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| Protection of the Seven constituents of the Rajya - Raja, friend, treasury, country, fort and army. | | Protection of the Seven constituents of the Rajya - Raja, friend, treasury, country, fort and army. |
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− | सप्ताङ्गस्य च राज्यस्य विपरीतं य आचरेत्। गुरुर्वा यदि वा मित्रं प्रतिहन्तव्य एव सः।। 12.56.4 (12.57.4) | + | सप्ताङ्गस्य च राज्यस्य विपरीतं य आचरेत्। गुरुर्वा यदि वा मित्रं प्रतिहन्तव्य एव सः।। 12.56.4 (12.57.4)<ref name=":1" /> |
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| + | राज्ञा सप्तैव रक्ष्याणि तानि चैव निबोध मे। आत्माऽमात्याश्च कोशाश्च दण्डो मित्राणि चैव हि।। 12.68.69 (69.64)<ref name=":4">Mahabharata, Shanti Parva, [https://sa.wikisource.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%A4%E0%A4%AE%E0%A5%8D-12-%E0%A4%B6%E0%A4%BE%E0%A4%82%E0%A4%A4%E0%A4%BF%E0%A4%AA%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%B5-068 Adhyaya 68]</ref> |
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| + | तथा जनपदाश्चैव पुरं च कुरुनन्दन। एतत्सप्तात्मकं राज्यं परिपाल्यं प्रयत्नतः।। (70) 65 |
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| Eligibility of a Raja | | Eligibility of a Raja |
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− | गुप्तमन्त्रो (आत्मवांश्च) जितक्रोधः शास्त्रार्थकृतनिश्चयः। धर्मे चार्थे च कामे च मोक्षे च सततं रतः।। 13 | + | गुप्तमन्त्रो (आत्मवांश्च) जितक्रोधः शास्त्रार्थकृतनिश्चयः। धर्मे चार्थे च कामे च मोक्षे च सततं रतः।। 12.56.13 |
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| त्रय्या संवृतमन्त्रश्च राजा भवितुर्महति। वृजिनं च नरेन्द्राणां नान्यच्चारक्षणात्परम्।। 14 | | त्रय्या संवृतमन्त्रश्च राजा भवितुर्महति। वृजिनं च नरेन्द्राणां नान्यच्चारक्षणात्परम्।। 14 |
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| श्रियं ददाति कस्मैचित्कस्माच्चिदपकर्षति। तदा वैश्रवणो राजा लोके भवति भूमिपः।। 47<ref name=":2" /> | | श्रियं ददाति कस्मैचित्कस्माच्चिदपकर्षति। तदा वैश्रवणो राजा लोके भवति भूमिपः।। 47<ref name=":2" /> |
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| + | Fortification |
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| + | न्यसेत गुल्मान्दुर्गेषु सन्धौ च कुरुनन्दन। नगरोपवने चैव पुरोद्याने तथैव च।। 12.68.6 (69.6) |
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| + | संस्थानेषु च सर्वेषु पुटेषु नगरस्य च। मध्ये च नरशार्दूल तथा राजनिवेशने।। 7 |
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| + | Appointment of Spies |
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| + | प्रणिर्धीश्च ततः कुर्याज्जडान्धबधिराकृतीन्। पुंसः परीक्षितान्प्राज्ञान्क्षुत्पिपासाश्रमक्षमान्।। 12.68.8 (69.8) |
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| + | Appointment of Ministers |
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| + | विद्वांसः क्षत्रिया वैश्या ब्राह्मणाश्च बहुश्रुताः। दण्डनीतौ तु निष्पन्ना मन्त्रिणः पृथिवीपते।। 12.68.15 (69) |
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| + | Tax and treasury |
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| + | आददीत बलिं चापि प्रजाभ्यः कुरुनन्दन। षङ्भागममितप्रज्ञस्तासामेवाभिगुप्तये।। 12.68.27 (69.25) |
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| + | दशाधर्मगतेभ्यो यद्वसु बह्वल्पमेव वा। तन्नाददीत सहसा पौराणां रक्षणाय वै।। 28 (26) |
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| + | Justice |
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| + | यथा पुत्रास्तथा पौरा द्रष्टव्यास्ते न संशयः। भक्तिश्चैषु न कर्तव्या व्यवहारप्रदर्शने।। 12.68.29 (69.27) |
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| + | श्रोतुं चैव न्यसेद्राजा प्राज्ञान्सर्वार्थदर्शिनः। व्यवहारेषु सततं तत्र राज्यं प्रतिष्ठितम्।। 30 (28) |
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| + | Qualification |
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| + | वेदवेदाङ्गवित्प्राज्ञः सुतपस्वी नृपो भवेत्। दानशीलश्च सततं यज्ञशीलश्च भारत।। 12.68.33 (31) |
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| + | Infrastructure |
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| + | विशालान्राजमार्गांश्च कारयेत नराधिपः। प्रपाश्च विपणीश्चैव यथोद्देशं समादिशेत्।। 12.68.58 (69.53)<ref name=":4" /> |
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| == References == | | == References == |
| <references /> | | <references /> |