Difference between revisions of "कौआ चला मोर की चाल"

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'''कहानी से सीख'''
 
'''कहानी से सीख'''
  
ईश्वर ने हमें जिस रूप, रंग  और आकार में बनाया है, हमें उसी से  संतुष्ट रहना चाहिए और अपने कर्मो पर ध्यान देना चाहिए। कर्म ही महानता का द्वार खुलता  है।
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ईश्वर ने हमें जिस रूप, रंग  और आकार में बनाया है, हमें उसी से  संतुष्ट रहना चाहिए और अपने कर्मो पर ध्यान देना चाहिए। कर्म करने से ही महानता का द्वार खुलता  है।

Revision as of 16:24, 24 July 2020

जंगल में एक कौआ था जो अपनी बदसूरती से परेसान था । एक दिन कौए ने जंगल में मोरों की बहुत- सी पंख जमीन पर बिखरी पड़ी देखीं। वह अत्यंत प्रसन्न होकर कहने लगा- वाह भगवान! बड़ी कृपा की आपने, जो मेरी पुकार सुन ली। मैं अभी इन पंखो से अच्छा खासा मोर बन जाता हूं। इसके बाद कौए ने मोरों की पंख अपनी पूंछ के आसपास लगा ली। फिर वह नया रूप देखकर बोला- अब तो मैं मोरों से भी सुंदर हो गया हूं। अब उन्हीं के पास चलकर उनके साथ आनंद मनाता हूं। वह बड़े अभिमान से मोरों के सामने पहुंचा। उसे देखते ही मोरों ने जोर जोर से हँसना शुरू कर दिया। एक मोर ने कहा- जरा देखो इस दुष्ट कौए को। यह हमारी फेंकी हुई पंख लगाकर मोर बनने चला है। लगाओ बदमाश को चोंचों व पंजों से कस-कसकर। यह सुनते ही सभी मोर कौए पर टूट पड़े और मार-मारकर उसे अधमरा कर दिया।

कौआ भागा-भागा अन्य कौए के पास जाकर मोरों की शिकायत करने लगा तो एक बुजुर्ग कौआ बोला- सुनते हो इस अधर्मी की बातें। यह हमारा उपहास करता था और मोर बनने के लिए बावला रहता था। इसे इतना भी ज्ञान नहीं कि जो प्राणी अपनी जाति से संतुष्ट नहीं रहता, वह हर जगह अपमानित रहता है। आज यह मोरों से पिटने के बाद हमसे मिलने आया है। लगाओ इस धोखेबाज को।इतना सुनते ही सभी कौओं ने मिलकर उसकी अच्छी धुलाई की।

कहानी से सीख

ईश्वर ने हमें जिस रूप, रंग और आकार में बनाया है, हमें उसी से संतुष्ट रहना चाहिए और अपने कर्मो पर ध्यान देना चाहिए। कर्म करने से ही महानता का द्वार खुलता है।