इंग्लैण्ड के द्वारा अपनाई गई विजयप्राप्ति की अजीबोगरीब रीतियों का रोचक दृष्टान्त उसके पडोसी देश आयलैंण्ड के साथ के उसके सम्बन्धों से मिलता है। सत्रहवीं शताब्दी के प्रारम्भ में आयलैंण्ड के एटर्नी जनरल सर होन डेविस ने अपने लेखों द्वारा आयलैंण्ड के लिए अधिक प्रभावशाली राजनीति के सम्बन्ध में यह सूचित किया है कि आयलैन्ड के विजय में अवरोधक दो प्रमुख कारकों में एक, युद्ध के लिए की गई ढीली कार्यवाही एवं दूसरा राजनीति में शिथिलता है। क्योंकि जमीन को बुआई के लिए तैयार करने के लिए प्रथम तो किसान को उसे अच्छी तरह से जोतना पड़ता है। और जब पूर्ण रूप से जुताई हो जाए एवं उसमें खाद एवं पानी अच्छी तरह से डाल दिए जाएँ तब यदि वह उसमें अच्छे बीज न बोए तो जमीन ऊसर बन जाती है एवं उसमें खरपतवार के सिवा कुछ पैदा नहीं होता। इसलिए असंस्कृत प्रजा को अच्छी सरकार की रचना के लिए सक्षम बनाने के लिये पहले ही उसका सामना करके उसे तोड़ना आवश्यक है। जब वह पूर्णतः नियन्त्रण में आ जाए तब यदि उसे नियमन के द्वारा व्यवस्थित न किया जाए तो वह प्रजा बहुत जल्दी ही अपनी असंस्कारिता पर उतर आती है। | इंग्लैण्ड के द्वारा अपनाई गई विजयप्राप्ति की अजीबोगरीब रीतियों का रोचक दृष्टान्त उसके पडोसी देश आयलैंण्ड के साथ के उसके सम्बन्धों से मिलता है। सत्रहवीं शताब्दी के प्रारम्भ में आयलैंण्ड के एटर्नी जनरल सर होन डेविस ने अपने लेखों द्वारा आयलैंण्ड के लिए अधिक प्रभावशाली राजनीति के सम्बन्ध में यह सूचित किया है कि आयलैन्ड के विजय में अवरोधक दो प्रमुख कारकों में एक, युद्ध के लिए की गई ढीली कार्यवाही एवं दूसरा राजनीति में शिथिलता है। क्योंकि जमीन को बुआई के लिए तैयार करने के लिए प्रथम तो किसान को उसे अच्छी तरह से जोतना पड़ता है। और जब पूर्ण रूप से जुताई हो जाए एवं उसमें खाद एवं पानी अच्छी तरह से डाल दिए जाएँ तब यदि वह उसमें अच्छे बीज न बोए तो जमीन ऊसर बन जाती है एवं उसमें खरपतवार के सिवा कुछ पैदा नहीं होता। इसलिए असंस्कृत प्रजा को अच्छी सरकार की रचना के लिए सक्षम बनाने के लिये पहले ही उसका सामना करके उसे तोड़ना आवश्यक है। जब वह पूर्णतः नियन्त्रण में आ जाए तब यदि उसे नियमन के द्वारा व्यवस्थित न किया जाए तो वह प्रजा बहुत जल्दी ही अपनी असंस्कारिता पर उतर आती है। |