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| | ==जलव्यवस्था की वैदिक अवधारणा== | | ==जलव्यवस्था की वैदिक अवधारणा== |
| − | वेदों में जल की ४ अवस्थाएं वर्णित हैं। ऐतरेय ब्राह्मण में बताया गया है कि आत्मा-रूप मूल तत्त्व ने जिस जल को (अप्-तत्त्व को) उत्पन्न किया, वह चार अवस्थाओं में चार नामों से चार लोकों में व्याप्त है। जैसा कि -<ref>पं० श्री गिरिधर शर्मा चतुर्वेदी, [https://ia800709.us.archive.org/20/items/VaidikaVishvaAurBharatiyaSanskriti/Vaidika-Vishva-aur-Bharatiya-Sanskriti.pdf वैदिक विज्ञान और भारतीय संस्कृति], सन २०००, बिहार-राष्ट्रभाषा-परिषद्, पटना (पृ० १०६)।</ref><blockquote>आत्मा वा इदमेक एवाग्र आसीन्नान्यत्किञ्चन मिषत्। स ईक्षत लोकान्नु सृजा इति। स इमांल्लोकानसृजत अम्भो मरीचिर्भर आपः। अदोऽम्भः परेण दिवम् द्यौः प्रतिष्ठाः अन्तरिक्षं मरीचयः, पृथिवी भरः, या अधस्तात्ता आपः। स ईंक्षतेमे नु लोका लोकपालान्नु सृजा इति सोऽद्भ्य एव पुरुषं समुद्धृत्यामूर्च्छयत्। (ऐतरेय ब्राह्मण)</blockquote>'''भाषार्थ -''' अम्भ, मरीचि, भर् और आप् रूप में इन चार अवस्थाओं एवं नामों के द्वारा चार लोकों में व्याप्त है। अम्भः इनमें वह है, जो सूर्य-मण्डल से (द्युलोक से) भी ऊर्ध्व-प्रदेश में महः, जनः आदि लोकों में व्याप्त है। अन्तरिक्ष में जो जल व्याप्त है, वह मरीचि-रूप है। | + | वेदों में जल की ४ अवस्थाएं वर्णित हैं। ऐतरेय ब्राह्मण में बताया गया है कि आत्मा-रूप मूल तत्त्व ने जिस जल को (अप्-तत्त्व को) उत्पन्न किया, वह चार अवस्थाओं में चार नामों से चार लोकों में व्याप्त है। जैसा कि -<ref>पं० श्री गिरिधर शर्मा चतुर्वेदी, [https://ia800709.us.archive.org/20/items/VaidikaVishvaAurBharatiyaSanskriti/Vaidika-Vishva-aur-Bharatiya-Sanskriti.pdf वैदिक विज्ञान और भारतीय संस्कृति], सन २०००, बिहार-राष्ट्रभाषा-परिषद्, पटना (पृ० १०६)।</ref><blockquote>आत्मा वा इदमेक एवाग्र आसीन्नान्यत्किञ्चन मिषत्। स ईक्षत लोकान्नु सृजा इति। स इमांल्लोकानसृजत अम्भो मरीचिर्भर आपः। अदोऽम्भः परेण दिवम् द्यौः प्रतिष्ठाः अन्तरिक्षं मरीचयः, पृथिवी भरः, या अधस्तात्ता आपः। स ईंक्षतेमे नु लोका लोकपालान्नु सृजा इति सोऽद्भ्य एव पुरुषं समुद्धृत्यामूर्च्छयत्। (ऐतरेय ब्राह्मण)<ref>[https://sa.wikisource.org/wiki/%E0%A4%90%E0%A4%A4%E0%A4%B0%E0%A5%87%E0%A4%AF%E0%A5%8B%E0%A4%AA%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%B7%E0%A4%A6%E0%A5%8D ऐतरेयोपनिषद्], अध्याय - १, खण्ड - १।</ref></blockquote>'''भाषार्थ -''' अम्भ, मरीचि, भर् और आप् रूप में इन चार अवस्थाओं एवं नामों के द्वारा चार लोकों में व्याप्त है। अम्भः इनमें वह है, जो सूर्य-मण्डल से (द्युलोक से) भी ऊर्ध्व-प्रदेश में महः, जनः आदि लोकों में व्याप्त है। अन्तरिक्ष में जो जल व्याप्त है, वह मरीचि-रूप है। |
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| | ===अपः सूक्त एवं नासदीय सूक्त में जल=== | | ===अपः सूक्त एवं नासदीय सूक्त में जल=== |
