Difference between revisions of "पर्व ४ : भारत की भूमिका"

From Dharmawiki
Jump to navigation Jump to search
(Created page with "{{One source}} ==References== <references />भारतीय शिक्षा : वैश्विक संकटों का निवारण भारतीय श...")
 
Line 1: Line 1:
 
{{One source}}
 
{{One source}}
 +
 +
विश्वस्थिति का जानना और समझना एक बात है, उससे व्यथित होना एक बात है, उसका भुक्तभोगी होना एक बात है । परन्तु उन समस्याओं को दूर करने हेतु उद्यत होना दूसरी बात है । उसके लिये साहस चाहिये । भारत ऐसा साहस दिखाने वाला देश है । जगत का भला चाहना भारत का स्वभाव है। वैसे पश्चिम भी विश्व की समस्याओं को दूर करना तो चाहता ही है, उसके लिये विश्वस्तर के प्रयास भी करता है । परन्तु समस्यायें दूर होती नहीं दिखाई देतीं, उल्टे बढ़ती ही जाती है।
 +
 +
इसका सीधा कारण यह है कि जिन कारणों से समस्यायें जन्मी हैं उन्हीं को उपाय के रूप में प्रयुक्त करेंगे तो समस्या दूर होने के स्थान पर उल्टे बढने ही वाली है । वास्तव में समस्याओं के निराकरण हेतु देखने समझने की दृष्टि तथा उपाय की पद्धति में परिवर्तन करने की आवश्यकता है । विश्वस्थिति और विश्वसमस्याओं को भारत की दृष्टि से देखना, भारत की पद्धति से उनका उपाय करना होगा । परन्तु ऐसा करने हेतु भारत को स्वयं को पश्चिमी प्रभाव से मुक्त होकर भारत बनना होगा । सबसे महत्त्वपूर्ण बात यही है । भारत भारत बनने पर आधी समस्यायें तो अपने आप मिट जायेंगी । इस कठिन विषय के अनेक पहलुओं की चर्चा इस पर्व में की गई है।
 +
 +
'''अनुक्रमणिका'''
 +
 +
३३. भारत की दृष्टि से देखें
 +
 +
३४. मनोस्वास्थ्य प्राप्त करें
 +
 +
३५. संस्कृति के आधार पर विचार करें
 +
 +
३६. समाज को सुदृढ बनायें
 +
 +
३७.आर्थिक स्वातंत्र्यनी रक्षा करें
 +
 +
३८. युगानुकूल पुनर्रचना
 +
 +
३९. आशा कहाँ है
 +
 
==References==
 
==References==
 
<references />भारतीय शिक्षा : वैश्विक संकटों का निवारण भारतीय शिक्षा (भारतीय शिक्षा ग्रन्थमाला ५), प्रकाशक: पुनरुत्थान प्रकाशन सेवा ट्रस्ट, लेखन एवं संपादन: श्रीमती इंदुमती काटदरे
 
<references />भारतीय शिक्षा : वैश्विक संकटों का निवारण भारतीय शिक्षा (भारतीय शिक्षा ग्रन्थमाला ५), प्रकाशक: पुनरुत्थान प्रकाशन सेवा ट्रस्ट, लेखन एवं संपादन: श्रीमती इंदुमती काटदरे

Revision as of 17:57, 11 January 2020

विश्वस्थिति का जानना और समझना एक बात है, उससे व्यथित होना एक बात है, उसका भुक्तभोगी होना एक बात है । परन्तु उन समस्याओं को दूर करने हेतु उद्यत होना दूसरी बात है । उसके लिये साहस चाहिये । भारत ऐसा साहस दिखाने वाला देश है । जगत का भला चाहना भारत का स्वभाव है। वैसे पश्चिम भी विश्व की समस्याओं को दूर करना तो चाहता ही है, उसके लिये विश्वस्तर के प्रयास भी करता है । परन्तु समस्यायें दूर होती नहीं दिखाई देतीं, उल्टे बढ़ती ही जाती है।

इसका सीधा कारण यह है कि जिन कारणों से समस्यायें जन्मी हैं उन्हीं को उपाय के रूप में प्रयुक्त करेंगे तो समस्या दूर होने के स्थान पर उल्टे बढने ही वाली है । वास्तव में समस्याओं के निराकरण हेतु देखने समझने की दृष्टि तथा उपाय की पद्धति में परिवर्तन करने की आवश्यकता है । विश्वस्थिति और विश्वसमस्याओं को भारत की दृष्टि से देखना, भारत की पद्धति से उनका उपाय करना होगा । परन्तु ऐसा करने हेतु भारत को स्वयं को पश्चिमी प्रभाव से मुक्त होकर भारत बनना होगा । सबसे महत्त्वपूर्ण बात यही है । भारत भारत बनने पर आधी समस्यायें तो अपने आप मिट जायेंगी । इस कठिन विषय के अनेक पहलुओं की चर्चा इस पर्व में की गई है।

अनुक्रमणिका

३३. भारत की दृष्टि से देखें

३४. मनोस्वास्थ्य प्राप्त करें

३५. संस्कृति के आधार पर विचार करें

३६. समाज को सुदृढ बनायें

३७.आर्थिक स्वातंत्र्यनी रक्षा करें

३८. युगानुकूल पुनर्रचना

३९. आशा कहाँ है

References

भारतीय शिक्षा : वैश्विक संकटों का निवारण भारतीय शिक्षा (भारतीय शिक्षा ग्रन्थमाला ५), प्रकाशक: पुनरुत्थान प्रकाशन सेवा ट्रस्ट, लेखन एवं संपादन: श्रीमती इंदुमती काटदरे