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| | ===नगर नियोजन एवं जलसंरचना=== | | ===नगर नियोजन एवं जलसंरचना=== |
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| | वैदिक ऋषियों को समुद्र, नदी व पुष्करणियों से अत्यन्त ही लगाव था। इसी कारण ऋषियों के आश्रम और बस्तियाँ नदियों के किनारे ही विकसित हुए। ऋग्वेद में सर्वत्र जल को चार सूक्तों में आपो देवता कहकर संबोधित किया गया है। ऋग्वेद के प्रथम मण्डल के तेईसवें सूक्त, जिसके द्रष्टा मेधातिथि काण्व हैं, इसके १६-२३ वें मन्त्रों में जल की स्तुति की गयी है। इसी के सप्तम मण्डल के ४७ वें तथा ४९वे सूक्त में मन्त्रद्रष्टा ऋषि वसिष्ठ मैत्रावरुणि ने आपो देवरूप जल की स्तुति की है। ४९ वें सूक्त में समुद्र को जलाशयों में ज्येष्ठ माना गया है -<ref>डॉ० धीरेन्द्र झा, [https://mahavirmandirpatna.org/dharmayan/wp-content/uploads/2021/05/%E0%A4%B5%E0%A5%88%E0%A4%A6%E0%A4%BF%E0%A4%95-%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%B9%E0%A4%BF%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%AF-%E0%A4%AE%E0%A5%87%E0%A4%82-%E0%A4%9C%E0%A4%B2-%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%AE%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%B6-%E0%A4%A1%E0%A4%BE.-%E0%A4%A7%E0%A5%80%E0%A4%B0%E0%A5%87%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%B0-%E0%A4%9D%E0%A4%BE.pdf धर्मायण पत्रिका-वैदिक साहित्य में जल-विमर्श], सन २०२१, महावीर मन्दिर पटना (पृ० ११)।</ref> <blockquote>समुद्र ज्येष्ठाः सलिलस्य मध्यात्पुनाना यन्त्यनिविशमानाः। इन्द्रो या वज्री वृषभो रराद ता आपो देवीरिह मामवन्तु॥ (ऋग्वेद)</blockquote>समुद्र जिनमें ज्येष्ठ है, वे जल प्रवाह, सदा अन्तरिक्ष से आने वाले है। इन्द्रदेव ने जिनका मार्ग प्रशस्त किया है, वे जलदेव हमारी रक्षा करें। | | वैदिक ऋषियों को समुद्र, नदी व पुष्करणियों से अत्यन्त ही लगाव था। इसी कारण ऋषियों के आश्रम और बस्तियाँ नदियों के किनारे ही विकसित हुए। ऋग्वेद में सर्वत्र जल को चार सूक्तों में आपो देवता कहकर संबोधित किया गया है। ऋग्वेद के प्रथम मण्डल के तेईसवें सूक्त, जिसके द्रष्टा मेधातिथि काण्व हैं, इसके १६-२३ वें मन्त्रों में जल की स्तुति की गयी है। इसी के सप्तम मण्डल के ४७ वें तथा ४९वे सूक्त में मन्त्रद्रष्टा ऋषि वसिष्ठ मैत्रावरुणि ने आपो देवरूप जल की स्तुति की है। ४९ वें सूक्त में समुद्र को जलाशयों में ज्येष्ठ माना गया है -<ref>डॉ० धीरेन्द्र झा, [https://mahavirmandirpatna.org/dharmayan/wp-content/uploads/2021/05/%E0%A4%B5%E0%A5%88%E0%A4%A6%E0%A4%BF%E0%A4%95-%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%B9%E0%A4%BF%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%AF-%E0%A4%AE%E0%A5%87%E0%A4%82-%E0%A4%9C%E0%A4%B2-%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%AE%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%B6-%E0%A4%A1%E0%A4%BE.-%E0%A4%A7%E0%A5%80%E0%A4%B0%E0%A5%87%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%B0-%E0%A4%9D%E0%A4%BE.pdf धर्मायण पत्रिका-वैदिक साहित्य में जल-विमर्श], सन २०२१, महावीर मन्दिर पटना (पृ० ११)।</ref> <blockquote>समुद्र ज्येष्ठाः सलिलस्य मध्यात्पुनाना यन्त्यनिविशमानाः। इन्द्रो या वज्री वृषभो रराद ता आपो देवीरिह मामवन्तु॥ (ऋग्वेद)</blockquote>समुद्र जिनमें ज्येष्ठ है, वे जल प्रवाह, सदा अन्तरिक्ष से आने वाले है। इन्द्रदेव ने जिनका मार्ग प्रशस्त किया है, वे जलदेव हमारी रक्षा करें। |
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| | ===हड़प्पा, लोथल, धोलावीरा में जल निकास=== | | ===हड़प्पा, लोथल, धोलावीरा में जल निकास=== |
