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मन्दिर शब्द शिथिल व विश्रान्ति का वाचक होने से मूलतः गृह के लिए प्रयुक्त होता था, किन्तु कालान्तर में अर्थान्तरित होकर देवगृह के लिए रूढ हो गया। देवालय निर्माण के आरम्भ से लेकर बाद तक, देवप्रतिष्ठा तक सात कर्म होते हैं। जिन्हें विधि के अनुसार पूर्ण करना चाहिये। ये कर्म हैं -<blockquote>कूर्म्मसंस्थापने द्वारे पद्माख्यायां तु पौरुषे। घटे ध्वजे प्रतिष्ठायां एवं पुण्याहसप्तकम्॥ (प्रासादमण्डनम्)</blockquote>कूर्मस्थापना, द्वार स्थापना, पद्मशिला स्थापना, प्रासाद पुरुष की स्थापना, कलश, ध्वजा रोहण तथा देव प्रतिष्ठा ये प्रमुख सात कर्म होते हैं।  
 
मन्दिर शब्द शिथिल व विश्रान्ति का वाचक होने से मूलतः गृह के लिए प्रयुक्त होता था, किन्तु कालान्तर में अर्थान्तरित होकर देवगृह के लिए रूढ हो गया। देवालय निर्माण के आरम्भ से लेकर बाद तक, देवप्रतिष्ठा तक सात कर्म होते हैं। जिन्हें विधि के अनुसार पूर्ण करना चाहिये। ये कर्म हैं -<blockquote>कूर्म्मसंस्थापने द्वारे पद्माख्यायां तु पौरुषे। घटे ध्वजे प्रतिष्ठायां एवं पुण्याहसप्तकम्॥ (प्रासादमण्डनम्)</blockquote>कूर्मस्थापना, द्वार स्थापना, पद्मशिला स्थापना, प्रासाद पुरुष की स्थापना, कलश, ध्वजा रोहण तथा देव प्रतिष्ठा ये प्रमुख सात कर्म होते हैं।  
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'''मन्दिर निर्माण का स्थान'''  
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'''मन्दिर निर्माण का स्थान॥ Place of temple construction'''  
    
मन्दिर का निर्माण शास्त्रों में बताए गये स्थानों पर ही करना चाहिए। जैसा कि प्रासादमण्डन ग्रन्थ में प्राप्त होता है -  <blockquote>नद्यां सिद्धाश्रमे तीर्थे पुरे ग्रामे च गह्वरे। वापी-वाटी तडागादी स्थाने कार्यं सुरालयम्॥ (प्रासादमण्डनम्) </blockquote>'''भाषार्थ -''' नदी के तट पर, सिद्धपुरुषों के निर्वाण स्थान, तीर्थ भूमि, शहर, गांव, पर्वत की गुफाओं में, बावडी, उपवन और तालाब आदि स्थलों पर मन्दिर का निर्माण करना चाहिए।
 
मन्दिर का निर्माण शास्त्रों में बताए गये स्थानों पर ही करना चाहिए। जैसा कि प्रासादमण्डन ग्रन्थ में प्राप्त होता है -  <blockquote>नद्यां सिद्धाश्रमे तीर्थे पुरे ग्रामे च गह्वरे। वापी-वाटी तडागादी स्थाने कार्यं सुरालयम्॥ (प्रासादमण्डनम्) </blockquote>'''भाषार्थ -''' नदी के तट पर, सिद्धपुरुषों के निर्वाण स्थान, तीर्थ भूमि, शहर, गांव, पर्वत की गुफाओं में, बावडी, उपवन और तालाब आदि स्थलों पर मन्दिर का निर्माण करना चाहिए।
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अपराजित पृच्छ द्वारा दिया गया पीठ (Socle) एवं प्रासाद (Entire edifice) की ऊँचाइयों का अनुपात अधिक व्यावहारिक है।
 
अपराजित पृच्छ द्वारा दिया गया पीठ (Socle) एवं प्रासाद (Entire edifice) की ऊँचाइयों का अनुपात अधिक व्यावहारिक है।
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===भूमि निरूपण===
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===भूमि निरूपण॥ Bhumi Nirupana===
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===गर्भगृह एवं मंडप===
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===गर्भगृह एवं मंडप॥ Garbhagrh and Mandapa===
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===प्रासाद के प्रकार===
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===प्रासाद के प्रकार॥ Prasada ke Prakara===
 
'''विमान॥ Vimana'''
 
