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दुनिया में नये विश्व की रचना के नाम पर गोल मेज (Round table) नाम के गोपनीय समुदाय ने अपना उद्देश्य निश्चित किया है कि विश्व व्यवस्था हेतु -
- केन्द्र संचालित विश्व सरकार हो ।
- विश्व सरकार की अपनी मुद्रा हो जिसे सारा संसार स्वीकार करे।
- केन्द्रीय विश्व सरकार की अपनी सेना हो जिसका सारे संसार पर नियंत्रण हो।
- केन्द्र सरकार के द्वारा ही शिक्षानीति, अर्थनीति, सांस्कृतिक, आध्यात्मिक और धार्मिक नीतियों का निर्धारण हो।
परिचय
गोल मेज (Round Table) समुदाय की स्थापना सैसिल रहोड्स के द्वारा की गई थी। सैसिल रहोड्स वह व्यक्ति था जिसने युक्तिपूर्वक दक्षिण अफ्रीका के हीरे और सोने के भंडार पर कब्जा कर लिया। उस समय सैसिल रहोड्स (Cecil Rohodes) के नाम पर दक्षिण-आफ्रीका के उस क्षेत्र को रहोडेशिया नाम दिया गया था, जिसे आज जिम्बाब्वे कहते हैं। रहोड्स ने उस समय डी. बीयर्स कन्सोलिडेटेड माइन्स एण्ड कन्सोलीडेटेड गोल्ड फील्ड्स के नाम से व्यापारिक संस्थान कायम किया था। अपनी युक्ति से 'रहोड्स' केप कालोनी का प्राइम मिनिस्टर तथा १८९० में ब्रिटेन में पार्लियामेंट का मेम्बर भी हो गया था। उस समय रहोड्स की आमदनी दस लाख डालर प्रतिवर्ष होने लगी थी। 'रहोड्स' ने अपनी आमदनी का अधिकांश भाग गोल मेज समुदाय के उद्देश्यों को प्रभावी बनाने में खर्च किया। उसने दुनिया के विभिन्न देशों से तेजस्वी नौजवानों को पर्याप्त छात्रवृति देकर ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में अध्ययन हेतु आकर्षित किया था, ताकि गोल मेज समुदाय की विचारधारा को इन प्रशिक्षित व्यक्तियों के द्वारा संसार में फैलाया जा सके।[1]
गोल मेज समुदाय में सैसिल रहोड्स के साथ रौथचाइल्ड कारपोरेशन, कारनेगी यूनाइटेड किंगडम ट्रस्ट, रॉकफेलर फाउंडेशन, फोर्ड फाउंडेशन, जे. पी. मार्गन, हिटनी परिवार, लेजार्ड ब्रदर्स आदि इसके सदस्य बन गये थे। यू.एस.ए. में येल यूनिवर्सिटी की स्कल एंड बोन्स सोसायटी (Scul and bones Society) गोपनीय ढंग से गोल मेज समुदाय के लिये ही काम करती थी। १८९९ से १९०२ के मध्य दक्षिण अफ्रीका में बोअर युद्ध की व्यूह रचना भी रौथचाइल्ड द्वारा ही बनायी गयी थी। इस युद्ध का उद्देश्य दक्षिण अफ्रीका की प्राकृतिक सम्पदा पर अधिकार जमाना था । प्रथम विश्वयुद्ध तथा द्वितीय विश्वयुद्ध की योजनायें भी राउन्ड टेबिल समुदाय के द्वारा ही बनायी गयी थी। इस समुदाय के औद्योगिक घरानों ने युद्ध करने वाले दोनों पक्षों को पूरी आर्थिक मदद पहुँचाई, हथियार तथा युद्ध के अन्य खर्चों के लिए आर्थिक मदद देते समय कहा जाता था कि अभी जितना चाहे उतना धन ले लो, बाद में लौटा देना।
दुनिया को धोखे में रखने के लिये इस धनी समुदाय ने ३० मई १९१९ को होटल मैजेस्टिक पैरिस में 'वैसिली पीस कान्फ्रेंस' के नाम से एक 'वैश्विक नाटक' किया। इस नाटक के द्वारा शान्ति के नाम पर वैश्विक स्तर पर व्यापक संगठन बनाये गये । ये संगठन ऊपर से देखने में तो लोक हितकारी जैसे लगते हैं परन्तु इन संगठनों के माध्यम से गोलमेज समुदाय दुनिया पर अपनी सत्ता जमाने के स्वप्न देखता रहता है। शान्ति स्थापना के नाम पर बनाये गये संगठन - विश्व बैंक, यूनाइटेड नेशंस, एमनेस्टी इंटरनेशनल, ह्यूमन राइट कमीशन आदि तथा एन.जी.ओ. के नाम से बनी संस्थाओं पर अरबों डालर खर्च करके, मानव समाज में पाये जाने वाले विरोधाभासों को बढ़ाने तथा सरकार परस्ती बढ़ाकर आम आदमी के कर्तृत्व आधारित अभिक्रमण को अर्थ, शिक्षा, संस्कृति, धर्म, अध्यात्म, राजनीति आदि क्षेत्रों में विनष्ट करने का कार्य कर रहे हैं।
गोलमेज समुदाय में भागीदार सभी व्यक्ति इसके असली मकसद को नहीं समझ पाते हैं। अधिकांश व्यक्ति तो 'वैसिली पीस कान्फ्रेंस' में जो न्यू वर्ल्ड आर्डर के विषय में शान्ति, सुरक्षा तथा समृद्दि की घोषणायें हुई थीं, उन्हीं से प्रभावित होकर अपना सहयोग दे रहे हैं । कुछ ही विशिष्ट व्यक्ति हैं, जो असली उद्देश्य को जानते हैं। ये व्यक्ति अन्तरंग समिति के सदस्य होते हैं।
कुछ सज्जन और ईमानदार लोग जो अन्तरंग समिति में ले लिये गये थे जब उनको असली मकसद का पता चला तो उन्होंने अपने को इस समुदाय से अलग कर लिया।उदाहरण के लिये एक मि. एडमिरल चेस्टर वार्ड जो यूनाइटेड स्टेट्स में एक प्रसिद्ध जज तथा एडवोकेट जनरल ऑफ नेवी थे, उनको भी अन्तरंग समिति में शामिल किया गया था। अन्तरंग समिति में जाकर जब उनको गोलमेज समुदाय के असली मकसद का पता चला तो उन्होंने षडयंत्र से अपने को अलग कर लिया।
John. J. Niccloy जो कि यू.एन. का एक विशिष्ट अधिकारी था, उसने बताया कि यू.एन. की सभी कार्यवाहियों का निर्देशन काउंसिल ऑन फारेन रिलेशन्स (C.F.R.) के द्वारा होता है । उन्होंने कहा 'जब कभी यू.एन. से सम्बन्धित देशों के लिये सरकारी उच्चपद पर किसी प्रमुख व्यक्ति की नियुक्ति की आवश्यकता होती है, तो यू.एन. के द्वारा उसकी सूचना तुरन्त न्यूयोर्क में स्थित C.F.R. के प्रधान कार्यालय Harold Prat House,58 East, 68th Street को देनी होती है। वहीं उसका निर्णय होकर कार्यवाही आगे बढ़ाई जती है। इस प्रकार से C.F.R. का दखल विभिन्न देशों में राष्ट्राध्यक्षों की नियुक्ति में होता रहता है। (John Birch Society), अमेरिका के संस्थापक (Robert welch) ने १९७० में यूनाइटेड नेशंस के विषय में अपनी राय व्यक्त करते हुये कहा था -
"The United Nations' hopes and plans - To use population controls, controls over scientific and technological developments, control over arms and military strength of individual nations, control over education, control over health and all the control it can gradually establish under all the different excuses for International Jurisdiction that it can device. These varigated separate controls are to become components of the gradually materializing total control that it expects by pretense, deception, persuasion, beguilement and falsehoods, while the enforcement of such controls by brutal force and terror is also getting under way.
