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| == प्रातःस्मरण एवं दैनिक कृत्य सूची निर्धारण। == | | == प्रातःस्मरण एवं दैनिक कृत्य सूची निर्धारण। == |
− | प्रातः काल में किया हुआ गान भी अपने तथा दूसरों के आकर्षणका साधन होता है। जब उसमें भी भगवद्भक्ति ओत-प्रोत हो; तो फिर तो क्या कहना इसलिए प्रातः भगवान्को आकृष्ट करनेके लिए, तथा स्वयं भी तन्मयीभावार्थ कई राग वा भजन गाये जाते हैं, जिससे हमारा भावी दैनिक कार्यक्रम भी सुन्दर और निष्पाप बने। पर हमारी लौकिक भाषा अपभ्रंश भाषा होनेसे भगवान् के उतने निकट नहीं पहुँच पाती। देवभाषा देवोंसे प्राप्त हुई एक भाषा है, इससे हम देवों तथा देवाधिपति भगवान के निकट उन शब्दोंको शीघ्र पहुँचा सकते हैं। यद्यपि वैदिक-शब्द तो उससे भी बहुत निकटताकारक हैं। पर उस समय हम अस्नात(स्नानादि न किया हुआ) होनेसे उनमें अधिकृत नहीं। उनका तो स्नानोत्तर सन्ध्या आदिमें उपयोग करना पड़ता है। अतः शयनसे उठते ही संस्कृत पद्योंकी आवश्यकता पड़ती है। पद्यकी रचना लययुक्त होनेसे तन्मयतामें विशेष साधन बन जाती है। इनमें कई इस प्रकारके भी पद्य होते हैं, जो भगवान के ध्यानके साथ ही हमें धर्म तथा अपने देशके आन्तरिक परिचय करानेवाले भी होते हैं। इससे हम उस अपने देश तथा अपने धर्मको छोड़ने वा उससे द्रोह करनेका कभी स्वप्न भी नहीं देख पाते। अपने जीवनदाता एवं त्राणकर्ता उस प्रभुको तथा पूर्वोल्लिखित वेदमन्त्रों में कहे हुए देवोंको उस सात्त्विक समयमें स्मरण करना हमें भविष्यत्में भी असन्मार्ग में जाने नहीं देता। प्रातः स्मरणके कुछ पद्य हम लिख देते हैं- | + | प्रातः काल में किया हुआ गान भी अपने तथा दूसरों के आकर्षणका साधन होता है। जब उसमें भी भगवद्भक्ति ओत-प्रोत हो; तो फिर तो क्या कहना इसलिए प्रातः भगवान्को आकृष्ट करनेके लिए, तथा स्वयं भी तन्मयीभावार्थ कई राग वा भजन गाये जाते हैं, जिससे हमारा भावी दैनिक कार्यक्रम भी सुन्दर और निष्पाप बने। पर हमारी लौकिक भाषा अपभ्रंश भाषा होनेसे भगवान् के उतने निकट नहीं पहुँच पाती। देवभाषा देवोंसे प्राप्त हुई एक भाषा है, इससे हम देवों तथा देवाधिपति भगवान के निकट उन शब्दोंको शीघ्र पहुँचा सकते हैं। यद्यपि वैदिक-शब्द तो उससे भी बहुत निकटताकारक हैं। पर उस समय हम अस्नात(स्नानादि न किया हुआ) होनेसे उनमें अधिकृत नहीं। उनका तो स्नानोत्तर सन्ध्या आदिमें उपयोग करना पड़ता है। अतः शयनसे उठते ही संस्कृत पद्योंकी आवश्यकता पड़ती है। पद्यकी रचना लययुक्त होनेसे तन्मयतामें विशेष साधन बन जाती है। इनमें कई इस प्रकारके भी पद्य होते हैं, जो भगवान के ध्यानके साथ ही हमें धर्म तथा अपने देशके आन्तरिक परिचय करानेवाले भी होते हैं। इससे हम उस अपने देश तथा अपने धर्मको छोड़ने वा उससे द्रोह करनेका कभी स्वप्न भी नहीं देख पाते। अपने जीवनदाता एवं त्राणकर्ता उस प्रभुको तथा पूर्वोल्लिखित वेदमन्त्रों में कहे हुए देवोंको उस सात्त्विक समयमें स्मरण करना हमें भविष्यत्में भी असन्मार्ग में जाने नहीं देता। प्रातः स्मरणके कुछ पद्य - |
