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| === 3. विष्णु स्मृति=== | | === 3. विष्णु स्मृति=== |
− | विष्णु स्मृति में 100 अध्याय हैं। इस स्मृति की एवं मनु स्मृति की 160 बातें विल्कुल समान हैं। ऐसा लगता है कि कुछ स्थानों पर तो मनुस्मृति के पद्य गद्य में रख दिये गये हों। याज्ञवल्क्य ने भी विष्णुधर्मसूत्र से शरीरांग-सम्बन्धी ज्ञान ले लिया है। विष्णुस्मृति, याज्ञवल्क्य स्मृति के बाद की कृति है। यह स्मृति भगवद्गीता, मनुस्मृति, याज्ञवल्क्य तथा अन्य धर्मशास्त्रकारों की ऋणी है। मिताक्षरा ने विष्णुस्मृति का 30 बार वर्णन किया हैं।" स्मृति चन्द्रिका में 225 बार विष्णु के उदाहरण आये हैं। | + | विष्णु स्मृति में 100 अध्याय हैं। इस स्मृति की एवं मनु स्मृति की 160 बातें विल्कुल समान हैं। ऐसा लगता है कि कुछ स्थानों पर तो मनुस्मृति के पद्य गद्य में रख दिये गये हों। याज्ञवल्क्य ने भी विष्णुधर्मसूत्र से शरीरांग-सम्बन्धी ज्ञान ले लिया है। विष्णुस्मृति, याज्ञवल्क्य स्मृति के बाद की कृति है। यह स्मृति भगवद्गीता, मनुस्मृति, याज्ञवल्क्य तथा अन्य धर्मशास्त्रकारों की ऋणी है। मिताक्षरा ने विष्णुस्मृति का 30 बार वर्णन किया हैं।" स्मृति चन्द्रिका में 225 बार विष्णु के उदाहरण आये हैं।<ref>पं० श्रीनन्द, [https://ia801308.us.archive.org/6/items/VisnuSmrti/VisnuSmrti.pdf वैजयन्ती व्याख्या सहित-विष्णुस्मृति], सन 1962, चौखम्बा संस्कृत सीरीज ऑफिस, वाराणसी (पृ० 13)।</ref> |
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| ===4. हारीत स्मृति=== | | ===4. हारीत स्मृति=== |
− | हारीत के व्यवहार-सम्बन्धी पद्यावतरणों की चर्चा अपेक्षित है। स्मृति चन्द्रिका के उद्धरण में आया हैं- <blockquote>स्वधनस्य यथा प्राप्तिः परधनस्य वर्जनम्। न्यायेन यत्र क्रियते व्यवहारः स उच्चयते॥</blockquote>उन्होंनें इस प्रकार व्यवहार की परिभाषा की है। नारद की भाँति हारीत ने भी व्यवहार के चार स्वरूप बताये हैं। जैसे-धर्म, व्यवहार, चरित्र एवं नृपाज्ञा हारीत, वृहस्पति एवं कात्यायन के समाकालीन लगते हैं। विद्वानों ने इनका समय 400 तथा 700 के बीच स्वीकार किया हैं। | + | यह स्मृति सात अध्यायों वाली है तथा संक्षिप्त होने के बाद भी इसमें वैदिक शिक्षा को इस प्रकार प्रस्तुत किया गया है कि वह सभी के कल्याण के लिये उपयोगी है - |
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| + | * प्रथम अध्याय में चारों वर्णों तथा अवस्थाओं का वर्णन है। |
| + | * दूसरे अध्याय में चारों वर्णों का विश्लेषण है। |
| + | * तीसरे अध्याय में ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए कर्तव्यों का वर्णन है। |
| + | * चतुर्थ अध्याय में गृहस्थ जीवन तथा कर्तव्यों का वर्णन है। |
| + | * पंचम अध्याय में वानप्रस्थ अर्थात वन में जाने वाले व्यक्ति के जीवन तथा कर्तव्यों का वर्णन है। |
| + | * छटवें अध्याय में त्याग की अवधारणा है। |
| + | * सातवें अध्याय में योग की अवधारणा है। |
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| + | हारीत के व्यवहार-सम्बन्धी पद्यावतरणों की चर्चा अपेक्षित है। स्मृति चन्द्रिका के उद्धरण में आया हैं- <blockquote>स्वधनस्य यथा प्राप्तिः परधनस्य वर्जनम्। न्यायेन यत्र क्रियते व्यवहारः स उच्चयते॥</blockquote>उन्होंनें इस प्रकार व्यवहार की परिभाषा की है। नारद की भाँति हारीत ने भी व्यवहार के चार स्वरूप बताये हैं। जैसे-धर्म, व्यवहार, चरित्र एवं नृपाज्ञा हारीत, वृहस्पति एवं कात्यायन के समाकालीन लगते हैं। |
