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५०. हमारे विद्यालयों और कार्यालयों के भवन चौबीस में से पन्‍्द्रह से सोलह घण्टे खाली रहते हैं । इतने बड़े बड़े भवन बिना उपयोग के रहना आर्थिक दृष्टि से कैसे न्यायपूर्ण हो सकता है ? हमारे निवास और कार्यालयों और विद्यालयों की दूरी हमारे समय का कितना अपव्यय करती है ? इस दूरी के लिये वाहन चाहिये, यातायात की व्यवस्था चाहिये । इससे भीड, कोलाहल, प्रदूषण, गर्मी, संसाधनों का हास, मनः्शान्ति का हास, भागदौड़ आदि में कितनी वृद्धि होती है । क्या हम समझदारीपूर्वक इस समस्या का हल नहीं निकाल सकते ? यह तो अनुत्पादक और विनाशक वृत्ति प्रवृत्ति है ।
 
५०. हमारे विद्यालयों और कार्यालयों के भवन चौबीस में से पन्‍्द्रह से सोलह घण्टे खाली रहते हैं । इतने बड़े बड़े भवन बिना उपयोग के रहना आर्थिक दृष्टि से कैसे न्यायपूर्ण हो सकता है ? हमारे निवास और कार्यालयों और विद्यालयों की दूरी हमारे समय का कितना अपव्यय करती है ? इस दूरी के लिये वाहन चाहिये, यातायात की व्यवस्था चाहिये । इससे भीड, कोलाहल, प्रदूषण, गर्मी, संसाधनों का हास, मनः्शान्ति का हास, भागदौड़ आदि में कितनी वृद्धि होती है । क्या हम समझदारीपूर्वक इस समस्या का हल नहीं निकाल सकते ? यह तो अनुत्पादक और विनाशक वृत्ति प्रवृत्ति है ।
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५१. यातायात के साधन बढ़ने के कारण आवागमन करने वालों की संख्या में वृद्धि होती है और उनकी संख्या में वृद्धि होने के कारण साधन बढ़ते हैं । सडकें चौडी हो रही हैं, हवाई पुल बढ रहे हैं, मेट्रो रेल बन रही है, वाहनों की गती तेज हो रही है । इसके साथ ही शारीरिक और मानसिक कष्ट बढ रहे हैं, प्रदूषण और संसाधनों का अपव्यय बढ रहे हैं, उत्पादकता और सृजनशीलता कम हो रही है, कृषिभूमि कम हो रही है । इन संकटों के जनक तो हम ही हैं क्योंकि इन्हीं को हम विकास मानते हैं । कष्ट, खर्च, अन्न का अभाव बढाने वाली इन बातों से बचने हेतु हम क्या करेंगे ? उपाय बताने का काम किसका है ? यह काम लोकशिक्षा का भी है और शाख्रशिक्षा का भी है । यह अर्थशास्त्र, मनोविज्ञान, संस्कृति आदि पढ़ाने वालों का विषय है । इन्हें औपचारिक और अनौपचारिक शिक्षा का हिस्सा बनाना चाहिये ।
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५१. यातायात के साधन बढ़ने के कारण आवागमन करने वालों की संख्या में वृद्धि होती है और उनकी संख्या में वृद्धि होने के कारण साधन बढ़ते हैं । सडकें चौडी हो रही हैं, हवाई पुल बढ रहे हैं, मेट्रो रेल बन रही है, वाहनों की गती तेज हो रही है । इसके साथ ही शारीरिक और मानसिक कष्ट बढ रहे हैं, प्रदूषण और संसाधनों का अपव्यय बढ रहे हैं, उत्पादकता और सृजनशीलता कम हो रही है, कृषिभूमि कम हो रही है । इन संकटों के जनक तो हम ही हैं क्योंकि इन्हीं को हम विकास मानते हैं । कष्ट, खर्च, अन्न का अभाव बढाने वाली इन बातों से बचने हेतु हम क्या करेंगे ? उपाय बताने का काम किसका है ? यह काम लोकशिक्षा का भी है और शास्त्रशिक्षा का भी है । यह अर्थशास्त्र, मनोविज्ञान, संस्कृति आदि पढ़ाने वालों का विषय है । इन्हें औपचारिक और अनौपचारिक शिक्षा का हिस्सा बनाना चाहिये ।
    
५२. ऐसा सामाजिक वातावरण बनाना चाहिये कि जो घर से पैदल विद्यालय जा सकता है, जो अपना व्यवसाय करता है और घर को ही कार्यालय बनाता है, जिसका निवास कार्यालय से कम से कम दूरी पर है, जो काम पर जाने के लिये वाहन का प्रयोग नहीं करता, जो अनुत्पादक कामों के लिये बड़ी बड़ी व्यवस्थायें नहीं बनाता वह प्रशंसा के योग्य है, पुरस्कार के योग्य है, अनुकरण के योग्य है। वह बुद्धिमान है, समझदार है ।
 
५२. ऐसा सामाजिक वातावरण बनाना चाहिये कि जो घर से पैदल विद्यालय जा सकता है, जो अपना व्यवसाय करता है और घर को ही कार्यालय बनाता है, जिसका निवास कार्यालय से कम से कम दूरी पर है, जो काम पर जाने के लिये वाहन का प्रयोग नहीं करता, जो अनुत्पादक कामों के लिये बड़ी बड़ी व्यवस्थायें नहीं बनाता वह प्रशंसा के योग्य है, पुरस्कार के योग्य है, अनुकरण के योग्य है। वह बुद्धिमान है, समझदार है ।

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