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| | ==जलसंरचना एवं वास्तु: एक परम्परा== | | ==जलसंरचना एवं वास्तु: एक परम्परा== |
| | + | [[File:मोहन जोदड़ो का महान स्नानागार.jpg|thumb|मोहन जोदड़ो का महान स्नानागार]] |
| | + | प्राचीन भारतीय सभ्यता, जिसे सिंधु घाटी सभ्यता या हड़प्पा सभ्यता के रूप में जाना जाता है, ३३००-१३०० ई०पू० के आसपास अपने उत्कर्ष पर थी। अब यह ज्ञात हुआ है कि हड़प्पा के लोगों के पास पानी की आपूर्ति और सीवरेज की परिष्कृत प्रणालियाँ थीं, जिनमें हाइड्रोलिक संरचनाएँ जैसे बाँध, टैंक, पंक्तिबद्ध कुएँ, पानी के पाइप और फ्लश शौचालय आदि शामिल थे। हड़प्पा और मोहन जोदड़ो के शहरों ने विश्व की प्रथम शहरी स्वच्छता प्रणाली विकसित की। सिंधु घाटी सभ्यता में सिंचाई के उद्देश्य से बड़े पैमाने पर कृषि का कार्य किया गया था और नहरों के एक व्यापक नेटवर्क का उपयोग किया गया था।<ref>शरद कुमार जैन, [https://nihroorkee.gov.in/sites/default/files/Ancient_Hydrology_Hindi_Edition.pdf प्राचीन भारत में जलविज्ञानीय ज्ञान], सन २०१९, राष्ट्रीय जलविज्ञान संस्थान-रुड़की, उत्तराखण्ड (पृ० १३)।</ref> |
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| | ===प्राचीन नगरों में जल प्रबंधन=== | | ===प्राचीन नगरों में जल प्रबंधन=== |
| − | भारतीय लोगों के सांस्कृतिक और धार्मिक जीवन पर जल का हमेशा एक व्यापक प्रभाव रहा हि। प्राचीन भारतीय सभ्यता में सिंधु घाटी या हडप्पा सभ्यता के लोगों के पास पानी की आपूर्ति और सीवरेज की परिष्कृत प्रणालियाँ थीं। मोहन जोदडों का 'महान स्नान गृह' इस बात का अद्भुत प्रमाण है।<ref>शरद कुमार जैन, [https://nihroorkee.gov.in/sites/default/files/Ancient_Hydrology_Hindi_Edition.pdf प्राचीन भारत में जलविज्ञानीय ज्ञान], सन २०१९, राष्ट्रीय जलविज्ञान सम्स्थान, उत्तराखण्ड (पृ० ३)।</ref> | + | भारतीय लोगों के सांस्कृतिक और धार्मिक जीवन पर जल का हमेशा एक व्यापक प्रभाव रहा हि। प्राचीन भारतीय सभ्यता में सिंधु घाटी या हडप्पा सभ्यता के लोगों के पास पानी की आपूर्ति और सीवरेज की परिष्कृत प्रणालियाँ थीं। मोहन जोदडों का 'महान स्नान गृह' इस बात का अद्भुत प्रमाण है।<ref>शरद कुमार जैन, [https://nihroorkee.gov.in/sites/default/files/Ancient_Hydrology_Hindi_Edition.pdf प्राचीन भारत में जलविज्ञानीय ज्ञान], सन २०१९, राष्ट्रीय जलविज्ञान संस्थान, उत्तराखण्ड (पृ० ३)।</ref> |
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| | ===यज्ञवेदियों के समीप जल स्रोतों की व्यवस्था=== | | ===यज्ञवेदियों के समीप जल स्रोतों की व्यवस्था=== |
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| | ===हड़प्पा, लोथल, धोलावीरा में जल निकास=== | | ===हड़प्पा, लोथल, धोलावीरा में जल निकास=== |
| | + | [[File:धोलावीरा में परिष्कृत जलाशय।.jpg|thumb|धोलावीरा में परिष्कृत जलाशय, प्राचीन सिंधु घाटी सभ्यता में हाइड्रोलिक सीवेज सिस्टम्स का प्रमाण।]] |
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| | ===मंदिरों में कूप–सरोवर–जलमंडप की योजना=== | | ===मंदिरों में कूप–सरोवर–जलमंडप की योजना=== |