Difference between revisions of "अमेरिका का एक्सरे"
Line 8: | Line 8: | ||
एक हम ही हाथ में पते का कागज लेकर घुमते रहते हैं । वास्तव में तो न्यूयोर्क में एवन्यू, स्ट्रीट और घर का नंबर अगर ठीक से लिखा हुआ है और थोडा बहुत अंग्रेजी आप जानते हैं तो पता ढूंढना मुश्किल नहीं है। फिर भी मैं उस न्यूयोर्क शहर में रास्ता भूल गया था । ऐसे समय डाकघर में जाकर पता पूछना स्वाभाविक होता है ।परंतु मैं तो डाकघर का ही पता ढूंढ रहा था । न्यूयोर्क के मेनहटन टापु पर तो मार्गों की अत्यंत पद्धतिसर रचना है। हडसन नदी पर जानेवाली स्ट्रीट, और उन रास्तों को नब्बे अंश के कोन पर काटने वाले जो मार्ग है वह एवन्यू । मेरा भुलक्कड होने का गुणधर्म जाननेवाले मित्रों ने मुझे यह रचना याद करवा दी थी। फिर भी रास्ता भूलना मेरी विशेषता थी । मेरा स्वयं का पता मैं पूरे विस्तार से कहता हूँ । इसलिये कहीं भी रास्ता नहीं भटकुंगा ऐसा आश्वासन देकर मैं मेरे न्यूयोर्क स्थित दोस्त के घर से पोस्टओफिस खोजने निकल पडा । | एक हम ही हाथ में पते का कागज लेकर घुमते रहते हैं । वास्तव में तो न्यूयोर्क में एवन्यू, स्ट्रीट और घर का नंबर अगर ठीक से लिखा हुआ है और थोडा बहुत अंग्रेजी आप जानते हैं तो पता ढूंढना मुश्किल नहीं है। फिर भी मैं उस न्यूयोर्क शहर में रास्ता भूल गया था । ऐसे समय डाकघर में जाकर पता पूछना स्वाभाविक होता है ।परंतु मैं तो डाकघर का ही पता ढूंढ रहा था । न्यूयोर्क के मेनहटन टापु पर तो मार्गों की अत्यंत पद्धतिसर रचना है। हडसन नदी पर जानेवाली स्ट्रीट, और उन रास्तों को नब्बे अंश के कोन पर काटने वाले जो मार्ग है वह एवन्यू । मेरा भुलक्कड होने का गुणधर्म जाननेवाले मित्रों ने मुझे यह रचना याद करवा दी थी। फिर भी रास्ता भूलना मेरी विशेषता थी । मेरा स्वयं का पता मैं पूरे विस्तार से कहता हूँ । इसलिये कहीं भी रास्ता नहीं भटकुंगा ऐसा आश्वासन देकर मैं मेरे न्यूयोर्क स्थित दोस्त के घर से पोस्टओफिस खोजने निकल पडा । | ||
− | सुबह के दस बज रहे थे । प्रसन्न करनेवाली धुप होने पर भी हवा में ठंड थी। आनंदपूर्वक टहलने जैसा वातावरण था। पर पता खोज रहे मनुष्य की स्थिति वह आनन्द उठाने जैसी होती हैं की नहीं यह कहना मुश्किल | + | सुबह के दस बज रहे थे । प्रसन्न करनेवाली धुप होने पर भी हवा में ठंड थी। आनंदपूर्वक टहलने जैसा वातावरण था। पर पता खोज रहे मनुष्य की स्थिति वह आनन्द उठाने जैसी होती हैं की नहीं यह कहना मुश्किल है। |
+ | |||