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| + | प्रातःस्मरणीय श्लोक गणेशस्मरण<blockquote>प्रातः स्मरामि गणनाथमनाथबन्धुसिन्दूरपूरपरिशोभितगण्डयुग्मम्। उद्दण्डविघ्नपरिखण्डनचण्डदण्डमाखण्डलादिसुरनायकवृन्दवन्द्यम्॥</blockquote>'''अनु-''' अनाथोंके बन्धु, सिन्दूरसे शोभायमान दोनों गण्डस्थल- वाले, प्रबल विघ्नका नाश करनेमें समर्थ एवं इन्द्रादि देवोंसे नमस्कृत श्रीगणेशजीका मैं प्रात:काल स्मरण करता हूँ। |
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| + | (विष्णुस्मरण)<blockquote>प्रातः स्मरामि भवभीतिमहार्तिनाशं नारायणं गरुडवाहनमब्जनाभम्। ग्राहाभिभूतवरवारणमुक्तिहेतुंचक्रायुधं तरुणवारिजपत्रनेत्रम्॥</blockquote>'''अनु-''' संसारके भयरूपी महान् दुःखको नष्ट करनेवाले, ग्राहसे गजराजको मुक्त करनेवाले, चक्रधारी एवं नवीन कमलदलके समान नेत्रवाले, पद्मनाभ गरुडवाहन भगवान् श्रीनारायणका मैं प्रात:काल स्मरण करता हूँ। |
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| + | (शिवस्मरण)<blockquote>प्रातः स्मरामि भवभीतिहरं सुरेशं गङ्गाधरं वृषभवाहनमम्बिकेशम्। खट्वाङ्गशूलवरदाभयहस्तमीशंसंसाररोगहरमौषधमद्वितीयम् ॥</blockquote>'''अनु-'''संसारके भयको नष्ट करनेवाले, देवेश, गंगाधर, वृषभवाहन, पार्वतीपति, हाथमें खट्वांग एवं त्रिशूल लिये और संसाररूपी रोगका नाश करनेके लिये अद्वितीय औषध-स्वरूप, अभय एवं वरद मुद्रायुक्त हस्तवाले भगवान् शिवका मैं प्रात:काल स्मरण करता हूँ। |
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| + | (देवीस्मरण)<blockquote>प्रात: स्मरामि शरदिन्दुकरोज्ज्वलाभां सद्रलवन्मकरकुण्डलहारभूषाम् । दिव्यायुधोर्जितसुनीलसहस्त्रहस्तां रक्तोत्पलाभचरणां भवतीं परेशाम्॥ </blockquote>'''अनु-'''शरत्कालीन चन्द्रमाके समान उज्ज्वल आभावाली, उत्तम रत्नोंसे जटित मकरकुण्डलों तथा हारोंसे सुशोभित, दिव्यायुधोंसे दीप्त सुन्दर नीले हजारों हाथोंवाली, लाल कमलकी आभायुक्त |
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| + | चरणोंवाली भगवती दुर्गादेवीका मैं प्रात:काल स्मरण करता हूँ। |
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| + | (सूर्यस्मरण)<blockquote>प्रातः स्मरामि खलु तत्सवितुर्वरेण्यं रूपं हि मण्डलमृचोऽथ तनुर्यजूंषि सामानि यस्य किरणाः प्रभवादिहेतुं ब्रह्माहरात्मकमलक्ष्यमचिन्त्यरूपम् ॥</blockquote>'''अनु-'''सूर्यका वह प्रशस्त रूप जिसका मण्डल ऋग्वेद, कलेवर यजुर्वेद तथा किरणें सामवेद हैं । जो सृष्टि आदिके कारण हैं, ब्रह्मा और शिवके स्वरूप हैं तथा जिनका रूप अचिन्त्य और अलक्ष्य है, प्रात:काल मैं उनका स्मरण करता हूँ। |
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| + | ( त्रिदेवोंके साथ नवग्रहस्मरण)<blockquote>ब्रह्मा मुरारिस्त्रिपुरान्तकारी भानुः शशी भूमिसुतो बुधश्च । गुरुश्च शुक्रः शनिराहुकेतवः कुर्वन्तु सर्वे मम सुप्रभातम्॥(मार्क०स्मृ०)</blockquote>'''अनु-'''ब्रह्मा, विष्णु, शिव, सूर्य, चन्द्रमा, मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र, शनि, राहु और केतु-ये सभी मेरे प्रात:कालको मंगलमय करें। |
