Difference between revisions of "Mahabharat (महाभारत)"
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− | महाभारत हमारे जातीय इतिहास हैं। भारतीय सभ्यता का भव्य रूप इन ग्रन्थों में दिखाई देता है। कौरवों और पाण्डवों का इतिहास ही मात्र इस ग्रन्थ में वर्णित नहीं है अपितु भारतीय ज्ञान परंपरा विस्तृत एवं पूर्ण है। भगवद्गीता इसी महाभारत का एक अंश है। इसके अतिरिक्त विष्णुसहस्रनाम, अनुगीता भीष्मस्तवराज, गजेन्द्रमोक्ष जैसे आध्यात्मिक तथा भक्तिपूर्ण ग्रन्थ यहीं से उद्धृत किये गये हैं। | + | भारतीय लौकिक साहित्य में रामायण के पश्चात् महाभारत का ही स्थान है। महाभारत हमारे जातीय इतिहास हैं। भारतीय सभ्यता का भव्य रूप इन ग्रन्थों में दिखाई देता है। कौरवों और पाण्डवों का इतिहास ही मात्र इस ग्रन्थ में वर्णित नहीं है अपितु भारतीय ज्ञान परंपरा विस्तृत एवं पूर्ण है। भगवद्गीता इसी महाभारत का एक अंश है। इसके अतिरिक्त विष्णुसहस्रनाम, अनुगीता भीष्मस्तवराज, गजेन्द्रमोक्ष जैसे आध्यात्मिक तथा भक्तिपूर्ण ग्रन्थ यहीं से उद्धृत किये गये हैं। इसमें चतुर्वर्ग के सभी विषय, धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष, प्रतिपादित हैं। |
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+ | महाभारत के प्रमुख रचयिता व्यास (वेदव्यास या कृष्णद्वैपायन) हैं। इसमें १८ पर्वों में कौरवों-पाण्डवों का इतिहास है। जिसकी प्रमुख घटना महाभारत युद्ध है। महाभारत के सूक्ष्म परीक्षण से ज्ञात होता है कि सम्पूर्ण महाभारत एक व्यक्ति के हाथ की रचना नहीं है और न ही एक काल की रचना है। प्रारम्भ में मूलकथा संक्षिप्त थी। इसमें बाद में परिवर्तन और परिवर्धन होता रहा है। | ||
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जय संहिता - इस ग्रन्थ का मौलिक रूप जय नाम से प्रसिद्ध था। इस ग्रन्थ में नारायण, नर, सरस्वती देवी को नमस्कार कर जिस जय नामक ग्रन्थ के पठन का विधान है वह महाभारत का मूल प्रतीत होता है। पाण्डवों के विजय वर्णन के कारण ही इस ग्रन्थ का ऐसा नामकरण किया गया है - जयो नामेतिहासोऽयं श्रोतव्यो विजिगीषुणा। (महाभा० आदि० ६२-२०) | जय संहिता - इस ग्रन्थ का मौलिक रूप जय नाम से प्रसिद्ध था। इस ग्रन्थ में नारायण, नर, सरस्वती देवी को नमस्कार कर जिस जय नामक ग्रन्थ के पठन का विधान है वह महाभारत का मूल प्रतीत होता है। पाण्डवों के विजय वर्णन के कारण ही इस ग्रन्थ का ऐसा नामकरण किया गया है - जयो नामेतिहासोऽयं श्रोतव्यो विजिगीषुणा। (महाभा० आदि० ६२-२०) | ||
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*प्रथम दिवसीय युद्ध - भीमसेन का कौरव पक्ष के योद्धाओं से युद्ध। | *प्रथम दिवसीय युद्ध - भीमसेन का कौरव पक्ष के योद्धाओं से युद्ध। | ||
