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बच्चे की प्रारंभिक शिक्षा घर से ही शुरू होती है। अक्षरों और संख्याओं की पहचान यह माता-पिता द्वारा तीसरे या चौथे वर्ष की उम्र में की जाती है । गहरे ज्ञान सागर में बालक को प्रवेश कराने का संस्कार अर्थात विद्यारंभ संस्कार । जिसके कारण उनके जीवनयात्रा का शुभारम्भ अच्छे सोच , अच्छे विचारों, शुभ आशीर्वादों से सुरक्षित होता है। | बच्चे की प्रारंभिक शिक्षा घर से ही शुरू होती है। अक्षरों और संख्याओं की पहचान यह माता-पिता द्वारा तीसरे या चौथे वर्ष की उम्र में की जाती है । गहरे ज्ञान सागर में बालक को प्रवेश कराने का संस्कार अर्थात विद्यारंभ संस्कार । जिसके कारण उनके जीवनयात्रा का शुभारम्भ अच्छे सोच , अच्छे विचारों, शुभ आशीर्वादों से सुरक्षित होता है। | ||
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Revision as of 12:31, 9 May 2023
कीर्तिप्रदे अखिलमनोरथदे महार्हे ।
विद्याप्रदायिनी सरस्वति नौमि नित्यम् ॥
ब्रह्मा जगत सृजति पालयतिन्दिरेशः ।
शंभुर्विनाशयति देवि तव प्रभावै ॥
न स्यात कृपा यदि तव प्रकटप्रभावै ।
न स्युः कथन्चिदपि ते निज कार्य दक्षाः ।।
बच्चे की प्रारंभिक शिक्षा घर से ही शुरू होती है। अक्षरों और संख्याओं की पहचान यह माता-पिता द्वारा तीसरे या चौथे वर्ष की उम्र में की जाती है । गहरे ज्ञान सागर में बालक को प्रवेश कराने का संस्कार अर्थात विद्यारंभ संस्कार । जिसके कारण उनके जीवनयात्रा का शुभारम्भ अच्छे सोच , अच्छे विचारों, शुभ आशीर्वादों से सुरक्षित होता है।
प्राचीन रूप :
इस संस्कार को आगे आने वाले के काल में भारतीय परंपरा में सम्मिलित किया जाना चाहिए । कौटिल्य के अर्थशास्त्र इस पर कुछ प्रकाश डालते है। याज्ञवल्क्य स्मृति मे इसकी जानकारी संस्कार प्रकाश में जानकारी मिलती है। लेकिन आश्चर्यकी बात है गुहासूक्त और धर्मसूत्र में कोई जानकारी नहीं है। शायद यह संस्कार शुरू होने वाला है क्योंकि उपनयन/मुंजिक से पहले घर पर दी जाने वाली औपचारिक शिक्षा के लिए ऐसा होना चाहिए , क्योंकि समाज के सभी बच्चे शिक्षा के लिए गुरुगृह नहीं जाते हैं।
यह संस्कार उत्तरायण में किसी भी शुभ दिन पर किया जाता है। बालक को स्नान करके, नये वस्त्र धारण करके , उनसे गणेश , सरस्वती , कुल देवी-देवता की पूजा कराइ जाती है । फिर हवन-वेदी के पूर्व में आचार्य/गुरुजी और फिर बालकी (जातक) पश्चिम की ओर मुख करके बैठते है । एक समतल बर्तन में चावल और केसर मिलते है । गुरुजी जो उस समय प्रचलन में थे लेखन सामग्री द्वारा ' ओम गणेशाय नमः , ओम सरस्वती नमः ' या ' नमः सिद्धम ' बच्चे हाथ पकड़कर लिखवाते थे। इन पत्रों को तीन बार लिखा जाता है । यहां लिखने के बाद, गुरुजी बच्चे को आशीर्वाद देंते है । माता-पिता गुरुजी को पर्याप्त भोजन और दक्षिणा देते थे।
वर्तमान प्रारूप:
आजकल एक बच्चा तीसरे या चौथे साल में किंडरगार्टन जाता है। इसलिए बच्चे को स्कूल में दाखिला दिलाने से पहले उसे अक्षर और अंकगणित की जानकारी दी जाती है। इसके लिए स्कूल जाने से पहले का दिन शुभ हो और हो सके तो वसंत पंचमी या विजयादशमी के दिन यह संस्कार करना उचित होता है। यह संस्कार परिवार के सदस्यों द्वारा घर के मंदिर या मंदिर में जाकर किये जाने की प्रवृत्ति होती है। बच्चे को नहलाया जाता है और नए कपड़ों में मंदिर ले जाया जाता है। गुरुजी उपलब्ध हों तो ठीक है अन्यथा माता-पिता या बुजुर्ग यह संस्कार भी दादा-दादी द्वारा किया जाता है। एक बच्चे द्वारा कागज पर लिखा गया यह स्मृति में अक्षरों और संख्याओं को संग्रहीत करने का एक संस्कार है। समावेश के समय सीखने का यह मूल क्षण सभी को याद रहता है। उस समय वह व्यक्ति इस अनुष्ठान के उद्देश्य को समझता है और प्रसन्न होता है। उपस्थिति सभी लोग प्रसिद्ध वैज्ञानिकों , लेखकों या शिक्षकों के नाम से बच्चे को आशीर्वाद देते है । उपस्थितो को यथोचित सम्मान किया जाता है।
संस्कार विधि :
बच्चे की डेढ़ या तीन साल की उम्र में आ रही वसंत पंचमी या दशहरा या अन्य शुभ दिन।
स्थान: होम
पूर्व तैयारी : बोर्ड , कलम (या चाक) , कागज-पेंसिल सामान्य पूजा सामग्री।
कर्ता: माता-पिता और परिवार।