That is what the United Nations was always intended to do, that is what it was created to do, that is what it is now doing.[2]
'दि प्रिजन' पुस्तक के लेखक ने अपने अध्ययन व अनुभव से संयुक्त राष्ट्र संघ के विषय में लिखा है -
संयुक्त राष्ट्र संघ का संचालन करने वाले अन्तरंग समिति के षडयंत्रकारी अधिकारियों की आशायें तथा योजनायें :
संयुक्त राष्ट्र संघ की आशायें व योजनायें पूरी तरह वैश्विक नियंत्रण की है। इसके लिये साम, दाम, दण्ड, भेद सभी नीतियों को इस्तेमाल में लाया जाता है । जीवन के हर क्षेत्र में विश्व सरकार द्वारा केन्द्रीय नियंत्रण को स्वीकार कराने के लिए जनसंख्या नियंत्रण विज्ञान और तकनीकी क्षेत्र का नियंत्रण, सभी राष्ट्रों के शस्त्रास्त्र तथा सैनिक शक्ति का नियंत्रण, शिक्षा नीति का नियंत्रण, स्वास्थ्य सेवाओं का नियंत्रण । कहने का तात्पर्य यह है कि गोलमेज समुदाय के विशिष्ट सदस्य, संयुक्त राष्ट्र संघ को माध्यम बनाकर धीरेधीरे विश्व स्तर पर ऐसी मानसिकता बनाना चाहते हैं, जिससे स्थानीय लोक अभिक्रम पर से जनमानस की आस्था उठ जाय तथा केन्द्रीय सरकार, केन्द्रीय सेना, केन्द्रीय अर्थतंत्र के लिए अनुकूल मानसिकता बनें।[3]
सोवियत यूनियन का तानाशाह स्टॉलिन भी राउण्ड टेबिल समुदाय का क्रियाशील सदस्य था । उसने १९४२ में 'मार्क्सिझम एण्ड नेशनल क्वेश्चन' के अन्तर्गत एंग्लो अमेरिकन, कम्यूनिस्ट, खेल के प्रति पूरी सहमति थी। उस समय इस समुदाय ने निर्णय लिया था कि विश्व के उन राष्ट्रों में जहाँ हमारी पहुँच है, फूट डालकर उनको विभाजित करने की नीति बनाई जाय । इस योजना से राष्ट्रीय आस्थाओं को झटका लगेगा तथा विश्व सरकार के लिये अनुकूलता पैदा होगी। इस नीति के अन्तर्गत चीन, कोरिया, वियतनाम, भारत, रूस, पैलेस्टाइन, अफ्रीका, ईराक आदि राष्ट्रों में विभाजिन की नीति बनाई गई थी।
वैश्विक षडयंत्र के संचालन सूत्र
१९३० में विन्सटन चर्चिल ने यूरोप के देशों को यूनाइटेड स्टेट ऑफ यूरोप बनाने की योजना के अन्तर्गत द्वितीय महायुद्ध की भूमिका बनाई थी। इस योजना को जीन फोस्टर, रॉकफैलर, डूलेस, निकोलस मुरे बटलर, कारनेगी आदि ने आर्थिक सहयोग दिया था। इन व्यक्तियों ने यूरोप में शान्ति स्थापना की घोषणा करके द्वितीय महायुद्ध की भूमिका बनाने में पूरा सहयोग किया था। १९४६-४७ में अपने इस कारनामें का सर्वे, काउसिल ऑफ फॉरेन रिलेशंस से कराया।
इस सर्वे रिपोर्ट के आधार पर विन्सटन चर्चिल ने निष्कर्ष निकाला कि वैश्विक स्तर पर केन्द्रीय नियंत्रण (विश्व सरकार) स्थापित करने के लिये दुहरी प्रक्रिया अपनानी होगी। विश्व स्तर पर एक ऐसा वातावरण बनाना होगा जिससे विश्व का प्रत्येक राष्ट्र अपने को असुरक्षित महसूस करे तथा पड़ौसी के खतरे से बचने के लिये मारक हथियारों का संग्रह करना प्रारम्भ करे । दसरा यह कि आम आदमी की मानसिक स्थिति ऐसी बना देनी चाहिये ताकि वह जीवन के हर क्षेत्र में सरकार आश्रित हो जाय।
२६ जून १९४५ को सेन फ्रांसिस्को में पचास देशों के प्रतिनिधियों ने यूनाइटेड नेशंस (U.N.) चार्टर स्वीकार किया। यह संस्था गोलमेज समुदाय के काउंसिल ऑफ फॉरेन रिलेशंस (C.F.R.) के अन्तर्गत बनायी गयी थी।
यूनाइटेड नेशंस (U.N.) की योजना फरवरी १९४५ में क्रीमिया (crimia) के याल्टा (yalta) कान्फ्रेंस में विन्सटन चर्चिल और स्टॉलिन के मार्गदर्शन में प्रस्तुत हो चुकी थी। इस योजना को रुजवेल्ट, टूमेन, आइजनहोवर और कैनेडी का पूरा समर्थन था । यूनाइटेड नेशंस संस्थान ने विंसटन चर्चिल की विश्व सरकार बनाने की योजना को कार्यान्वित करने के लिए अनेक अन्तर्राष्ट्रीय संस्थानों का निर्माण किया । जैसे वर्ल्ड हैल्थ आर्गेनाइजेशन (W.H.O.) यू.एन. पॉपूलेशन फंड (U.N.P.F), इकोनोमिक डेवलपमेंट एण्ड एनवायरमेंट, यू.एन. एनवॉयरमेंट प्रोग्राम (U.N.E.P.) यू.एन. एजुकेशन साइंस एण्ड कल्चर आर्गेनाईजेशन (UNESCO). संस्थाओं की यह सूची बढ़ती ही जा रही है।
ये सभी संस्थाये इस उद्देश्य से बनायी जा रही थीं, ताकि जिन्दगी के हर क्षेत्र में वैश्विक स्तर पर केन्द्रीय नियंत्रण स्थापित किया जा सके । लोक अभिक्रम को नष्ट करना इन योजनाओं का मुख्य उद्देश्य था और अब भी है। इन योजनाओं को आर्थिक सहयोग करने के लिए 'कारनेगी एण्डाउमेंट फॉर इन्टरनेशनल पीस' नाम की स्थाई संस्था बनायी गयी। मि. हिस (Hiss) की नियुक्ति इस संस्था के अध्यक्ष के रूप में जॉन फोस्टर डलस के द्वारा की गयी। मिस्टर हिस को जब यूनाइटेड नेशन्स की अन्दरूनी योजना का पता चला तो उसने इसका रहस्य उजागर करना शुरू कर दिया । हिस (Hiss) को इसकी सजा भुगतनी पड़ी, फलस्वरूप ४४ महीने की जेल काटनी पड़ी।
षड़यंत्र की प्रक्रिया
'दि प्रिजन' पुस्तक के लेखक ने गोल मेज समुदाय के सम्बन्ध में लिखा है - इस समुदाय ने उद्देश्य सिद्धि हेतु वैश्विक स्तर पर अनेक नामों से गोपनीय संस्थाएं बनायी हुई हैं । इन संस्थाओं के सम्मेलन एवं गोष्ठियां होती रहती हैं।
गोलमेज समुदाय की एक संस्था का नाम बिल्डरबर्ग (Bilderberg) है। इसकी एक बैठक १९९१ में बाडेनबाडेन (Baden-Baden-Germany) जर्मनी में हुई । इस बैठक में डेविड रॉकफेलर, यूनाइटेड स्टेट के प्रमुख प्रशासनिक अधिकारी, राजनीतिज्ञ तथा उद्योखगपति, बिल क्लिंटन (जो उस समय आर्कनसास का गर्वनर था, जो कि बाद में राष्ट्रपति हो गया था), जार्ज बुश, कानर्ड ब्लैक, बिल्डरबर्ग, जिओवानी ऐनैली, नीदरलैंड की रानी बिएस्ट्रीस (Beatris) स्पेन की रानी सोफिया, ज्होन स्मिथ (ब्रिटेन के प्रतिनिधि) और भी अनेक अन्तरंग समिति के व्यक्ति इस बैठक में उपस्थित थे। इस बैठक में इराक के विरुद्ध युद्ध की योजना का जार्ज बुश ने प्रस्ताव किया । संयुक्त राष्ट्र संघ की शान्ति सेना को आह्वान करने का निर्णय हुआ। लार्ड किसिंगर ने इराक पर हमले को ठीक ठहराया और कहा कि जार्ज बुश इराक से युद्ध छेड़ने की योग्यता रखता है, उनको सीधे संयुक्त राष्ट्र से बात करनी चाहिये।
बिल्डरबर्ग की अगली बैठक जून १९९४ में फिनलैंड में हुई। इस बैठक में १९९१ की बैठक के व्यक्तियों के अलावा मि. पीटर डी सुथरलैण्ड (Peter D. Sutherland) जो कि गैट (GATT) 'दि जनरल एग्रीमेंट ऑन टैरिफ एण्ड ट्रैड' के डायरेक्टर थे, उपस्थित थे । इस बैठक में व्यवसाय के सभी प्रतिबंध समाप्त करके विश्व व्यवसाय को गोलमेज समुदाय के उद्देश्य के अनुसार वैश्विक आर्थिक नियंत्रण में लाना था। इस काम के लिये श्री सुथरलैंड उचित व्यक्ति थे। इस बैठक में नीदरलैण्ड के प्रधानमंत्री रुड लूबर्स, जे. मार्टिन टेलर, बर्कले बंक के प्रमुख प्रशासक, ब्रिटेन के टोनी ब्लेयर (लेबर पार्टी के) और कैन्थ क्लार्क शामिल थे। व्यवसाय के क्षेत्र में इस बैठक ने वैश्विक व्यवसाय के संसार के कुछ प्रमुख उद्योगपतियों को चुंगल में फंसाने की योजना बनाई, परिणाम स्वरूप केन्द्रीय नियंत्रण के पक्षधर उद्योगपतियों ने उद्योग के क्षेत्र में स्थानीय अभिक्रम पर एक निर्णायक आघात प्रारम्भ कर दिया।
