Difference between revisions of "जो जैसा करता है वैसा भरता है"

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एक समय की बात है एक गांव में पारसमल नाम के एक व्यापारी रहते थे। उनका काम धंधा कुछ मंदा चल रहा था, इसलिए उसने धन कमाने के लिए उन्होंने शहर में जाने का फैसला किया। उनके पास न धन थे नहीं पुरखो की कोई मूल्यवान वस्तु थी। केवल उनके पास एक लोहे का वजन करने का तराजू था। उस तराजू को उन्होंने गिरवी रखकर बदले में कुछ रुपये ले लिए। पारसमल ने साहूकार से कहा कि वह शहर से लौटकर अपना उधार चुका कर तराजू वापस ले लेगा।
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एक समय की बात है एक गांव में पारसमल नाम के एक व्यापारी रहते थे। उनका काम धंधा एकदम मंदा चल रहा था, इसलिए उसने धन कमाने के लिए उन्होंने शहर में जाने का फैसला किया। उनके पास न धन थे नहीं पुरखो की कोई मूल्यवान वस्तु थी। केवल उनके पास एक लोहे का वजन करने का तराजू था। उस तराजू को उन्होंने गिरवी रखकर बदले में कुछ रुपये ले लिए। पारसमल ने साहूकार से कहा कि वह शहर से लौटकर अपना उधार चुका कर तराजू वापस ले लेगा, और वह धन कमाने शहर चला गया |
  
 
दो साल बाद वह शहर से लौटकर अपने गांव आया और अपना तराजू वापस लेने सहकर के घर गया। साहूकार बोला कि उस तराजू को चूहों ने खा लिया। पारसमल समझ गया कि साहूकार की नियतमें खोट आ हो गई है और वह मेरा तराजू वापस करना नहीं चाहता। तभी पारसमल के दिमाग में एक युक्ति सूझी। उसने साहूकार से कहा कि कोई बात नहीं अगर तराजू चूहों ने खा लिया है, तो इसमें तुम्हारी कोई गलती नहीं है। सारी गलती उन चूहों की है।
 
दो साल बाद वह शहर से लौटकर अपने गांव आया और अपना तराजू वापस लेने सहकर के घर गया। साहूकार बोला कि उस तराजू को चूहों ने खा लिया। पारसमल समझ गया कि साहूकार की नियतमें खोट आ हो गई है और वह मेरा तराजू वापस करना नहीं चाहता। तभी पारसमल के दिमाग में एक युक्ति सूझी। उसने साहूकार से कहा कि कोई बात नहीं अगर तराजू चूहों ने खा लिया है, तो इसमें तुम्हारी कोई गलती नहीं है। सारी गलती उन चूहों की है।

Revision as of 13:09, 29 July 2020

एक समय की बात है एक गांव में पारसमल नाम के एक व्यापारी रहते थे। उनका काम धंधा एकदम मंदा चल रहा था, इसलिए उसने धन कमाने के लिए उन्होंने शहर में जाने का फैसला किया। उनके पास न धन थे नहीं पुरखो की कोई मूल्यवान वस्तु थी। केवल उनके पास एक लोहे का वजन करने का तराजू था। उस तराजू को उन्होंने गिरवी रखकर बदले में कुछ रुपये ले लिए। पारसमल ने साहूकार से कहा कि वह शहर से लौटकर अपना उधार चुका कर तराजू वापस ले लेगा, और वह धन कमाने शहर चला गया |

दो साल बाद वह शहर से लौटकर अपने गांव आया और अपना तराजू वापस लेने सहकर के घर गया। साहूकार बोला कि उस तराजू को चूहों ने खा लिया। पारसमल समझ गया कि साहूकार की नियतमें खोट आ हो गई है और वह मेरा तराजू वापस करना नहीं चाहता। तभी पारसमल के दिमाग में एक युक्ति सूझी। उसने साहूकार से कहा कि कोई बात नहीं अगर तराजू चूहों ने खा लिया है, तो इसमें तुम्हारी कोई गलती नहीं है। सारी गलती उन चूहों की है।

थोड़ी देर बाद उसने साहूकार से कहा कि दोस्त मैं नदी में नहाने जा रहा हूं। तुम अपने बेटे को भी मेरे साथ भेज दो। वो भी मेरे साथ नहा आएगा। साहूकार पारसमल के व्यवहार से बहुत खुश था, इसलिए उसने पारसमल के साथ अपने बेटे को नहाने के लिए नदी पर भेज दिया। पारसमल ने साहूकार के बेटे को नदी से से कुछ दूर ले जाकर एक गुफा में बंद कर दिया। उसने गुफा के दरवाजे पर बड़ा-सा पत्थर रख दिया, जिससे साहूकार का बेटा बचकर भाग न पाए। साहूकार के बेटे को गुफा में बंद करके जीर्णधन वापस साहूकार के घर आ गया। उसे अकेला देखकर साहूकार ने पूछा कि मेरा बेटा कहां हैं। जीर्णधन बोला कि माफ करना दोस्त तुम्हारे बेटे को चील उठाकर ले गई है।

साहूकार हैरान रह गया और बोला कि ये कैसे हो सकता है? चील इतने बड़े बच्चे को कैसे उठा ले जा सकती है? जीर्णधन बोला जैसे चूहे लोहे के तराजू को खा सकते हैं, वैसे ही चील भी बच्चे को उठाकर ले जा सकती है। अगर बच्चा चाहिए, तो तराजू लौटा दो।

जब अपने ऊपर मुसीबत आई तब साहूकार को अक्ल आई। उसने जीर्णधन का तराजू वापस कर दिया और जीर्णधन ने साहूकार के बेटे को आजाद कर दिया।

कहानी की सीख

जो जैसा व्यवहार करता है उसके साथ वैसा व्यवहार करो, ताकि उसे अपने गलती का अहसास हो जाए।