*शल्य-उत्तर का युद्ध | *शल्य-उत्तर का युद्ध | ||
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*सात्यकि और भूरिश्रवा का युद्ध | *सात्यकि और भूरिश्रवा का युद्ध | ||
*षड् दिवसीय युद्ध - पांडवों का मकरव्यूह तथा कौरवों द्वारा क्रौञ्च व्यूह। | *षड् दिवसीय युद्ध - पांडवों का मकरव्यूह तथा कौरवों द्वारा क्रौञ्च व्यूह। | ||
− | *भीमसेन का कौरव योद्धाओं के साथ युद्ध | + | * भीमसेन का कौरव योद्धाओं के साथ युद्ध |
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*भीमसेन द्वारा दुर्योधन की पराजय | *भीमसेन द्वारा दुर्योधन की पराजय | ||
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'''भावार्थ -''' प्रतिदिन प्रातःकाल उठकर इस ग्रन्थका निर्माण करने वाले महामुनि श्रीकृष्णद्वैपायन ने महाभारत नामक इस अद्भुत इतिहास (आख्यान) को तीन वर्षों में पूर्ण किया है। | '''भावार्थ -''' प्रतिदिन प्रातःकाल उठकर इस ग्रन्थका निर्माण करने वाले महामुनि श्रीकृष्णद्वैपायन ने महाभारत नामक इस अद्भुत इतिहास (आख्यान) को तीन वर्षों में पूर्ण किया है। | ||
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==महाभारत का पर्वानुसार संक्षिप्त परिचय== | ==महाभारत का पर्वानुसार संक्षिप्त परिचय== | ||
वर्तमान में उपलब्ध महाभारत हरिवंश पुराण समेत १९ पर्वों से युक्त माना जाता है, जिसमें एक लाख श्लोक हैं। यह एक विशद् महाकाव्य है। यहाँ हम उनकी संक्षिप्त कथाएँ प्रस्तत करेंगे -<ref>शोधगंगा- बृजेश कुमार द्विवेदी, [http://hdl.handle.net/10603/313405 महाभारत में युद्ध विज्ञान], सन् २०१०, महात्मा गाँधी काशी विद्यापीठ, (पृ० १३१)।</ref> | वर्तमान में उपलब्ध महाभारत हरिवंश पुराण समेत १९ पर्वों से युक्त माना जाता है, जिसमें एक लाख श्लोक हैं। यह एक विशद् महाकाव्य है। यहाँ हम उनकी संक्षिप्त कथाएँ प्रस्तत करेंगे -<ref>शोधगंगा- बृजेश कुमार द्विवेदी, [http://hdl.handle.net/10603/313405 महाभारत में युद्ध विज्ञान], सन् २०१०, महात्मा गाँधी काशी विद्यापीठ, (पृ० १३१)।</ref> | ||
− | #आदिपर्व | + | #'''आदिपर्व -''' चन्द्रवंश का इतिहास और कौरव-पाण्डवों की उत्पत्ति। |
− | #सभापर्व | + | #'''सभापर्व -''' द्यूतक्रीडा। |
− | #वनपर्व | + | #'''वनपर्व -''' पाण्डवों का वनवास। |
− | #विराटपर्व | + | #'''विराटपर्व -''' पाण्डवों का अज्ञातवास। |
− | #उद्योगपर्व | + | #'''उद्योगपर्व -''' श्रीकृष्ण द्वारा सन्धि का प्रयत्न। |
− | #भीष्मपर्व | + | #'''भीष्मपर्व -''' अर्जुन को गीता का उपदेश, युद्ध का प्रारम्भ, भीष्म का आहत होकर शरशय्या पर पडना। |
− | #द्रोणपर्व | + | #'''द्रोणपर्व -''' अभिमन्यु और द्रोण का वध। |