जून १९९५ में बिल्डरबर्ग समुदाय की बैठक स्विट्जरलैण्ड के वर्गनस्टोक में तीन होटलों में अलगअलग हुई । ये बैठकें बहुत ही गोपनीय रखी गई थी। अब तक की बैठकों में जो व्यक्ति उपस्थित होते थे उनमें से अधिकांश अन्दर की योजनाओं से अनभिज्ञ थे। १९९५ की इन बैठकों में संसार भर के वे व्यक्ति शामिल थे जो लोक कल्याण की छाया तथा विश्व शान्ति व विकास के उद्घोष की गूंज का भ्रम पैदा करके विश्व-तानाशाही के पक्षधर थे। 'दि प्रिजन' ग्रंथ के लेखक स्विट्झरलैण्ड की इस बैठक की जानकारी हासिल करने के लिये वर्गनस्टॉक तक पहुंच तो गये, लेकिन वहाँ जाकर उन्होंने जो देखा उन्हीं के शब्दों में इस प्रकार है -
'स्विट्जरलैण्ड में जब बिल्डरबर्ग की बैठक हो रही थी तो मैं वहां छुट्टियाँ बिताने गया था। 'स्पोटलाइट' समान पत्र के द्वारा मुझे इस बैठक का समाचार मिला था । बैठक प्रारम्भ होने के कुछ दिन पहले मैं बर्गेनस्टॉक पहुँचा । सब कुछ देखकर फिर जिस दिन बैठक होने वाली थी पुनः वर्गनस्टॉक पहुँचा । वहाँ जाकर क्या देखता हूँ कि जिन होटलों में बैठकें हो रही थी, उनके रास्तों पर पुलिस का बड़ा सख्त पहरा था। सभी सड़कें बन्द कर दी गयी थीं। स्विट्जरलैंड की पुलिस तथा सेना के सिपाहियों से पूरी घेराबंदी की गई थी । मैंने एक पुलिस वाले से पूछा कि क्या मामला है ? उसने धीरे से इतना ही कहा 'बहुत गोपनीय है, बहुत गोपनीय है।' इस मीटिंग में क्या हुआ इसका पता नहीं चल पाया । मैं सोचता हूँ कि जरूर इस बैठक में विश्व में एकछत्र आर्थिक साम्राज्यवाद की स्थापना के लिए व्यूह रचना और रणनीति बनाई जा रही होगी।"[4]
इस प्रकार की गोपनीय बैठकों में वैश्विक स्तर पर कार्य विधि का निर्णय किया जाता है । इण्टरनेशनल मोनेटरी फंड (IMF), आर्गेनाइजेशन फार इण्टरनेशनल इकोनोमिक को-ऑपरेशन एंड डवलपमेंट, काउंसिल ऑन फारेन रिलेशंस (CFR), वर्ल्ड बैंक, जनरल एग्रीमेंट ऑन टैरिफ एंड ट्रेड (Gatt), वर्ल्ड हैल्थ आर्गेनाइजेशन (WHO) यूनाइटेड नेशंस (U.N.) आदि जितनी भी संस्थायें है, इनका संचालन सूत्र गोलमेज समुदाय विभिन्न नामों से करता है। इन संस्थाओं का ऊपरी ढाँचा विश्व शान्ति तता पिछड़ों के विकास का दिखाया जाता है, परन्तु इनका असली मकसद दीर्घकालीन केन्द्रीय नियंत्रण होता है।
उदाहरण के लिये वर्ल्ड बैंक का उद्देश्य यह है कि विकासशील देशों की जनता को पराश्रित बनाकर स्थाई रूप से गरीबी की खाई में ढकेल दिया जाय । विश्व बैंक विभिन्न देशों में बड़ी-बड़ी विकास योजनाओं के लिए कर्ज देती है। ये योजनायें वास्तव में आम जनता से जमीन छीनकर उनको बड़ी-बड़ी औद्योगिक इकाईयों के आश्रित बनाने की होती हैं।
इस प्रकार स्वावलम्बी जीवन दर्शन को नष्ट किया जाता है। भारत में मल्टीनेशनल कम्पनियों के दबाव में आकर सरकार खेती की जमीनों का अधिग्रहण करके छोटे किसानों को बेरोजगार तथा पराश्रित बना रही है। यह वैश्विक अर्थनीति के प्रभाव से हो रहा है । IMF तथा विश्व बैंक का मुख्य काम बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के लिए भूमिका तैयार करने का है। ये दोनों अर्थ संस्थाएँ जिन योजनाओं के लिये कर्ज देती हैं उन योजनाओं से स्थानीय जनता का कुछ भी हित नहीं सधता है । बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के कार्य की सुविधा के लिए बिजली तथा सड़क निर्माण हेतु सहायता दी जाती है।
विकासशील और अर्द्धविकसित तथा गरीब देशों को IMF तथा विश्व बैंक से जो कर्ज या सहायता मिलती है उसमें राजीनतिक नेता तो भ्रष्ट होते ही हैं, तथा बड़े बाँध, विदेशी प्रभाव, विदेशी नशीले शीतल पेय, आयोडीन नमक, उद्योगों के लिए भूमि अधिग्रहण, औषधियों के विषैले प्रभाव आदि के विरुद्ध जन आन्दोलन कराने में भी गोलमेज समुदाय की कोई न कोई संस्था परोक्ष रूप से सहायता देती रहती है। इतना नहीं, गोलमेज समुदाय के सदस्य धार्मिक, राजनीतिक और आर्थिक बिन्दु पर आतंक फैलाने वालों को हथियारों और धन से सहायता करते हैं तथा इनको दबाने वाली सरकारी शक्तियों को भी शस्त्रास्त्र बिक्री करती हैं।
'दि प्रिजन' के लेखक ने पृष्ठ २३५ पर लिखा है -
The International Monetary Fund (I.M.F.) is there to intervene, when poor countries in Africa, Asia and the rest of the developing world get into Elite (Round table group) engineered financial trouble. The idea has been to encourage and bribe the politicians in these countries into relinquishing self-sufficiency in food and into opening their lands to the multinational food and chocolate giants. These countries began to export luxury cash crops to the rich nations and to use that money to pay for imported food from those same rich countries. Also the developing nations would export natural resources to the rich nations at knock-down prices and then buy-back (at inflated prices) the luxury products of the industrialised countries made with those natural resources. However, these luxury goods only go to the tiny, corrupt, political and economic clique in these developing countries. The majority of the population go hungry because the food growing land is occupied by the multinational corporation. The Elite policy was to submerge the poor countries in debt and take them over in the same way that had with the multinationals and the industrialised nations. When these governments find themselves in financial troubles and unable to meet their debt repayments they go to the IMF to restructure the repayments or offer more loans to pay the interest on the previous ones. But in return for imposing more debt the IMF insists that its (Elite) economic policies are followed. These involve cutting of food, health and education subsidies and the exporting of more resources and cash crops. The IMF tells all the developing countries to do this and thus create a glut on the world market for these commodities and the price collapses.
