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| | === कारक तत्व === | | === कारक तत्व === |
| | कारक तत्वों से मतलब है धर्मपालन में सहायता देनेवाले घटक। ये निम्न होते हैं: | | कारक तत्वों से मतलब है धर्मपालन में सहायता देनेवाले घटक। ये निम्न होते हैं: |
| − | ६.१ धर्म व्यवस्था : शासन धर्मनिष्ठ रहे यह सुनिश्चित करना धर्म व्यवस्था की जिम्मेदारी है। अपने त्याग, तपस्या, ज्ञान, लोकसंग्रह, चराचर के हित का चिन्तन, समर्पण भाव और कार्यकुशलता के आधारपर समाज से प्राप्त समर्थन प्राप्त कर वह देखे की कोई अयोग्य व्यक्ति शासक नहीं बनें।
| + | # धर्म व्यवस्था : शासन धर्मनिष्ठ रहे यह सुनिश्चित करना धर्म व्यवस्था की जिम्मेदारी है। अपने त्याग, तपस्या, ज्ञान, लोकसंग्रह, चराचर के हित का चिन्तन, समर्पण भाव और कार्यकुशलता के आधार पर समाज से प्राप्त समर्थन प्राप्त कर वह देखे कि कोई अयोग्य व्यक्ति शासक नहीं बनें। |
| − | ६.२ शिक्षा : ६.२.१ कुटुम्ब शिक्षा ६.२.२ विद्याकेन्द्र की शिक्षा ६.२.३ लोकशिक्षा
| + | # शिक्षा : |
| − | ६.३ धर्मनिष्ठ शासन : शासक का धर्मशास्त्र का जानकार होना और स्वयं धर्माचरणी होना भी आवश्यक होता है। जब शासन धर्म के अनुसार चलता है, धर्म व्यवस्थाद्वारा नियमित निर्देशित होता है तब धर्म भी स्थापित होता है और राज्य व्यवस्था भी श्रेष्ठ बनती है।
| + | ## कुटुम्ब शिक्षा |
| − | ६.४ धर्मनिष्ठों का सामाजिक नेतृत्व : समाज जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में धर्मनिष्ठ लोग जब अच्छी संख्या में दिखाई देते हैं तब समाज मानस धर्मनिष्ठ बनता है।
| + | ## विद्याकेन्द्र की शिक्षा |
| | + | ## लोकशिक्षा |
| | + | # धर्मनिष्ठ शासन: शासक का धर्मशास्त्र का जानकार होना और स्वयं धर्माचरणी होना भी आवश्यक होता है। जब शासन धर्म के अनुसार चलता है, धर्म व्यवस्थाद्वारा नियमित निर्देशित होता है तब धर्म भी स्थापित होता है और राज्य व्यवस्था भी श्रेष्ठ बनती है। |
| | + | # धर्मनिष्ठों का सामाजिक नेतृत्व : समाज जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में धर्मनिष्ठ लोग जब अच्छी संख्या में दिखाई देते हैं तब समाज मानस धर्मनिष्ठ बनता है। |
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| | == चरण == | | == चरण == |
| − | धर्म का अनुपालन जब लोग स्वेच्छा से करनेवाले समाज के निर्माण के लिए दो बातें अत्यंत महत्वपूर्ण होतीं हैं। एक गर्भ में श्रेष्ठ जीवात्मा की स्थापना और दूसरे शिक्षा और संस्कार। | + | धर्म का अनुपालन जब लोग स्वेच्छा से करनेवाले समाज के निर्माण के लिए दो बातें अत्यंत महत्वपूर्ण होतीं हैं। एक गर्भ में श्रेष्ठ जीवात्मा की स्थापना और दूसरे शिक्षा और संस्कार। शिक्षा और संस्कार में: |
| − | | + | # जन्मपूर्व और शैशव काल में अधिजनन शास्त्र के आधार पर मार्गदर्शन। |
| − | शिक्षा और संस्कार में - | + | # बाल्य काल : कुटुम्ब की शिक्षा के साथ विद्याकेन्द्र शिक्षा का समायोजन |
| − | ७.१ जन्मपूर्व और शैशव कालमें अधिजनन शास्त्र के आधारपर मार्गदर्शन।
| + | # यौवन काल: अहंकार, बुद्धि के सही मोड़ हेतु सत्संग, प्रेरणा, वातावरण, ज्ञानार्जन/बलार्जन/कौशलार्जन आदि |
| − | ७.२ बाल्य काल : कुटुम्ब की शिक्षा के साथ विद्याकेन्द्र शिक्षा का समायोजन
| + | # प्रौढ़ावस्था: पूर्व ज्ञान/आदतों को व्यवस्थित करने के लिए सामाजिक वातावरण और मार्गदर्शन |
| − | ७.३ यौवन काल: अहंकार, बुद्धि के सही मोड़ हेतु सत्संग, प्रेरणा, वातावरण, ज्ञानार्जन/बलार्जन/कौशलार्जन आदि
| + | ## पुरोहित |
| − | ७.४ प्रौढ़ावस्था : पूर्व ज्ञान/आदतों को व्यवस्थित करने के लिए सामाजिक वातावरण और मार्गदर्शन
| + | ## मेले/यात्राएं |
| − | ७.४.१ पुरोहित
| + | ## कीर्तनकार/प्रवचनकार |
| − | ७.४.२ मेले/यात्राएं
| + | ## धर्माचार्य |
| − | ७.४.३ कीर्तनकार/प्रवचनकार
| + | ## दृक्श्राव्य माध्यम –चित्रपट, दूरदर्शन आदि |
| − | ७.४.४ धर्माचार्य
| + | ## आन्तरजाल |
| − | ७.४.५ दृक्श्राव्य माध्यम –चित्रपट, दूरदर्शन आदि
| + | ## कानून का डर |
| − | ७.४.६ आन्तरजाल
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| − | ७.४.७ कानून का डर
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| | == धर्म निर्णय व्यवस्था == | | == धर्म निर्णय व्यवस्था == |