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| चित्रकूट हिन्दुओं के पवित्रतम् स्थानों में है। यह उत्तरप्रदेश के बाँदा जिले में मध्यप्रदेश सीमा पर स्थित हैं। पास में ही कामदगिरि नामक पर्वत भी है। वनवास के समय भगवान् श्रीराम, माँ सीता व लक्ष्मण यहाँ पधारे थे। चित्रकूटही वह स्थान है, जहाँभरतजी ने श्रीराम से भेंट कर उनकी चरण-पादुकाएँ प्राप्त कीं।' गोस्वामी तुलसीदास ने यहीं प्रभु श्रीराम का साक्षात्कार करजीवन को धन्य किया|" वाल्मीकि- रामायण में कहा गया है कि चित्रकूट के दर्शन करते रहने से मानव कल्याण-मार्ग पर चलते हुए मोह और अविवेक से दूर रहता है। भगवान् श्रीराम के चरणों से पवित्र चित्रकूट में महाराज युधिष्ठिर ने कठोर तपस्या की। महाराज नल ने चित्रकूटमेंतप द्वारा अपनेअशुभ कमाँ को जलाकर खोया राज्य पुन:प्राप्त किया। महाकवि कालिदास ने अपने 'मेघदूतम्' में चित्रकूट के सौन्दर्य का मनोहारी वर्णन किया है। पयस्विनी नदी के तट पर स्थित चित्रकूट में रामनवमी, दीपावली तथा चन्द्र व सूर्य ग्रहण के अवसरोंपर मेले आयोजित किये जाते हैं और परिक्रमा की जाती है। यहाँ रामघाट, राम-लक्ष्मण मन्दिर, अनसूया आश्रम, भरतकूप, कोटितीर्थ, हनुमानधारा, गुप्त गोदावरी, देवगांगा आदि धार्मिक व ऐतिहासिक स्थान हैं। अत्रि ऋषि इस क्षेत्र के अधिष्ठाता हैं। अत्रि-अनसूया आश्रम में भगवती सीता ने अनसूया से पति-परायण होने के लिए उपदेश प्राप्त किया था। रामघाट के पास स्थित यज्ञवेदी मन्दिर वह स्थान है जहाँ ब्रह्माजी ने सबसे पहले यज्ञ किया था। यहीं परश्रीराम वभरतमिलाप हुआ। चित्रकूट के पास की बस्ती का नाम सीतापुर है। यहाँ पर जानकी नाम का पवित्र सरोवर है। यहाँ शक्तिपीठ भी हैं। | | चित्रकूट हिन्दुओं के पवित्रतम् स्थानों में है। यह उत्तरप्रदेश के बाँदा जिले में मध्यप्रदेश सीमा पर स्थित हैं। पास में ही कामदगिरि नामक पर्वत भी है। वनवास के समय भगवान् श्रीराम, माँ सीता व लक्ष्मण यहाँ पधारे थे। चित्रकूटही वह स्थान है, जहाँभरतजी ने श्रीराम से भेंट कर उनकी चरण-पादुकाएँ प्राप्त कीं।' गोस्वामी तुलसीदास ने यहीं प्रभु श्रीराम का साक्षात्कार करजीवन को धन्य किया|" वाल्मीकि- रामायण में कहा गया है कि चित्रकूट के दर्शन करते रहने से मानव कल्याण-मार्ग पर चलते हुए मोह और अविवेक से दूर रहता है। भगवान् श्रीराम के चरणों से पवित्र चित्रकूट में महाराज युधिष्ठिर ने कठोर तपस्या की। महाराज नल ने चित्रकूटमेंतप द्वारा अपनेअशुभ कमाँ को जलाकर खोया राज्य पुन:प्राप्त किया। महाकवि कालिदास ने अपने 'मेघदूतम्' में चित्रकूट के सौन्दर्य का मनोहारी वर्णन किया है। पयस्विनी नदी के तट पर स्थित चित्रकूट में रामनवमी, दीपावली तथा चन्द्र व सूर्य ग्रहण के अवसरोंपर मेले आयोजित किये जाते हैं और परिक्रमा की जाती है। यहाँ रामघाट, राम-लक्ष्मण मन्दिर, अनसूया आश्रम, भरतकूप, कोटितीर्थ, हनुमानधारा, गुप्त गोदावरी, देवगांगा आदि धार्मिक व ऐतिहासिक स्थान हैं। अत्रि ऋषि इस क्षेत्र के अधिष्ठाता हैं। अत्रि-अनसूया आश्रम में भगवती सीता ने अनसूया से पति-परायण होने के लिए उपदेश प्राप्त किया था। रामघाट के पास स्थित यज्ञवेदी मन्दिर वह स्थान है जहाँ ब्रह्माजी ने सबसे पहले यज्ञ किया था। यहीं परश्रीराम वभरतमिलाप हुआ। चित्रकूट के पास की बस्ती का नाम सीतापुर है। यहाँ पर जानकी नाम का पवित्र सरोवर है। यहाँ शक्तिपीठ भी हैं। |