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| + | (ऋषिस्मरण)<blockquote>भृगुर्वसिष्ठः क्रतुरङ्गिराश्च मनुः पुलस्त्यः पुलहश्च गौतमः। रैभ्यो मरीचिश्च्यवनश्च दक्षः कुर्वन्तु सर्वे मम सुप्रभातम्॥(वामनपु०१४।३३)</blockquote>'''अनु-'''भृगु, वसिष्ठ, क्रतु, अंगिरा, मनु, पुलस्त्य, पुलह, गौतम, रैभ्य, मरीचि, च्यवन और दक्ष-ये समस्त मुनिगण मेरे प्रात:कालको मंगलमय करें।<blockquote>सनत्कुमारः सनकः सनन्दनः सनातनोऽप्यासुरिपिङ्गलौ।सप्त स्वराः सप्त रसातलानि कुर्वन्तु सर्वे मम सुप्रभातम्॥</blockquote><blockquote>सप्तार्णवाः सप्त कुलाचलाश्च सप्तर्षयो द्वीपवनानि सप्त।भूरादिकृत्वा भुवनानिसप्त कुर्वन्तु सर्वे मम सुप्रभातम्॥ (वामनपु० १४॥ २४, २७)</blockquote>'''अनु-'''धैवत सनत्कुमार, सनक, सनन्दन, सनातन, आसुरि और पिंगल-ये ऋषिगण; षड्ज, ऋषभ, गान्धार, मध्यम, पंचम, तथा निषाद- ये सप्त स्वर; अतल, वितल, सुतल, तलातल, महातल, रसातल तथा पाताल-ये सात अधोलोक सभी मेरे प्रात:कालको मंगलमय करें। सातों समुद्र, सातों कुलपर्वत, सप्तर्षिगण, सातों वन तथा सातों द्वीप, भूर्लोक, भुवर्लोक आदि सातों लोक सभी मेरे प्रात:कालको मंगलमय करें। |
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| + | (प्रकृतिस्मरण)<blockquote>पृथ्वी सगन्धा सरसास्तथापः स्पर्शी च वायुर्चलितं च तेजः। नभः सशब्दं महता सहैव कुर्वन्तु सर्वे मम सुप्रभातम्॥(वामनपु० १४ । २६)</blockquote>'''अनु-'''गन्धयुक्त पृथ्वी, रसयुक्त जल, स्पर्शयुक्त वायु, प्रज्वलित तेज, शब्दसहित आकाश एवं महत्तत्त्व-ये सभी मेरे प्रात:कालको मंगलमय करें।<blockquote>इत्थं प्रभाते परमं पवित्रं पठेत् स्मरेद्वा शृणुयाच्च भक्त्या। दुःस्वप्ननाशस्त्विह सुप्रभातं भवेच्च नित्यं भगवत्प्रसादात्॥</blockquote>'''अनु-'''इस प्रकार उपर्युक्त इन प्रात:स्मरणीय परम पवित्र श्लोकोंका जो मनुष्य भक्तिपूर्वक प्रात:काल पाठ करता है, स्मरण करता है अथवा सुनता है, भगवद्दयासे उसके दु:स्वप्नका नाश हो जाता है और उसका प्रभात मंगलमय होता है। |
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| + | '''पुण्यश्लोकोंका स्मरण''' <blockquote>पुण्यश्लोको नलो राजा पुण्यश्लोको जनार्दनः। पुण्यश्लोका च वैदेही पुण्यश्लोको युधिष्ठिरः॥</blockquote><blockquote>अश्वत्थामा बलिया॑सो हनूमांश्च विभीषणः। कृपः परशुरामश्च सप्तैते चिरजीविनः॥</blockquote>'''अनु-'''राजा नल पुण्यकीर्तिवाले हैं, भगवान् जनार्दन पुण्यकीर्तिवाले हैं, माता सीता पुण्यकीर्तिशालिनी हैं और धर्मराज युधिष्ठिर पुण्यकीर्तिवाले हैं। अश्वत्थामा, बलि. वेदव्यास, हनुमान्, विभीषण, कृपाचार्य और परशुरामये सात चिरजीवी हैं।<blockquote>सप्तैतान् संस्मरेन्नित्यं मार्कण्डेयमथाष्टमम्। जीवेद् वर्षशतं साग्रमपमृत्युविवर्जितः॥</blockquote>इन सातों तथा आठवें जो मार्कण्डेयजी हैं, उनका नित्य स्मरण करना चाहिये । जो ऐसा करता है, उसकी अकालमृत्यु नहीं होती और वह सौ वर्षसे भी अधिक जीता है। <blockquote>उमा उषा च वैदेही रमा गङ्गेति पञ्चकम्। प्रातरेव पठेन्नित्यं सौभाग्यं वर्धते सदा॥ सोमनाथो वैद्यनाथो धन्वन्तरिरथाश्विनौ। पञ्चैतान् यः स्मरेन्नित्यं व्याधिस्तस्य न जायते॥