इस प्रकार से IMF की मदद विकासशील देशों को आर्थिक दृष्टि से कमजोर बनाने का परोक्ष षड़यंत्र करने में सक्रिय है।
आर्थिक नीतियों के साथ मुक्त व्यवसाय (Free trade) भी कमजोर राष्ट्रों के लिये खतरे की घंटी है । मुक्त व्यापार का नियंत्रण वर्ल्ड ट्रेड आर्गेनाइजेशन (W.T.O) के द्वारा होता है । इसका कार्यालय स्विट्जरलैंड में है । GAAT (जनरल एग्रीमेन्ट ऑन एंड टैरिफ) के माध्यम से जो मुक्त व्यवसाय चल रहा है इसमें शक्तिशाली देशों को कमजोर देशों का शोषण करने की छूट मिल जाती है।
The consequences of this can now be seen by all but the most dedicated idiots. The media promotes free trade as a good thing and protection as bad. They have bought the line sold to them by economists, politicians and university lecturers and they sell it to the public.
Free trade is the freedom of the strong to exploit the weak. It is the means through which multinationals subsidised by their governments via the overseas aid budgets and other hidden channels, operate cartelism against the interest of the general population. It is the freedom to create dependency on a system which only the few control and to use that dependency to manipulate at will, the freedom to move production from high wage industrialist countries to the street shops of the third world, the freedom to steal their food growing land and to destroy the small aggrarion industries. In doing this the Elite create anger, despair and division; the perfect combination for manipulation.
राउण्ड टेबिल समुदाय ने विश्व सरकार का केन्द्रीय नियंत्रण करने के लिये कृषि भूमि तथा कृषि उत्पादन के क्षेत्र में हर स्तर पर योजना प्रारम्भ कराई है उसने तो स्थानीय व्यवस्था की पूरी तरह कमर ही तोड़ डाली है।
कृषि उत्पादन में हर अनाज, फल, सब्जी के स्वाभाविक बीज संरक्षण की प्रक्रिया को समाप्त कर दीया है । फसलों के प्राकृतिक बीजों को नष्ट करके नपुंसक बीजों का प्रचलन प्रारम्भ कराया है। इसका परिणाम यह हुआ है कि हर फसल का बीज किसी बहुराष्ट्रीय कम्पनी के एकाधिकार में चला गया है। कम्पनी से मिला हाइब्रीड बीज कृषक को हर बार नया लेना होगा, उसके खेत में जो फसल पैदा हुई है उसका फल बीज नहीं हो सकता, क्योंकि वह नपुंसक फल होता है। फसलों के बीज उत्पन्न करने के लिये बहुराष्ट्रीय कम्पनियों ने एकाधिकार प्राप्त कर लिया है। कृषि क्षेत्र के नियंत्रण का अधिकार पाँच बहुराष्ट्रीय कम्पनियों को है जिनमें एंग्लो डच जाइंट यूनिलिवर कम्पनी बिल्डरवर्ग समुदाय की है । दूसरी कम्पनी नैस्ले कॉरपोरेशन स्विट्जरलैण्ड की । इस प्रकार से कृषि क्षेत्र में बीज, खाद, पानी और ट्रेक्टर को केन्द्रीय नियंत्रण का माध्यम बना दिया है। खेती के साथ-साथ गौवंश के उत्पादन में भी बहुराष्ट्रीय कम्पनियां अपना दखल जमाने के लिये देशी गोवंश को नष्ट करके विदेशी नस्लों का फैलाव कर रही हैं। प्रजनन में भी परावलम्बी बना दिया है। सारी प्रक्रिया केन्द्रीय नियंत्रण की दिशा में जा रही है। केन्द्रीय नियंत्रण की प्रक्रिया एक ऐसा युद्ध है जो परोक्ष रूप से हर क्षेत्र में स्वायत्त जीवन को नष्ट कर रहा है।
षड़यंत्रकारी घटक:
विश्व सरकार द्वारा केन्द्रीय नियंत्रण की मुख्य संचालन शक्ति यूनाइटेड स्टेट्स ऑफ अमेरिका से प्रसारित होती है। यूनाइटड स्टेट केवल १८ से २० व्यक्तियों द्वारा संचालित होता है। ये चुने हुए व्यक्ति नहीं है। इनकी संस्थायें है जिनकी शक्ति यू.एस. के राष्ट्रपति से भी अधिक है। इन संस्थानों ने संयुक्त रूप से गोपनीय कार्य करने के लिए नेशनल सिक्योरिटी एजेन्सी (NSA) के नाम से एक संस्था बना रखी है। (NSA) द्वारा निर्णित सभी योजनाओं को CIA कार्यान्वित करती है। CIA भी सामाजिक स्तर पर यूनाइटेड नेशंस को निर्देश देता है।
यूनाइटेड नेशंस के पास जीवन के हर क्षेत्र को विश्व सरकार की दिशा देने के लिये संस्थायें हैं, जो कि वैश्विक स्तर पर जन समुदाय के सीधे सम्पर्क में आती हैं । इस सारे ढाँचे का संचालन टैक्स एक्जेम्प्ट फाउडेंशन सिंडीकेट के द्वारा होता है। टैक्स एक्जैम्प्ट फाउडेंशन सिंडीकेट का नियंत्रण रॉकपैलर फाउडेशन - रॉथचाइल्ड फाउडेशन - कारनेगी फाउडेशन आदि और भी वैश्विक स्तर की संस्थायें करती हैं। ये संस्थायें अन्तरंग (INNERFED) के नाम से जानी जाती है । यह (INNERFED) टैक्स एक्जेम्प्ट फाउडेशन सिंडीकेट के नाम से जाना जाता है। यह एक गोपनीय नाम है।
NSA, CIA, FBI, NASA तथा फैडलर रिझर्व आदि जितनी भी संस्थायें हैं इनकी आर्थिक व्यवस्था 'हार्ड ड्रग ट्रेड' अर्थात् नशीले पदार्थों के व्यवसाय से होती है।
नशीले पदार्थों का व्यवसाय रीगन - बुश प्रशासन के समय अपनी चरम सीमा पर था। उस समय जॉर्ज बुश की तेल कम्पनी जाप्टा (ZAPATA OIL) के नाम से जानी जाती थी। उन दिनों CIA का कोड भी जाप्टा था। जॉर्ज बुश की जानकारी में CIA के द्वारा इमाम खुमैनी को हथियार बेचे गये। खुमैनी ने कुछ रकम तो डालर में चकाई तथा अधिकांश रकम मौरफिन तथा हेरोईन के रूप में दी। इसके सम्बन्ध में जीन जिगलर (Jeans Ziegler), अपनी एक पुस्तक 'Switzerland washes whiter' में लिखते हैं -
With the expert assistance of the Swiss magnates as well as some discreet help from the swiss secret service, they delivered American and Israeli weapons to the Imam Khomeini. The Imam paid for some of the weaponry in dollars but for most of it in drugs (Morphine base and heroin). The Godfather of Turkish and Lebanese network installed in Zurich turned the drugs into cash on the international Market. After taking their cut of the profit the Godfather deposited the remainder in numbered accounts that had been opened in the main banks and financial institutions of Geneva and Zurich.