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− | विंध्यवासिनी (त्रिपुर) | + | === विंध्यवासिनी ( मिर्जापुर ) === |
− | | + | मिर्जापुर गांगातट पर बसा प्राचीन नगर है। यहाँ पर गंगा के किनारे-किनारे कई घट व मन्दिर हैं। सबसे प्रसिद्ध मन्दिर श्रीतारकेश्वरनाथ महादेव का है। थोड़ी दूरी पर वामन भगवान् का मन्दिर है। यहाँ वामन द्वादशी (भाद्रपद शुक्ल द्वादश) पर मेला लगता है। दुग्धेश्वर शिवमन्दिरअन्य प्रमुख मन्दिर हैं। मिर्जापुर के पास ही विन्ध्यवासिनी नामक प्रसिद्ध देवी का सिद्धपीठ है। यह मन्दिर विध्यांचल के पूर्वी छोर पर एक पहाड़ी पर अधिष्ठित है। महाशक्ति के द्वादश स्वरूपों मे विंध्यवासिनी एक है। इनको कौशिकी देवी भी कहा जाता है। विंध्याचल में महाकाली औरअष्टभुजा के रूप में भी महाशक्ति विराजित है। विंध्यवासिनी से ३ कि.मी.पर महाकाली और महाकाली से लगभग १५ किमी. पर अष्टभुजा देवी मन्दिर विद्यमान है। इस क्षेत्र के अन्य प्रमुख मन्दिर खर्पोरेश्वर शिव,हनुमान, अन्नपूर्णा, श्रीकृष्ण, सीताकुण्ड आदि हैं। |
− | मिर्जापुर गांगातट पर बसा प्राचीन नगर है। यहाँ पर गंगा के | |
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− | किनारे-किनारे कईघट व मन्दिरहैं। सबसेप्रसिद्धमन्दिरश्री तारकेश्वरनाथ | |
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− | 1.चित्रकूट के घाट परभाई सन्तन की भोर।
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− | तुलसीदास चन्दन घिसै तिलक देत रघुवीर।
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− | महादेव का है। थोड़ी दूरी पर वामन भगवान् का मन्दिर है। यहाँ वामन | |
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− | द्वादशी (भाद्रपद शुक्ल द्वादश) पर मेला लगता है। दुग्धेश्वर शिवमन्दिर | |
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− | अन्य प्रमुख मन्दिर हैं। मिर्जापुर के पास ही विन्ध्यवासिनी नामक प्रसिद्ध
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− | देवी का सिद्धपीठ है। यह मन्दिर विध्यांचल के पूर्वी छोर पर एक पहाड़ी | |
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− | पर अधिष्ठित है। महाशक्ति के द्वादश स्वरूपों मे विंध्यवासिनी एक है। | |
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− | इनको कौशिकी देवी भी कहा जाता है। विंध्याचल में महाकाली और | |
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− | अष्टभुजा के रूप में भी महाशक्ति विराजित है। विंध्यवासिनी से 3 कि.मी.
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− | पर महाकाली और महाकाली से लगभग 15 किमी. पर अष्टभुजा देवी | |
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− | मन्दिर विद्यमान है। इस क्षेत्र के अन्य प्रमुख मन्दिर खर्पोरेश्वर शिव, | |
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− | हनुमान, अन्नपूर्णा, श्रीकृष्ण, सीताकुण्ड आदि हैं। | |
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| झाबुरही | | झाबुरही |