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| ===5. आंगिरस स्मृति=== | | ===5. आंगिरस स्मृति=== |
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| ===6. यम स्मृति=== | | ===6. यम स्मृति=== |
− | वशिष्ठ धर्मसूत्र ने यम को धर्मशास्त्रकार मानकर उनकी स्मृति से उदाहरण लिया है। याज्ञवल्क्य ने यम को धर्मवक्ता बताया है। इस स्मृति में 78 श्लोक हैं। इस स्मृति के कुछ श्लोक मनुस्मृति से मिलते जुलते हैं। यम ने नारियों के लिए संन्यास वर्जित किया है। | + | वशिष्ठ धर्मसूत्र ने यम को धर्मशास्त्रकार मानकर उनकी स्मृति से उदाहरण लिया है। याज्ञवल्क्य ने यम को धर्मवक्ता बताया है। इस स्मृति में 78 श्लोक हैं मूलतः यम स्मृति बहुत छोटा ग्रंथ है। इस स्मृति के कुछ श्लोक मनुस्मृति से मिलते जुलते हैं। यम ने नारियों के लिए संन्यास वर्जित किया है। इसमें विभिन्न प्रकार के तपों की चर्चा की गई है तथा उनके पीछे के सैद्धांतिक सिद्धांतों को भी बताया गया है। मुनि यम ने ग्रंथ के प्रारंभ से ही प्रायश्चित के प्रकारों की व्याख्या की है। |
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− | ===7. संवर्त स्मृति=== | + | === 7. संवर्त स्मृति === |
| याज्ञवल्क्य की सूची में संवर्त एक स्मृतिकार के रूप में आते हैं। संवर्त स्मृति में 227 से 230 तक श्लोक उपलब्ध होते हैं। आज जो प्रकाशित संवर्त स्मृति मिलती है, वह मौलिक स्मृति के अंश का संक्षिप्त सार मात्र प्रतीत होता है। | | याज्ञवल्क्य की सूची में संवर्त एक स्मृतिकार के रूप में आते हैं। संवर्त स्मृति में 227 से 230 तक श्लोक उपलब्ध होते हैं। आज जो प्रकाशित संवर्त स्मृति मिलती है, वह मौलिक स्मृति के अंश का संक्षिप्त सार मात्र प्रतीत होता है। |
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| वृहस्पति स्मृति, मनुस्मृति का पूर्ण अनुकरण करती है। इस स्मृति में बहुत से श्लोकों का नारद स्मृति के समान विवरण मिलता है। यह स्मृति मनु व याज्ञवल्क्य स्मृति के बाद की स्मृति है। इन स्मृति का समय छठी या सातवीं शताब्दी है। कात्यायन और विश्वरूप ने इसका कई बार वर्णन किया है। वृहस्पति स्मृति में 711 श्लोक हैं। | | वृहस्पति स्मृति, मनुस्मृति का पूर्ण अनुकरण करती है। इस स्मृति में बहुत से श्लोकों का नारद स्मृति के समान विवरण मिलता है। यह स्मृति मनु व याज्ञवल्क्य स्मृति के बाद की स्मृति है। इन स्मृति का समय छठी या सातवीं शताब्दी है। कात्यायन और विश्वरूप ने इसका कई बार वर्णन किया है। वृहस्पति स्मृति में 711 श्लोक हैं। |
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− | ===10. पराशर स्मृति === | + | ===10. पराशर स्मृति=== |
| इस स्मृति में 12 अध्याय और 512 श्लोक है। आचार और प्रायश्चित इसके विषय हैं। याज्ञवल्क्य इसका उल्लेख करते हैं। यह एक प्राचीन प्रामाणिक स्मृति मानी जाती है। इसका रचना-काल 100 से लेकर 501 ई0 के बीच में माना गया है। | | इस स्मृति में 12 अध्याय और 512 श्लोक है। आचार और प्रायश्चित इसके विषय हैं। याज्ञवल्क्य इसका उल्लेख करते हैं। यह एक प्राचीन प्रामाणिक स्मृति मानी जाती है। इसका रचना-काल 100 से लेकर 501 ई0 के बीच में माना गया है। |
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