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| | {{Main|Vastu Shastra Aur Bhavan Nivesh (वास्तु शास्त्र और भवन निवेश)}} | | {{Main|Vastu Shastra Aur Bhavan Nivesh (वास्तु शास्त्र और भवन निवेश)}} |
| | वास्तुशास्त्र के अन्तर्गत सम्पूर्ण देश व नगरों के निर्माण की योजना से लेकर छोटे-छोटे भवनों और उनमें रखे जाने वाले फर्नीचर और वाहन निर्माण तक की योजना आ जाती है। सामान्यतः इसका मुख्य संबंध भवन निर्माण की कला है।<ref>डॉ० उमेश पुरी 'ज्ञानेश्वर', [https://archive.org/details/vastukalaaurbhavannirmandr.umeshpurigyaneshwar/page/15/mode/1up वास्तु कला और भवन निर्माण], सन २००१, रणधीर प्रकाशन, हरिद्वार (पृ० १५)।</ref> | | वास्तुशास्त्र के अन्तर्गत सम्पूर्ण देश व नगरों के निर्माण की योजना से लेकर छोटे-छोटे भवनों और उनमें रखे जाने वाले फर्नीचर और वाहन निर्माण तक की योजना आ जाती है। सामान्यतः इसका मुख्य संबंध भवन निर्माण की कला है।<ref>डॉ० उमेश पुरी 'ज्ञानेश्वर', [https://archive.org/details/vastukalaaurbhavannirmandr.umeshpurigyaneshwar/page/15/mode/1up वास्तु कला और भवन निर्माण], सन २००१, रणधीर प्रकाशन, हरिद्वार (पृ० १५)।</ref> |
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| | + | === दक्षिण परम्परा एवं उत्तर परम्परा === |
| | + | भारतीय वास्तुविद्या या स्थापत्य शिल्प की दो प्रमुख परंपरा मानी गई है। प्रथम दक्षिण परंपरा जो कि द्रविड़ शैली है दूसरी उत्तर परंपरा जिसे नागर शैली माना गया है। जहां दक्षिण की द्रविड़ शैली और उत्तर की नागर शैली दोनों शैलियों के अपने-अपने सुंदर निदर्शन होते रहे हैं वहीं दोनों एक दूसरे पर पारस्परिक प्रभाव भी डालते हैं। |
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| | + | ==== दक्षिण परम्परा - द्रविड़ शैली के आचार्य ==== |
| | + | दक्षिण परंपरा द्रविड़ शैली इस परंपरा के प्रवर्तक आचार्यों में विशेष रूप से उल्लेखनीय आचार्य इस प्रकार से हैं - |
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| | + | ब्रह्मा, त्वष्टा, मय, मातंग, भृगु, काश्यप, अगस्त, शुक्र, पराशर, भग्नजित, नारद, प्रह्लाद, शुक्र, बृहस्पति और मानसार। वहीं मत्स्य पुराण बृहत्संहिता में २५ आचार्यों का निर्देश मिलता है जिनमें से बहुसंख्यक आचार्य द्रविड़ परंपरा के प्रवर्तक माने जाते हैं तथा कुछ नागर परंपरा के। |
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| | + | ==== दक्षिण परम्परा के वास्तु ग्रन्थ ==== |
| | + | जिनमें शैवागम, वैष्णव पंचरात्र, अत्रि संहिता, वैखानसागम, तंत्रग्रंथ, तंत्र समुच्चय, ईशान शिवगुरु, देव पद्धति इन सभी में आगम साहित्य अत्यधिक विशाल हैं इनमें वास्तुविद्या का वर्णन एवं विवेचन उत्कृष्ट प्रकार से किया गया है। |
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| | + | === उत्तर परंपरा - नागर शैली आचार्य === |
| | + | उत्तर परंपरा (नागर शैली) इस परंपरा के प्रवर्तक आचार्य विश्वकर्मा ने स्वयं पितामह से यह विद्या ग्रहण की है। मत्स्य पुराण में धर्म की १० पत्नियों में से वसु नाम की पत्नी से ८ पुत्रों में से प्रभास नामक पुत्र हुए प्रभास से विश्वकर्मा हुए जो शिल्प विद्या में अत्यंत निपुण थे और वे प्रजापति के रूप में प्रसिद्ध हुए। विश्वकर्मा, प्रासाद, भवन, उद्यान, प्रतिमा, आभूषण, वापी, जलाशय, बगीचा तथा कूप इत्यादि निर्माण में देवताओं के बडे ही हुए। |
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| | ==वास्तुशास्त्र के विभाग॥ Vastushastra ke Vibhaga== | | ==वास्तुशास्त्र के विभाग॥ Vastushastra ke Vibhaga== |