहाँ प्रधान पूज्य देवी
में वृद्धि सेबचने के लिए स्थानों के वर्णन में उन्हेंछोड़ दिया गयाहै। आगे
हैं जो महानदी के तट पर स्थित सामलयी गुडी नामक मन्दिर में प्रतिष्ठित भी इसी बात को ध्यान में रखकर विषय का प्रतिपादन करेंगे।
हैं। होमा, मानेश्वर पास ही स्थित पवित्र तीर्थ हैं।
मुटावेटर
कोणावल यह ऐतिहासिक नगर वर्तमान उड़ीसा की राजधानी है। प्राचीन
कोणार्क को प्राचीन पद्मक्षेत्र कहा जाता है।भगवान् श्रीकृष्ण केपुत्र उत्कल राज्य की राजधानी भी यह नगर रहा है। यह मन्दिरों का नगर
साम्ब ने यहाँ सूर्योपासना कर कुष्ठ रोग से मुक्ति पायी। साम्ब ने यहाँ पर है।श्री लिंगराज मन्दिर, राजारानीमन्दिर तथा भुवनेश्वर मन्दिर यहाँ के
सूर्य-मूर्ति की स्थापना की थी (यह मूर्ति अब पुरी संग्रहालय में सुरक्षित विशाल व भव्य मन्दिर हैं। महाप्रतापी खारवेल की राजधानी भी यह नगर
है)। वर्तमान में बना रथाकार सूर्य मन्दिर 13वीं शताब्दी का है। इसकी रहा है। खारवेल ने ग्रीक आक्रमणकारी डेमेट्रियस को भारत से बाहर
कला उत्कृष्ट कोटि की है। विधर्मी आक्रमणकारियों नेइसे कई बारतोड़ा खदेड़ दिया। और लूटा,परन्तुपूरीतरह सफल नहींहो पाये। मन्दिरका शिखर व पहिए
अमरकण्टक टूटे हुए हैं। सूर्य-मन्दिर के पृष्ठभाग में सूर्य पत्नी संज्ञा का मन्दिर है।
शिखर पर अमरनाथ महादेव, नर्मदा देवी, नर्मदेश्वर व
यह भी भग्नावस्था में हैं।
अमरकण्टकेश्वर के मन्दिर बने हैं। यहाँ पर कईशैव व वैष्णव मन्दिर तथा
चिल्काझील
पवित्र सरोवर व कुण्ड हैं। केशव नारायण तथा मत्स्येन्द्रनाथ के मन्दिर
उड़ीसा (उत्कल) जहाँ आध्यात्मिक व सांस्कृतिक दृष्टि से समृद्ध है,
प्रमुख हैं। मार्कण्डेय आश्रम, भूगुकमण्डल, कपिलधारा आदि ऋषियों के
प्रसिद्ध स्थान अमरकण्टक के आसपास ही हैं। कालिदास द्वारा रचित वहीं प्राकृतिक सुषमा में भी बेजोड़ है। चिल्का झील इसका उदाहरण है।
यह मीठे व खारे पानी की एशिया की विशालतम झील है। चिल्का झील
'मेघदूत' में इसे आम्रकूट नाम दिया गया है। शोणभद्र और महानदी के
पुरी (जगन्नाथपुरी) के एकदम दक्षिण में स्थित है।शीत ऋतुमें यहाँ पक्षी
उद्गम स्थान अमरकण्टक के पूर्वीभाग में हैं।महात्मा कबीर नेअमरकण्टक
विविध प्रकार के पक्षियों का अभ्यारण्य बना होता है। साइबेरिया तक से
के पास काफी समय तक निवास कर जनचेतना जगायी।
पक्षी जाड़ों में यहां ठहरते हैं। झील का क्षेत्रफल 1100 वर्ग कि.मी. है।
जबलपुर
बालकक्रिडिट
नर्मदा-नदी पर स्थित मध्यप्रदेश का प्रख्यात नगर| प्राचीन काल में
पठारी व पर्वतीय संरचना वाला यह क्षेत्र दक्षिणी कोसल के नाम से
नर्मदा के तट पर यहीं जाबालि ऋषि का आश्रम था। इस कारण यहाँ की
जाना जाता था। इसका वर्णन रामायणकाल में दक्षिणी कोसल के नाम से
बस्ती का नाम जाबालि पत्तनम् या जाबालिपुर पड़ा। यहाँ एक सुन्दर
हुआ है। बौद्धकाल मेंइसका वैभव शिखर पर था। सहजयान नामक बौद्ध
सरोवर और अनेक पुरातन व नवीन मन्दिर हैं।महारानी दुर्गावती नेभी इसे
अपनी राजधानी बनाया था। सत्यवादी महाराजा हरिश्चन्द्र ने नर्मदा-तट विचारधारा का विकास यहीं पर हुआ। सोनपुर बालनगिर के पास स्थित
मन्दिर नगर के रूप में जाना जाता है।
पर मुकुट क्षेत्र में तपस्या की थी। भूगु ऋषि की तपस्थली भेड़ाघाट
(संगमरमर का प्राकृतिक स्थल)जबलपुर के समीप ही है। देवराज इन्द्र ने ६गलवलेला
यहीं पास में नर्मदा-तट पर तपस्या की थी। यहाँ पर इन्द्रेश्वर शिव का राउरकेला। उड़ीसा का सबसे बड़ा नगर व औद्योगिक केन्द्र है। यह
प्राचीन मन्दिर बना है। राज्य की सामाजिक व औद्योगिक गतिविधियों का नाभिक है। सार्वजनिक
क्षेत्र केप्रथम तीन कारखानों में से एक 1955 में इस नगर में स्थापित किया
5 हमला
गया, तभी से इसकी निरन्तर प्रगति हो रही है।
पूर्वी मध्यभारत में स्थित यह एक ऐतिहासिक किला है। महारानी