इसका अर्थ यह होता है कि गोलमेज समुदाय के सदस्य सारे संसार के आम आदमियों को नशे की आदत डालकर अपना शासन कायम करने का षडयंत्र कर रहे हैं। इस षड़यंत्र में ईसाई धार्मिक गुरू भी शामिल हैं। इसके प्रमाण मिलते हैं कि आर्च बिषप केन्टरवरी का विश्वासपात्र व्यक्ति टेरीवेट (Terrywate) उनकी सहमति से आतंकवादियों को हथियार देने में शामिल था। ईरान में आतंकवादियों को हथियार देकर उसके बदले में नशीले पदार्त लेने के विषय में जार्ज बुश ने स्पष्ट रूप से कहा कि हम आतंकवादियों को हथियार देने में पूरी कीमत ले रहे हैं। उनके साथ कोई रियायत नहीं करते।
चौदह वर्ष तक जार्ज बुश की अन्डरवर्ल्ड डॉन अरोनो (Don Aronow) से मित्रता रही । इनका सम्बन्ध Meyor Lausky Crime Syndicate से रहा है । यह संस्था नशीले पदार्थों का व्यवसाय सारी दुनिया में कराती रही है। यह कम्पनी CIA के द्वारा बनाई गई थी। जोर्ज बुश की Zapata Oil Co. में समुद्र के रास्ते नशीले पदार्थ संग्रहित किये जाते थे, वहाँ वे वैश्विक स्तर पर भेजे जाते थे । 'पैसिफिक सी फूड' नाम की कम्पनी के जहाज नशीले पदार्थों को लाने-ले जाने का काम कर रहे हैं।
राउंड टेबिल समुदाय तीन कारण से नशीले पदार्थों के व्यवसाय से जुड़ा है।
- इस व्यवसाय से राउन्ड टेबिल को इतना धन मिलता है कि उसकी कल्पना नहीं की जा सकती। अरबों डालर प्रतिवर्ष । इस धन से अपने उद्देश्य की पूर्ति में बाधक चुनी हुई सरकारों को गिराया जाता है तथा आम जनता में उथल-पुथल मचाई जा सकती है। नशीले पदार्थों के व्यवसाय से कमाये धन का सरकार के साथ कोई सम्बन्ध नहीं रहता। इसका वैधानिक हिसाब भी नहीं रखना पड़ता।
- नशीले पदार्थों के व्यवसाय से समाज में इनके विरुद्ध कार्य करने का अवसर मिलता है । नशीले पदार्थों के प्रयोग से आम आदमी का आत्मविश्वास और पुरुषार्थ क्षीण होने लगता है। परिणामस्वरूप नशीले पदार्थों के विरुद्ध एक वातावरण बनता है। इससे मुक्ति दिलाने के लिये सामाजिक जीवन में दखल देने के अवसर उत्पन्न होते हैं। इससे नशा निवारण कार्यक्रम के द्वारा निवारण करने वाले समुदाय के प्रति आस्था पैदा होती है । गोलमेज समुदाय ने नशीले पदार्थों के व्यवसाय से जो धनार्जन किया है उसमें से थोड़े धन का अनुदान देकर नशा निवारण संस्थायें समाज सेवा के क्षेत्र में स्थापित की जाती है। इन संस्थाओं के मार्फत सामाजिक जीवन में केन्द्रीय सरकार के दखल का औचित्य स्थापित किया जा सकता है।
- नशीले पदार्थों के उपयोग का चस्का जिस देश के युवक समुदाय को लग जायेगा, उस देश की नैतिक शक्ति क्षीण होने लगेगी तथा नशीले पदार्थों का व्यवसाय बढ़ेगा। अधिक आमदनी के लालच में उस देश की सरकार भी नशीले पदार्थों के व्यवसाय में रूचि लेगी तो देश में सरकार के विरुद्ध वातावरण बनाया जा सकेगा। इससे पूट डालो और राज करो की नीति को बल मिलेगा।
नशीले पदार्थों के व्यवसाय में CIA तथा जॉर्ज बुश पूरी तरह से संलिप्त हैं।
जोर्ज बुश तेल (पैट्रोलियम ऑयल) का व्यवसायी है। इसकी नीयत अरब देशों के तेल पर रहती है। बुश की नीति यह है कि तेल उत्पादन करने वाले अरब देशों में आपसी संघर्ष रहेगा तो उसका लाभ तेल-कम्पनियों को मिलेगा। इसी नीति को कार्यान्वित करने के लिए गल्फ देशों को आपस में लड़ाने की योजना बनाई गयी थी।
जुलाई १९९० में लंकास्टर हाउस लंडन में एक बैठक NATO के सेक्रेटरी मनफर्ड वौरनर की अध्यक्षता में बुलाई गयी । मनफर्ड वौरनर (बिल्डरवर्ग) राउन्ड टेबिल का अन्तरंग सदस्य है। इस बैठक में 'लंदन डिक्लेरेशन' के अन्तर्गत यह निर्णय हुआ ताकि विश्व सेना की भूमिका बन सके।
सद्दाम हुसैन और जार्ज बुश की गहरी मित्रता थी। CIA की मदद से बाथ पार्टी (BAATH PARTY) को सहायता देकर १९६८ में सद्दाम हुसैन को ईराक का डिक्टेटर बनवाया था। उसी बुश ने सद्दाम हुसैन को फाँसी के तख्ते पर लटकवा कर मरवा डाला। इन घटनाओं से सिद्ध होता है कि गोलमेज समुदाय विश्व में अशान्ति फैलाकर अपनी डिक्टेटरशिप कायम करना चाहता है।
गोलमेज समुदाय जिसे अब बिल्डरवर्ग समुदाय के नाम से जाना जाता है, यह समुदाय वैश्विक स्तर पर युद्धों और अपराधों को बढ़ावा देकर विश्व सरकार की कल्पना को साकार करना चाहता है। इस समुदाय में यू.एस. तथा ब्रिटेन मुख्य हैं । इस समुदाय ने इरान-इराक युद्ध, बोस्निया संघर्ष, इराक-कुवैत युद्ध कराया तथा पाकिस्तान और भारत दोनों को युद्ध सामग्री देता है । इस समुदाय की मान्यता यह है कि युद्ध और अपराधों से जो आतंक पैदा होगा, उसके समाधान के लिये सेना, पुलिस तथा हथियारों के लिये आम जनता की मानसिकता अनुकूल होती जायेगी। परिणाम स्वरूप राज्य के आश्रय की मांग बढ़ेगी तथा डिक्टेटरशिप के लिये समर्थन मिलेगा।
षड़यंत्र की रणनीति :
युद्ध और अपराध तथा आतंक आदि के द्वारा आम आदमी को गुमराह करके जनता तथा संवेदनशील व्यक्तियों का ध्यान मुख्य समस्या से हटाया जा सकता है इसीलिये गोलमेज समुदाय ने अपनी नीति बनाई है कि तत्कालिक समस्याएँ पैदा करते रहो ताकि मुख्य समस्या की तरफ किसी का ध्यान न जावे । साथ ही इन तात्कालिक समस्याओं के समाधान हेतु लोक कल्याण तथा विकास के नाम पर कुछ धन देकर संवेदनशील व्यक्तियों को जनता की सेवा में लगाये रहो । इस नीति के अनुसार राउंड टेबिल समुदाय ने पूरी दुनिया में प्रतिवर्ष अरबों डॉलर खर्च करके जन सेवा और जन शिक्षण, जनान्दोलन आदि योजनाओं का संचालन करने के लिये NGO नाम की एक प्रजाति खड़ी कर दी है।
राजनीतिक, आर्थिक और साम्प्रदायिक क्षेत्र में आतंक फैलाने वाले तथा अन्य अशान्ति फैलाने वाले कार्यक्रम को शस्त्रास्त्र तथा आर्थिक सहायता देकर मुख्य समस्याओं से ध्यान हटाने का कार्य बिल्डरवर्ग समुदाय बड़ी सफलतापूर्वक कर रहा है।
