समाधि अवस्था में ऋषि को सत्य का दर्शन होता है<ref>भारतीय शिक्षा : संकल्पना एवं स्वरूप (भारतीय शिक्षा ग्रन्थमाला १), प्रकाशक: पुनरुत्थान प्रकाशन सेवा ट्रस्ट, लेखन एवं संपादन: श्रीमती इंदुमती काटदरे</ref>। यह दर्शन परावाणी में अनुदित होता है । परा वाणी वैखरी तक पहुँचकर सबको सुनाई दे इस प्रकार प्रकट होती है। उसे मन्त्र कहा जाता है . इसलिये ऋषि की परिभाषा बताई गई है {{Citation needed}} “ऋष्यय: मन्त्रद्रष्टार: ।'
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समाधि अवस्था में ऋषि को सत्य का दर्शन होता है<ref>भारतीय शिक्षा : संकल्पना एवं स्वरूप (भारतीय शिक्षा ग्रन्थमाला १), प्रकाशक: पुनरुत्थान प्रकाशन सेवा ट्रस्ट, लेखन एवं संपादन: श्रीमती इंदुमती काटदरे</ref>। यह दर्शन परावाणी में अनुदित होता है । परा वाणी वैखरी तक पहुँचकर सबको सुनाई दे इस प्रकार प्रकट होती है। उसे मन्त्र कहा जाता है . इसलिये ऋषि की परिभाषा बताई गई है {{Citation needed}} <blockquote>ऋष्यय: मन्त्रद्रष्टार:।</blockquote>समाधि अवस्था में ऋषि को दिखाई देता है कि मनुष्य शरीर में बहत्तर हजार नाड़ियाँ हैं । यह दर्शन किसी भी साधन से नहीं होता, आँख नामक साधन से भी नहीं होता। नाड़ियाँ स्वयं ऋषि की अन्तःप्रज्ञा में प्रकट होती हैं । स्वामी विवेकानन्द कहते हैं, “समस्त ज्ञान मनुष्य के अन्दर स्थित है । उसे केवल अनावृत्त करना होता है । अनावरण होते ही वह प्रकट होता है ।'
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समाधि अवस्था में ऋषि को दिखाई देता है कि मनुष्य
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शरीर में बहत्तर हजार नाड़ियाँ हैं । यह दर्शन किसी भी
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साधन से नहीं होता, आँख नामक साधन से भी नहीं होता ।
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नाड़ियाँ स्वयं ऋषि की अन्तःप्रज्ञा में प्रकट होती हैं ।
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स्वामी विवेकानन्द कहते हैं, “समस्त ज्ञान मनुष्य के
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अन्दर स्थित है । उसे केवल अनावृत्त करना होता है ।
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अनावरण होते ही वह प्रकट होता है ।'
श्रीमदू भगवदूगीता कहती है, “अज्ञानेनावृत्तं ज्ञान तेन
श्रीमदू भगवदूगीता कहती है, “अज्ञानेनावृत्तं ज्ञान तेन