'''विमान॥ Vimana'''
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गर्भ-गृह, निश्चित रूप से एक गहरा अंधेरा कक्ष  होता है, जहां  
 
गर्भ-गृह, निश्चित रूप से एक गहरा अंधेरा कक्ष  होता है, जहां  
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===प्रमुख शैलियां===
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===प्रमुख शैलियां॥ Pramukh Shailiyan===
 
[[File:देवालय वास्तु - प्रमुख शैलियां.jpg|thumb|देवालय वास्तु - प्रमुख शैलियां]]
 
[[File:देवालय वास्तु - प्रमुख शैलियां.jpg|thumb|देवालय वास्तु - प्रमुख शैलियां]]
 
देववास्तु के अनुसार भारत के मंदिरों को साधारणतया तीन शैलियों में वर्गीकृत किया गया है -<ref>देवेन्द्र नाथ ओझा, [https://www.researchgate.net/publication/369142874_Daiv_Vastu_Ki_Vividha_Shailiyon_Ka_Vimarsh_deva_vastu_ki_vividha_sailiyom_ka_vimarsa देव वास्तु की विविध शैलियों का विमर्श], सन २०२०, सेंट्रल संस्कृत यूनिवर्सिटी, उत्तराखण्ड (पृ० ९६)।</ref>  
 
देववास्तु के अनुसार भारत के मंदिरों को साधारणतया तीन शैलियों में वर्गीकृत किया गया है -<ref>देवेन्द्र नाथ ओझा, [https://www.researchgate.net/publication/369142874_Daiv_Vastu_Ki_Vividha_Shailiyon_Ka_Vimarsh_deva_vastu_ki_vividha_sailiyom_ka_vimarsa देव वास्तु की विविध शैलियों का विमर्श], सन २०२०, सेंट्रल संस्कृत यूनिवर्सिटी, उत्तराखण्ड (पृ० ९६)।</ref>  
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ग्रीवामारभ्य चाष्टास्रं विमानं द्राविडाख्यकम्। सर्वं वै रचुरस्त्रं यत् प्रासादं नागरं त्विदम्॥ (समरांगण सूत्रधार)
 
ग्रीवामारभ्य चाष्टास्रं विमानं द्राविडाख्यकम्। सर्वं वै रचुरस्त्रं यत् प्रासादं नागरं त्विदम्॥ (समरांगण सूत्रधार)
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'''नागर शैली'''
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'''नागर शैली॥ Urban Style'''
 
[[File:देवालय वास्तु - मुख्य अंग.jpg|thumb|347x347px|देवालय वास्तु - प्रमुख अंग]]
 
[[File:देवालय वास्तु - मुख्य अंग.jpg|thumb|347x347px|देवालय वास्तु - प्रमुख अंग]]
 
नागर शब्द नगर से बना है। सर्वप्रथम नगर में निर्माण होने के कारण अथवा संख्या में बाहुल्य होने के कारण इन्हें नागर की संज्ञा दी गई है। शिल्पशास्त्र के अनुसार नागर मन्दिरों के आठ प्रमुख अंग हैं -  
 
नागर शब्द नगर से बना है। सर्वप्रथम नगर में निर्माण होने के कारण अथवा संख्या में बाहुल्य होने के कारण इन्हें नागर की संज्ञा दी गई है। शिल्पशास्त्र के अनुसार नागर मन्दिरों के आठ प्रमुख अंग हैं -  
    
#मूल या आधार - जिस पर सम्पूर्ण भवन खड़ा किया जाता है।
 
#मूल या आधार - जिस पर सम्पूर्ण भवन खड़ा किया जाता है।
#मसूरक - नींव और दीवारों के बीच का भाग।
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# मसूरक - नींव और दीवारों के बीच का भाग।
 
#जंघा - दीवारें (विशेष रूप से गर्भगृह आदि की दीवारें)।
 
#जंघा - दीवारें (विशेष रूप से गर्भगृह आदि की दीवारें)।
 
#कपोत- कार्निस।
 
#कपोत- कार्निस।
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#कलश - शिखर का शीर्षभाग।
 
