Difference between revisions of "शिक्षाप्रक्रियाओं का सांस्कृतिक स्वरूप - प्रस्तावना"
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वर्तमान भारत की शिक्षा का आधार भौतिक ही है जबकि सनातन भारत का सांस्कृतिक । वर्तमान भारत को सनातन भारत में रूपान्तरित करना ही भारत का भारतीयकरण करना है । इस हेतु से शिक्षा का भारतीयकरण करने हेतु उसके भौतिक स्वरूप को सांस्कृतिक स्वरूप में रूपान्तरित करना होगा | | वर्तमान भारत की शिक्षा का आधार भौतिक ही है जबकि सनातन भारत का सांस्कृतिक । वर्तमान भारत को सनातन भारत में रूपान्तरित करना ही भारत का भारतीयकरण करना है । इस हेतु से शिक्षा का भारतीयकरण करने हेतु उसके भौतिक स्वरूप को सांस्कृतिक स्वरूप में रूपान्तरित करना होगा | | ||
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Revision as of 13:22, 6 March 2021
भारत की पहचान आध्यात्मिकता है जिस का व्यवहार स्वरूप संस्कृति है । इसलिये भारत में सबकुछ सांस्कृतिक होता है । वर्तमान में शिक्षा का जो स्वरूप है वह भौतिक है । भौतिक और सांस्कृतिक दो अन्तिम छोर हैं । भारत में जीवन का भौतिक पक्ष सांस्कृतिक अधिष्ठान पर टिका हुआ होता है जबकि पश्चिम में संस्कृति का आधार भी भौतिक होता है । इसलिये जीवन की हर बात दोनों में सर्वथा भिन्न प्रकार से व्याख्यायित होती है ।
वर्तमान भारत की शिक्षा का आधार भौतिक ही है जबकि सनातन भारत का सांस्कृतिक । वर्तमान भारत को सनातन भारत में रूपान्तरित करना ही भारत का भारतीयकरण करना है । इस हेतु से शिक्षा का भारतीयकरण करने हेतु उसके भौतिक स्वरूप को सांस्कृतिक स्वरूप में रूपान्तरित करना होगा |
पढाये जाने वाले हर विषय का एकदूसरे के और समग्र के साथ समायोजन शिक्षा के विभिन्न आयामों का एकदूसरे के साथ समायोजन, और शिक्षा की पुनर्रचना के आयामों की चर्चा इस पर्व में की गई है ।