Difference between revisions of "Jatkarm ( जातकर्म )"
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Revision as of 15:35, 8 April 2022
कन्या सुपुत्रयोस्तुल्यं वात्सल्यं च भवेत्सटा।
तुल्यानन्दं विजानीयाद द्वयोर्मनसि प्रामघाः ।।
सुख शान्तेर्व्यवस्था च सुविधा पावरपि ।
समुत्कर्ष विकासाभ्यां ध्यान यत्नं समं भवेत् ।।
पूर्वकाल में मानव प्रसव पीड़ा और प्रजनन इस घटना क्रम की ओर प्राकृतिक रहस्य व चमत्कार रूप में देखा जाता था । इस क्रिया में होनेवाले कष्ट, अवरोध, और कभी कभी माता का, कभी बच्चे , कभी दोनों की मृत्यु को राक्षसों द्वारा होनेवाले उपद्रव के रूप में मानव देखता था और यह दृढ़विश्वास समाज के अंतर्निहित था। इसके विपरीत, एक सफल प्रसूति यह इसलिए दैवीय शक्ति की कृपा मानी जाती थी। धीरे-धीरे विकसित हुई जीवन शैली में जातकर्म को विशेष संस्कार का रूप मिला।
प्राचीन रूप:
कुछ शास्त्रों में प्रसूति से पहले इस संस्कार को करने की प्रथा है , हालांकि