Changes

Jump to navigation Jump to search
सुधार जारी
Line 48: Line 48:     
मछली की आकृति की चुंबकीय सुई जो तेल से भरे बर्तन में तैरती रहती थी और जिसका मुख उत्तर दिशा में रहता था। इस प्रकार हम देखते हैं कि प्राचीन भारत में नौका एवं पोत निर्माण का कार्य उच्चकोटि का था तथा इन पोतों के कई प्रकार थे।
 
मछली की आकृति की चुंबकीय सुई जो तेल से भरे बर्तन में तैरती रहती थी और जिसका मुख उत्तर दिशा में रहता था। इस प्रकार हम देखते हैं कि प्राचीन भारत में नौका एवं पोत निर्माण का कार्य उच्चकोटि का था तथा इन पोतों के कई प्रकार थे।
 +
 +
===नौका निर्माण काल॥ Nauka Nirmana kala===
 +
भोजराज के अनुसार शुभवार, वेला, तिथि, शुभ राशि में चंद्र तथा चर लग्न में नौका निर्माण उचित होता है। जल में नौका को उतारने के लिए उन्होंने निर्देश दिया है कि जब चंद्रमा पूर्व में हो, शुभलग्न हो, शुभ तारक, तथा शुभवार हो तभी यह कार्य करना चाहिए - <blockquote>सुवारवेला तिथि चन्द्र योगे, चरे विलग्ने मकरादि षट्के। ऋक्षेऽन्तय (१) सप्तस्वतिरेकतोऽन्ये य वदन्ति नौका घटना (का) दिकर्म ।।
 +
 +
अश्विखरांशु सुधानिधि-पूर्ववा, मित्र धनाच्युतभे (ते) शुभलग्ने। तारक योगतिथौन्दुविशुद्धौ नौगमनं शुभदं शुभवारे ।। (युक्तिकल्पतरु, पृष्ठ संख्या-223)</blockquote>आज भी अनेक कार्य यथा गृह-निर्माण, वाहन क्रय, पलंग आदि क्रय शुभ मुहूर्त में ही पञ्चाङ्ग के अनुसार किया जाता है। अतः भोजराज ने भी ज्योतिषीय परंपरा के आधार पर नौका निर्माण एवं उसके जलावतरण को उचित माना है।
 +
 +
=== नौका निर्माण पदार्थ॥ Nauka Nirmana Padartha ===
 +
 +
=== नौका के प्रकार॥ Types of Nauka ===
    
==वेदों में नाव॥ Vedon Mein Nava==
 
==वेदों में नाव॥ Vedon Mein Nava==
1,239

edits

Navigation menu