− | #कर्णपर्व | + | #'''कर्णपर्व -''' कर्ण का युद्ध और वध। |
− | #शल्यपर्व | + | #'''शल्यपर्व -''' शल्य का युद्ध और वध। |
− | #सौप्तिकपर्व | + | #'''सौप्तिकपर्व -''' सोते हुए पाण्डवों के पुत्रों का अश्वत्थामा द्वारा वध। |
− | #स्त्रीपर्व | + | #'''स्त्रीपर्व -''' शोकाकुल स्त्रियों का विलाप। |
− | #शान्तिपर्व | + | #'''शान्तिपर्व -''' युधिष्ठिर के राजधर्म और मोक्ष-सम्बन्धी सैकडों प्रश्नों का भीष्म द्वारा उत्तर। |
− | #अनुशासनपर्व | + | #'''अनुशासनपर्व -''' धर्म और नीति की कथाएँ, भीष्म का स्वर्गारोहण। |
− | #आश्वमेधिकपर्व | + | #'''आश्वमेधिकपर्व -''' युधिष्ठिर का अश्वमेध-अनुष्ठान। |
− | #आश्रमवासिक पर्व | + | #'''आश्रमवासिक पर्व -''' धृतराष्ट्र आदि का वानप्रस्थ आश्रम में प्रवेश। |
− | #मौसलपर्व | + | #'''मौसलपर्व -''' यादवों का पारस्परिक संघर्ष से नाश। |
− | # | + | #'''महाप्रस्थानिक पर्व -''' पाण्डवों की हिमालय-यात्रा। |
− | #स्वर्गारोहणपर्व | + | #'''स्वर्गारोहणपर्व -''' पाण्डवों का सर्गारोहण। |
+ | १८ पर्वों के नाम निम्नलिखित श्लोक से स्मरण किए जा सकते हैं। इसमें पर्वों के प्रथम अक्षर दिए गए हैं - <ref>डॉ० कपिलदेव द्विवेदी, [https://archive.org/details/sanskrit-sahitya-ka-samikshatmak-itihas-dr-kapildeva-dwivedi_compress/page/n650/mode/1up संस्कृत साहित्य का समीक्षात्मक इतिहास], सन् (पृ० ११८)।</ref> <blockquote>म-द्वयं श-द्वयं चैव, स-द्वयं व-द्वयं तथा। अ-स्वो-स्त्री-भ-द्र-काश्चैवम्, आ-त्रयी भाति भारते॥ (कपिलदेव)</blockquote>श्लोक के अनुसार १८ पर्व ये हैं। | ||
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Revision as of 15:55, 30 April 2024
भारतीय लौकिक साहित्य में रामायण के पश्चात् महाभारत का ही स्थान है। महाभारत हमारे जातीय इतिहास हैं। भारतीय सभ्यता का भव्य रूप इन ग्रन्थों में दिखाई देता है। कौरवों और पाण्डवों का इतिहास ही मात्र इस ग्रन्थ में वर्णित नहीं है अपितु भारतीय ज्ञान परंपरा विस्तृत एवं पूर्ण है। भगवद्गीता इसी महाभारत का एक अंश है। इसके अतिरिक्त विष्णुसहस्रनाम, अनुगीता भीष्मस्तवराज, गजेन्द्रमोक्ष जैसे आध्यात्मिक तथा भक्तिपूर्ण ग्रन्थ यहीं से उद्धृत किये गये हैं। इसमें चतुर्वर्ग के सभी विषय, धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष, प्रतिपादित हैं।
परिचय
महाभारत के प्रमुख रचयिता व्यास (वेदव्यास या कृष्णद्वैपायन) हैं। इसमें १८ पर्वों में कौरवों-पाण्डवों का इतिहास है। जिसकी प्रमुख घटना महाभारत युद्ध है। महाभारत के सूक्ष्म परीक्षण से ज्ञात होता है कि सम्पूर्ण महाभारत एक व्यक्ति के हाथ की रचना नहीं है और न ही एक काल की रचना है। प्रारम्भ में मूलकथा संक्षिप्त थी। इसमें बाद में परिवर्तन और परिवर्धन होता रहा है।