यूनाइटेड नेशंस नाम की संस्था का तेजी से विस्तार हो रहा है।' यूनाइटेड नेशंस' ने जीवन के हर क्षेत्र को प्रभावित करने वाली वैश्विक संस्थाओं का जाल सारी दुनिया में फैला दिया है । स्वास्थ्य, कृषि, शिक्षा, संस्कृति, विज्ञान, धर्म, बैंक, पर्यावरण, अर्थ, राजनीति आदि सभी विषयों में सम्बन्धित समस्याओं के समाधान हेतु वैश्विक स्तर पर 'युनाइटेड नेशंस' संस्था कार्य कर रही है। जो व्यक्ति यूनाइटेड नेशंस की संस्थाओं से जुड़े हैं वे समझते हैं कि वे समाज के हित के लिए कार्य कर रहे हैं। वे यह नहीं जानते कि 'यूनाइटेड नेशंस' के खेल में उनका अस्तित्व मात्र एक कठपुतली जैसा है। इस संस्था का वास्तविक उद्देश्य पर्दे के पीछे छिपा है । इसका वास्तविक उद्देश्य राउंड टेबल समुदाय या बरगरवर्ग समुदाय के उद्देश्य साकार करने का है। अन्ततोगत्वा योरोपियन यूनियन जो कि अभी तक एक भूलभुलैया जैसी संस्था है, उसके अन्तर्गत केन्द्रीय संचालन को संभव बनाने का कार्य यूनाइटेड नेशन को करना होता है । योरोपियन पार्लियामेंट के अध्यक्ष क्लौस हैन्च (Klaus Hanch) ने योरोपियन न्यूज पेपर में मई १९९५ में कहा था कि यूनाइटेड नेशंस का योरोपियन यूनियन के साथ घनिष्ठ सम्बन्ध है । वैश्विक स्तर पर केन्द्रीय नियंत्रण तथा विश्व सरकार के लिये अनुकूलता पैदा करना इसका मुख्य कार्य है । विश्व सरकार, विश्व बैंक, विश्व मुद्रा, विश्व सेना की स्थापना के लिये परिस्थिति निर्माण करना यूनाइटेड नेशंस का आन्तरिक उद्देश्य है।
केन्द्रीय नियंत्रण व केन्द्रीय संचालन का कार्य धीरेधीरे क्रम से करना है। धीरे-धीरे, शान्तिपूर्वक, गोपनीय ढंग से कार्य संचालन करने की नीति के आधार पर कार्य पद्धति बनायी गयी है। इस कार्य को सफल करने के लिये एक ट्राईलेटरल कमीशन बनाया गया है। इसके द्वारा यूनाइटेड स्टेट, योरोप और जापान के उन विशिष्ट व्यक्तियों का संयोजन करना है जो राउंड टेबिल योजना को साकार करने में सहयोगी बनें । कॉमन वैल्थ के भूतपूर्व मंत्री सर श्री दत्त रामफल ने जनवरी १९९५ में इन्टरनेशनल डेवलपमेंट कान्फ्रेंस वाशिंग्टन में कहा था कि यूनाइटेड नेशंस को अधिकार दिया जावे कि वह वैश्विक स्तर पर कार्य करने के लिये वैश्विक टैक्स संग्रह कर सके । कान्फ्रेन्स ने इसे मान्य किया था।
जिनेवा व स्विटजरलेण्ड की बैठकों में श्री रामफल को कमीशन ऑन ग्लोबल ग्वर्नमेन्ट का उपाध्यक्ष मनोनीत किया गया था। उन्होंने कहा था विश्व सरकार की घोषणा करने का समय आ रहा है, क्योंकि हमको अब विश्व में इसके लिये पर्याप्त समर्थन मिल रहा है । यूनाइटेड नेशंस का जन्म सैन फ्रांसिस्को में हुआ था। इसके जन्मदाताओं में जार्ज सुल्टज किसिंगर एसोसिएशन, जार्ज बुश, मारग्रेट थ्रेचर, अल गोरे Zbigniew Brzezinski, CNN ग्लोबल न्यूज चैनल के मालिक टेड टर्नर आदि प्रमुख थे । गोर्बाचोव फाउंडेशन ने इसकी रूप रेखा तैयार की थी।
अब तक इसके आठ प्रमुख नियुक्त किये जा चुके है।
- डिग्वेली
- हेमर्स क्लोज्ड
- यूथान्ट
- क्यूर्ट वाल्टीम
- पेरेज दे कुइयार
- बुतरस घाली
- कौफी अन्नान
- बान की मून ।
श्रीदत्त रामफल ने यूनाइटेड नेशंस के अन्तर्गत इकोनोमिक सिक्योरिटी काउंसिल की स्थापना करके आर्थिक नीतियों के लिये एक केन्द्रीय संस्था घोषित कर दी। वर्ल्ड बैंक, इन्टरनेशनल मॉनिटरी फंड (IMF), आर्गेनाइजेशन ऑफ इकोनॉमिक को-ऑपरेशन एंड डवलपमेंट (OECD), बैंक ऑफ इन्टरनेशनल सेटलमेंट्स नाम की संस्थाएं आर्थिक डिक्टेटरशिप स्थापित करने में सहयोगी का कार्य कर रही हैं । इस ढाँचे को खुले रूप में शक्तिशाली बनाने के लिए वर्ल्ड ट्रेड ओर्गेनाइजेशन (WTO) तथा जनरल एग्रीमेंट ओन ट्रेड एंड टैरिफ (GATI) की स्थापना की गई है । इन सब संस्थाओं के द्वारा वैश्विक स्तर पर आम जनता का अमानवीय तरीकों से भी शोषण आरम्भ हो गया है। ये संस्थायें आर्थिक साम्राज्यवाद तथा अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा के लिये वातावरण बनाने का कार्य सफलतापूर्वक कर रही हैं। इस प्रक्रिया से बिना गोली चलाये या बिना युद्ध के आर्थिक साम्राज्यवाद की जड़े गहरी जमती चली जा रही हैं।
इस आर्थिक साम्राज्य की प्रक्रिया ने वैश्विक स्तर पर आम आदमी तथा विकासशील व पिछड़े देशों को परावलम्बी बनाकर गरीबी और भुखमरी के गड्ढेे में झोंक दिया है। सारे संसार में धन कुछ ही लोगों की तिजोरी में बंद हो रहा है। साथ ही भ्रष्टाचार तथा अनैतिक तरीकों से धन कमाने को बढ़ावा मिल रहा है ।
विश्व स्तर पर राउंड टेबिल समुदाय ने अपनी विशिष्ट सेना का संगठन यूनाइटेड नेशंस के अन्तर्गत करना प्रारम्भ कर दिया है । शान्ति सेना के रूप में NATO के साथ विश्व सेना का रूप विकसित हो रहा है । गल्फ युद्ध में १९९१ में यूनाइटेड नेशंस के झंडे के साथ NATO देशों के सहयोग से शांति सेना का प्रारम्भ हो चुका है। यूनाइटेड नेशन के महामंत्री डॉ. बुतरस गाली (Dr. Boutrus Gali) ने १९९१ में बिल्डरवर्ग समुदाय की बैठक में हैनरी किंसिगर के शब्दों को दुहराते हुए कहा ता कि यूनाइटेड नेशंस की अपनी एक सेना होनी चाहिए जिसका संचालन सीधा यू.एन. के द्वारा हो। श्री दत्त रामफलजी ने भी इसका समर्थन किया था । वर्तमान में यूनाइटेड नेशन के महामंत्री बान की मून हैं।
यूनाइटेड नेशंस की इस सेना के कार्य के विषय में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि यह सेना विश्व शांति स्थापित करने में सभी राष्ट्रों का सहयोग करेगी। साथ ही विश्व सरकार की नीतियों, केन्द्रीय बैंक, केन्द्रीय मुद्रा और केन्द्रीय शासन सत्ता आदि का विरोध करने वाले राष्ट्रों को नियंत्रण में रखकर सहयोग करने के लिये तैयार करेगी ताकि सेना के खर्चों में उनकी हिस्सेदारी भी रहे । इसका रिहर्सल गल्फ युद्ध में हो चुका है।
विश्व सेना की मदद के लिए फैडरल एमरजेन्सी मैनेजमेंट एजेन्सी (FEMA) की रचना की गयी है। ट्राइलेटरल कमीशन के प्रथम श्रेणी के व्यक्ति प्रेसीडेंट जिमी कार्टर ने इसकी घोषणा करके यूनाइटेड स्टेट्स के लिये सुरक्षा का शस्त्र दिया।
