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इनके अतिरिक्त भी कई और मुद्राएँ हैं जो विशेष मूर्तियों में प्रयुक्त होती हैं, जैसे वराह की मुद्रा को 'आलिंग्य' मुद्रा कहते हैं। इसमें बाँया पैर उठा हुआ, कटि कुछ तिरछी, सिर उठा हुआ, नीचा हाथ अभय मुद्रा में होता है।<ref name=":1" />
 
इनके अतिरिक्त भी कई और मुद्राएँ हैं जो विशेष मूर्तियों में प्रयुक्त होती हैं, जैसे वराह की मुद्रा को 'आलिंग्य' मुद्रा कहते हैं। इसमें बाँया पैर उठा हुआ, कटि कुछ तिरछी, सिर उठा हुआ, नीचा हाथ अभय मुद्रा में होता है।<ref name=":1" />
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'''आभूषण एवं वस्त्र'''
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देवताओं की पहचान उनके आभूषणों एवं वस्त्रों के द्वारा भी की जा सकती है। भारतीय-स्थापत्य में प्रतिमाओं को विविध आभूषणों एवं वस्त्रों से भी सुशोभित करने की परम्परा है। वराहमिहिर ने बृहत्संहिता में उल्लेख किया है - <blockquote>देशानुरूपभूषणवेषालंकारमूर्तिभिः कार्या। प्रतिमा लक्षणयुक्ता सन्निहिता वृद्धिदा भवति॥ (बृहत्संहिता)</blockquote>देश -काल के अनुसार समाज में आभूषणों एवं वस्त्रों की जो मनुष्यों में भूषा-पद्धतियाँ प्रचलित थीं, उन्हीं के अनुरूप देवों की मूर्तियों में भी उनकी परिकल्पना की जाने लगी।
    
==वास्तु एवं प्रतिमा निर्माण॥ Architecture and sculpture==
 
==वास्तु एवं प्रतिमा निर्माण॥ Architecture and sculpture==
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