जय संहिता - इस ग्रन्थ का मौलिक रूप जय नाम से प्रसिद्ध था। इस ग्रन्थ में नारायण, नर, सरस्वती देवी को नमस्कार कर जिस जय नामक ग्रन्थ के पठन का विधान है वह महाभारत का मूल प्रतीत होता है। पाण्डवों के विजय वर्णन के कारण ही इस ग्रन्थ का ऐसा नामकरण किया गया है - जयो नामेतिहासोऽयं श्रोतव्यो विजिगीषुणा। (महाभा० आदि० ६२-२०)
भारत - दूसरे ग्रंथों इसका नाम भारत पडा। इसमें उपाख्यानों का समावेशन नहीं था। केवल युद्ध का विस्तृत वर्णन ही प्रधान विषय था। इसी भारत को वैशम्पायन ने पढकर जनमेजय को सुनाया था।
महाभारत - इस ग्रन्थ का यही अन्तिम रूप है। इसमें एक लाख श्लोक बतलाये जाते हैं। यह श्लोक संख्या अट्ठारह पर्वों की ही नहीं है, किन्तु हरिवंश के मिलाने से ही एक लाख तक पहुँचती है। आश्वलायन गृह्यसूत्र में भी भारत के साथ महाभारत का नाम निर्दिष्ट है।
महाभारत का वर्ण्यविषय
- महाभारत को शतसाहस्र संहिता भी कहा जाता है।
महाभारत में आख्यान
महाभारतीय प्रमुख युद्ध
- प्रथम दिवसीय युद्ध - भीमसेन का कौरव पक्ष के योद्धाओं से युद्ध।
- शल्य-उत्तर का युद्ध
- भीष्म-श्वेत युद्ध
- द्वितीय दिवसीय युद्ध - क्रौंच व्यूह का निर्माण
- भीष्म-अर्जुन युद्ध
- तृतीय दिवसीय युद्ध - भीष्म द्वारा गरुड व्यूह की रचना
- अर्जुन द्वारा अर्धचन्द्राकार व्यूह की रचना
- भीष्मार्जुन युद्ध
- चतुर्थ दिवसीय युद्ध - दोनों सेनाओं का व्यूह निर्माण और धृष्टद्युम्न एवं भीमसेन का कौरव सेना के साथ युद्ध
- घटोत्कच-भगदत्त युद्ध
- पंचम दिवसीय युद्ध - कौरवों का मकर व्यूह और पांडवों का श्येन व्यूह
- भीमसेन और भीष्म का युद्ध
- विराट और भीष्म का युद्ध
- अश्वत्थामा-अर्जुन का युद्ध
- दुर्योधन-भीमसेन का युद्ध
- अभिमन्यु और लक्ष्मण का युद्ध
- सात्यकि और भूरिश्रवा का युद्ध
- षड् दिवसीय युद्ध - पांडवों का मकरव्यूह तथा कौरवों द्वारा क्रौञ्च व्यूह।
- भीमसेन का कौरव योद्धाओं के साथ युद्ध
- धृष्टद्युम्न का कौरव पक्षीय योद्धाओं के साथ युद्ध
- भीमसेन द्वारा दुर्योधन की पराजय
- अभिमन्यु का कौरव पक्षीय योद्धाओं के साथ युद्ध
- सप्त दिवसीय युद्ध -
महाभारत का संक्षिप्त परिचय
महाभारत की कथा एवं कथावस्तु मुख्य रूप से कौरवों और पाण्डवों के वंश के इतिहास और उनके राज्य के अधिकार तथा युद्ध पर आधारित है। महाभारत रचना के विषय में यह प्रसिद्ध श्लोक प्राप्त होता है कि -
त्रिभिर्वर्षैः सदोत्थायी कृष्णद्वैपायनो मुनिः। महाभारतमाख्यानं कृतवानिदमद्भुतम्॥
भावार्थ - प्रतिदिन प्रातःकाल उठकर इस ग्रन्थका निर्माण करने वाले महामुनि श्रीकृष्णद्वैपायन ने महाभारत नामक इस अद्भुत इतिहास (आख्यान) को तीन वर्षों में पूर्ण किया है।
