Difference between revisions of "विक्रम और बेताल - ज्ञान का उचित उपयोग"
m (Text replacement - "छण" to "क्षण") Tags: Mobile edit Mobile web edit |
(लेख सम्पादित किया) |
||
Line 7: | Line 7: | ||
चार वर्ष बाद चारों भाई शिक्षा ग्रहण करके उसी शिव मंदिर में वापस मिलें। चारों भाई अपनी अपनी शिक्षा की चर्चा करने लगे। पहले भाई ने कहा कि मैंने कंकाल को जोड़ने की शिक्षा ग्रहण की है। दूसरे भाई ने कहा की मैं कंकाल के ऊपर माँस और रक्त भर कर शरीर निर्माण कर सकता हूँ। तीसरे भाई ने कहा मैं बेजान शरीर में प्राण डाल सकता हूँ। चौथे भाई ने कहा कि मैं व्यक्ति को अपनी एक चुटकी से निर्जीव बना सकता हूँ । | चार वर्ष बाद चारों भाई शिक्षा ग्रहण करके उसी शिव मंदिर में वापस मिलें। चारों भाई अपनी अपनी शिक्षा की चर्चा करने लगे। पहले भाई ने कहा कि मैंने कंकाल को जोड़ने की शिक्षा ग्रहण की है। दूसरे भाई ने कहा की मैं कंकाल के ऊपर माँस और रक्त भर कर शरीर निर्माण कर सकता हूँ। तीसरे भाई ने कहा मैं बेजान शरीर में प्राण डाल सकता हूँ। चौथे भाई ने कहा कि मैं व्यक्ति को अपनी एक चुटकी से निर्जीव बना सकता हूँ । | ||
− | मंदिर में विराजमान पार्वती माता चारों भाईयों की बातेंं सुन रही थीं। चारों भाईयो ने तय किया कि हम सब वन में अपनी विद्या का प्रयोग करेंगें। चारों भाई वन में पहुँच गए। बड़ा भाई एक हड्डी लेकर आया और नेत्र बंद करके हड्डी को स्पर्श किया उसी क्षण वह | + | मंदिर में विराजमान पार्वती माता चारों भाईयों की बातेंं सुन रही थीं। चारों भाईयो ने तय किया कि हम सब वन में अपनी विद्या का प्रयोग करेंगें। चारों भाई वन में पहुँच गए। बड़ा भाई एक हड्डी लेकर आया और नेत्र बंद करके हड्डी को स्पर्श किया उसी क्षण वह हड्डी, एक हड्डी के ढांचे में रूपांतरित हो गई। दूसरे भाई ने हड्डी के कंकाल को छुआ तो उस कंकाल में मास और रक्त भर गया । तो मालूम पड़ा की वह शेर का कंकाल है। तीसरे भाई ने कहा की अब मैं इस शेर में जान डालूँगा । दूसरे भाई ने कहा कि तुम इस शेर में जान मत डालो। तीसरे भाई ने कहा की तुम सभी ने भी अपनी विद्या का प्रदर्शन किया । मैं अपनी विद्या का प्रयोग क्यू ना करु ? |
− | तीसरे भाई ने शेर में जान डाल दिया। जैसे तीसरे भाई ने शेर में जान डाला वैसे ही शेर उस के ऊपर कूद गया। उसी क्षण चौथे भाई ने चुटकी बजा दी वह शेर वापस निर्जीव बन गया। तीसरे भाई ने कहा की आज अगर तुम नहीं होते तो शेर हमें खा जाता। पहले भाई ने कहा | + | तीसरे भाई ने शेर में जान डाल दिया। जैसे तीसरे भाई ने शेर में जान डाला वैसे ही शेर उस के ऊपर कूद गया। उसी क्षण चौथे भाई ने चुटकी बजा दी वह शेर वापस निर्जीव बन गया। तीसरे भाई ने कहा की आज अगर तुम नहीं होते तो शेर हमें खा जाता। पहले भाई ने कहा कि इस विद्या का प्रयोग मनुष्य के उपर करना चाहिए । तीनों भाई पहले भाई के बात से सहमत हो गये । पहला भाई ने वन से मनुष्य की हडडी लेकर आया और उसे एक ढांचे का स्वरुप दे दिया। दूसरे भाई ने उस में रक्त मांस का उपयोग कर शरीर का निर्माण कर दिया। शरीर निर्माण होते ही सभी उस शरीर को ध्यान से देखने लगे। वह निर्जीव शरीर एक सुन्दर महिला का था। चौथे भाई ने उस स्त्री के शरीर में प्राण डाल दिए | |