+ | पराये प्रदेश में अनजान मनुष्य को पता पूछना यह कितनी मुश्किल बात है यह न्यूयोर्क जैसे नगर में जिसे पता ढूंढने के लिये भटकना पडा है वही समझ सकेगा। मेरे ‘एस्क्यु झ मी' की तरफ कोई नजर फेरनेवाला भी मिला हो तो उसे सद्भाग्य ही मानना होगा । इस ठंडे देश में लोग बहुत तेज गति से चलते हैं । उनको रोकना बहुत कठिन कार्य है । अगर रोक कर ‘एस्क्युझ मी' कह भी दिया तो उसे लगता है कि धक्का लगने से यह माफी माँग रहा है । इसलिये 'नेवर माइण्ड' कह कर वे आगे बढ जाते हैं। सीधे कोई दुकान में जाकर पूछने की सोचेंगे तो हो सकता है कि वह पता बताने का सर्विसचार्ज लगा दे। जहाँ सब्जी लेने गई माँ के पास से अगर उसकी बेटी अपने छोटे भाई को आधा घण्टा सम्हालने के 'बेबीसिटींग'सर्विस चार्ज के रूप में एकाध डोलर लेती हो वहाँ मेरे जैसे पराये आदमी की क्या औकात ? वैसे भी मैं परेशान हो चुका था । इतने में सामनेवाली फूटपाथ पर बाबागाडी लेकर आती एक वृद्धा दिखाई दी। गाडी में बच्चा नहीं था, खरीदा हुआ सामान था। मैंने बाबागाडी के पास खडे रहकर कहा, एस्क्युझ मी मेडम' | ||
+ | |||
+ | पता नहीं वह किस धून में चल रही थी। मेरा 'एस्क्युझ मी' सुनते ही उसने भयभीत द्रष्टि से मेरे सामने देखा और डर के मारे काँपने लगी। उसका वह घबराया हुआ चहेरा और काँपती गर्दन देख कर मुझे लगा कि दादीमाँ को कोई झटका लगा है । मैं भी घबरा गया । क्या बोलना यह समझ में नहीं आता था । मैंने पूछा 'आरन्ट यु फिलिंग वेल, मेडम'? उसके मुँह से आवाझ भी नहीं निकलती थी। कुछ क्षण ऐसे ही बीते । बाद में उसने काँपती आवाझ में पूछा क्या चाहिये तुम्हे ?' | ||
+ | |||
+ | मुझे एक पता पूछना है । मैंने सबूत के नाते हाथ में पकडा कागज उसे दिखाया । यहाँ की पोस्ट ऑफिस कहाँ है ?' | ||
+ | |||
+ | 'क्या?' | ||
+ | |||
+ | 'पोस्ट ओफिस' मेरे मन में आया कि अगर यहाँ पोस्ट ऑफिस को और कुछ नाम से पहचानते होंगे तो और | ||
==References== | ==References== |
Revision as of 15:43, 8 January 2020
This article relies largely or entirely upon a single source. |
अध्याय २२
पु. ल. देशपाण्डे
पता ढूंढने जैसी कठीन बात कोई नहीं होगी। रास्ते से जाने वाले राहगीर कितने भले लगते है।।
एक हम ही हाथ में पते का कागज लेकर घुमते रहते हैं । वास्तव में तो न्यूयोर्क में एवन्यू, स्ट्रीट और घर का नंबर अगर ठीक से लिखा हुआ है और थोडा बहुत अंग्रेजी आप जानते हैं तो पता ढूंढना मुश्किल नहीं है। फिर भी मैं उस न्यूयोर्क शहर में रास्ता भूल गया था । ऐसे समय डाकघर में जाकर पता पूछना स्वाभाविक होता है ।परंतु मैं तो डाकघर का ही पता ढूंढ रहा था । न्यूयोर्क के मेनहटन टापु पर तो मार्गों की अत्यंत पद्धतिसर रचना है। हडसन नदी पर जानेवाली स्ट्रीट, और उन रास्तों को नब्बे अंश के कोन पर काटने वाले जो मार्ग है वह एवन्यू । मेरा भुलक्कड होने का गुणधर्म जाननेवाले मित्रों ने मुझे यह रचना याद करवा दी थी। फिर भी रास्ता भूलना मेरी विशेषता थी । मेरा स्वयं का पता मैं पूरे विस्तार से कहता हूँ । इसलिये कहीं भी रास्ता नहीं भटकुंगा ऐसा आश्वासन देकर मैं मेरे न्यूयोर्क स्थित दोस्त के घर से पोस्टओफिस खोजने निकल पडा ।