५ दिसेम्बर १९९४ के 'The Spotlight' के अनुसार UN-NATO संयुक्त तत्वावधान में 'एलाइट रेपिड रिएक्शन कॉर्प' (ARRC) का निर्माण करके चार बहुराष्ट्रीय डिवीजन संगठित किये गये, इसमें ८०,००० (अस्सी हजार) ट्रूप्स भर्ती किये गये । इस ट्रूप्स के कमांडर इन चीफ 'सर जेरीमि मैकेन्जी' (Sir Jeremy Mackenz (जो कि ब्रिटिश सेना में लेफ्टिनेंट जनरल थे) को नियुक्त किया गया । इस प्रकार राउड टेबिल समुदाय ने विश्व समुदाय की बुनियाद डाल दी है।
राउन्ड टेबिल समुदाय जो अपनी गिनती विश्व के विशिष्ट व्यक्तियों में करता है, विभिन्न नामों से जाना जाता है। विशिष्ट समुदाय ने विश्व पर अपना नियंत्रण रखने के लिए विश्व बैंक, विश्व कोष, विश्व मुद्रा, विश्व सेना और विश्व सरकार की स्थापना करने का उद्देश्य बनाया है। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिये विश्व स्तर पर अधिकार आधारित, परस्पर स्पर्धा से सिंचित, भय और आतंक के असुरक्षित वातावरण में, भोग प्रधान जीवन दर्शन की छाया में, स्वार्थ मूलक, फूट डालो राज करो की नीति को अपना कर अनेक प्रकार के प्रदूषणों व विषमताओं को जन्म दिया है। इनकी यह नीति इसलिये प्रभावी हो रही है क्योंकि इस नीति का बाहरी स्वरूप सेवा और विकास की मीठी चाशनी में पका हुआ है । इस नीति ने आम आदमी के आत्म विश्वास और स्वावलम्बन पर निर्णायक आक्रमण किया हैं । संवेदनशील बुद्धिमानों को सेवा और निर्माण के शब्दाडम्बर में फँसाकर गुमराह किया है। धार्मिक गुरुओं को वैभवशाली चमक-दमक में फंसाकर आत्मविस्तृत कर दिया है। राजनैताओं को तात्कालिक राज्याधिकार का आकर्षण दिखाकर, आम जनता को जाति, धर्म, आडम्बरों आदि के जाल में फंसाकर फूट डालने में सहयोगी बनाया है। अभिनेताओं, खेल-खिलाड़ियों, विश्व सुन्दरियों आदि को संस्कृति व मनोरंजन का लेबिल लगाकर विलासिता के उत्पादों का विज्ञापन कराकर कंज्यूमरिज्म और बाजारवाद को प्रतिष्ठित किया जाता है। स्वास्थ्य के क्षेत्र में फास्ट फूड, डिब्बा बंद खाद्य, कोकाकोला आदि पेय पदार्थों के प्रचलन तथा रासायनिक खाद व रासायनिक कीटनाशकों के उपयोग से नये नये रोग पैदा करके उनके निवारण हेतु विषैली औषधियों का प्रचार हो रहा है । कृषि क्षेत्र में बीज, खाद, पानी आदि पर बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के एकाधिकार को बढ़ाकर किसान और खेती को परावलम्बी बनाया है। मारक हथियारों के बदले नशीले पदार्थों के व्यवसाय पर तो यूनाइटेड नेशंस का पूरा ढाँचा खड़ा है।
राउन्ड टेबिल समुदाय के विशिष्ट व्यक्तियों का व्यवसाय शस्त्र का निर्माण तथा खनिज तेलों की बिक्री का है। आतंकवादी तथा अपराध जगत के डॉन अन्दरूनी तौर पर इनसे जुड़े हुए हैं। इसलिये स्पष्ट रूप से कहा जा सकता है कि गोलमेज समुदाय के विशिष्ट महापुरुष मानव समाज के लिये कलंक ही सिद्ध हो रहे हैं, इन भटके हुये जीवों को सही रास्ता दिखाने की जरूरत है।
षड़यंत्र का शिकार भारत
भारत में कर्तव्य आधारित, पारस्परिकता से सिंचित, निर्भय, निष्पक्ष, निर्लोभता के वातावरण में संयमित जीवन दर्शन की छाया में, परमार्थ मूलक, सहकारी साझेदारी की विश्व बन्धुत्व स्थापित करने की नीति का व्यवहार मानव जीवन को सुखी और समृद्ध बनाने की दिशा में प्रगति कर रहा था । इस समृद्धशाली जीवन दर्शन को गोलमेज समुदाय के विशिष्ट महापुरुषों ने विकृत करने का षडयंत्र रचा है।
राउन्ड टेबिल समुदाय के लिये धार्मिक जीवन दर्शन की बुनियाद चुनौती बनी हुई थी। इस समृद्ध जीवन दर्शन की बुनियाद में सहज, स्वाभाविक, परस्परता, स्वयंसेवा, आत्मनिर्भरता, स्वावलम्बन, सहकारी साझेदारी की कर्तृत्व आधारित व्यवस्था प्रगति कर रही थी। भारत की प्रसिद्धि सोने की चिड़िया के रूप में होती रही थी, इसलिए अनेक लुटेरे भारत में आये । भारत कभी किसी देश को लूटने नहीं गया । ब्रिटिश साम्राज्यवाद ने फूट डालो और राज करो की नीति का अनुसरण करके सारी दुनिया में अपने राजनीतिक उपनिवेशों के रूप में साम्राज्य स्थापित किया था। एक समय ऐसा आया कि जब राजनीतिक उपनिवेश रखना कठिन हो गया था, तो योरोप और अमेरिका के कुछ विशिष्ट धनी व्यक्तियों ने राजनीतिक उपनिवेश समाप्त करके आर्थिक साम्राज्य के द्वारा विश्व सरकार की योजना बनाई। आर्थिक साम्राज्यवादियों की निगाहें समूचे पूर्व में भारत की स्थिति को रणनीतिक दृष्टि से बहुत महत्व का मानती रही थी। इसलिए ब्रिटिश साम्राज्य ने अपनी राजसत्ता समेटने के साथ-साथ भारत को अनेक राजनीति हिस्सों में विभाजित करके भारत को कमजोर करने का षड़यंत्र रचाया । सत्ता हस्तान्तरण के साथ-साथ विभाजित भारत को इंडिया बना दिया । स्वतंत्र भारत में नागरिकों के मध्य देश के पुनर्निर्माण का अभिक्रम जाग रहा था, इस स्वाभाविक लोक अभिक्रम को समाप्त करने के लिये इंडियन गवर्नवमेंट को विकास और निर्माण का लालच देकर १९४८ में ही ट्मैन के द्वारा चार सूत्री कृषि मिशन की स्थापना कर दी गई। कृषि मिशन के अन्तर्गत अमरीकी कृषि विशेषज्ञ अलबर्ट मायर द्वारा ग्रामीण पुनर्निर्माण के नाम पर उत्तर प्रदेश के इटावा जिले में पायलैट प्रोजेक्ट प्रारम्भ किया। इस योजना के लिये फोर्ड फाउंडेशन के तत्कालीन अध्यक्ष पाल हाफमैनने भारत में अमरीकि राजदूत चेस्टर बोवेल्स की देखरेख में दो अरब अमरीकी डालर खर्च करने का लक्ष्य बनाया । इसके बाद फोर्ड फाउंडेशन की मदद से २ अक्टूबर १९५२ को सामुदायिक विकास कार्यक्रम तथा भारत सेवक समाज की स्थापना की गयी। स्वतंत्रता के प्रथम उत्साह में राष्ट्र निर्माण हेतु जो लोक अभिक्रम जग रहा था, फोर्ड फाउडेंशन के धन ने उसकी भ्रूण हत्या ही कर दी, साम्राज्यवादी विदेशी ताकतें यही चाहती थीं।
