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# प्राकृतिक संसाधन सम्पत्ति है, मनुष्यों की कार्यकुशलता सम्पत्ति है, समय सम्पत्ति है। प्राकृतिक संसाधन सब की सम्पत्ति है। किसी एक का उसके उपर अधिकार नहीं है। पैसे से, बल से, सत्ता से, ज्ञान से प्राकृतिक संसाधनों पर अधिकार प्राप्त नहीं होता। केवल अल्पतम आवश्यकता ही प्राकृतिक संसाधन पर अधिकार प्राप्त करवाती है। मनुष्य की कार्यकुशलता पर केवल उसका ही अधिकार है, हमारा नहीं। दूसरे की कुशलता का उपयोग पैसे से, बल से, सत्ता से कर लेने का हमें अधिकार नहीं होता। वह प्रार्थना करके ही प्राप्त होता है और प्राप्त होने पर कृतज्ञ होने से ही पुनः प्राप्त नहीं होता।  
 
# प्राकृतिक संसाधन सम्पत्ति है, मनुष्यों की कार्यकुशलता सम्पत्ति है, समय सम्पत्ति है। प्राकृतिक संसाधन सब की सम्पत्ति है। किसी एक का उसके उपर अधिकार नहीं है। पैसे से, बल से, सत्ता से, ज्ञान से प्राकृतिक संसाधनों पर अधिकार प्राप्त नहीं होता। केवल अल्पतम आवश्यकता ही प्राकृतिक संसाधन पर अधिकार प्राप्त करवाती है। मनुष्य की कार्यकुशलता पर केवल उसका ही अधिकार है, हमारा नहीं। दूसरे की कुशलता का उपयोग पैसे से, बल से, सत्ता से कर लेने का हमें अधिकार नहीं होता। वह प्रार्थना करके ही प्राप्त होता है और प्राप्त होने पर कृतज्ञ होने से ही पुनः प्राप्त नहीं होता।  
 
# स्वयं की कार्यकुशलता, इच्छाशक्ति और बुद्धि ऐसी सम्पत्ति है जिसका व्यय करने से वह बढती है इसलिये अपने और दूसरों के लिये उसका खूब प्रयोग करना चाहिये, परन्तु उसके लिये बदले में कुछ माँगना नहीं।
 
# स्वयं की कार्यकुशलता, इच्छाशक्ति और बुद्धि ऐसी सम्पत्ति है जिसका व्यय करने से वह बढती है इसलिये अपने और दूसरों के लिये उसका खूब प्रयोग करना चाहिये, परन्तु उसके लिये बदले में कुछ माँगना नहीं।
# पानी प्राकृतिक संसाधन है, । उसका प्रयोग आवश्यक है उतनी मात्रा में ही करना चाहिये । आवश्यकता से अधिक उपयोग करने पर उसका अपव्यय होता है। हम यदि नदी के किनारे पर रहते हैं तब नदी के पानी का भरपूर प्रयोग कर सकते हैं क्योंकि वह कभी समाप्त नहीं होता और उसके उपयोग में और किसी संसाधन, व्यवस्था या अपने अलावा किसी को श्रम नहीं हुआ । परन्तु उसे यदि पाइप लाइन से हमारे घर तक लाया गया है, किसी व्यक्ति के द्वारा घडा भर कर अपने सर पर उठाकर लाया गया है और उसे शुद्ध करने हेतु पदार्थ और प्रक्रिया का उपयोग किया गया है तो केवल पैसे देने से उसका मन में आये उतना, अकुशलतापूर्वक उपयोग करने का अधिकार प्रात् नहीं होता। पानी का ऐसा उपयोग मितव्ययिता नहीं अपव्यय है।
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# पानी प्राकृतिक संसाधन है, । उसका प्रयोग आवश्यक है उतनी मात्रा में ही करना चाहिये । आवश्यकता से अधिक उपयोग करने पर उसका अपव्यय होता है। हम यदि नदी के किनारे पर रहते हैं तब नदी के पानी का भरपूर प्रयोग कर सकते हैं क्योंकि वह कभी समाप्त नहीं होता और उसके उपयोग में और किसी संसाधन, व्यवस्था या अपने अलावा किसी को श्रम नहीं हुआ । परन्तु उसे यदि पाइप लाइन से हमारे घर तक लाया गया है, किसी व्यक्ति के द्वारा घड़ा भर कर अपने सर पर उठाकर लाया गया है और उसे शुद्ध करने हेतु पदार्थ और प्रक्रिया का उपयोग किया गया है तो केवल पैसे देने से उसका मन में आये उतना, अकुशलतापूर्वक उपयोग करने का अधिकार प्रात् नहीं होता। पानी का ऐसा उपयोग मितव्ययिता नहीं अपव्यय है।
    
==== मितव्ययिता का उदहारण ====
 
==== मितव्ययिता का उदहारण ====

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