#कलश - शिखर का शीर्षभाग।
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'''द्राविड़ शैली'''
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परंतु ये आठ भी पूर्ण या पर्याप्त नहीं हैं. अधिष्ठान का ऊपरी प्लेटफार्म जगती कहलाता है। मूल मंदिर के शिखर के उपरांत एक अंतराल देकर स्तूपवत् मंडप भी बनते हैं। ये भी क्रमशः घटती ऊँचाई व विस्तार के साथ महामंडप, मंडप, अर्धमंडप कहलाते हैं। द्वार व स्तंभ बहुधा सर्पाकृति आरोह अवरोह लिए बनने लगे, तोरण द्वार के रूप में. शिखर में जुड़ने वाले उपशिखर उरुशृंग कहे जाते हैं। शिखर को विमान भी कहा जाता है। मंदिर के विभिन्न स्थानों पर गवाक्ष भी दिख सकते हैं।
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'''वेसर शैली'''
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'''द्राविड़ शैली॥ Dravidian Style'''
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यह शैली दक्षिण भारत में विकसित होने के कारण द्रविड़ शैली कहलाती है। तमिलनाडु के अधिकांश मंदिर इसी श्रेणी के हैं। इसमें मंदिर का आधार भाग वर्गाकार होता है तथा गर्भगृह के ऊपर का शिखर भाग प्रिज्मवत् या पिरामिडनुमा होता है, जिसमें क्षैतिज विभाजन लिए अनेक मंजिलें होती हैं। शिखर के शीर्ष भाग पर आमलक व कलश की जगह स्तूपिका होते हैं। इस शैली के मंदिरों की प्रमुख विशेषता यह है कि ये काफी ऊँचे तथा विशाल प्रांगण से घिरे होते हैं। प्रांगण में छोटे-बड़े अनेक मंदिर, कक्ष तथा जलकुण्ड होते हैं। परिसर में कल्याणी या पुष्करिणी के रूप में जलाशय होता है। प्रागंण का मुख्य प्रवेश द्वार 'गोपुरम्' कहलाता है। प्रायः मंदिर प्रांगण में विशाल दीप स्तंभ व ध्वज स्तंभ का भी विधान होता है।'''वेसर शैली॥ Weser Style'''
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नागर और द्रविड़ शैली के मिश्रित रूप को वेसर शैली की संज्ञा दी गई है। वेसर शब्द कन्नड़ भाषा के 'वेशर' शब्द से बना है, जिसका अर्थ है- रूप. नवीन प्रकार की रूप-आकृति होने के कारण इसे वेशर शैली कहा गया, जो भाषांतर होने पर वेसर या बेसर बन गया. यह विन्यास में द्रविड़ शैली का तथा रूप में नागर जैसा होता है। इस शैली के मंदिरों की संख्या सबसे कम है. इस शैली के मंदिर विन्ध्य पर्वतमाला से कृष्णा नदी के बीच निर्मित हैं। कर्नाटक व महाराष्ट्र इन मंदिरों के केंद्र माने जाते हैं। विशेषतः राष्ट्रकूट, होयसल व चालुक्य वंशीय कतिपय मंदिर इसी शैली में हैं।
 
{| class="wikitable"
 
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|+मंदिर की नागर व द्रविड़ शैलियों में सामान्य अंतर
 
|+मंदिर की नागर व द्रविड़ शैलियों में सामान्य अंतर
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|द्वार के रूप में सामान्यतः तोरण द्वार
 
|द्वार के रूप में सामान्यतः तोरण द्वार
|द्वार के रूप में सामान्यतः विशाल गोपुरम्  
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|द्वार के रूप में सामान्यतः विशाल गोपुरम्
 
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===शिखर प्रमाण===
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===शिखर प्रमाण॥ Shikhara Pramana===
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==सारांश==
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==सारांश॥ Summary==
 
भारतीय स्थापत्य कला व शिल्प कला में उपयोग होने वाली शैलियों के बारे में विस्तृत जानकारी प्राप्त होती है - नागर शैली, द्राविडशैली वेसर शैली। इन तीनों शैलियों के मन्दिर प्रायः भारत वर्ष में देखने को मिलते हैं।
 
भारतीय स्थापत्य कला व शिल्प कला में उपयोग होने वाली शैलियों के बारे में विस्तृत जानकारी प्राप्त होती है - नागर शैली, द्राविडशैली वेसर शैली। इन तीनों शैलियों के मन्दिर प्रायः भारत वर्ष में देखने को मिलते हैं।
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==उद्धरण==
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==उद्धरण॥ References==
 
[[Category:Hindi Articles]]
 
[[Category:Hindi Articles]]
 
[[Category:Jyotisha]]
 
[[Category:Jyotisha]]
 
[[Category:Temples]]
 
[[Category:Temples]]
 
<references />
 
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