</blockquote>'''अनु-''' उमा, उषा, सीता, लक्ष्मी तथा गंगा-इन पाँच नामोंका नित्य प्रात:काल पाठ करना चाहिये, इससे सौभाग्यकी सदा वृद्धि होती है। सोमनाथ, वैद्यनाथ, धन्वन्तरि तथा दोनों अश्विनीकुमारों-इन पाँचोंका जो नित्य स्मरण करता है, उसे कोई रोग नहीं होता।<blockquote>कपिला कालियोऽनन्तो वासुकिस्तक्षकस्तथा।पञ्चैतान् स्मरतो नित्यं विषबाधा न जायते॥</blockquote><blockquote>हरं हरिं हरिश्चन्द्रं हनूमन्तं हलायुधम्। पञ्चक वैस्मरेन्नित्यं घोरसङ्कटनाशनम॥ (वामनपु० १४॥ २८)</blockquote>कपिला गौ, कालिय, अनन्त, वासुकि तथा तक्षक नाग-इन पाँचोंका नित्य नाम-स्मरण करनेसे विषकी बाधा नहीं होती। भगवान् शिव, भगवान् विष्णु, हरिश्चन्द्र, हनुमान् तथा बलराम-इन पाँचोंका नित्य स्मरण करना चाहिये, यह (स्मरण) घोर संकटका नाश करनेवाला है। <blockquote>आदित्यश्च उपेन्द्रश्च चक्रपाणिमहेश्वरः।दण्डपाणि: प्रतापी स्यात् क्षुत्तृड्बाधा न बाधते॥</blockquote><blockquote>वसुर्वरुणसोमौ च सरस्वती च सागरः।पञ्चैतान् संस्मरेद् यस्तु तृषा तस्य न बाधते॥(पद्मपु० ५१।६-७)</blockquote>आदित्य, उपेन्द्र, चक्रपाणि विष्णु, महेश्वर तथा प्रतापी दण्डपाणिका स्मरण करनेसे भूख और प्यासको |
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| दैनिक कृत्य-सूची-निर्धारण-इसी समय दिन-रातके कार्योंकी सूची तैयार कर लें। | | दैनिक कृत्य-सूची-निर्धारण-इसी समय दिन-रातके कार्योंकी सूची तैयार कर लें। |
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| इस मन्त्रका देवता भी 'हस्त' है। इसमें हाथको भगवान और अतिशयितसामर्थ्ययुक्त और सब रोगोंका भेषजभूत (दवाईरूप) साधन-सम्पन्न स्वीकृत किया है। | | इस मन्त्रका देवता भी 'हस्त' है। इसमें हाथको भगवान और अतिशयितसामर्थ्ययुक्त और सब रोगोंका भेषजभूत (दवाईरूप) साधन-सम्पन्न स्वीकृत किया है। |
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− | जो जितनी अधिक शक्तिवाला होगा; उसके हाथ में शक्ति भी उतनी ही अधिक होगी। इसलिए हम जिनकी वन्दना करके उनका आशीर्वाद चाहते हैं; वे भी अपने हाथसे ही हमारे सिरको स्पर्श करके आशीर्वाद देते हैं। कई ज्यौतिष(सामुद्रिक)विद्याविशारद इसी हाथमें स्थित्रेखाओं द्वारा विविध रोगियोंके रोगोंको दूर कर देते हैं ।हाथमें अमृत के भी स्थित होनेसे गुरुओं द्वारा शिष्यको हाथसे मारने पर भी | + | जो जितनी अधिक शक्तिवाला होगा; उसके हाथ में शक्ति भी उतनी ही अधिक होगी। इसलिए हम जिनकी वन्दना करके उनका आशीर्वाद चाहते हैं; वे भी अपने हाथसे ही हमारे सिरको स्पर्श करके आशीर्वाद देते हैं। कई ज्यौतिष(सामुद्रिक)विद्याविशारद इसी हाथमें स्थित रेखाओं द्वारा विविध रोगियोंके रोगोंको दूर कर देते हैं ।हाथमें अमृत के भी स्थित होनेसे गुरुओं द्वारा शिष्यको हाथसे मारने पर भी |
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| उन्हीं के सन्तान विद्वान्, सभ्य और सुशिक्षित होते हैं, जो पढ़ाने में सन्तानों का लाड़न कभी नहीं करते किन्तु ताड़ना ही करते रहते हैं। इसमें व्याकरण महाभाष्य का प्रमाण है- | | उन्हीं के सन्तान विद्वान्, सभ्य और सुशिक्षित होते हैं, जो पढ़ाने में सन्तानों का लाड़न कभी नहीं करते किन्तु ताड़ना ही करते रहते हैं। इसमें व्याकरण महाभाष्य का प्रमाण है- |