[[Category:बाल कथाए एवं प्रेरक प्रसंग]] | [[Category:बाल कथाए एवं प्रेरक प्रसंग]] |
Revision as of 20:03, 26 October 2020
विक्रम बेताल को वृक्ष से पकड़कर अपने कंधे पर बैठाकर ले जा रहा था । बेताल ने विक्रम से कहा अभी कुटी तक पहुचने में बहुत समय लगेगा, अतः तब तक मैं तुम्हे एक कहानी सुनाता हूँ। तुमने कहानी के मध्य में कुछ भी बोला तो मैं उड़ जाऊंगा। बेताल ने कहानी सुनाना आरम्भ किया ।
एक गाँव में एक बूढ़ा किसान रहता था। वह बहुत मेहनती था। उसका ऐसा मानना था कि काम ही करना सबसे अच्छा है। उसकी पत्नी उसके काम में सहायता करती थी। उसके चार बेटे थे। वह बहुत आलसी थे, दिन भर गाँव में घुमा करते थे या फिर घर में सोते हुए रहते थे ।
एक दिन किसान ने क्रोध में आकर अपने बेटो से कहा की अगर कुछ काम नहीं करना है तो घर छोड़ कर चले जाओ। किसान के बेटे घर छोड़ कर चले गए और चारों गाँव के शिवजी के मंदिर के पास जा कर बातें करने लगे कि अब हम शिक्षा ग्रहण करने के लिए चारों अलग अलग दिशाओ में जायेगे और चार वर्ष के बाद हम इसी शिव मंदिर में मिलेगे ।
चार वर्ष बाद चारों भाई शिक्षा ग्रहण करके उसी शिव मंदिर में वापस मिलें। चारों भाई अपनी अपनी शिक्षा की चर्चा करने लगे। पहले भाई ने कहा कि मैंने कंकाल को जोड़ने की शिक्षा ग्रहण की है। दूसरे भाई ने कहा की मैं कंकाल के ऊपर माँस और रक्त भर कर शरीर निर्माण कर सकता हूँ। तीसरे भाई ने कहा मैं बेजान शरीर में प्राण डाल सकता हूँ। चौथे भाई ने कहा कि मैं व्यक्ति को अपनी एक चुटकी से निर्जीव बना सकता हूँ ।
मंदिर में विराजमान पार्वती माता चारों भाईयों की बातेंं सुन रही थीं। चारों भाईयो ने तय किया कि हम सब वन में अपनी विद्या का प्रयोग करेंगें। चारों भाई वन में पहुँच गए। बड़ा भाई एक हड्डी लेकर आया और नेत्र बंद करके हड्डी को स्पर्श किया उसी क्षण वह हड्डी, एक हड्डी के ढांचे में रूपांतरित हो गई। दूसरे भाई ने हड्डी के कंकाल को छुआ तो उस कंकाल में मास और रक्त भर गया । तो मालूम पड़ा की वह शेर का कंकाल है। तीसरे भाई ने कहा की अब मैं इस शेर में जान डालूँगा । दूसरे भाई ने कहा कि तुम इस शेर में जान मत डालो। तीसरे भाई ने कहा की तुम सभी ने भी अपनी विद्या का प्रदर्शन किया । मैं अपनी विद्या का प्रयोग क्यू ना करु ?
तीसरे भाई ने शेर में जान डाल दिया। जैसे तीसरे भाई ने शेर में जान डाला वैसे ही शेर उस के ऊपर कूद गया। उसी क्षण चौथे भाई ने चुटकी बजा दी वह शेर वापस निर्जीव बन गया। तीसरे भाई ने कहा की आज अगर तुम नहीं होते तो शेर हमें खा जाता। पहले भाई ने कहा कि इस विद्या का प्रयोग मनुष्य के उपर करना चाहिए । तीनों भाई पहले भाई के बात से सहमत हो गये । पहला भाई ने वन से मनुष्य की हडडी लेकर आया और उसे एक ढांचे का स्वरुप दे दिया। दूसरे भाई ने उस में रक्त मांस का उपयोग कर शरीर का निर्माण कर दिया। शरीर निर्माण होते ही सभी उस शरीर को ध्यान से देखने लगे। वह निर्जीव शरीर एक सुन्दर महिला का था। चौथे भाई ने उस स्त्री के शरीर में प्राण डाल दिए |