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विचारहीनता के रूप में शीर्षासन कर रहे समाज को पुनः अपने पैरों पर खडा रहना सिखाना विद्यालय की ही जिम्मेदारी बन गई है।
 
विचारहीनता के रूप में शीर्षासन कर रहे समाज को पुनः अपने पैरों पर खडा रहना सिखाना विद्यालय की ही जिम्मेदारी बन गई है।
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=== विद्यालय की अर्थव्यवस्था ===
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१. आय
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# विद्यालय की आय के कितने स्रोत होते हैं ? कौन कौन से?
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# विद्यालय में छात्रों से शुल्क कितना लेना चाहिये, यह निर्धारित करने की सही पद्धति कौन सी है ?
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# विद्यालय के लिये दान और अनुदान स्वीकार करने की नीति एवं मापदंड किस प्रकार के होने चाहिये ?
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# विद्यालय के लिये अर्थप्राप्ति के और कोई साधन हो सकते हैं क्या ? यदि हाँ, तो किस प्रकार के ?
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# आवश्यकता से अधिक आय होने की स्थिति अच्छी है या नहीं ?
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# आवश्यकता से अधिक आय का क्या उपयोग कर सकते हैं ?
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२. व्यय
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# विद्यालय में किन किन बातों पर व्यय होता है?
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# सभी प्रकार के व्यय का अनुपात कैसा होना चाहिये ?
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# कम से कम व्यय हो इस प्रकार की व्यवस्था कैसे करें ?
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# व्यय एवं गुणवत्ता का क्या सम्बन्ध है ?
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# व्यय एवं विद्यालय की प्रतिष्ठा का क्या सम्बन्ध है ?
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# व्यय के अनुरूप आय होनी चाहिये या आय के अनुरूप व्यय ?
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३. आय एवं व्यय के सम्बन्ध में भारतीय एवं पाश्चात्य दृष्टि में क्या अन्तर है ? भारतीय दृष्टि को व्यावहारिक बनाने के लिये क्या क्या कर सकते हैं ?
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विद्यालय संचालन के जो आयव्यय के संबंध में एक गट के साथ चर्चा की उनसे प्राप्त उत्तर ऐसे हैं
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१. सरकार से प्राप्त अनुदान, एवं छात्र का शुल्क, समाज में धनिको से दान आदि विद्यालय की आय के स्रोत बताये गये।
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२. शिक्षक, ऑफिस कर्मचारी, चतुर्थ स्रेणी कर्मचारीओंका वेतन हो सके इतना शुल्क छात्रों से लेना उचित है यह मत अनुदान न लेनेवाले संचालको का था । तो जिस बस्ती में विद्यालय है उनकी क्षमता के अनुसार छात्र से शुल्क लेना चाहिये ऐसा भी मत प्राप्त हुआ।
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३. अनुदान तो सरकार की ओर से शर्ते पूर्ण करने पर। मिलता है। तथा दान भी आजकल स्वेच्छा से प्राप्त होना कठीन है। अतः प्रवेश के समय अभिभावकों से दान स्वरूप कुछ राशी लेते है यह भी एकने बताया।
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४. विद्यालय चलाना है तो अर्थ चाहिये इसलिये डोनेशन, छुट्टियों में विद्यालय का मैदान कमरे विवाहमंडली को किराये पर देना, विद्यालय छुटने के बाद ट्यूशन क्लासीस, नृत्य संगीत आदि क्लासिस को किराये से देना, विद्यालय भवन का कुछ हिस्सा बँक दुकान के लिये किराये पर देना ऐसे कई आर्थिक स्रोत हो सकते है।
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५. आवश्यकता से अधिक आय होने की स्थिति अच्छी है। जितनी आय अधिक उतनी सुविधाए हम अधिक दे सकते हैं। ऐसा उत्तर मिला यदि अधिक आय मिलती तो कुछ गरीब छात्रों को निःशुल्क पढा भी सकते यह भी एक महानुभाव का मत रहा ।
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'''अभिमत'''
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आज विद्यालय तो ज्ञान के मॉल बन गये है। गणवेश, बस्ता, पुस्तकें, अन्य सारा साहित्य खरिदना विद्यालयों में अनिवार्य बना दिया है। कहीं कहीं तो विद्यालयने बच्चों की सुविधा के रूप दिन में बच्चों के लिए केन्टीन खोला है। और विद्यालय के बाद उसे ही होटल का स्वरूप दिया है। नये से भर्ती होने वाले शिक्षको से दान स्वरूप राशी लेना यह आज बडी मात्रा में दिखाई देता है। बाजार जैसी किंबहुना बाजार से निकृष्ट लेनदेन का प्रचलन आज बढ़ गया है । ऐसे विपरीत वातावरण में कुछ अच्छे निष्ठावान, तत्त्व से चलनेवाले विद्यालय है भी परन्तु उनकी मात्रा नगण्य जैसी ही है। ज्ञानदान का पवित्र कार्य करनेवाले ज्ञानमंदिर हमने ही अपवित्र किये है।।
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विद्यालय अध्ययन और अध्यापन का केन्द्र है यह बात तो सही है फिर भी उसे अर्थ की आवश्यकता तो रहती ही है। विद्यालय भौतिक पदार्थ के उत्पादन या वितरण का केन्द्र तो है नहीं, तो फिर उसका निभाव कैसे होगा ?
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एक के बाद एक मुद्दे का विचार करना चाहिये ।
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==== विद्यालय में अर्थ क्यों चाहिये ? ====
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# अध्यायन अध्यापन का कार्य अच्छे से अच्छा हो सके इसलिये भवन चाहिये । भवन में विभिन्न प्रकार का फर्नीचर चाहिये । पानी और प्रकाश की सुविधा चाहिये । बगीचा और मैदान चाहिये । ये सारी बातें बहुत अधिक धन की अपेक्षा करती है।
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# विद्यालय में अध्ययन अध्यापन हेतु विभिन्न प्रकार के शैक्षिक उपकरण तथा व्यवस्थायें चाहिये । इनका खर्च एक ही बार नहीं होता । यह आवर्ती खर्च होता है। यह भी पर्याप्त मात्रा में अधिक होता है। साथ ही अनेक प्रकार के कार्यक्रम होते हैं । इन कार्यक्रमों के लिये भी खर्च होता है।
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# सबसे महत्त्वपूर्ण खर्च है शिक्षकों के वेतन का । उन्हें अर्थनिरपेक्ष शिक्षा की दुहाई देकर वेतन नहीं लेने के लिये तो समझाया नहीं जा सकता क्योंकि उनका और उनके परिवार का निर्वाह तो चलना ही चाहिये । साथ ही उनके गौरव और सम्मान की रक्षा हो ऐसा वेतन भी चाहिये। ये तीन तो न्यूनतम खर्च है। इन की व्यवस्था हेतु विद्यालय के पास आय की क्या व्यवस्था होती है।
 
आज हर विद्यालय सशुल्क ही चलता है । इसमें किसी को आपत्ति भी नहीं होती । विद्यालय की शुल्कव्यवस्था इस प्रश्नावली के प्रश्न पुछकर कुछ लोगों से बातचीत हुई उनसे प्राप्त उत्तर इस प्रकार रहे -  
 
आज हर विद्यालय सशुल्क ही चलता है । इसमें किसी को आपत्ति भी नहीं होती । विद्यालय की शुल्कव्यवस्था इस प्रश्नावली के प्रश्न पुछकर कुछ लोगों से बातचीत हुई उनसे प्राप्त उत्तर इस प्रकार रहे -  
  
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