| − | सिंधु सभ्यता के बहुत से स्थलों से उन्नत जल प्रबंधन के साक्ष्य हमें प्राप्त होते हैं। इस सभ्यता के समस्त नगरों में उन्नत जल प्रबंधन की व्यवस्था थी किन्तु तकनीकी निर्माण के दृष्टिकोण से मोहनजोदड़ो का विशाल स्नानागार, लोथल का डाकयार्ड और धौलावीरा शहर की बनावट का यहाँ उल्लेख आवश्यक हो जाता है - | + | सिंधु सभ्यता के बहुत से स्थलों से उन्नत जल प्रबंधन के साक्ष्य हमें प्राप्त होते हैं। इस सभ्यता के समस्त नगरों में उन्नत जल प्रबंधन की व्यवस्था थी किन्तु तकनीकी निर्माण के दृष्टिकोण से मोहनजोदड़ो का विशाल स्नानागार, लोथल का डाकयार्ड और धौलावीरा शहर की बनावट का यहाँ उल्लेख आवश्यक हो जाता है -<ref>डॉ० ममता शर्मा, [https://www.iesrj.com/upload/4.%20Mamta%20Ji%20-%20Online.pdf प्राचीन भारत में जल प्रबंधन के पुरातात्विक साक्ष्यः एक ऐतिहासिक अध्ययन], सन २०२३, इन्टरनेशनल एजुकेशन साइंटिफिक रिसर्च जर्नल (पृ० १२)।</ref> |
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| | *मोहनजोदड़ो से एक बृहत स्नानागार प्राप्त हुआ जिसकी लंबाई १२ मीटर, चौड़ाई ७ मीटर और गहराई २.४ मीटर थी। स्नानागार के जलाशय में उतरने के लिए इसके उत्तरी और दक्षिणी छोर पर सीढियाँ बनी हुई हैं। पूरी बृहत स्नानागार की संरचना पक्की ईंटों से निर्मित हैं और इस पर विटूमिन से पलस्तर किया गया है। जलाशय के पश्चिमी हिस्से में जल निकास हेतु नालियाँ भी प्राप्त हुई है। इस जलाशय में जलापूर्ति का माध्यम निकट ही स्थित एक कुआ था। | | *मोहनजोदड़ो से एक बृहत स्नानागार प्राप्त हुआ जिसकी लंबाई १२ मीटर, चौड़ाई ७ मीटर और गहराई २.४ मीटर थी। स्नानागार के जलाशय में उतरने के लिए इसके उत्तरी और दक्षिणी छोर पर सीढियाँ बनी हुई हैं। पूरी बृहत स्नानागार की संरचना पक्की ईंटों से निर्मित हैं और इस पर विटूमिन से पलस्तर किया गया है। जलाशय के पश्चिमी हिस्से में जल निकास हेतु नालियाँ भी प्राप्त हुई है। इस जलाशय में जलापूर्ति का माध्यम निकट ही स्थित एक कुआ था। |
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| | कूप काराः सुधा कारा वम्श कर्म कृतः तथा। समर्था ये च द्रष्टारः पुरतः ते प्रतस्थिरे॥ (बाल्मीकि रामायण)<ref>[https://sa.wikisource.org/wiki/%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%AF%E0%A4%A3%E0%A4%AE%E0%A5%8D/%E0%A4%85%E0%A4%AF%E0%A5%8B%E0%A4%A7%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%A3%E0%A5%8D%E0%A4%A1%E0%A4%AE%E0%A5%8D/%E0%A4%B8%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%97%E0%A4%83_%E0%A5%AE%E0%A5%A6 बाल्मीकि रामायण], अयोध्याकाण्ड, सर्ग ८०, श्लोक - १-२।</ref></blockquote>राजा का प्रमुख कर्त्तव्य तालाब और नहरों का निर्माण करवाना भी था। जलाशय, कूप, बाँध, नहरें, झील आदि कृत्रिम रूप से जल प्राप्ति के साधन थे। इन जल संरचनाओं के निर्माणकर्ता अभियांत्रिकों को रामायण में यंत्रकार कहा गया है। इसी प्रकार का विवरण महाभारत से भी प्राप्त होता है - | | कूप काराः सुधा कारा वम्श कर्म कृतः तथा। समर्था ये च द्रष्टारः पुरतः ते प्रतस्थिरे॥ (बाल्मीकि रामायण)<ref>[https://sa.wikisource.org/wiki/%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%AF%E0%A4%A3%E0%A4%AE%E0%A5%8D/%E0%A4%85%E0%A4%AF%E0%A5%8B%E0%A4%A7%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%A3%E0%A5%8D%E0%A4%A1%E0%A4%AE%E0%A5%8D/%E0%A4%B8%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%97%E0%A4%83_%E0%A5%AE%E0%A5%A6 बाल्मीकि रामायण], अयोध्याकाण्ड, सर्ग ८०, श्लोक - १-२।</ref></blockquote>राजा का प्रमुख कर्त्तव्य तालाब और नहरों का निर्माण करवाना भी था। जलाशय, कूप, बाँध, नहरें, झील आदि कृत्रिम रूप से जल प्राप्ति के साधन थे। इन जल संरचनाओं के निर्माणकर्ता अभियांत्रिकों को रामायण में यंत्रकार कहा गया है। इसी प्रकार का विवरण महाभारत से भी प्राप्त होता है - |
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| | + | महाभारत के सभापर्व में नारद युधिष्ठिर से पूछते हैं कि जलाशय, नहर आदि सभी का निर्माण उचित दूरी व स्थान पर किया गया है कि नहीं जिससे खेतों को समान रूप से जल प्राप्त हो। |
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| − | ==आधुनिक परिप्रेक्ष्य में जलसंरचना == | + | == आधुनिक परिप्रेक्ष्य में जलसंरचना == |
| | '''वर्षाजल-संग्रह और वास्तु॥ Rainwater Harvesting and Vastu''' | | '''वर्षाजल-संग्रह और वास्तु॥ Rainwater Harvesting and Vastu''' |
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