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| | == यांत्रिकता एक रूपता है == | | == यांत्रिकता एक रूपता है == |
| − | वर्तमान शैक्षिक ढांचे का मुख्य लक्षण है यांत्रिकता <ref>धार्मिक शिक्षा : संकल्पना एवं स्वरूप (धार्मिक शिक्षा ग्रन्थमाला १): पर्व ४, प्रकाशक: पुनरुत्थान प्रकाशन सेवा ट्रस्ट, लेखन एवं संपादन: श्रीमती इंदुमती काटदरे</ref>। | + | वर्तमान शैक्षिक ढांचे का मुख्य लक्षण है यांत्रिकता <ref>धार्मिक शिक्षा : संकल्पना एवं स्वरूप (धार्मिक शिक्षा ग्रन्थमाला १): पर्व ४, प्रकाशक: पुनरुत्थान प्रकाशन सेवा ट्रस्ट, लेखन एवं संपादन: श्रीमती इंदुमती काटदरे</ref>। विद्यालय भवन में और कक्षाकक्ष में हमें यह लक्षण दिखाई देता है । यांत्रिकता प्रकट होती है एकरूपता में । कुछ बिंदु स्पष्ट रूप से हम गिन सकते हैं: |
| | + | * समान आयु के विद्यार्थियों के लिए समान पाठ्यक्रम |
| | + | * सभी विद्यार्थियों के लिए एक ही पाठ्यक्रम |
| | + | * समान पाठ्यक्रम के लिये सबके लिये समान अवधि |
| | + | * सभी विषयों के लिये परीक्षा का समान स्वरूप |
| | + | * सभी विषयों में उत्तीर्ण होने का समान मापदण्ड |
| | + | * उत्तीर्ण होने के लिये सभी विद्यार्थियों के लिये एक ही लक्ष्य |
| | + | * प्रवेश के लिये, पढ़ने के लिये, उत्तीर्ण होने के लिये एक ही आयुसीमा |
| | + | ऐसे और भी आयाम बताये जा सकते हैं परन्तु इतने भी समझने के लिये पर्याप्त है । यांत्रिकता को हमने समानता का नाम देकर उलझा दिया है । एकरूपता को समान मानने की मानसिकता इतनी गहरा गई है कि अब व्यक्ति के हिसाब से कुछ अन्तर करने का प्रयास होता है तो अनेक प्रकार के प्रश्न और विरोध निर्माण हो जाते हैं । |
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| − | विद्यालय भवन में और कक्षाकक्ष में हमें यह लक्षण दिखाई
| + | अब हमें यह समझना और समझाना होगा कि एकरूपता यंत्रों के लिये होती है, जीवित मनुष्यों के लिये नहीं । मनुष्यों की रुचि, स्वभाव, क्षमतायें, गति, आवश्यकतायें सब अपनी अपनी और एकदूसरे से अलग होती हैं । समानता और एकरूपता का मुद्दा ही सुलझाना होगा । मनुष्य का विश्व आन्तरिक समानता से चलता है । जो जैसा है वैसा है । विश्व में एक जैसे कोई भी दो पदार्थ होते नहीं हैं । सब अपनी अपनी गति से, अपनी अपनी पद्धति से, अपनी अपनी रुचि से चलें यही स्वाभाविक विकास का क्रम है । जहां एकरूपता होनी चाहिये वहाँ एकरूपता का और जहां नहीं होनी चाहिये वहाँ उसका आग्रह नहीं रखना ही आवश्यक है । एकरूपता नहीं, समानता के सूत्र पर ही पाठ्यक्रम, पठनसामग्री, समयसारिणी, व्यवस्था आदि का नियोजन करना चाहिये । |
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| − | देता है । यांत्रिकता प्रकट होती है एकरूपता में । कुछ बिंदु
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| − | स्पष्ट रूप से हम गिन सकते हैं ...
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| − | ०... समान आयु के विद्यार्थियों के लिए समान पाठ्यक्रम
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| − | ०... सभी विद्यार्थियों के लिए एक ही पाठ्यक्रम
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| − | ०... समान पाठ्यक्रम के लिये सबके लिये समान अवधि
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| − | सभी विषयों के लिये परीक्षा का समान स्वरूप
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| − | ०... सभी विषयों में उत्तीर्ण होने का समान मापदण्ड
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| − | ०... उत्तीर्ण होने के लिये सभी विद्यार्थियों के लिये एक ही
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| − | लक्ष्य
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| − | ०... प्रवेश के लिये, पढ़ने के लिये, उत्तीर्ण होने के लिये
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| − | एक ही आयुसीमा
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| − | पर्व ४ : शिक्षक, विद्यार्थी एवं अध्ययन
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| − | ऐसे और भी आयाम बताये जा सकते हैं परन्तु इतने
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| − | भी समझने के लिये पर्याप्त है ।
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| − | यांत्रिकता को हमने समानता का नाम देकर उलझा
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| − | दिया है । एकरूपता को समान मानने की मानसिकता इतनी
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| − | गहरा गई है की अब व्यक्ति के हिसाब से कुछ अन्तर करने
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| − | का प्रयास होता है तो अनेक प्रकार के प्रश्न और विरोध
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| − | निर्माण हो जाते हैं ।
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| − | अब हमें यह समझना और समझाना होगा की | |
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| − | एकरूपता यंत्रों के लिये होती है, ज़िंदा मनुष्यों के लिये नहीं । | |
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| − | मनुष्यों की रुचि, स्वभाव, क्षमतायें, गति, आवश्यकतायें सब | |
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| − | अपनी अपनी और एकदूसरे से अलग होती हैं । समानता | |
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| − | और एकरूपता का मुद्दा ही सुलझाना होगा । | |
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| − | मनुष्य का विश्व आन्तरिक समानता से चलता है । | |
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| − | जो जैसा है वैसा है । विश्व में एक जैसे कोई भी दो पदार्थ | |
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| − | होते नहीं हैं । सब अपनी अपनी गति से, अपनी अपनी | |
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| − | पद्धति से, अपनी अपनी रुचि से चलें यही स्वाभाविक | |
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| − | विकास का फ्रम है । जहां एकरूपता होनी चाहिये वहाँ | |
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| − | एकरूपता का और जहां नहीं होनी चाहिये वहाँ उसका | |
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| − | आग्रह नहीं रखना ही आवश्यक है । | |
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| − | एकरूपता नहीं, समानता के सूत्र पर ही पाठ्यक्रम, | |
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| − | पठनसामग्री, समयसारिणी, व्यवस्था आदि का नियोजन | |
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| − | करना चाहिये । | |
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| | == पाठ्यक्रम == | | == पाठ्यक्रम == |