सुबह के दस बज रहे थे । प्रसन्न करनेवाली धुप होने पर भी हवा में ठंड थी। आनंदपूर्वक टहलने जैसा वातावरण था। पर पता खोज रहे मनुष्य की स्थिति वह आनन्द उठाने जैसी होती हैं की नहीं यह कहना मुश्किल है।
पराये प्रदेश में अनजान मनुष्य को पता पूछना यह कितनी मुश्किल बात है यह न्यूयोर्क जैसे नगर में जिसे पता ढूंढने के लिये भटकना पडा है वही समझ सकेगा। मेरे ‘एस्क्यु झ मी' की तरफ कोई नजर फेरनेवाला भी मिला हो तो उसे सद्भाग्य ही मानना होगा । इस ठंडे देश में लोग बहुत तेज गति से चलते हैं । उनको रोकना बहुत कठिन कार्य है । अगर रोक कर ‘एस्क्युझ मी' कह भी दिया तो उसे लगता है कि धक्का लगने से यह माफी माँग रहा है । इसलिये 'नेवर माइण्ड' कह कर वे आगे बढ जाते हैं। सीधे कोई दुकान में जाकर पूछने की सोचेंगे तो हो सकता है कि वह पता बताने का सर्विसचार्ज लगा दे। जहाँ सब्जी लेने गई माँ के पास से अगर उसकी बेटी अपने छोटे भाई को आधा घण्टा सम्हालने के 'बेबीसिटींग'सर्विस चार्ज के रूप में एकाध डोलर लेती हो वहाँ मेरे जैसे पराये आदमी की क्या औकात ? वैसे भी मैं परेशान हो चुका था । इतने में सामनेवाली फूटपाथ पर बाबागाडी लेकर आती एक वृद्धा दिखाई दी। गाडी में बच्चा नहीं था, खरीदा हुआ सामान था। मैंने बाबागाडी के पास खडे रहकर कहा, एस्क्युझ मी मेडम'
पता नहीं वह किस धून में चल रही थी। मेरा 'एस्क्युझ मी' सुनते ही उसने भयभीत द्रष्टि से मेरे सामने देखा और डर के मारे काँपने लगी। उसका वह घबराया हुआ चहेरा और काँपती गर्दन देख कर मुझे लगा कि दादीमाँ को कोई झटका लगा है । मैं भी घबरा गया । क्या बोलना यह समझ में नहीं आता था । मैंने पूछा 'आरन्ट यु फिलिंग वेल, मेडम'? उसके मुँह से आवाझ भी नहीं निकलती थी। कुछ क्षण ऐसे ही बीते । बाद में उसने काँपती आवाझ में पूछा क्या चाहिये तुम्हे ?'
मुझे एक पता पूछना है । मैंने सबूत के नाते हाथ में पकडा कागज उसे दिखाया । यहाँ की पोस्ट ऑफिस कहाँ है ?'
'क्या?'
'पोस्ट ओफिस' मेरे मन में आया कि अगर यहाँ पोस्ट ऑफिस को और कुछ नाम से पहचानते होंगे तो और
References
भारतीय शिक्षा : वैश्विक संकटों का निवारण भारतीय शिक्षा (भारतीय शिक्षा ग्रन्थमाला ५), प्रकाशक: पुनरुत्थान प्रकाशन सेवा ट्रस्ट, लेखन एवं संपादन: श्रीमती इंदुमती काटदरे