फोर्ड फाउंडेशन के अलावा अमरीकी तेल सम्राट रॉकफेलर फाउंडेशन, स्टील सम्राट कारनेगी फाउंडेशन आदि ने भारत को अपना निशाना बनाकर स्वयंसेवी संस्थाओं के मार्फत भारत की सांस्कृतिक, धार्मिक और आध्यात्मिक संस्थाओं को प्रदूषित करके आर्थिक साम्राज्यवाद को जनजीवन में प्रवेश करने का जाल बुनना प्रारम्भ कर दिया । भारत में आन्तरिक कलह पैदा करने के लिये नागालैंड में माइकल स्कॉट के द्वारा बैपटिस्ट मिशन स्थापित किया गया । १९६४ में नागालैंड पीस मिशन की स्थापना हुई। इन दोनों संस्थाओं के माध्यम से CIAने ऑपरेशन ब्रह्मपुत्र प्रारम्भ किया । परिणाम स्वरूप स्वतंत्र नागालैण्ड की माँग पैदा हो गयी। इतना ही नहीं सीआईए इटली के मार्फत भारत में सक्रिय थी। बड़ी कुशलता से भारत के प्रधानमंत्री के घर में स्थाई रूप से एक सी.आई.ए. के एजेन्ट को स्थापित कर दिया गया।
फोर्ड और रॉकफैलर फाउंडेशन ने १९६० तक भारत के पचास करोड़ अमरीकन डॉलर खर्च करके स्वास्थ्य, शिक्षा तथा सांस्कृतिक संस्थाओं में केन्द्रीय सरकार के केन्द्रीय नियंत्रण हेतु मूक समर्थन प्राप्त किया।
भारत में विभिन्न प्रकार के मतभेदों तथा विरोधाभासों को बढ़ाने के लिये अवार्ड, मर्यादा, बिल्ड, इंडियन सोशियल इंस्टीट्यूट, लोकायन आदि को इस्तेमाल करके रॉकफेलर फाउंडेशन जैसी अनेक संस्थाओं को आर्थिक मदद ने लोक अभिक्रमण को समाप्त करके सरकार तथा विदेशी धन का आश्रित बनाया है। इसके साथ ही स्वयंसेवी संस्थाओं (NGO) में लगे भावनाशील व्यक्तियों को भौतिक सुविधायें देकर पुरुषार्थहीन और आत्मविश्वासहीन बना दिया है।
फोर्ड फाउंडेशन की मदद से जो सामुदायिक विकास तथा भारत सेवक समाज की योजनायें प्रारम्भ की गयी थीं उनकी असफलताओं का पता लगाने के लिए फोर्ड फाउंडेशन के अनुरोध पर श्री बलवन्तराय मेहता समिति का गठन किया था । जब पता चला कि जनता की भागीदारी नहीं होने से योजनायें असफल हुईं तो फोर्ड फाउन्डेशन को बड़ा समाधान हुआ क्योंकि मदद देने का उनका उद्देश्य जनता के अभिक्रम को समाप्त करने का ही था।
१९९१ में उदारीकरण की नीति तथा गैट आदि व्यापारिक समझौतों से भारत में बहुराष्ट्रीय कम्पनियों का आक्रमण बढ़ गया है। खेती, स्वास्थ्य, शिक्षा आदि क्षेत्रों में बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के प्रवेश ने बेरोजगारी, गरीबी और अनैतिक भ्रष्टाचार को बढ़ाया ही है, साथ ही विलासिता की जीवनदृष्टि को बढ़ाने में चार चाँद लगाये है ।
षड़यंत्र निवारण की दिशा
भारत मुख्य रूप से धर्मपरायण देश है। यहाँ की सांस्कृतिक विरासत में कर्तव्य परायणता को मुख्य आधार प्रदान किया गया है । हर एक को अपने कर्तव्य, अपने धर्म के अनुसार आचरण करने की प्रेरणा भारत की मुख्य शक्ति रही है। धर्म का अर्थ यहाँ पंथ, सम्प्रदाय, मजहब या रिलीजन से नहीं है। पंथ, सम्प्रदाय, मजहब या रिलीजन की स्थापना किसी महापुरुष, महाग्रंथ या महान परम्पराओं के द्वारा की जाती है और धर्म व्यक्ति, प्रकृति और समाज के मध्य स्वाभाविक संतुलन के व्यवहार में से प्रकट होता रहता है। धर्म किसी केन्द्रीय सत्ता को पोषित नहीं करता। केन्द्रीय सत्ता तो धर्माचरण में बाधा ही उत्पन्न करती है। धर्म कर्तव्यबोध कराता है जबकि केन्द्रीय सत्ता अधिकारों के बँटवारे के तत्त्व पर खड़ी होती है। धर्म या कर्तव्य बोध पारस्परिकता का बोधक है, जबकि अधिकार बोध संघर्ष में परिणित हो ही जाता है। धर्माचरण या कर्तव्यबोध से आवश्यक अधिकार सहज रूप से मिलते रहते हैं।
विकसित सामाजिक जीवन में धर्म, अर्थ और राज्य की व्यवस्थाओं का स्वरूप निश्चित करना होता है। अर्थ और राज्य यदि अपना धर्म या कर्तव्य ठीक तरह से पालन करेंगे तो समाज में सहज और स्वाभाविक रूप से सुख शान्ति रहेगी। दूसरी तरफ यदि राज्य सत्ता का केन्द्रीयकरण होगा, प्राकृतिक संसाधनों को एकाधिकार करके धन का संग्रह होगा, तो अधिकारों के लिये संघर्ष उसका सहज परिणाम होगा। इस संघर्ष के लिये सेना अनिवार्य हो जायेगी। इससे समाज की सुख-शान्ति खतरे में पड़ जायेगी । सेना के लिये अस्त्र-शस्त्रों का निर्माण होगा । युद्ध तो हमेशा नहीं होते, अतः आतंकी और अपराधी समुदाय पैदा करना अनिवार्यता बन जायेगी। वैश्विक स्तर पर गोलमेज समुदाय के विशिष्ट महापुरुषों के द्वारा शान्ति स्थापना के नाम पर यूनाईटेड नेशंस की समस्त संस्थायें परोक्ष रूप से केन्द्रीय सरकार, केन्द्रीय सेना, केन्द्रीय मुद्रा की स्थापना करके आर्थिक साम्राज्यवाद को स्थापित करना चाहेगी। इस मानवद्रोही योजना के संचालकों में रौथ चाइल्ड कॉरपोरेशन, फोर्ड फाउंडेशन, कारनेगी फाउंडेशन, राकफैलर फाउंडेशन तथा समस्त बिल्डरवर्ग समुदाय सम्मिलित है। ये बेचारें यह नहीं जानते कि यह योजना इनके लिए भी हितकर नहीं है ।
विश्व सरकार, विश्व सेना, विश्व मुद्रा, विश्व बैंक आदि द्वारा केंद्रीय नियंत्रण की व्यवस्था किसी प्रकार से भी मानव, प्रकृति तथा समाज को सुख-शांति नहीं पहुँचा सकती। केन्द्रीय नियंत्रण स्थापित करने की योजना बनाने वाले राउंड टेबिल समुदाय या बिल्डरवर्गर समुदाय को अपनी योजना के लिये किस-किस प्रकार के षड़यंत्र करने पड़ रहे हैं, इसका पूरा लेखा-जोखा 'दि प्रिजन' पुस्तक में दिया है। प्रस्तुत लेख की अधिकांश सामग्री 'दि प्रिजन' पुस्तक से ही ली गई है। इस षड़यंत्र को उजागर करके षड़यंत्रकारियों को सही सोचने में सहकार करना प्रस्तुत पुस्तक का मुख्य उद्देश्य है। भारत के उद्योगपति, राजनेता, धर्मगुरु, समाज सेवक तथा संवेदनशील विद्वानों की जानकारी हेतु चार सौ पृष्ठ की 'दि प्रिजन' पुस्तक में लिखे विवरण को संक्षिप्त में प्रस्तुत किया जा रहा है।
प्रस्तुत पुस्तक में धार्मिक चिन्तन का संदर्भ भी दिया गया है, ताकि विद्वद्जन राउन्ड टेबिल समुदाय के षड़यंत्र को जानकर धार्मिक चिन्तन की दिशा को समझकर केन्द्रीय नियंत्रण के षड़यंत्रकारी प्रभाव को मानव, प्रकृति और समाज को मुक्त कराने में सक्रिय हो जावें । केन्द्रीय नियंत्रण का यह कैंसर अभी प्रारम्भ हो ही रहा है, अतः प्रारम्भ से ही संवाद प्रक्रिया से इसे निरस्त करना समझदारी होगी।
इस प्रक्रिया में अपनी-अपनी क्षमता के अनुसार सभी व्यक्ति भागीदार हो सकते हैं। भागीदारी करने वाले को निर्भय, निर्वैर और निष्पक्षता की मानसिकता और व्यावहारिक भूमिका का होना आवश्यक है।