ग्रन्थ नाम | कर्ता | श्लोक संख्या | वक्ता-श्रोता | अवसर |
---|---|---|---|---|
जय | व्यास | ८८०० | व्यास-वैशम्पायन | धर्म-चर्चा |
भारत | वैशम्पायन | २४ हजार | वैशम्पायन-जनमेजय | नागयज्ञ |
महाभारत | सौति | १ लाख | सौति-शौनक आदि | नैमिषारण्य में यज्ञ |
महाभारत का पर्वानुसार संक्षिप्त परिचय
वर्तमान में उपलब्ध महाभारत हरिवंश पुराण समेत १९ पर्वों से युक्त माना जाता है, जिसमें एक लाख श्लोक हैं। यह एक विशद् महाकाव्य है। यहाँ हम उनकी संक्षिप्त कथाएँ प्रस्तत करेंगे -[1]
- आदिपर्व - चन्द्रवंश का इतिहास और कौरव-पाण्डवों की उत्पत्ति।
- सभापर्व - द्यूतक्रीडा।
- वनपर्व - पाण्डवों का वनवास।
- विराटपर्व - पाण्डवों का अज्ञातवास।
- उद्योगपर्व - श्रीकृष्ण द्वारा सन्धि का प्रयत्न।
- भीष्मपर्व - अर्जुन को गीता का उपदेश, युद्ध का प्रारम्भ, भीष्म का आहत होकर शरशय्या पर पडना।
- द्रोणपर्व - अभिमन्यु और द्रोण का वध।
- कर्णपर्व - कर्ण का युद्ध और वध।
- शल्यपर्व - शल्य का युद्ध और वध।
- सौप्तिकपर्व - सोते हुए पाण्डवों के पुत्रों का अश्वत्थामा द्वारा वध।
- स्त्रीपर्व - शोकाकुल स्त्रियों का विलाप।
- शान्तिपर्व - युधिष्ठिर के राजधर्म और मोक्ष-सम्बन्धी सैकडों प्रश्नों का भीष्म द्वारा उत्तर।
- अनुशासनपर्व - धर्म और नीति की कथाएँ, भीष्म का स्वर्गारोहण।
- आश्वमेधिकपर्व - युधिष्ठिर का अश्वमेध-अनुष्ठान।
- आश्रमवासिक पर्व - धृतराष्ट्र आदि का वानप्रस्थ आश्रम में प्रवेश।
- मौसलपर्व - यादवों का पारस्परिक संघर्ष से नाश।
- महाप्रस्थानिक पर्व - पाण्डवों की हिमालय-यात्रा।
- स्वर्गारोहणपर्व - पाण्डवों का सर्गारोहण।
१८ पर्वों के नाम निम्नलिखित श्लोक से स्मरण किए जा सकते हैं। इसमें पर्वों के प्रथम अक्षर दिए गए हैं - [2]
म-द्वयं श-द्वयं चैव, स-द्वयं व-द्वयं तथा। अ-स्वो-स्त्री-भ-द्र-काश्चैवम्, आ-त्रयी भाति भारते॥ (कपिलदेव)
श्लोक के अनुसार १८ पर्व ये हैं।
सारांश
महाभारतीय कथा की रूपरेखा के तीन क्रम है - जय, भारत और महाभारत। इनमें से जय की रचना का श्रेय कृष्ण द्वैपायन को है। इसमें कौरव पाण्डवीय युद्ध का आख्यान प्रधान था। युद्ध के पर्व इसके अन्तर्गत प्रमुख थे। वैशम्पायन ने भारत और सौति ने महाभारत का व्याख्यान किया। परवर्ती दो विन्यासों में इसका वह रूप बना, जो लोक संग्रह की दृष्टि से अनुत्तम कहा जा सकता है। सौति के महाभारत में लगभग एक लाख श्लोक थे, वैशम्पायन के भारत में चौबीस हजार तथा जय में केवल आठ हजार आठ सौ श्लोक थे।
उद्धरण
- ↑ शोधगंगा- बृजेश कुमार द्विवेदी, महाभारत में युद्ध विज्ञान, सन् २०१०, महात्मा गाँधी काशी विद्यापीठ, (पृ० १३१)।
- ↑ डॉ० कपिलदेव द्विवेदी, संस्कृत साहित्य का समीक्षात्मक इतिहास, सन् (पृ० ११८)।